रविवार, 20 जनवरी 2019

रामगढ़ सेठान :शेखावाटी शान

राजस्थानी भाषा के जाने-माने जनकवि चिंतक विचारक और लेखक आदरणीय श्रीमान आईदान सिंह जी भाटी जो साहित्य जगत में आई जी के नाम से प्रसिद्ध है उनके पोस्ट शेयर कर रहा हूं बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट

रामगढ़ सेठान :शेखावाटी शान
--दयाराम महरिया, सीकर की कलम से लिखी पोस्ट -

रामगढ़ सेठान की स्थापना के पीछे एक अन्तर्कथा है ।सीकर ठिकाने के शासक रावराजा देवीसिंह थे ।
् देवी सिंह का ससुराल चूरू था । उनकी रानी को भाभी ने ताना मारते हुए कहा की चूरू सीकर से सुंदर शहर है । इस पर रानी ने देवी सिंह को कहा कि चूरू से सुंदर शहर बसाने पर ही वह अन्न ग्रहण करेगी । रूठी रानी को मनाने के लिए देवी सिंह ने उस समय के चूरु के प्रसिद्ध सेठ(श्रेष्ठ) चतुर्भुज पोद्दार के बही खाते जबरदस्ती मंगवा लिए जब चतुर्भुज उनको लेने के लिए राव राजा के पास आया तो राव राजा ने उसके सामने शर्त रखी की चूरू से सुंदर शहर बसाओ तभी आपके बही खाते वापस लौटाऊंगा । चतुर्भुज ने वादा किया और रानी को मनाया कि शीघ्र ही चूरू से सुंदर शहर बसा दिया जाएगा । राव राजा को दिए आश्वासन को पूरा करने के लिए चतुर्भुज पोद्दार ने 1790 ईस्वी में सीकर ठिकाने की उत्तरी सीमा पर स्थित नासा नामक ग्राम में रामगढ़ बसाया ।चतुर्भुज ने राजस्थानी कि इस कहावत 'गांव बसायो बाणियों ,पार पडे़ जद जाणियों ' को असत्य सिद्ध कर दिया । उस समय दूसरे शहरों से संपन्न सेठ वहां आकर बसे ।फतेहपुर के बंसल वहां आकर बसे जिनका रुई का व्यवसाय होने के कारण रुईया कहलाये । वहां के सेठ ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ व्यवसाय करने लगे ।1860 ई. के आसपास रामगढ़ के पोद्दारों की प्रथम पंजीकृत कम्पनी 'ताराचंद- घनश्याम ' 'थी ।उसी कम्पनी के साथ पिलानी की शिवनारायण बिड़ला (घनश्याम दास बिड़ला के दादा )ने नाममात्र की हिस्सेदारी के साथ प्रथम बार स्वतंत्र व्यापार में प्रवेश किया ।घनश्यामदास बिड़ला की जीवनी 'मरुभूमि का वह मेघ' में कंपनी का नाम 'चेनीराम जेसराज 'लिखा है ।वे बंबई में अफीम का व्यवसाय चीन के साथ करते थे । ध्यातव्य है कि शिवनारायण के पिता शोभाराम तो पूर्णमल गनेडी़वाले सेठों की गद्दी पर अजमेर में 7 रुपये महीने पर नौकरी करते थे ।चतुर्भुज बंसल गोत्र का अग्रवाल महाजन था । उनके पूर्वज शासन में पोतदार (खजांची )थे ।अतः वे पोद्दार कहलाए ।प्राचीन भारतीय समाज में  वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं थी ।वर्ण का निर्धारण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता था। वैदिक युग में वैवस्वत मनु के पुत्र नाभानिर्दिष्ट की कथा प्रसिद्ध है । जिन्होंने अपने पिता के क्षत्रिय वर्ण को छोड़ कर वैश्य वर्ण का वरण कर लिया था ।  अग्रवाल, महेश्वरी आदि गोत्र के महाजन पहले क्षत्रिय थे परंतु उनके पूर्वज क्षेत्रीय कर्म छोड़कर वैश्य कर्म करने लगे ।अतःवैश्य कहलाए । वह अपने क्षेत्रीय अतीत को याद रखते हुए अपनी व्यवसाय पीठ को आज भी गद्दी कहते हैं। शेखावाटी में बसने से पहले उनकापंजाब क्षेत्र में व्यवसाय था । पंजाब प्रारंभ से ही क्षेत्र सिंचित क्षेत्र होने के कारण संपन्न था वहां व्यापार वाणिज्य  खूब फला फूला । वहां के व्यापारियों के अफ़गानिस्तान ,चीन ,फारसआदि से व्यापारिक रिश्ते थे ।