रविवार, 20 जनवरी 2019

रामगढ़ सेठान :शेखावाटी शान

राजस्थानी भाषा के जाने-माने जनकवि चिंतक विचारक और लेखक आदरणीय श्रीमान आईदान सिंह जी भाटी जो साहित्य जगत में आई जी के नाम से प्रसिद्ध है उनके पोस्ट शेयर कर रहा हूं बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट

रामगढ़ सेठान :शेखावाटी शान
--दयाराम महरिया, सीकर की कलम से लिखी पोस्ट -

रामगढ़ सेठान की स्थापना के पीछे एक अन्तर्कथा है ।सीकर ठिकाने के शासक रावराजा देवीसिंह थे ।
् देवी सिंह का ससुराल चूरू था । उनकी रानी को भाभी ने ताना मारते हुए कहा की चूरू सीकर से सुंदर शहर है । इस पर रानी ने देवी सिंह को कहा कि चूरू से सुंदर शहर बसाने पर ही वह अन्न ग्रहण करेगी । रूठी रानी को मनाने के लिए देवी सिंह ने उस समय के चूरु के प्रसिद्ध सेठ(श्रेष्ठ) चतुर्भुज पोद्दार के बही खाते जबरदस्ती मंगवा लिए जब चतुर्भुज उनको लेने के लिए राव राजा के पास आया तो राव राजा ने उसके सामने शर्त रखी की चूरू से सुंदर शहर बसाओ तभी आपके बही खाते वापस लौटाऊंगा । चतुर्भुज ने वादा किया और रानी को मनाया कि शीघ्र ही चूरू से सुंदर शहर बसा दिया जाएगा । राव राजा को दिए आश्वासन को पूरा करने के लिए चतुर्भुज पोद्दार ने 1790 ईस्वी में सीकर ठिकाने की उत्तरी सीमा पर स्थित नासा नामक ग्राम में रामगढ़ बसाया ।चतुर्भुज ने राजस्थानी कि इस कहावत 'गांव बसायो बाणियों ,पार पडे़ जद जाणियों ' को असत्य सिद्ध कर दिया । उस समय दूसरे शहरों से संपन्न सेठ वहां आकर बसे ।फतेहपुर के बंसल वहां आकर बसे जिनका रुई का व्यवसाय होने के कारण रुईया कहलाये । वहां के सेठ ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ व्यवसाय करने लगे ।1860 ई. के आसपास रामगढ़ के पोद्दारों की प्रथम पंजीकृत कम्पनी 'ताराचंद- घनश्याम ' 'थी ।उसी कम्पनी के साथ पिलानी की शिवनारायण बिड़ला (घनश्याम दास बिड़ला के दादा )ने नाममात्र की हिस्सेदारी के साथ प्रथम बार स्वतंत्र व्यापार में प्रवेश किया ।घनश्यामदास बिड़ला की जीवनी 'मरुभूमि का वह मेघ' में कंपनी का नाम 'चेनीराम जेसराज 'लिखा है ।वे बंबई में अफीम का व्यवसाय चीन के साथ करते थे । ध्यातव्य है कि शिवनारायण के पिता शोभाराम तो पूर्णमल गनेडी़वाले सेठों की गद्दी पर अजमेर में 7 रुपये महीने पर नौकरी करते थे ।चतुर्भुज बंसल गोत्र का अग्रवाल महाजन था । उनके पूर्वज शासन में पोतदार (खजांची )थे ।अतः वे पोद्दार कहलाए ।प्राचीन भारतीय समाज में  वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं थी ।वर्ण का निर्धारण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता था। वैदिक युग में वैवस्वत मनु के पुत्र नाभानिर्दिष्ट की कथा प्रसिद्ध है । जिन्होंने अपने पिता के क्षत्रिय वर्ण को छोड़ कर वैश्य वर्ण का वरण कर लिया था ।  अग्रवाल, महेश्वरी आदि गोत्र के महाजन पहले क्षत्रिय थे परंतु उनके पूर्वज क्षेत्रीय कर्म छोड़कर वैश्य कर्म करने लगे ।अतःवैश्य कहलाए । वह अपने क्षेत्रीय अतीत को याद रखते हुए अपनी व्यवसाय पीठ को आज भी गद्दी कहते हैं। शेखावाटी में बसने से पहले उनकापंजाब क्षेत्र में व्यवसाय था । पंजाब प्रारंभ से ही क्षेत्र सिंचित क्षेत्र होने के कारण संपन्न था वहां व्यापार वाणिज्य  खूब फला फूला । वहां के व्यापारियों के अफ़गानिस्तान ,चीन ,फारसआदि से व्यापारिक रिश्ते थे ।