बुधवार, 5 अप्रैल 2017

माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास

~माता राणी भटियानी जी का सम्पूर्ण परिचय और गौभक्त सवाई सिंह भोमिया जी का इतिहास ।~

.....~जय जसोल माजीसा~......
माता राणी भटियानी ( "भूआजी स्वरूपों माजीसा" शुरूआती नाम) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।भूआजी स्वरूपों उर्फ राणी भटियानी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था।राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया।
राणी स्वरुपं के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड़ी के रूठे होने पर राणी स्वरुपं ने उसे विश्वास दिलाते हुए
कहा कि अपनी माँ भवानी की पूजा अर्चना व
व्रत करे।आस्था,श्रद्धा, विश्वास बढ़ाएं, माँ भवानी अवश्य अपने भक्त की आवाज सुनेगी।
राणी देवड़ी ने राणी स्वरूपं की बातों में विश्वास
करके वैसा ही किया। जैसा कहा गया था।अब राणी देवड़ी भक्ति में लग गयी और कुछ समय पश्चात देवड़ी राणी ने भी एक बालक को जन्म दिया।जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया।
प्राचीन किवन्दती के अनुसार कहा जाता है कि पुत्र प्राप्ति के कुछ समय ही पश्चात एक दासी ने देवड़ी राणी को भड़काया कि छोटी राणी स्वरूपं का पुत्र
प्रताप सिंह से बड़े होने पर वे ही राव कल्याण सिंह
के उतराधिकारी बनेंगे और छोटे पुत्र प्रताप सिंह को उनके हुकुमत का पालन करना पड़ेगा। दासी राणी देवड़ी को बार बार गुप्त मंत्रणा कर उनके पुत्र को राजपाट दिलवाने के लिए बहकाने लगी।इस दासी के अत्यधिक कहने पर देवड़ी राणी को भविष्य की चिंता सताने लगी और वह अपने पुत्र को उतराधिकारी बनाने के लिए हर वक्त चिंतित रहने लगी।
एक दिन भाद्रपद मास की कृष्णा पक्ष की काजली तीज के दिन राणी स्वरुपं ने राणी देवड़ी को झुला झूलने के लिए बाग़ में चलने को कहा तो राणी देवड़ी ने सरदर्द का बहाना बनाकर कह दिया कि मै नहीं चल सकती तब राणी स्वरुपं ने आपने पुत्र लाल सिंह को राणी देवड़ी के पास छोड़कर झूला झूलने चली गयी। राणी देवड़ी ने इस अवसर को देखते हुए उसने विश्वासपात्र दासी (रामायण काल के बाद की चापलूसी करने वाली दासियो को चारण कवियो द्वारा मंथरा की संज्ञा या उपमा दी गई है) को बुलाया और लाल सिंह को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया तथा इसके बाद लाल सिंह के लिए जहर मिला दूध लेकर इंतजार करने लगी।थोड़ी देर बाद जब बालक लालसिंह खेलते खेलते दूध के लिए रोने लगा तब दासी (मंथरा) ने योजनानुसार जहर मिला दूध बालक लाल सिंह को पिला दिया।उससे उसी समय लाल सिंह के प्राण निकल गए।
कुछ समय बाद जब राणी स्वरुपं झूला झूलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के न जागने पर जब उसने बालक को जगाने के लिए सर के नीचे हाथ डाला तो हाथ में काला खून लगा देख राणी स्वरूपं ने भी प्राण त्याग दिए। यह बात जब राव कल्याण सिंह को पता चली तो उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और वे तत्काल राणीनिवास गए और वहां के हालत देखकर राव कल्याण सिंह बेसुध हो गए।राजा राव कल्याण सिंह को राणी स्वरुपं व कुंवर लाल सिंह को खोने का बहुत दुःख हुआ। जैसे तैसे अग्नि संस्कार किया और पत्रवाहक को राणी स्वरूपं के मायके जोगीदास गाँव के लिए तत्काल रवाना किया।इधर जोगीदास गाँव में से २ दमामी (मंगनियार) जसोल आ पहुंचे।राव कल्याण सिंह के महल की स्थिति को देखकर दोनों दमामियो को अचरज हुआ।जब इन दमामियो को राणी स्वरुपं के स्वर्गलोक होने का समाचार जसोल में मिला तो इनके पैरो तले जमीन खिसक गई।घटना की जानकारी मिलने के बाद वे दोनो सीधे श्मशान घाट पहुंचे और शोक विहल होकर कागे के गीतों की झड़ी लगाते हुए राणी स्वरूपं को दर्शन देने के लिए पधारने का आह्ववान करने लगे। बार बार पुकारने पर राणी स्वरूपं ने उनको दर्शन दिए। लेकिन उनको "भूआजी स्वरूपों माजीसा"उर्फ "राणी स्वरुपं" को देवी राणी भटियानी के रूप में देखकर विश्वास नहीं हुआ।फिर भी दमामियो ने अपनी फरियाद सुनाई इस पर राणी स्वरूपं उर्फ राणी भटियानी को दमामियो की भक्ति पर बड़ा गर्व हुआ। उन्होंने दमामियो को इनाम के तौर पर सोने की पायल व कंगन दिए तथा उन्हे कहा कि जोगीदास गाँव में मेरे माता पिता को कहना की मै हमेशा आपके साथ हूँ।इतना कहकर राणी भटियानी अदृश्य हो गयी।