वह 'बलदां खेती' घोड़ा राज 'का जमाना था ।काबुल के व्यापारी घोड़े ,पिंडखजूर आदि लेकर के आते थे ।रवींद्रनाथ टैगोर की सुप्रसिद्ध कहानी 'काबुलीवाला' कहानी का कथानक भी यही है। काबुल के घोड़े बड़े प्रसिद्ध होते थे । कहा भी है  -केकाण(घोड़े) काबुल भला । महाराणा प्रताप का घोडा़ चेटक (अर्थ-सेवक) भी काबुल का ही था ।कालांतर में उत्तर की ओर से विदेशी हमले होने लगे तो उन्होंने किसानों की आबादी से घिरे दुर्गम, शांत व असुन्दर स्थानों को अपने बसने  के लिए चुना । इसी क्रम में शेखावाटी में आबाद हुए  ।मरुभूमि का मतलब मृतभूमि होता है परंतु यहां के वीरों -दानवीरों ने इसे अमृतभूमि बना दिया ।कन्हैयालाल सेठिया ने इसीलिए लिखा -आ तो सुरगां ने सरमावै, इण पर देव रमण ने आवै ,धरती धोरां री -----।उन्होंने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियां बनाई जो सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत होने के साथ-साथ रहने के लिए भी काफी अच्छी थी । रामगढ़ सेठान की हवेलियां भी  बडी़ चित्त -आकर्षक हैं । 1835 के रामगढ़ की एक झलक लेफ्टिनेंट बोइलू की डायरी में मिलती है ।जिसने मरू प्रदेश की उस वर्ष यात्रा की उसने रामगढ़ को एक समृद्ध सीमा स्थित कस्बे के रूप में जो स्वच्छता के साथ साथ घेरे के अंदर स्थित है और साहूकारों से भरा हुआ बताया है जिनकी कमाई पर अब तक किसी को न बक्शने वाली कैंची नहीं पड़ी है। सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर कैप्टन वेब जो 1934 से 38 तक सीकर ठिकाने का सीनियर अफसर रहा ,ने 'सीकर की कहानी 'नामक अंग्रेजी में पुस्तक में अपने प्रवास के दौरान सीकर ठिकाने के संस्मरण लिखें हैं ।उसमें कैप्टन वेब ने रामगढ़ के सेठों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बताया है है ।इसी कारण राज दरबार में भी उन्हें पूरा सम्मान मिलता था तथा विशेष कुर्सी रामगढ़ के क्षेत्रों को उपलब्ध करवाई जाती थी ।
    मेरे मित्र जनकवि रामेश्वर बगड़िया ने मुझे कहा कि रामगढ़ को गर्भ  को देखने चलें ।अतः 7 जनवरी, 2019 को हम दोनों रामगढ़ सेठान गए  ।रामगढ़ में पुरातन वस्तुओं के संग्रहालय कई व्यक्तियों ने बना रखे हैं ।उनके माध्यम से वह अपना व्यवसाय करते हैं ।देश -विदेश के पर्यटक उन्हें देखने व खरीदने आते हैं ।ऐसे ही एक संग्रहालय व फैक्ट्री के मालिक श्री मनोज जौहरी हैं । हम उनकी फैक्ट्री में गए ।उन्होंने हमें फैक्ट्री व उनके संग्रहालय में पुरातन वस्तुएं दिखाई ।पुरातन शैली में नवनिर्मित  वस्तुएं भी देखी ।उसके बाद वे हमें रामगढ़ की हवेलियां दिखाने  ले गए ।श्री मनोज ने हमें बताया की हर वैश्य सेठ नहीं कहलाता है ।सेठ एक पदवी है जो विभिन्न जनहितार्थ एवं संस्थाओं के निर्माण करने के बाद ब्रहमपुरी करके पंडितों द्वारा दी जाती है ।वे हैं , हवेली, बैठक, नोहरा ,बगीचा ,बगीची, कुआ ,बावड़ी ,तालाब प्याऊ ,पाठशाला आदि का बनवाना आवश्यक था । उन हवेलियों एवं सेठों से जुड़ी कई दंत कथाएं हैं ।एक हवेली के बारे में हमें श्री मनोज ने बताया कि यह मस्जिद वाली हवेली कहलाती है । इसके अंदर मजार बनी हुई है ।हम उसे देखने के लिए गए। हवेली में एक कमरे के नीचे सीढ़ियां उतर रही थी। श्री मनोज ने कहा ,इसी के नीचे मजार है ।श्री रामेश्वर  बगड़िया, हम दोनों के मना करने पर भी उसमें टॉर्च लेकर उतर गए । उन्होंने कहा यह कोई मजार नहीं है बल्कि एक छोटा कमरा है ।