बुधवार, 28 जून 2017

प्रभु सिंह राठौड़ रा मरसिया

अमर शहीद वीरवर प्रभु सिंह राठौड़ खिरजा के समाधि स्थल पर मूर्ति अनावरण समारोह की पूर्व संध्या दिनांक 25 जून 2017 को उनके पैतृक गांव में समाधि स्थल के पास एक विराट कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ....
इस आयोजन में राजस्थान भर के डिंगल और वीर रस के ख्यातनाम कवियों ने वीरवर को अपनी काव्यांजलि पेश की ....जिसमें कवि वर श्रीमान नवल जी जोशी श्री डूंगर दान जी आसिया कवि मधुकर कवि मोहन सिंह जी रतनू कवि गिरधर दान रतनू कवि हिम्मत सिंह उज्जवल भारोड़ी मीर मीठा डाभाल वीरेंद्र सिंह जी लखावत सुरेश दान लक्ष्मण सिंह राठौड़ शंभू दानकजोई महेंद्र सिंह जी छायन कवि कान सिंह जी भाटी गड़ा रवि दर्शन सांदू , राजेंद्र झणकली हिंगलाज दान ओगाला सहित 25 से अधिक सुविख्यात कवियों ने रात्रि 3:00 बजे तक अपनी काव्य धारा से वीरवर को श्रद्धांजलि और भाव सुमन अर्पित किए ..

इस अवसर पर महा कवियों के इस महासंगम में मुझे भी अपनी कविता पाठ के द्वारा शब्द सुमन अर्पित करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ उसका वीडियो आपके लिए प्रस्तुत है

जुग जुग सूं रूडी ऐ रीतां , अब सैल अणी चढणों वाजिब
जस री जूणां जीवण खातर,  बार-बार मरणों  वाजिब

इतिहासां रा उजऴा आखर,  बोल रह्या साम्ही छाती
माथो दे 'र राखी मरजादा  कद देखी रजवट जाती
माटी रो मोल़ चुकाबा खातिर अरपण शीश करणो वाजिब.
जस री ......................

कुळ कीरत रा कांण कायदा , गोगो गुटकी लीनी ही
पुरखां रो पत पोखण सारूं,  परभू पालणां कीनी ही
खत्रवट री कर खेवना , अरियां सूं अडणों वाजिब
जस री ................

हिमाळो जद करी हुंकारा , कासमीर कुरळायो हो 
परभू डूंगर डिगा दिया , वो क्षत्राणी रो जायो हो
औसर जद ओ आय गयो , भूमि भार हरणों वाजिब
जस री ..........

परभू तो पण कौपियो , दुसमी आतां देख
मर कर भी धर दूं नहीं , अब तो आँगळ ऐक
धवल हिमाळै री धरती में,  रंग रगत भरणों वाजिब
जस री...................

रग-रग में रमी रणचंडी , काया में कंकाळी ही माछल में पाछल नहीं राखी,  राँघड़़ रसा रूखाळी ही
निवत जिमावां जोगणिया जद , खून-खप्पर भरणों वाजिब
जस री ............

गरजी तोपां घोर रव , गोऴां री घमरोळ
रणचण्डी राजी हुई ,करतब किया किलोळ
रणक उठे जद रणभेरी तो , सूर समर करणो वाजिब
जस री .................

रज रज कटियो राजवी , साँचो वीर सपूत
दागळ व्ही दुनियांण में , कायर री करतूत
क्षात्र धरम अर देशहित , मौत वरण करणों वाजिब
जस री ...............

सुरगांपत सुणजौ सकल , साँची करजौ सेव
पग पूजौ परभू तणां ,ओ देव देव महादेव
प्रणवीर परभेस ने निवण आज करणों वाजिब
जस री ....................

©© *रतन सिंह चाँपावत कृत*

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