दमामियो ने भूआजी स्वरूपों माजीसा उर्फ राणी भटियानी द्वारा दिया इनाम राव कल्याण सिंह को दिखाकर घटना सुनाई पर राव कल्याण सिंह को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब राव कल्याण सिंह चौथे दिन गाँव वालों के साथ श्मशानघाट पहुंचे तथा वहां हराभरा खेजड़ी का पेड़ देखकर राजा राव कल्याण सिंह और जसोल ग्रामवासी दंग रह गए।इस चमत्कार को देखकर राव कल्याण सिंह ने नदी किनारे पर मंदिर निर्माण करवाया।जो राणी भटियानी मंदिर के नाम से जनमानस मे प्रसिद्ध है। जिसके चमत्कार प्रभाव से आज भी जन मानस इस श्रद्धा स्थल पर प्रतिवर्ष उमड़ आता है।
इस मंदिर परिसर में राणी भटियानी के साथ ही सवाई सिंह जी भोमिया को भी श्रद्धा के साथ सर नवाजा जाता है।सवाई सिंह भोमिया जसोल मालवी राव प्रताप सिंह के द्वितीय पुत्र थे। इन दिनों इस क्षेत्र में संघ के लुटेरों के आक्रमण व गाय बैलों को ले जाकर बेचने काटने के धर्म विरुद्ध कार्य से जनता परेशान थी।राव प्रताप सिंह ने वृद्ध अवस्था में होने के कारण यह कार्य बडे पुत्र वखतसिंह को सौंपा। तब छोटे पुत्र सवाई सिंह भोमिया ने बडे भाई तखत सिंह को दुश्मनों से स्वयं युद्ध करने के लिए मना करके लुटेरों को समाप्त करने का वचन देकर वहां से निकल पडे।इसके पश्चात शूरवीर सवाई सिंह भोमिया ने कठोर तपस्या करके कुलदेवी का स्मरण करते हुए कुलदेवी से यह वर पाकर की युद्ध में जाने के बाद पीछे मुड़कर मत देखना मै तुम्हारा सहयोग करुँगी। ऐसा कुलदेवी का वरदान पाकर सवाई सिंह भोमिया ने दुश्मनों का संहार करते हुए, रजपूती गौरव को बनाए रखते हुए, रण के मैदान को दुश्मनों के रक्त से रंजित करते हुए शूरवीरता की नई गाथा रचते हुए सर्वत्र आगे बढते हुए विजयवीर बनते जा रहे थे।तभी पीछे से घात लगाकर खडे दुश्मनों के आक्रमण का मुँह तोड़ जबाव देने की जल्दबाजी मे पीछे देखने पर कुलदेवी वरदान अनुसार सवाई सिंह का धड़ अलग हो गया। फिर भी वीर गौभक्त सवाई सिंह भोमिया ने बिना सर वाले धङ के सहारे दुश्मनों का संहार करते हुए उनका सर निशान में उठाकर जब जसोल में प्रवेश
किया व पिताजी के दर्शन कर धरती माँ की गोद में समा गए।इस प्रकार वीर गौभक्त सवाई सिंह भोमिया ने लुटेरों से अंतिम समय तक लडते हुए उनका संहार करते हुए बिना धङ वाला सर ऊँचा उठाये लडखडाते हुए पूज्यनीय पिताजी के अंतिम दर्शन कर के वीरगति को प्राप्त हो गये। इस तरह गौरक्षा करते हुए, बिना सर के धङ के सहारे रणभूमि मे दुश्मनों के छक्के छुडाने तथा एक रक्षक के रूप मे अपनी रजपूती आन बान और शान प्रदर्शित करने के कारण सवाई सिंह भोमिया के रूप में पूजे जाने लगे।
माता राणी का भव्य मंदिर जसोल में है और राणी भटियानी के जन्म स्थान जोगीदास गाँव में भी है और तो ओर हर घर में माँ के पर्चे जसोल और जोगीदास गाँव स्थित जन-जन की आराध्य देवी माता राणी भटियानी की ख्याति आज राजस्थान से गुजरती हुई पडौसी राज्यों गुजरात,मध्यप्रदेश, हरियाणा,महाराष्ट्र, और सिंध प्रदेश तक जा पहुंची है।जहाँ प्रतिवर्ष १५ लाख से अधिक श्रद्धालू भक्तजन माता राणी के दरबार में शीश नवाकर अपने सुखद सफल सौभाग्य की मन्नते माँगते है। इस मंदिर में भाद्रपद मास की त्रयोदसी व माघ मास की चतुर्दसी को राणी भटियानी का भव्य मेला भरता है। प्रतिवर्ष साल में २ बार भाद्रपद व माघ मास में मेला भरता है।जोगीदास गाँव माता राणी की जन्मस्थली में भी माता राणी भटियानी का भव्यमंदिर बना है जहा साल में २ बार श्रद्धालू यात्री आते है।
जय माँ भुआसा की