दरअसल वह तहखाना  था । लोगों को भ्रमित करने के लिए शायद सेठ ही ऐसा प्रचार कर देते थे ।दूसरी हवेली में हमने रंग महल देखा बहुत ही सुंदर चित -आकर्षक चित्र उस रंग महल में बने हुए थे जो आज भी मुंह बोल रहे थे ।हवेली में बादल महल,हवामहल ,पोल़ी,रसोई आदि बने हुए थे । उन्हें देख कर लगा कि 'खंडहर कह रहे हैं,इमारत कभी बुलंद थी '।वह हवेलियां आज इतनी विरान हैं कि वहां चमगादड़ भी नहीं  रहते हैं ।उनसे जुड़ी हुई कई दंत कथाएं आज भी क्षेत्रीय बुजुर्गों की जुबान पर हैं । प्राचीन समय में रामगढ़ छोटी काशी के नाम से ख्यात था ।वहां अनेक पाठशालाएं थी ।मैंने लिखा -
    हवेली पहेली चित्र, लघु काशी पहचान ।
     रामगढ़ सेठान विगत, शेखावाटी शान ।।
  इसी तरह से वहां के सेठों के बारे में भी अनेक दंत कथाएं हैं। हमें बताया गया की एक सेठ ने सर्दियों में सियार बोलते हुए सुने तो मुनीम से पूछा सियार क्यों बोल रहे हैं तो मुनीम ने कहा यह सर्दी में ठिठुर रहें हैं ,इसलिए बोल रहे हैं ।सेठ ने दूसरे ही दिन सियारों के लिए रजाइयों की व्यवस्था कर दी ।  रूस के सुप्रसिद्ध लेखक रसूल हमजातोव ने अपनी मातृभूमि 'मेरा दागिस्तान ' पर एक पुस्तक  लिखी है ।मुझे शेखावाटी के गर्भ को देखकर' मेरा दागिस्तान'का वर्णन याद आ गया । उन्होंने भारत के बारे में लिखा है कि वहां की पुरातन संस्कृति, उसके दर्शन में मुझे किसी रहस्यमय कंठ की ध्वनि सुनाई देती है ।रामगढ़ की उन वीरान  हवेलियों में हमें भी रहस्यमय  कंठ ध्वनियाँ सुनाई दे रही थी ।
शेखावाटी के बारे में राजस्थानी के कवि सुमेरसिंह शेखावत ने लिखा है --
शेखाजी की शेखावाटी, डीघा डुंगर बाल़ू माटी ।
बुध री भूर बाणियां बांटी,जण में जाट जंगलां जांटी ।।
अर्थात बुद्धि शेखावाटी के हिस्से में आई उसे तो बणियों ने ही आपस में बांट लिया । किसी का भी शासन हो सेठों ने अपनी तराजू के बल पर तख्त से सांठगांठ रखी । मुगल काल में शेखावाटी मे बनाए सेठों के कुएं के ऊपर उन्होंने मीनारें बना दी ताकि मुस्लिम शासक मस्जिद की मीनारों की तरह ही उन्हें भी पवित्र मानते हुए पानी  को प्रदूषित नहीं करें ।व्यापारिक दक्षता उनमें बहुत अच्छी रही इसलिए राजस्थानी में एक कहावत है 'बिणज करेला वाणिया और करेला रीस'।गीता में कहा है -'कृषिगौरक्षदाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्' ।
   यहां के धन्ना सेठ धोरों से हिलोरों तक गये  परंतु मातृभूमि के प्रति भाव हिलोरें हमेशा उनके ह्रदय में उमड़ती रही ।कहा है जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं उन्होंने अपनी जन्मभूमि को स्वर्ग माना । हर साल वे जन्म भूमि की तीर्थ यात्रा पर  आते । उनकी भावनाओं को दर्शाने वाला एक गीत है 
'देश ने चालो जी ढोला मन भटके, काकड़ी मतीरा खास्यां खूब डटके ।'
वे दिन चले गए, वे लोग चले गये परन्तु रेत पर सुकेत बना अमिट हस्ताक्षर छोड़ गये ।आज सातवीं -आठवीं पीढ़ी सेठों की अपनी मातृभूमि को भूलते जा रही है। हवेलियां तो आज भी 'पधारो म्हारे देश' का आह्वान कर रही हैं ।इसी को वर्णित करते हुए एक कवि ने लिखा है ।
सेठ बस कोलकाता ,मुंबई डिब्रूगढ़ आसाम ।
जाकर  ठाड़े बैठ्या, काटे उम्र तमाम ।।
कुण सूं मुजरो करे  हवेलियां ,बरसां मिले न राम ।
बाटड़ली जोवे आवण री,गोखे बैठी शाम ।