बुधवार, 27 जून 2018

वीरा तूं बणजै जायल रो जाट!!

वीरा तूं बणजै जायल रो जाट!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीतां में गाईजणो  घणो दोरो काम है।क्यूंकै सती रै सांग काढणिये नै खुद बल़णो पड़ै, जणै ओ सांग पार पड़ै।सोचा -विचारो कै घोल़मथोल़िया करै वांरा कदै ई गीत सुणिया नीं।कविश्रेष्ठ ईसरदासजी नै जद महाराजा रायसिंहजी पूछियो कै हमे अवस्था ढल़ रैयी है! ऐड़ै में म्हनै गीतां रा गोखड़ा निर्मित करणा चाहीजै अर्थात जसजोग काम करणो चाहीजै कै महलां रा झरोखा चिणावणा चाहीजै?
जद ईसरा-परमेसरा कैयो कै आपनै जसजोग काम करणो चाहीजै !क्यूंकै महलां रा झरोखा तो बखत बीत्यां झड़ पड़ैला पण गीतां रा गोख अखी है-
एहा वैण दाखवै ईसर,
मांझी वंश तणा कुल़ मौड़।
झड़सी महलां तणा झरोखा ,
रहसी गीत कहै राठौड़।।
जिण जिण नरां जस रा महल चिणाया वे आज ई अखी ऊभा उण नरां रै नाम री जस पताका फहरावै।आज नीं तो आसो डाबी है नीं वाघो कोटड़ियो पण उणां रो जस अमर है-
कोटड़ियो वाघो कठै,
आसो डाबी आज।
गवरीजै जस गीतड़ा,
गया भींतड़ा भाज।।
नागौर री धरा माथै
ऐड़ा ई दो जसधारी जाट होया  जिणां री गरवीली गाथा आज ई नागौर री धरा माथै मायरो भरती वेल़ा अवस ही गाईजै।
बात यूं चालै कै दिल्ली माथै तुगलक वंश रो शासन हो।हर दिल्ली रै शासक री कुदीठ नागौर माथै रैयी क्यूंकै आ धरा उपजाऊ ही
-सियाल़ो खाटू भलो,
ऊनाल़ो अजमेर।
नागाणो नितरो भलो,
सावण बीकानेर।।
इण वास्तै इण धरा माथै घणोकरक शासन दिल्ली रो रैयो।
दिल्ली शासन नै  कर बीजो उगराय दिल्ली पूगतो करण सारू
उठै रै शासकां जायल रै गोपाल़जी जाट जिणां री शाखा बासट अर खिंयाल़ै रा धरमोजी जाट जिणांरी शाखा बिडियासर ही नै ओ जिम्मो दे राख्यो हो।
खल़ा-लाटां लाटियां पछै दोनूं चौधरी रकम भेल़ी कर ऊ़ठां लद बूवा जको अजमेर-जयपुर रै सीमाड़ै बसिये गांम हरमाड़ा रै कुए माथै आय ऊंठ झेकिया।
पाणी-पीच करर ऐ आडटेड करी ईज ही कै जितै उणां मांय सूं एक चौधरी नै किणी लुगाई रै रोवण री आवाज सुणीजी। उणां देखियो कै कोई ओपरी छिंया(भूत -पलीत) है कै कोई दुखियारण! पण है जको ई सही ,मिनख रो फरज बणै कै रोवणियै रा आंसू पूंछ थावस दियो जावै।उणां जाय पूछियो कै व्हाला !लुगाई जात अर रात री कुए माथै एकली !वा ई भल़ै डुसकै चढ्योड़ी!!ऐड़ो कांई दुख है? है,जको ई बता।म्हारै डोल़ सारू मदत करूंलो।"
"मदत !तो म्हारी सांवरिये नीं की थे कांई करोला ?म्हारा अभगाण रा मदत जैड़ा भाग नीं है।पण थे पूछ्यो है जणै बतावणो ठीक रैसी।म्हारी बेटी रो सवारै ब्याव है।मा रो जायो कोई भाई नीं सो मायरो कुण लावै?