राजस्थान खास क्यों हैं...?

राजस्थान खास क्यों हैं...?

1.भारत के 100 सबसे अमीर व्यक्ति mein se 35 राजस्थानी/मारवाड़ी व्यापारी hai

2 दंगो में हज़ारो लोग 
मारे गए हैं राजस्थान में 1 भी नहीं ..!

3. राजस्थान दोस्त सुनो हमारा राजस्थान अकेले इतने
सैनिक देश को देता है जितना केरला, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात मिलकर भी नहीं दे पाते.....!!

4 कर्नल सूबेदार सबसे ज्यादा राजस्थान से है...!!

5. उच्च शिक्षण संस्थानों में राजस्थानी इतने हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात
मिलाने से भी बराबरी नहीं कर सकते.........

6. राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहाँ किसान कृषि कारणों से आत्म-
हत्या नहीं करतें जैसा कि मीडिया दिखाता है क्यूकि राजस्थान में बुज़दिल नही दिलेर पैदा होते है...!!

7. आज भी राजस्थान में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है...!!

8. हम एक रिक्शा चलाने
वालों को भी भाई कह कर
बुलाते हैं...!!

" मैं राजस्थान से हूँ " और
हमारे लोगों ने
कभी किसी राज्य के लोगों का विरोध नहीं किया... किसी सम्प्रदाय को नही दबाया....
यहाँ संस्कार बसतें है...!!.
.
मुझे नाज है मैं राजस्थान से हूँ
राजस्थान मेरे रगों  में
बसता है...!!!

