गिरधरदान रतनू दासोड़ी
जद ईसरा-परमेसरा कैयो कै आपनै जसजोग काम करणो चाहीजै !क्यूंकै महलां रा झरोखा तो बखत बीत्यां झड़ पड़ैला पण गीतां रा गोख अखी है-
एहा वैण दाखवै ईसर,
मांझी वंश तणा कुल़ मौड़।
झड़सी महलां तणा झरोखा ,
रहसी गीत कहै राठौड़।।
जिण जिण नरां जस रा महल चिणाया वे आज ई अखी ऊभा उण नरां रै नाम री जस पताका फहरावै।आज नीं तो आसो डाबी है नीं वाघो कोटड़ियो पण उणां रो जस अमर है-
कोटड़ियो वाघो कठै,
आसो डाबी आज।
गवरीजै जस गीतड़ा,
गया भींतड़ा भाज।।
नागौर री धरा माथै
ऐड़ा ई दो जसधारी जाट होया जिणां री गरवीली गाथा आज ई नागौर री धरा माथै मायरो भरती वेल़ा अवस ही गाईजै।
बात यूं चालै कै दिल्ली माथै तुगलक वंश रो शासन हो।हर दिल्ली रै शासक री कुदीठ नागौर माथै रैयी क्यूंकै आ धरा उपजाऊ ही
-सियाल़ो खाटू भलो,
ऊनाल़ो अजमेर।
नागाणो नितरो भलो,
सावण बीकानेर।।
इण वास्तै इण धरा माथै घणोकरक शासन दिल्ली रो रैयो।
दिल्ली शासन नै कर बीजो उगराय दिल्ली पूगतो करण सारू
उठै रै शासकां जायल रै गोपाल़जी जाट जिणां री शाखा बासट अर खिंयाल़ै रा धरमोजी जाट जिणांरी शाखा बिडियासर ही नै ओ जिम्मो दे राख्यो हो।
खल़ा-लाटां लाटियां पछै दोनूं चौधरी रकम भेल़ी कर ऊ़ठां लद बूवा जको अजमेर-जयपुर रै सीमाड़ै बसिये गांम हरमाड़ा रै कुए माथै आय ऊंठ झेकिया।
पाणी-पीच करर ऐ आडटेड करी ईज ही कै जितै उणां मांय सूं एक चौधरी नै किणी लुगाई रै रोवण री आवाज सुणीजी। उणां देखियो कै कोई ओपरी छिंया(भूत -पलीत) है कै कोई दुखियारण! पण है जको ई सही ,मिनख रो फरज बणै कै रोवणियै रा आंसू पूंछ थावस दियो जावै।उणां जाय पूछियो कै व्हाला !लुगाई जात अर रात री कुए माथै एकली !वा ई भल़ै डुसकै चढ्योड़ी!!ऐड़ो कांई दुख है? है,जको ई बता।म्हारै डोल़ सारू मदत करूंलो।"
"मदत !तो म्हारी सांवरिये नीं की थे कांई करोला ?म्हारा अभगाण रा मदत जैड़ा भाग नीं है।पण थे पूछ्यो है जणै बतावणो ठीक रैसी।म्हारी बेटी रो सवारै ब्याव है।मा रो जायो कोई भाई नीं सो मायरो कुण लावै?
मायरो तो उधारी हाती है।ई हाथ लैणो अर बी हाथ दैणो। म्है लैती बखत सिनगिन्न नीं राखी सो दियो उणसूं ई लेती गी पण हमे वड़सी उतारणी कीकर रैयी?आ सोच पाणी रै मिस कुए आई।सोचियो मर जावूं सो लारो छूटै पण सास अर बास दोरा छूटै!!मरणो मोटो धरणो है सो मरण सूं डरगी।जीव रै उकराल़ियै हूबाड़ फाटी सो थे सुण लीनी!! " उण लुगाई बतायो जणै चौधरी बोल्यो-
अरै !बेटी री बाप आपघात !महापाप क्यूं करै?मिनख जनम कोई बार-बार थोड़ो ई मिलै सो तूं इयां मरण संभी है!हरि करै वा खरी। तनै म्है देखती हिंयाल़ी मरण नीं दूं।म्हनै ई राम रै घरै जावणो है! उठै कांई जवाब देवूंलो?"
