हरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाड़ी मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो खून बहावण नै ||
जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणा में रगत उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो, सूती सी हूक जगा जावै ||
पण आज बिलखतो देखूं हूं, जद राजकंवर नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं हिन्दवाणी चोटी नै ||
आ सोच हुई दो टूक तड़क, राणा री भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिखस्यूं अकबर नै पाती ||
राणा रो कागद बांच हुयो, अकबर रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच बांच नै फिर बांच्यो ||
बस दूत इसारो पा भाज्यो, पीथल ने तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर रो भरम मिटावण नै ||
म्हे बांध लिये है पीथल ! सुण पिजंरा में जंगली सेर पकड़ |
यो देख हाथ रो कागद है, तू देखां फिरसी कियां अकड ||
हूं आज पातस्या धरती रो, मेवाडी पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै, रजपूती खूण रगां में है ||
जद पीथल कागद ले देखी, राणा री सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में भर आयो पाणी ||
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची, राणा री आन अटूटी है ||
ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं, राणा नै कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजड़ो, बादल री ओटां खोवैलो ||
पीथल रा आखर पढ़ता ही, राणा री आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक दकाल हुई ||
हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं, मेवाड धरा आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां री याद रहै||
पीथल के खिमता बादल री, जो रोकै सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख मिली कद स्याली नै ||
जद राणा रो संदेस गयो, पीथल री छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री दुनिया सुनी ही ||
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