वह 'बलदां खेती' घोड़ा राज 'का जमाना था ।काबुल के व्यापारी घोड़े ,पिंडखजूर आदि लेकर के आते थे ।रवींद्रनाथ टैगोर की सुप्रसिद्ध कहानी 'काबुलीवाला' कहानी का कथानक भी यही है। काबुल के घोड़े बड़े प्रसिद्ध होते थे । कहा भी है  -केकाण(घोड़े) काबुल भला । महाराणा प्रताप का घोडा़ चेटक (अर्थ-सेवक) भी काबुल का ही था ।कालांतर में उत्तर की ओर से विदेशी हमले होने लगे तो उन्होंने किसानों की आबादी से घिरे दुर्गम, शांत व असुन्दर स्थानों को अपने बसने  के लिए चुना । इसी क्रम में शेखावाटी में आबाद हुए  ।मरुभूमि का मतलब मृतभूमि होता है परंतु यहां के वीरों -दानवीरों ने इसे अमृतभूमि बना दिया ।कन्हैयालाल सेठिया ने इसीलिए लिखा -आ तो सुरगां ने सरमावै, इण पर देव रमण ने आवै ,धरती धोरां री -----।उन्होंने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियां बनाई जो सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत होने के साथ-साथ रहने के लिए भी काफी अच्छी थी । रामगढ़ सेठान की हवेलियां भी  बडी़ चित्त -आकर्षक हैं । 1835 के रामगढ़ की एक झलक लेफ्टिनेंट बोइलू की डायरी में मिलती है ।जिसने मरू प्रदेश की उस वर्ष यात्रा की उसने रामगढ़ को एक समृद्ध सीमा स्थित कस्बे के रूप में जो स्वच्छता के साथ साथ घेरे के अंदर स्थित है और साहूकारों से भरा हुआ बताया है जिनकी कमाई पर अब तक किसी को न बक्शने वाली कैंची नहीं पड़ी है। सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर कैप्टन वेब जो 1934 से 38 तक सीकर ठिकाने का सीनियर अफसर रहा ,ने 'सीकर की कहानी 'नामक अंग्रेजी में पुस्तक में अपने प्रवास के दौरान सीकर ठिकाने के संस्मरण लिखें हैं ।उसमें कैप्टन वेब ने रामगढ़ के सेठों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बताया है है ।इसी कारण राज दरबार में भी उन्हें पूरा सम्मान मिलता था तथा विशेष कुर्सी रामगढ़ के क्षेत्रों को उपलब्ध करवाई जाती थी ।
    मेरे मित्र जनकवि रामेश्वर बगड़िया ने मुझे कहा कि रामगढ़ को गर्भ  को देखने चलें ।अतः 7 जनवरी, 2019 को हम दोनों रामगढ़ सेठान गए  ।रामगढ़ में पुरातन वस्तुओं के संग्रहालय कई व्यक्तियों ने बना रखे हैं ।उनके माध्यम से वह अपना व्यवसाय करते हैं ।देश -विदेश के पर्यटक उन्हें देखने व खरीदने आते हैं ।ऐसे ही एक संग्रहालय व फैक्ट्री के मालिक श्री मनोज जौहरी हैं । हम उनकी फैक्ट्री में गए ।उन्होंने हमें फैक्ट्री व उनके संग्रहालय में पुरातन वस्तुएं दिखाई ।पुरातन शैली में नवनिर्मित  वस्तुएं भी देखी ।उसके बाद वे हमें रामगढ़ की हवेलियां दिखाने  ले गए ।श्री मनोज ने हमें बताया की हर वैश्य सेठ नहीं कहलाता है ।सेठ एक पदवी है जो विभिन्न जनहितार्थ एवं संस्थाओं के निर्माण करने के बाद ब्रहमपुरी करके पंडितों द्वारा दी जाती है ।वे हैं , हवेली, बैठक, नोहरा ,बगीचा ,बगीची, कुआ ,बावड़ी ,तालाब प्याऊ ,पाठशाला आदि का बनवाना आवश्यक था । उन हवेलियों एवं सेठों से जुड़ी कई दंत कथाएं हैं ।एक हवेली के बारे में हमें श्री मनोज ने बताया कि यह मस्जिद वाली हवेली कहलाती है । इसके अंदर मजार बनी हुई है ।हम उसे देखने के लिए गए। हवेली में एक कमरे के नीचे सीढ़ियां उतर रही थी। श्री मनोज ने कहा ,इसी के नीचे मजार है ।श्री रामेश्वर  बगड़िया, हम दोनों के मना करने पर भी उसमें टॉर्च लेकर उतर गए । उन्होंने कहा यह कोई मजार नहीं है बल्कि एक छोटा कमरा है ।