गैली तनै किण कैयो कै थारै भाई नीं है ?ले म्हारै, थारै ओढणै रो धागो बांध !म्है थारो आज सूं भाई, तूं म्हारी बैन !पण तूं है कुण?" वा इणगत हिंवल़ास अर अपणास रा ठिमर बोल सुण बोली-
"म्है लिछमा गुजरणी हूं।म्हारी देराण्यां-जेठाण्यां रै सवारै मायरो आसी पण म्हारै कुण लावै? जणै घरवाल़ां मोसा() दे दे म्हनै अधगावल़ी कर नांखी!! म्है सोच्यो रे जीव ऐड़ै जीवणै बिचै तो मरणो ई चोखो सो मैण्यां तो नीं सुणणी पड़ै।आ सोच र म्है अठै आई पण मरणो कांई सोरो है? जीव व्हालो है !!मरीज्यो नीं जणै रोय थोड़ो काल़जो हल़को करै ही अर थे आयग्या। जणै म्है जाण लियो कै म्हारै करम में फखत मोसा सुणणा ईज लिख्या है!!गरीब नै तो लोग नीं तो सोरै सास जीवण दे अर नीं मरण दे!!पण थांरा बोल म्हारै काल़जै री समूल़ी कल़जल़ मेटदी।"
आ सुण चौधरी बोल्यो कै-
"भाई रै देखतां जे बैन रोवै अर वो उणरा आंसू नीं पूंछ सकै तो पछै भाई नै लख लाणत है।तूं म्हारी आज सूं धरम री बैन है !! तूं म्हनै ई मा- जायो ईज मान।फूल सारू पांखड़ी रै उनमान मायरो भरूंलो।रोय मती अर भाई नै टीकण री त्यारी कर।"
एकर तो उणरै जची नीं ।उण जाणियो कै मरण सूं बचावण कारणै ओ भलो आदमी भूलथाप देवै।उण खराय पूछियो कै -"कांई थे म्हनै बैन मानी ?जे बैन मानी जणै म्है कोई मायरै री भूखी नीं हूं म्हनै माखी नीं मल़को मारै सो थे म्हनै चूंदड़ी ओढायदो अर छोरी नै पाट उतारदो!!"वा भलै कीं कैती जितै चौधरी कैयो कै -"काली तूं हाल! वीरो टीकण री त्यारी कर अर थारै कड़ूंबै वाल़ां नै नूंत !!म्हनै ई मायरो भर आगै जावणो है!!"
उणनै पतियारो आयग्यो कै मिनख अणीपाणी वाल़ो है।
वा पाछी आपरै घरै आई, जणै उणरी सासू उणनै मैणी देती बोली कै -"मरी कोनी कांई?थारी मा भाई जिणियो ई नीं जणै कठै सूं आवतो ? जणै तो सिरूखी सइयां कनै सूं वेश ले ले र ऊंडा मेलिया ।देवण री बारी आई जणै रोवै अर ढफल करै ।"
आ सुण उण कैयो कै-ढफल करै म्हारो खेटर!सवार रा म्हारो भाई मायरो भरसी।"
आ बात सुण उणरी सासू बोली कै- "मायरै री भूखी किणी खीचड़ै रै ठांमां नै तेड़र लाई है ला !!बाकी कागां रै बागां होवै तो उडतां रै दीसै नीं।करमहीणी जे दीयै जैड़ै भाग होवता तो रातींधो ई क्यूं होवतो?"
