रविवार, 14 अप्रैल 2019

बेशकीमती बोट

प्रिय साथियों!
सादर अभिवादन।
            दिनांक 29 अप्रेल2019 को लोकतंत्र का महापर्व है। आपसे अपील है कि इस दिन मतदान अवश्य ही करें साथ ही आपके पडोसियों,परिजनों,परिचितों,परिवारवालों व सगा- संबंधियो को भी मतदान हेतु प्रेरित करें।पांच वर्ष पश्चात आने वाले इस मताधिकार का प्रयोग  विवेक के साथ,सोच समझकर करें ताकि किसी गलत आदमी का चयन रोका जा सके।
आज जिस तरह भाई-भतीजावाद व जातिवाद के नाम पर समाज की सामूहिकता के भाव व समरसता को चोट पहुंचाई जा रही है, उससे लोकतांत्रिक व्यवस्था को चोट पहुंचने की संभावनाएं बढ़ती जा रही है।
आज आम आदमी के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा दिखाई देता है कि ऐसे में किसको अपना प्रतिनिधि चुने?
मैंने आपकी इसी  शंका व संशय के समाधान हेतु कतिपय दोहे लिखे हैं ।जो शायद आपका कुछ मार्ग प्रसस्त कर सकें। सादर अवलोकनार्थ पेश है--
       बेशकीमती बोट
दिल मे चिंता देश री,
मन मे हिंद मठोठ।
भारत री सोचे भली, बिणनै दीजो बोट।।

कुटल़ाई जी में करे,
खल़ जिणरै दिल खोट।
नह दीजो बी निलज नै,
बहुत कीमती बोट।।

कुटल़ा कपटी कूडछा,
ठाला अनपढ ठोठ।
घर भरवाल़ा क्रतघणी,
भूल न दीजो बोट।।

बुध हीणा,गत बायरा,
पाप कमाणा पोट।
विस कटूता री विसतरै,
कदैन दैणा बोट।।

दशा बिगाडै दैश री,
कर हिंसा विस्फोट।
मोहन कहै दीजो मति,
बां मिनखां नै बोट।।

आयां घर आदर करै, सहविध करै सपोट।
मोहन कहै बि मिनख नै,
बेसक दीजो बोट।।

जात -पांत नह जोवणी,
नह बिकणो ले नोट।
भासा रै खातिर भिड़ै,
बिणनै दैणां बोट।।

सर्वधर्म सदभावना, सबजन लेय परोट।
हिल़मिल़ चालै हेत सू,
बी ने दीजो बोट।।

करड़ाई अड़चन करै,
सागै रखणो सोट।
निरभय,निडर,निसंक व्है,
बे हिचक दो बोट।।

पांच बरस बित्यां पछै, आयो परब अबोट।
चित उजवल़ नह चूकणो,
बढ चढ दीजो बोट।।

इण अवसर दारू अमल,
हिलणो नीं धर होठ।
जगां जगां नी जीमणो,
देख चीकणां रोट।।

प्रात काल न्हायां पछै,
हरि सुमरण कर होठ।
देणो बटण दबाय कर,
अवस आंपणो बोट।।

कल़ै कराणा कुटंब में,
कूड़ तणा रच कोट।
दुसटां नै नह देवणो,
बिलकुल अपणो बोट।।

अतंस तणी अवाज सुण,
सुध हृदय मन मोट।
विध विध सोच विचार ने,
बेसक दीजो बोट।।

रचियता
मोहन सिह रतनू,से.नि
आर.पी.एस ,जोधपुर

रविवार, 7 अप्रैल 2019

जै  ना खायो  चूरमा....

*राजस्थान का भोजन

जै  ना खायो  चूरमा,किया बनसी सूरमा
जै  ना  खायो नुक्ती,किया मिलसी मुक्ति
जै  ना खायो  थूली,दुनिया बीने ही भूली
जै ना खाई लापसी,आत्मा किया धापसी
जै  ना  खायो  सीरो,बण  के  रेग्यो  जीरो
जै ना खायो सोगरो,दास  बणग्यो रोग रो
जै  ना खाई  राबड़ी,सकल  होगी छाबड़ी
जै   ना  खाई  कड्डी,कमजोर होयगी हड्डी
जै ना खायो मिर्ची बडा, विचार  रेवे कड़ा
जै  ना  खायो दाल बाटी, जिंदगी है माटी
जै ना खायो खांकरा, कर्मा में है  कांकरा
जै  ना  खायो पीटलो, है बो सेउं फीटलो
जै ना खाया केर, कोनी बिकी कोई  खैर
जै ना खाई गंवार फली,नसा बिकी गली
जै  ना  खायो  घेवर,ठंडा  पड़ग्या  तेवर
जै ना खाई फीणी, केंकी  जिंदगी जीणी

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

ओ देस कठीनैं जार्यो है  !

ओ देस कठी'नैं जार्'यो है  !
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           रचना  : मानसिंह शेखावत 'मऊ'
ओ देस कठी'नै जार्'यो है !
नहीं भेद रामजी पार्'यो है !!
          बोलण-चालण का सू'र नहीं !
          तन ऊपर ढंग का पू'र नहीं !!
          आ होठां सूं रंगरेजां सी !
          आ बोली सूं अंगरेजां सी !!
पण आँख्यां काजळ सार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
          हाथां सुहाग की चूड़ी ना !
           पग मैं बाजै बिछूड़ी ना !!
           काळी नागणं सा बाळ कठै ?
           माथै सिंदूरी टाळ कठै ??
तन गाबाँ बारैं आर्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
           आ धक्का-मुक्की गाड्यां की !
           आ खिंची लूगड़ी लाड्यां की !!
           अै लड़ै लुगायाँ टूँट्यां पर !
           अै सरम टाँक दी खूँट्याँ पर !!
घरधणी घूँघटो सार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
           बा सीता की सी लाज कठै !
            बो रामराज सो राज कठै !!
            पन्ना धायण सो त्याग कठै !
            बा तानसेन सी राग कठै !!
ओ फिलमी गाणां गार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
             अै दूंचै पूत जणीतां नैं !
             आ बाड़ चाटगी खेताँ नैं !!
             असमत लुट'री थाणै मैं !
              झै'र दवाई खाणै मैं !!
ओ हात,हात नैं खार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार'यो है !!
               छोरा-छोर्'याँ को मिट्यो भेद !
                रद्दी कै सागै बिक्यो वेद !!
                डिसको को रोग चल्यो भारी !
                डिसको राजा अर दरबारी !!
आँख्यां पर जाळो छार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
                 के हाल कहूँ गुरु-चेलै का !
                 लक्खण आँ मैं नहीं धेलै का !!
                 ऐ साथ मरै अर साथ जिवै !
                  बोतल अर बीड़ी साथ पिवै !!
खेताँ मैं तीतर मार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
                   धोळै दोपारां डाको है !
                   ओ लूंठाई को हाको है !!
                   झूंठै कोलां को खाको है !
                    फाट्यै गा'बै मैं टाँको है !!
ओ मिनखपणै नैं खार्'यो है !
ओ देस कठी'नैं जार्'यो है !!
रचनाकार : मानसिंह शेखावत 'मऊ'