अगर राजस्थानी होने पर गर्व है तो इस एस एम एस को इतना Share करो कि ये हर राजस्थानी के मोबाइल मे हो.........

जय राजस्थान.....
म्हारो प्यारो राजस्थान.....
म्हारो रंगीलो राजस्थान.
#share #

राजस्थान खास क्यों हैं...?

राजस्थान खास क्यों हैं...?

1.भारत के 100 सबसे अमीर व्यक्ति mein se 35 राजस्थानी/मारवाड़ी व्यापारी hai

2 दंगो में हज़ारो लोग 
मारे गए हैं राजस्थान में 1 भी नहीं ..!

3. राजस्थान दोस्त सुनो हमारा राजस्थान अकेले इतने
सैनिक देश को देता है जितना केरला, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात मिलकर भी नहीं दे पाते.....!!

4 कर्नल सूबेदार सबसे ज्यादा राजस्थान से है...!!

5. उच्च शिक्षण संस्थानों में राजस्थानी इतने हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात
मिलाने से भी बराबरी नहीं कर सकते.........

6. राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहाँ किसान कृषि कारणों से आत्म-
हत्या नहीं करतें जैसा कि मीडिया दिखाता है क्यूकि राजस्थान में बुज़दिल नही दिलेर पैदा होते है...!!

7. आज भी राजस्थान में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है...!!

8. हम एक रिक्शा चलाने
वालों को भी भाई कह कर
बुलाते हैं...!!

" मैं राजस्थान से हूँ " और
हमारे लोगों ने
कभी किसी राज्य के लोगों का विरोध नहीं किया... किसी सम्प्रदाय को नही दबाया....
यहाँ संस्कार बसतें है...!!.
.
मुझे नाज है मैं राजस्थान से हूँ
राजस्थान मेरे रगों  में
बसता है...!!!

अगर राजस्थानी होने पर गर्व है तो इस एस एम एस को इतना Share करो कि ये हर राजस्थानी के मोबाइल मे हो.........

जय राजस्थान.....
म्हारो प्यारो राजस्थान.....
म्हारो रंगीलो राजस्थान.
#share #

शुक्रवार, 31 मार्च 2017

वो है राजस्थान

शीशा बिणा सूरा लड्या
इतिहासां परमाण ।
पदमण जौहर मे जली
वो है राजस्थान ।।

वीटी और रुमाल सूं
नही प्रीत पहचाण ।
सहनाणी मे शीश दे
वो है राजस्थान ।

हार हार फिर हार जा
पिछमो पाकिस्तान ।
ढाल समाणी सीम पे
ऊभो राजस्थान ।।

उड   नहं जा रज आपणी
आंगणिये अरियांण ।
रह रह ने छांट्यो रगत
वो है राजस्थान ।

कांई तो सौभाग व्है
ईं सूं और अमोल ।
रहणो राजस्थान मे
राजस्थानी बोल ।।

राजस्थान दिवस री बधाई ।
जय राजस्थान ।
जय राजस्थानी ।।
        हिम्मत सिह उज्जवल
             भारोडी

गुरुवार, 30 मार्च 2017

गणगौर त्यौहार महत्त्व, पूजा विधि कथा , गीत व उद्यापन विधि*

*गणगौर त्यौहार महत्त्व, पूजा विधि कथा , गीत व उद्यापन विधि*

भारत का एक राज्य राजस्थान, जो मारवाड़ीयों की नगरी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है . गणगौर दो तरह से मनाया जाता है . जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है . त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है . जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है .