दरअसल वह तहखाना  था । लोगों को भ्रमित करने के लिए शायद सेठ ही ऐसा प्रचार कर देते थे ।दूसरी हवेली में हमने रंग महल देखा बहुत ही सुंदर चित -आकर्षक चित्र उस रंग महल में बने हुए थे जो आज भी मुंह बोल रहे थे ।हवेली में बादल महल,हवामहल ,पोल़ी,रसोई आदि बने हुए थे । उन्हें देख कर लगा कि 'खंडहर कह रहे हैं,इमारत कभी बुलंद थी '।वह हवेलियां आज इतनी विरान हैं कि वहां चमगादड़ भी नहीं  रहते हैं ।उनसे जुड़ी हुई कई दंत कथाएं आज भी क्षेत्रीय बुजुर्गों की जुबान पर हैं । प्राचीन समय में रामगढ़ छोटी काशी के नाम से ख्यात था ।वहां अनेक पाठशालाएं थी ।मैंने लिखा -
    हवेली पहेली चित्र, लघु काशी पहचान ।
     रामगढ़ सेठान विगत, शेखावाटी शान ।।
  इसी तरह से वहां के सेठों के बारे में भी अनेक दंत कथाएं हैं। हमें बताया गया की एक सेठ ने सर्दियों में सियार बोलते हुए सुने तो मुनीम से पूछा सियार क्यों बोल रहे हैं तो मुनीम ने कहा यह सर्दी में ठिठुर रहें हैं ,इसलिए बोल रहे हैं ।सेठ ने दूसरे ही दिन सियारों के लिए रजाइयों की व्यवस्था कर दी ।  रूस के सुप्रसिद्ध लेखक रसूल हमजातोव ने अपनी मातृभूमि 'मेरा दागिस्तान ' पर एक पुस्तक  लिखी है ।मुझे शेखावाटी के गर्भ को देखकर' मेरा दागिस्तान'का वर्णन याद आ गया । उन्होंने भारत के बारे में लिखा है कि वहां की पुरातन संस्कृति, उसके दर्शन में मुझे किसी रहस्यमय कंठ की ध्वनि सुनाई देती है ।रामगढ़ की उन वीरान  हवेलियों में हमें भी रहस्यमय  कंठ ध्वनियाँ सुनाई दे रही थी ।
शेखावाटी के बारे में राजस्थानी के कवि सुमेरसिंह शेखावत ने लिखा है --
शेखाजी की शेखावाटी, डीघा डुंगर बाल़ू माटी ।
बुध री भूर बाणियां बांटी,जण में जाट जंगलां जांटी ।।
अर्थात बुद्धि शेखावाटी के हिस्से में आई उसे तो बणियों ने ही आपस में बांट लिया । किसी का भी शासन हो सेठों ने अपनी तराजू के बल पर तख्त से सांठगांठ रखी । मुगल काल में शेखावाटी मे बनाए सेठों के कुएं के ऊपर उन्होंने मीनारें बना दी ताकि मुस्लिम शासक मस्जिद की मीनारों की तरह ही उन्हें भी पवित्र मानते हुए पानी  को प्रदूषित नहीं करें ।व्यापारिक दक्षता उनमें बहुत अच्छी रही इसलिए राजस्थानी में एक कहावत है 'बिणज करेला वाणिया और करेला रीस'।गीता में कहा है -'कृषिगौरक्षदाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्' ।
   यहां के धन्ना सेठ धोरों से हिलोरों तक गये  परंतु मातृभूमि के प्रति भाव हिलोरें हमेशा उनके ह्रदय में उमड़ती रही ।कहा है जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं उन्होंने अपनी जन्मभूमि को स्वर्ग माना । हर साल वे जन्म भूमि की तीर्थ यात्रा पर  आते । उनकी भावनाओं को दर्शाने वाला एक गीत है 
'देश ने चालो जी ढोला मन भटके, काकड़ी मतीरा खास्यां खूब डटके ।'
वे दिन चले गए, वे लोग चले गये परन्तु रेत पर सुकेत बना अमिट हस्ताक्षर छोड़ गये ।आज सातवीं -आठवीं पीढ़ी सेठों की अपनी मातृभूमि को भूलते जा रही है। हवेलियां तो आज भी 'पधारो म्हारे देश' का आह्वान कर रही हैं ।इसी को वर्णित करते हुए एक कवि ने लिखा है ।
सेठ बस कोलकाता ,मुंबई डिब्रूगढ़ आसाम ।
जाकर  ठाड़े बैठ्या, काटे उम्र तमाम ।।
कुण सूं मुजरो करे  हवेलियां ,बरसां मिले न राम ।
बाटड़ली जोवे आवण री,गोखे बैठी शाम ।