अठीनै उण चौधरी जाय दूजोड़ै नै कैयो कै -"एक बैन नै वचन दे आयो हूं।सो प्रभातै मायरो भरणो पड़सी।"
दूजैड़ै कैयो-ई में सोचण री कांई बात है?मरदां रा दिवाल़ा मुवां निकल़ै। कोई बात नीं मायरो ऐड़ो भरांला कै दो भाई बात करैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"आपां कनै रकम राज री है! भाई धन धणी रो है! ग्वाल़ रै हाथ में गेड है!!आपां जाणां कै रकम नीं भरियां पातसाह खाल में लूण भराय देवैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"मा सूं मोटी गाल़़ नीं।परमारथ रै कारणै मरणो पड़ै तो पड़ै!! थारो वचन तो पूरो करांला।"
ऐ दोनूं रात रा निकल़िया अर मायरै जोग वुस्तां भेल़ी की अर भाखफाटी गुजरणी रै फल़सै जाय ढूका।
आगै गुजरणी रै घरै ई बात माथै गोधम हो कै रात -रात में भाई कठै सूं आया? अर सासू कैवै ही कै भलांई कुवो -खाड कर पण मायरो भरा।"
आ कैवै ही कै मायरो म्हारो धरम-भाई अवस भरसी।"
आं दोनां री बात सुण ऐ दोनूं चौधरी ई बोल उठ्या कै-"हां सगीजी बाई साची कैवै।म्हांरै कनै बखत कमती ईज है सो मायरै री त्यारी करावो।"
घरवाल़ां ई देखियो कै दो ऊंठधारी मायरै री खथावल़ करै ।
एकर तो उणांरै ई मनी नीं सेवट मायरै री त्यारी होई।
मायरो का तो नरसी भरियो का आं चौधरियां!!
लगान री पूरी रकम लिछमा गूजरी रै मायरै में भरदी। दो ऊंठां माथै लदी रकम,सोनो चांदी आद सगल़ो चौधरियां लिछमा रै मायरो में लुटाय सगां सूं रजा मांग दिल्ली रै मारग खड़िया-
राहब कह रे साहबा,
हाउ ज देखण हल्ल।
मरजाणा संसार में,
पड़ी रहेगी गल्ल।।
दोनां दिल्ली जाय सुलतान नै धरामूल़ सूं मांडर बात बताई।
साच नै सरप ई नीं डसै, क्यूंकै साचै राचै राम !!आ बात सुण पातसाह ई रीझियो अर कैयो कोई बात नीं रुपियो हाथ रो मैल है !!आगलै साल पाछो उगरालां ला पण आ बात पाछी नीं मिलती।चौधरियां धिन है थांनै जको मोत अंगेज र ई बात राखी।थांरी इण हूंस सूं सिद्ध होवै कै मारवाड़ नर -संमद है!सो मारवाड़ में नर नीपजै।
आज नीं वा सल्तनत है अर नीं वे चौधरी पण उण दोनां नरां री अंतस उदारता आज ई अमर है।नागाणै री धरा माथै मायरो भरजीती बखत लुगायां -"वीरा रमक-झमक होय आज्यो!
म्हारी भावज नै साथै लाज्यो।" गावै कै नीं गावै पण उण जाटां माथै गीरबो करती आज ई गावै कै-
'बीरा बणजे तूं जायल रो जाट!!
बणजे खियाल़ा रो चौधरी !!
तो साथै ई जायल री जसजोगी धरा माथै गुमेज करती अजेज गावै-
"धौल़ा ए जायल रा फूल,
रातहड़ल्यां रंग चूंदड़ी!!"
जदै ई तो लोकसाहित्य अर संस्कृति रा कुशल़ चितेरा डॉ शक्तिदानजी कविया लिखै--
जस जायल रै जाट रो,
गीत लुगायां गाय।
राज-रेख री रकम सूं,
भर्यौ भात बण भ्रात।।
उण नखतधारी नरां री उदारता अर निडरता नै चितारतां इण ओल़्यां रै लेखक ई लिख्यो-
अंतस अथग उदारता,
खरो सुजस जग खाट।
हुवा अमर इल़ हेरलो,
जोगायत सूं जाट।।
बहिया सतवट वाट।
एक खिंयाल़ै ईखलो,
जायल दूजो जाट।।
माया सँची न माट।
भात भर्यो सुध भाव सूं,
जस अस लाटण जाट।।
हेत हियै री हाट।
राज-रेख री रकम सूं,
जस धर लीधो जाट।।
गि.रतनू