*गणगौर त्यौहार कब मनाया जाता है और शुभ मुहूर्त कब है ?*

इस वर्ष 2017 में गणगौर का त्यौहार 30 मार्च 2017, दिन गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।

*मारवाड़ी रूप मे गणगौर* –

*पूजन का महत्व*

पूजन सामग्री

पूजन की विधी

गणगौर की कथा

गणगौर पूजते समय का गीत

गणपति जी की कहानी

गणगौर अरग के गीत

गणगौर को पानी पिलाने का गीत

उद्यापन की विधी

*गणगौर पूजन का महत्व*

गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है . इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है . इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि,विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है . जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है .

*पूजन सामग्री*

जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह,  पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना आवश्यक है .

*पूजा सामग्री*

लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

*उद्यापन की सामग्री*

उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है .

सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि.

*गणगौर पूजन की विधी*

मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है . जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है . यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है . अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है . सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है . ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है .

*गणगौर*

सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है . जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है . ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है.
अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है .
फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता . उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है .
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है .
उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है .
तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है . उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है .
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है.
अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है . उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है . गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है . इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है .

*गणगौर माता की कहानी*

राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब . राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये . एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया . छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे . छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे . सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया . माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो . बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे . ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा . माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले . माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला , चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल
गई . उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है ,सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है . है गणगौर माता , जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना . कहता ने , सुनता ने , सारे परिवार ने .

*गणगौर पूजते समय का गीत*

यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है –

*प्रारंभ का गीत* –

गोर रे गणगौर माता खोल ये  किवाड़ी

बाहर उबी थारी पूजन वाली,

पूजो ये पुजारन माता कायर मांगू

अन्न मांगू धन मांगू  लाज मांगू लक्ष्मी मांगू

राई सी भोजाई मंगू .

कान कुवर सो बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू ..

उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है .

*सोलह बार पूजन का गीत* –

गौर-गौर गणपति ईसर पूजे,

पार्वती का आला टीला,

गोर का सोना का टीला .

टीला दे टमका दे, राजा रानी बरत करे .

करता करता, आस आयो मास

आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,

लाडू ले बीरा ने दियो,

बीरों ले गटकायों .

साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,

सान मान सोला, ईसर गोरजा .

दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,

दोनों का सुहाग मे .

रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय

किडी किडी किडो दे,

किडी थारी जात दे,

जात पड़ी गुजरात दे,

गुजरात थारो पानी आयो,

दे दे खंबा पानी आयो,

आखा फूल कमल की डाली,

मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो

डाल की किरण, दो किरण मन्जे

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है

*पाटा धोने का गीत* –

पाटो धोय पाटो धोय,

बीरा की बहन पाटो धो,

पाटो ऊपर पीलो पान,

म्हे जास्या बीरा की जान .

जान जास्या, पान जास्या,

बीरा ने परवान जास्या

अली गली मे, साप जाये,

भाभी तेरो बाप जाये .

अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये .

दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो

खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा

थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा

थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा

ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी ..

ओडो खोडो का गीत –

ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर .

ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर ..

(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )

*गणपति जी की कहानी*

एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी . दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे . मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था . इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है . जे विनायक, जे विनायक करा कर . एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले

गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया . अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे . मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि ,दिन भर टर्र टर्र करना छोड़

दे . मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे . मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक ,सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई . मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये . हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे . अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो .

*गणगौर अरग के गीत*

पूजन के बाद, सुरजनारायण भगवान को जल चढा कर गीत गाया जाता है .

*अरग का गीत* –

अलखल-अलखल नदिया बहे छे

यो पानी कहा जायेगो

आधा ईसर न्हायेगो

सात की सुई पचास का धागा

सीदे रे दरजी का बेटा

ईसरजी का बागा

सिमता सिमता दस दिन लग्या

ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,

बेटो अरदा तानु परदा

हरिया गोबर की गोली देसु

मोतिया चौक पुरासू

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

*गणगौर को पानी पिलाने का गीत*

सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते

है . पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है .