बुधवार, 27 जून 2018

वीरा तूं बणजै जायल रो जाट!!

वीरा तूं बणजै जायल रो जाट!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीतां में गाईजणो  घणो दोरो काम है।क्यूंकै सती रै सांग काढणिये नै खुद बल़णो पड़ै, जणै ओ सांग पार पड़ै।सोचा -विचारो कै घोल़मथोल़िया करै वांरा कदै ई गीत सुणिया नीं।कविश्रेष्ठ ईसरदासजी नै जद महाराजा रायसिंहजी पूछियो कै हमे अवस्था ढल़ रैयी है! ऐड़ै में म्हनै गीतां रा गोखड़ा निर्मित करणा चाहीजै अर्थात जसजोग काम करणो चाहीजै कै महलां रा झरोखा चिणावणा चाहीजै?
जद ईसरा-परमेसरा कैयो कै आपनै जसजोग काम करणो चाहीजै !क्यूंकै महलां रा झरोखा तो बखत बीत्यां झड़ पड़ैला पण गीतां रा गोख अखी है-
एहा वैण दाखवै ईसर,
मांझी वंश तणा कुल़ मौड़।
झड़सी महलां तणा झरोखा ,
रहसी गीत कहै राठौड़।।
जिण जिण नरां जस रा महल चिणाया वे आज ई अखी ऊभा उण नरां रै नाम री जस पताका फहरावै।आज नीं तो आसो डाबी है नीं वाघो कोटड़ियो पण उणां रो जस अमर है-
कोटड़ियो वाघो कठै,
आसो डाबी आज।
गवरीजै जस गीतड़ा,
गया भींतड़ा भाज।।
नागौर री धरा माथै
ऐड़ा ई दो जसधारी जाट होया  जिणां री गरवीली गाथा आज ई नागौर री धरा माथै मायरो भरती वेल़ा अवस ही गाईजै।
बात यूं चालै कै दिल्ली माथै तुगलक वंश रो शासन हो।हर दिल्ली रै शासक री कुदीठ नागौर माथै रैयी क्यूंकै आ धरा उपजाऊ ही
-सियाल़ो खाटू भलो,
ऊनाल़ो अजमेर।
नागाणो नितरो भलो,
सावण बीकानेर।।
इण वास्तै इण धरा माथै घणोकरक शासन दिल्ली रो रैयो।
दिल्ली शासन नै  कर बीजो उगराय दिल्ली पूगतो करण सारू
उठै रै शासकां जायल रै गोपाल़जी जाट जिणां री शाखा बासट अर खिंयाल़ै रा धरमोजी जाट जिणांरी शाखा बिडियासर ही नै ओ जिम्मो दे राख्यो हो।
खल़ा-लाटां लाटियां पछै दोनूं चौधरी रकम भेल़ी कर ऊ़ठां लद बूवा जको अजमेर-जयपुर रै सीमाड़ै बसिये गांम हरमाड़ा रै कुए माथै आय ऊंठ झेकिया।
पाणी-पीच करर ऐ आडटेड करी ईज ही कै जितै उणां मांय सूं एक चौधरी नै किणी लुगाई रै रोवण री आवाज सुणीजी। उणां देखियो कै कोई ओपरी छिंया(भूत -पलीत) है कै कोई दुखियारण! पण है जको ई सही ,मिनख रो फरज बणै कै रोवणियै रा आंसू पूंछ थावस दियो जावै।उणां जाय पूछियो कै व्हाला !लुगाई जात अर रात री कुए माथै एकली !वा ई भल़ै डुसकै चढ्योड़ी!!ऐड़ो कांई दुख है? है,जको ई बता।म्हारै डोल़ सारू मदत करूंलो।"
"मदत !तो म्हारी सांवरिये नीं की थे कांई करोला ?म्हारा अभगाण रा मदत जैड़ा भाग नीं है।पण थे पूछ्यो है जणै बतावणो ठीक रैसी।म्हारी बेटी रो सवारै ब्याव है।मा रो जायो कोई भाई नीं सो मायरो कुण लावै?
मायरो तो उधारी हाती है।ई हाथ लैणो अर बी हाथ दैणो। म्है लैती बखत सिनगिन्न नीं राखी सो दियो उणसूं ई लेती गी पण हमे वड़सी उतारणी कीकर रैयी?आ सोच पाणी रै मिस कुए आई।सोचियो मर जावूं सो लारो छूटै पण सास अर बास दोरा छूटै!!मरणो मोटो धरणो है सो मरण सूं डरगी।जीव रै उकराल़ियै हूबाड़ फाटी सो थे सुण लीनी!! " उण लुगाई बतायो जणै चौधरी बोल्यो-
अरै !बेटी री बाप आपघात !महापाप क्यूं करै?मिनख जनम कोई बार-बार थोड़ो ई मिलै सो तूं इयां मरण संभी है!हरि करै वा खरी।   तनै म्है देखती हिंयाल़ी मरण नीं दूं।म्हनै ई राम रै घरै जावणो है! उठै कांई जवाब देवूंलो?"
गैली तनै किण कैयो कै थारै भाई नीं है ?ले म्हारै, थारै ओढणै रो धागो बांध !म्है थारो आज सूं भाई, तूं म्हारी बैन !पण तूं है कुण?" वा इणगत हिंवल़ास अर अपणास रा ठिमर बोल सुण  बोली-
"म्है लिछमा गुजरणी हूं।म्हारी देराण्यां-जेठाण्यां रै सवारै मायरो आसी पण म्हारै कुण लावै? जणै घरवाल़ां मोसा() दे दे म्हनै अधगावल़ी कर नांखी!! म्है सोच्यो रे जीव ऐड़ै जीवणै बिचै तो मरणो ई चोखो सो मैण्यां तो नीं सुणणी पड़ै।आ सोच र म्है अठै आई  पण मरणो कांई सोरो है? जीव व्हालो है !!मरीज्यो नीं जणै रोय थोड़ो काल़जो हल़को करै ही अर थे आयग्या। जणै म्है जाण लियो कै म्हारै करम में फखत मोसा सुणणा ईज लिख्या है!!गरीब नै  तो लोग नीं तो सोरै सास  जीवण दे अर नीं मरण दे!!पण थांरा बोल म्हारै काल़जै री समूल़ी कल़जल़ मेटदी।"
आ सुण चौधरी बोल्यो कै-
"भाई रै देखतां जे बैन रोवै अर वो उणरा आंसू नीं पूंछ सकै तो पछै भाई नै लख लाणत है।तूं म्हारी आज सूं धरम री बैन है !! तूं म्हनै ई मा- जायो ईज  मान।फूल सारू पांखड़ी रै उनमान मायरो भरूंलो।रोय मती अर  भाई नै टीकण री त्यारी कर।"
एकर तो उणरै जची नीं ।उण जाणियो कै मरण सूं बचावण कारणै ओ भलो आदमी  भूलथाप देवै।उण खराय पूछियो कै -"कांई थे म्हनै बैन मानी ?जे बैन मानी जणै म्है कोई मायरै री भूखी नीं हूं म्हनै माखी नीं मल़को मारै सो थे म्हनै चूंदड़ी ओढायदो अर छोरी नै पाट उतारदो!!"वा  भलै कीं कैती जितै चौधरी कैयो कै -"काली तूं हाल! वीरो टीकण री त्यारी कर अर थारै कड़ूंबै वाल़ां नै नूंत !!म्हनै ई मायरो भर आगै जावणो है!!"
उणनै पतियारो आयग्यो कै मिनख अणीपाणी वाल़ो है।
वा पाछी आपरै घरै आई, जणै उणरी सासू उणनै मैणी देती बोली कै -"मरी कोनी कांई?थारी मा भाई जिणियो ई नीं जणै कठै सूं आवतो ? जणै तो सिरूखी सइयां कनै सूं वेश ले ले र ऊंडा मेलिया ।देवण री बारी आई जणै रोवै अर ढफल करै ।"
आ सुण उण कैयो कै-ढफल करै म्हारो खेटर!सवार रा म्हारो भाई मायरो भरसी।"
आ बात सुण उणरी सासू बोली कै- "मायरै री भूखी किणी खीचड़ै रै ठांमां नै तेड़र लाई है ला !!बाकी कागां रै बागां होवै तो उडतां रै दीसै नीं।करमहीणी जे दीयै जैड़ै भाग होवता तो रातींधो ई क्यूं होवतो?"
अठीनै उण चौधरी जाय दूजोड़ै नै कैयो कै -"एक बैन नै वचन दे आयो हूं।सो प्रभातै मायरो भरणो पड़सी।"
दूजैड़ै कैयो-ई में सोचण री कांई बात है?मरदां रा दिवाल़ा मुवां निकल़ै। कोई बात नीं मायरो ऐड़ो भरांला कै दो भाई बात करैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"आपां कनै रकम राज री है! भाई धन धणी रो है! ग्वाल़ रै हाथ में गेड है!!आपां जाणां कै रकम नीं भरियां पातसाह खाल में लूण भराय देवैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"मा सूं मोटी गाल़़ नीं।परमारथ रै कारणै मरणो पड़ै तो पड़ै!! थारो वचन तो पूरो करांला।"
ऐ दोनूं रात रा निकल़िया अर मायरै जोग वुस्तां भेल़ी की अर भाखफाटी गुजरणी रै फल़सै जाय ढूका।
आगै गुजरणी रै घरै ई बात माथै गोधम हो कै रात -रात में भाई कठै सूं आया? अर सासू कैवै ही कै भलांई कुवो -खाड कर पण मायरो भरा।"
आ कैवै ही कै मायरो म्हारो धरम-भाई अवस भरसी।"
आं दोनां री बात सुण ऐ दोनूं चौधरी ई बोल उठ्या कै-"हां सगीजी बाई साची कैवै।म्हांरै कनै बखत कमती ईज है सो मायरै री त्यारी करावो।"
घरवाल़ां ई देखियो कै दो ऊंठधारी मायरै री खथावल़ करै ।
एकर तो उणांरै ई मनी नीं सेवट मायरै री त्यारी होई।
मायरो का तो नरसी भरियो का आं चौधरियां!!
लगान री पूरी रकम लिछमा गूजरी रै मायरै में भरदी। दो ऊंठां माथै लदी रकम,सोनो चांदी आद सगल़ो  चौधरियां लिछमा रै मायरो में लुटाय  सगां सूं रजा मांग दिल्ली रै मारग खड़िया-
राहब कह रे साहबा,
हाउ ज देखण हल्ल।
मरजाणा संसार में,
पड़ी रहेगी गल्ल।।
दोनां दिल्ली जाय सुलतान नै धरामूल़ सूं मांडर बात बताई।
साच नै सरप ई नीं डसै, क्यूंकै साचै राचै राम !!आ बात सुण पातसाह ई रीझियो अर कैयो कोई बात नीं रुपियो हाथ रो मैल है !!आगलै साल पाछो उगरालां ला पण आ बात पाछी नीं मिलती।चौधरियां धिन है थांनै जको मोत अंगेज र ई बात राखी।थांरी इण हूंस सूं सिद्ध होवै कै मारवाड़ नर -संमद है!सो मारवाड़ में नर नीपजै।
आज नीं वा सल्तनत है अर नीं वे चौधरी पण उण दोनां नरां री अंतस उदारता आज ई अमर है।नागाणै री धरा माथै मायरो भरजीती बखत लुगायां -"वीरा रमक-झमक होय आज्यो!
म्हारी भावज नै साथै लाज्यो।" गावै कै नीं गावै पण उण जाटां माथै गीरबो करती आज ई गावै कै-
'बीरा बणजे तूं जायल रो जाट!!
बणजे खियाल़ा रो चौधरी !!
तो साथै ई जायल री जसजोगी धरा माथै गुमेज करती अजेज गावै-
"धौल़ा ए जायल रा फूल,
रातहड़ल्यां रंग चूंदड़ी!!"
जदै ई तो लोकसाहित्य अर संस्कृति रा कुशल़ चितेरा डॉ शक्तिदानजी कविया लिखै--
जस जायल रै जाट रो,
गीत लुगायां गाय।
राज-रेख री रकम सूं,
भर्यौ भात बण भ्रात।।
उण नखतधारी नरां री उदारता अर निडरता नै चितारतां  इण ओल़्यां रै लेखक ई लिख्यो-
अंतस अथग उदारता,
खरो सुजस जग खाट।
हुवा अमर इल़ हेरलो,
जोगायत सूं जाट।।
दयाधार दरियाव दिल,
बहिया सतवट वाट।
एक खिंयाल़ै ईखलो,
जायल दूजो जाट।।
धरमै अर गोपाल़ धिन,
माया सँची न माट।
भात भर्यो सुध भाव सूं,
जस अस लाटण जाट।।
बिन स्वारथ अर लोभ बिन,
हेत हियै री हाट।
राज-रेख री रकम सूं,
जस धर लीधो जाट।।
गि.रतनू