*पानी पिलाने का गीत* –

म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो

बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो

म्हारी गोर तिसाई ओर राज

बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी

मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज

म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो ..

(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे . )

*गणगौर उद्यापन की विधी*

सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है .

*विधी* –

आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है .
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है .
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है .
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है . उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है .
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे . पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है .
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है.
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है .
नोट – गणगौर के बहुत से, गीत और दोहे होते है . हर जगह अपनी परम्परानुसार, पूजन और गीत जाये जाते है . जो प्रचलित है उसे, हम अपने अनुसार डाल रहे है . निमाड़ी गणगौर सिर्फ तीन दिन ही पूजी जाती है . जबकि राजस्थान मे, मारवाड़ी गणगौर प्रचलित है जो, झाकियों के साथ निकलती है ।

जय - जय राजस्थान ।

" केसर नहीं निपजे अठे न हीरा निपजन्त , धड कटिया खग सामणां , इण धरती उपजन्त । जल उण्डो थल ऊजलो , नारी नवले वेश , पुरख पटाधार नीपजै , धन है मरुधर देश ।।"

राजस्थान स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं । कण -कण सूं गूंजे जय - जय राजस्थान ।

अंबे आराधना

नवरात्रि रे पावन अवसर माथे..

अंबे आराधना

आवो अम्बा ईसरी

आवो अम्बा ईसरी, कूं कूं चरण-कमल्ल
सुख साता दें संकरी ,सबही काज सफल्ल  (१)

आवो अम्बा ईसरी, अरपण उच आसन्न
पलक बुहारूं पंथडो, प्रणमूं मात प्रसन्न (२)

आवो अम्बा ईसरी, अवतर आंगणियैह .
शुभ करण संसार में, भव दुख भांगणियेह (३)

आवो अम्बा ईसरी, जबर रूप नव ज्योत
तम हारो अंतस तणो, हियै प्रकासा होत (४)

आवो अम्बा ईसरी, आतम रूप उजास
मनसा पूरण  मावडी, तन री मेटण त्रास (५)

आवो अम्बा ईसरी, शैलसुता सुखधाम
दया राखण दास पर, कदियन अटके काम (६)

आवो अम्बा ईसरी, ब्रह्माणी  बहुवार
माला कमडल धारिणी, श्वेतवसन सुभ सार (७)

आवो अम्बा ईसरी, चंद्रघंट चित माय
दशभुजा  दुष्टी दलन, सोहे सिंह सवाय (८)

आवो अम्बा ईसरी, केहरि चढ़ कुष्मांड
उदर पिंड उपजावियौ, बहुरूप ब्रह्मांड (९)

आवो अम्बा ईसरी,मात रूप स्कंद
शुभ्र वरण पदमासना,  आय करो आनंद (१०)

आवो अम्बा ईसरी, कोटि रूप कत्याण
चतुरभुजा चंचल चपल, करो सकल कल्याण (११)

आवो अम्बा ईसरी, काळे रंग कळरात
माता मो मन मेटियै, मोहनिशा महारात (१२)

आवो अम्बा ईसरी, महागौरी महामाय
वृषवाहन श्वेतांबरा, सब विध सदा सहाय (१३)

आवो अम्बा ईसरी, सरब सगत सिधियांह
आठ पहर आराधना, विनवूं बहु विधियांह  (१४)

आवो अम्बा ईसरी, देवी नव दुरगाह
भवबंधन मेटो भला, साथ रखो सुरगांह (१५)

आवो अम्बा ईसरी, किनियाणी करनल्ल
देवी गढ़ देशांण री, आगीवांण अवल्ल (१६)

आवो अम्बा ईसरी ,नागाणै री  नाथ
कुळदेवी किरपा करो ,हरदम राखो हाथ (१७)

आवो अम्बा ईसरी, चामुंडा चहु ओर
भगत बछल भयहारिणी ,करूं अरज कर जोर (१९)

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रतन सिंह चंपावत रणसी गांव कृत