सोमवार, 25 जून 2018

बा बात कौनी


आजकल की स्कूला में बा बात कौनी रही पलया हाली सी

पुराने टेम मे मासटर होया करता यमदूत सा आजकल तो मैडमा   फूटरी फूटरी ... टाबर पढै क बाने देखे

बडा बडा टाबर पढया करता ,दाड़ी मूछ हाला ...
दसवी मै तो टाबरा का मायत भी पढ़ता ...अर मासटरा कनु कुटिजता रेता
मास्टर भी बेटा अंया कूटता जीयां पुरणो काको दोफारी मे  जांटी क नीचै मूज कूटतो

मै तो टाबरपणे से ही सयाणो हो जो मै तो स्कूलड़ी म जातो ही कोनी

क्यां खातर जातो

नाह धो के मास्टरया कनु मार खाणन ?

या कठे की स्याणपत हैं।

एकर दादी बोली . जो मेरो राजो बेटो स्कूल चलो जावे तो पताशो देस्यु..

मै चक्करा म आग्यो

स्कूल में मनै मास्टर बोल्यो
अर दो को पहाड़ो सुनाई रे सुरिया

आपां न तो आतो कोनी हो... सुनातो के बाप को सिर  , मै तो इनै बिनै देखैण लाग्यो

मास्टर तो भाया लेके डंडो मैरे फिंच्या पर मारण लाग्यो ....
तड़ई... तड़ई...
डंडो ही टूटग्यो जद छौड्यो

मै तो दादी न जाके जेब सूं काढ के पताशो पकड़ायो और कयो  काठो राख तेरे पताशे न

आपां कोनी जांवा स्कूल औरु कदे

दसे क दिन पाछै दादी बोली सुरिया बेटा तु खिव काक क सागै चल्यो ज्या..
तेरो काको तनै मारण कौनी दे

काको नोवीं मे पढ़तो हो फुटरी दाड़ी मूछ्या हालो गाबरु जवान

उमर या  इ कोई तेईस क सांकड़े

मै राजी होके गयो अरै काके कनै ही बिंकी कलास मै ही बेठगो

काको भायला न काकी की बात बताणे लाग्यो अर् मै पट्टी पर कोचरी को चितर बणाण लाग्यो

ईत्तै मै मास्टर आग्यो अर् आतो ही काके ने बोल्यो

अर् खिवला ज्वार भाटा किसे कहते है  ?

काको तो मास्टर ने अयां देखें  जंया काणो उँट कंकेड़ा कानी देखे

मास्टर तो लाल तातो होग्यो अर काके न बणाके मूरगो ईयां कुट्यो ज्याणी लुंग को मिरड़ो झाड़्यो होवे

जो मेरो guard बण के आयो बी की या हालत देख के मै तो डरग्यो

मै तो पट्टी बरतो बठै ही छोड़ के घरां कानी भाज्यो जाणी कोई रोजड़ो भाज्यो होवे

घरां पुगता पांण दादी बोली  आज तो काक क सागै गयो हो न किंया आग्यो

मै बोल्यो

तेरे बाप को सिर ....
बो काको तो जवार अर् भाटै खातर ईयां कूटीजण लागरयो ह जीयां ओसर मे गंडक कूटीजै

शनिवार, 16 जून 2018

घास री रोटी

अरे घास री रोटी ही‚ जद बन–बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हों सो अमर्यो चीख पड़्यो‚ राणा रो सोयो दुःख जाग्यो।
हूँ लड़्यो घणो‚ हूँ सह्यो घणो‚ मेवाड़ी मान बचावण नै।
मैं पाछ नहीं राखी रण में‚ बैर्यां रो खून बहावण नै।
जब याद करूँ हल्दीघाटी‚ नैणां में रगत उतर आवै।
सुख–दुख रो साथी चेतकड़ो‚ सूती सी हूक जगा जावै।
पण आज बिलखतो देखूँ हूँ‚ जद राजकंवर नै‚ रोटी नै।
तो क्षात्र धर्म नै भूलूँ हूँ‚ भूलूँ हिंदवाणी चोटी नै।
आ सोच हुई दो टूक तड़क‚ राणा री भीम बजर छाती।
आँख्यां मैं आँसू भर बोल्यो‚ हूँ लिखस्यूँ अकबर नै पाती।
राणा रो कागद बाँच हुयो‚ अकबर रो सपनो–सो सांचो।
पण नैण कर्या बिसवास नहीं‚ जद् बाँच बाँच नै फिर बाँच्यो।
बस दूत इसारो पा भाज्यो‚ पीथल नै तुरत बुलावण नै।
किरणां रो पीथल आ पुग्यो‚ अकबर रो भरम मिटावण नै।
“म्हें बांध लियो है पीथल! सुण‚ पिंजरा में जंगली सेर पकड़।
यो देख हाथ रो कागद है‚ तू देखां फिरसी कियां अकड़।
हूं आज पातस्या धरटी रो‚ मेवाड़ी पाग पगां में है।
अब बता मनै किण रजवट नै‚ रजपूती खून रगां में है”।
जद पीथल कागद ले देखी‚ राणा री सागी सैनांणी।
नीचै सूं धरती खिसक गयी‚ आख्यों मैं भर आयो पाणी।
पण फेर कही तत्काल संभल “आ बात सफा ही झूठी है।
राणा री पाग सदा ऊंची‚ राणा राी आन अटूटी है।
“ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूँ, राणा नै कागद रै खातर।”
“लै पूछ भला ही पीथल! तू‚ आ बात सही” बोल्यो अकबर।
“म्हें आज सुणी है‚ नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो।
म्हें आज सुणी है‚ सूरजड़ो‚ बादल री आंटा खोवैलो”
पीथल रा आखर पढ़ता ही‚ राणा राी आँख्यां लाल हुई।
“धिक्कार मनै‚ हूँ कायर हूँ” नाहर री एक दकाल हुई।
“हूँ भूख मरूं‚ हूँ प्यास मरूं‚ मेवाड़ धरा आजाद रहै।
हूँ घोर उजाड़ां मैं भटकूँ‚ पण मन में माँ री याद रह्वै”
पीथल के खिमता बादल री‚ जो रोकै सूर उगाली नै।
सिंहा री हाथल सह लेवै‚ वा कूंख मिली कद स्याली ने।
जद राणा रो संदेश गयो‚ पीथल री छाती दूणी ही।
हिंदवाणों सूरज चमके हो‚ अकबर री दुनियां सूनी ही।
∼ कन्हैयालाल सेठिया

शुक्रवार, 15 जून 2018

आजकल रा ब्याँव

"आजकल रा ब्याँव"

*समझदार और पढयो लिख्यो आपांको सभ्य समाज।*
शादी ब्याँव में लाखों और करोड़ों खरचे आज।।

*(करोड़ों खरचे आज, नाक सब ऊँची रखणी चावे।*
कुरीत्याँ के दळदळ मांही सगला धँसता जावे।।

*'होटल और रिसोर्ट' मे जद सुं होवण लागी शादी।*
आंधा होकर लोग करे है, पैसा री बरबादी।।

*पैसा री बरबादी, सब ठेके सुं होवे काम।*
'इवेंट मेनेजमेंट' वाला ने चुकावे दुगुणा दाम।।

*'केटरिंग' वालां को चोखो चाल पड्यो व्यापार।*
छोटा मोटा रसोईया भी बणगया ठेकेदार।।

*बणगया ठेकेदार, प्लेटाँ गिण गिण कर के देवे।*
खड़ा खड़ा जिमावे और मुहमांग्या पैसा लेवे।।

*ब्याँव रा नूंता रो मैसेज 'मोबाइल' मे आग्यो।*
'कुंकुंपत्री' देवण जाणो दोरो लागण लाग्यो।।

*दोनों दोरो लागण लाग्यो, घर घर कुणतो धक्का खावे।*
पाड़ोसी रो कार्ड भी 'कुरियर' सुं भिजवावे।।

*'जीमण' में भी करणे लाग्या आईटम बेशुमार।*
आधे से ज्यादा खाणों तो जावे है बेकार।।

*जावे है बेकार, जिमावण ताँई वेटर लावे।*
'मेकअप' करोड़ी दो चार, 'सर्विस गर्ल' बुलावे।।

*गीत गावणे की रीतां तो अजकळ सारी मिटगी।*
'संगीत संध्या'तक ही अब, सगळी बात सिमटगी।।

*सगळी बात सिमटगी, उठग्या सारा नेगचार।*
सग्गा और प्रसंग्याँ की भी नहीं हुवे मनुहार।।

*आपाँणी 'संस्कृती' को देखो, पतन हो गयो सारो।*
देखादेखी भेड़ चाल में, गरीब मरे बिचारो।।

*पुकार रह्यो समाज, कोई तो करो सुधार।*

*डूब रही 'समाज' री नैया, कुण थामे पतवार।*

बुधवार, 2 मई 2018

उङता तीर

कृष्ण:- है पार्थ तीर चला••••

अर्जुन:- किस पर चलाऊं प्रभु...

कृष्ण:- थूं बस चला,उङता तीर लेवणियां गणांई है••••

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

मारवाड़ रै सिरदार

एक मारवाड़ रै सिरदार रै एक थल़ियै सूं बेलिपा!!
एक दिन थल़ियै सोचियो कै हालो सिरदारां सूं मिल आवां,घणा दिन होया है!!
बो आपरै ऊंठ माथै दो च्यार दिनां सूं उणां रै गांम पूगियो!!
उणांनै सिरदारां री कोई घणी रीतां-पातां तो आवती कोनी,उण एक दो हेलो कियो पण किणी सुणियो नीं
बो सीधो ई धमै-धमै आंगणै आगे बुवो ग्यो,आगे देखै तो उणरी आंख्यां फाटगी!!
थल़ी कानी आयां बडाई रा भाखर चिणणिया ठाकर आपरै घरै घट्टी में बाजरी पीसै !!
सिरदारां रो ध्यान ढालड़ियै अर उणमें पड़ी बाजरी कानी हो !!कै हमें कितरीक बची है!! उणां गाल़ो ऊरतां- ऊरतां एक फाको भरियो अर अचाणचक उणां री मीट आपरै थल़ियै मित्र माथै पड़ी जिको थलकण माथै ऊभो उणांनै ई देखै हो!!
बारै घणी धसल़ां बावणी अर घरै घट्टी सूं माथो लगावतै नै मित्र देख लियो!! आ केड़ीक होई!!
जणै सिरदार  थोड़़ा लचकाणा पड़ग्या!!
उणांनै लचकाणा पड़तां नै देखर थल़ियै सोचियो कै मोटा मिनख है!!अर रावल़सां रो हाथ बंटावण री अठै आ कोई रीत होसी!!
मित्र कह्यो -
"अरे!बडै  मिनखां थे तो मरद हो!!जको फाको तो लियो !!
म्हारै तो बडभागण आटो पीसूं जितरै माथै ऊभी रैवै!!गाबड़ नीं फोरण दे!!"
आ सुणर उणांरै मूंडै माथै चेल़को आयो अर बोलिया-
"इतरी पोल अठै नीं है इयां म्हारै पग में जूत आवै भाई!!
गि.रतनू

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

रिझाव......

रजवट रीझे राजवी,कर रीझे करतार।
मन मनवारां रीझणों, बाकी सब बेकार।।

प्रेम रिझाव पावणा,मन मुळके मनवार।
आदर रीझे आत्मा,सत रीझे सत्कार।।

पीव रिझाव प्रीतड़ी,मात रिझाव मान।
भायां रीझण बातड़ी,वक्त पड्यां सब जाण।।

बापू रीझे बाग सूं, भैनड़ रीझे भात।
साथी रीझे साथ सूं, नव होज्या प्रभात।।

भावां रिझे भायला, टीस करे तकरार।
मान रिझाव मानवी,जोड़े मन रा तार।

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

तगड़ा डायलॉग....

राजस्थान में शादी में बच्चों से काम कराने का सबसे तगड़ा
डायलॉग........

यूँ ढीलो ढीलो काँई काम करे हैं ,
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थने कुण छोरी देई रे ......
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थोड़ी फुर्ती राख ...पचे थारे भी लुगाई लावाँ।।।।।

रंग पाबू राठौड़ .....

रंग पाबू राठौड़ .....

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जस रा मारग झेल कर ठावी कीनी ठौड़
पिछम धरा रो पाटवी रंग पाबू राठौड़

केसर घोड़ी काळवी जुडै न जिणरी जोड़
अमर नाम इळ ऊपरां रंग पाबू राठौड़

जिन्दराज सूं झूंझियो जायल हन्दी जौड
ऊजळ दूध उजाळियौ रंग पाबू राठौड़

चाँदो डेमौ चाव सूं  किया घणैरा कोड
गूंजै घर घर गीतड़ा  रंग पाबू राठौड़

अमरकोट रै आँगणै  सोढी रौ सिरमौड़
चौथे फेरै चाल्यो रंग पाबू राठौड़

सोढी छोडी सोवणी  तंतु कांकण तोड़
निवत मरण निवारियो रंग पाबू राठौड़

भालाळो भल भळकियो कोळूमंड किरोड़
अनमी अवर न आप सम रंग पाबू राठौड

अमराणे में आय़ कर बीखो  बहुत बिछौड़
व्हाली छोड़ी वाहरू रंग पाबू राठौड़

देवलदे दीन्ही दखल खींची कीन्ही खौड़
वचन रुखाळु वीरवर रंग पाबू राठौड़

पत राखण पालण परण हुवै न थांरी हौड़
पिरथी पर पिछाणियो रंग पाबू राठौड़

माथौ दे मनवारियौ  दुसमी आयो दौड़
रगत रंग रंग दी धरा  रंग पाबू राठौड़

भोपा गावे भाव भर जस थारा कर जोड़
रावणहथा राग रस रंग पाबू राठौड़

दिस दिस थांरा देवरा पडवांडां री पौड़
अवल पीरजी आप हो रंग पाबू राठौड़

@©® रतन सिंह चंपावत रणसी गांव कृत