मायरो तो उधारी हाती है।ई हाथ लैणो अर बी हाथ दैणो। म्है लैती बखत सिनगिन्न नीं राखी सो दियो उणसूं ई लेती गी पण हमे वड़सी उतारणी कीकर रैयी?आ सोच पाणी रै मिस कुए आई।सोचियो मर जावूं सो लारो छूटै पण सास अर बास दोरा छूटै!!मरणो मोटो धरणो है सो मरण सूं डरगी।जीव रै उकराल़ियै हूबाड़ फाटी सो थे सुण लीनी!! " उण लुगाई बतायो जणै चौधरी बोल्यो-
अरै !बेटी री बाप आपघात !महापाप क्यूं करै?मिनख जनम कोई बार-बार थोड़ो ई मिलै सो तूं इयां मरण संभी है!हरि करै वा खरी।   तनै म्है देखती हिंयाल़ी मरण नीं दूं।म्हनै ई राम रै घरै जावणो है! उठै कांई जवाब देवूंलो?"
गैली तनै किण कैयो कै थारै भाई नीं है ?ले म्हारै, थारै ओढणै रो धागो बांध !म्है थारो आज सूं भाई, तूं म्हारी बैन !पण तूं है कुण?" वा इणगत हिंवल़ास अर अपणास रा ठिमर बोल सुण  बोली-
"म्है लिछमा गुजरणी हूं।म्हारी देराण्यां-जेठाण्यां रै सवारै मायरो आसी पण म्हारै कुण लावै? जणै घरवाल़ां मोसा() दे दे म्हनै अधगावल़ी कर नांखी!! म्है सोच्यो रे जीव ऐड़ै जीवणै बिचै तो मरणो ई चोखो सो मैण्यां तो नीं सुणणी पड़ै।आ सोच र म्है अठै आई  पण मरणो कांई सोरो है? जीव व्हालो है !!मरीज्यो नीं जणै रोय थोड़ो काल़जो हल़को करै ही अर थे आयग्या। जणै म्है जाण लियो कै म्हारै करम में फखत मोसा सुणणा ईज लिख्या है!!गरीब नै  तो लोग नीं तो सोरै सास  जीवण दे अर नीं मरण दे!!पण थांरा बोल म्हारै काल़जै री समूल़ी कल़जल़ मेटदी।"
आ सुण चौधरी बोल्यो कै-
"भाई रै देखतां जे बैन रोवै अर वो उणरा आंसू नीं पूंछ सकै तो पछै भाई नै लख लाणत है।तूं म्हारी आज सूं धरम री बैन है !! तूं म्हनै ई मा- जायो ईज  मान।फूल सारू पांखड़ी रै उनमान मायरो भरूंलो।रोय मती अर  भाई नै टीकण री त्यारी कर।"
एकर तो उणरै जची नीं ।उण जाणियो कै मरण सूं बचावण कारणै ओ भलो आदमी  भूलथाप देवै।उण खराय पूछियो कै -"कांई थे म्हनै बैन मानी ?जे बैन मानी जणै म्है कोई मायरै री भूखी नीं हूं म्हनै माखी नीं मल़को मारै सो थे म्हनै चूंदड़ी ओढायदो अर छोरी नै पाट उतारदो!!"वा  भलै कीं कैती जितै चौधरी कैयो कै -"काली तूं हाल! वीरो टीकण री त्यारी कर अर थारै कड़ूंबै वाल़ां नै नूंत !!म्हनै ई मायरो भर आगै जावणो है!!"
उणनै पतियारो आयग्यो कै मिनख अणीपाणी वाल़ो है।
वा पाछी आपरै घरै आई, जणै उणरी सासू उणनै मैणी देती बोली कै -"मरी कोनी कांई?थारी मा भाई जिणियो ई नीं जणै कठै सूं आवतो ? जणै तो सिरूखी सइयां कनै सूं वेश ले ले र ऊंडा मेलिया ।देवण री बारी आई जणै रोवै अर ढफल करै ।"
आ सुण उण कैयो कै-ढफल करै म्हारो खेटर!सवार रा म्हारो भाई मायरो भरसी।"
आ बात सुण उणरी सासू बोली कै- "मायरै री भूखी किणी खीचड़ै रै ठांमां नै तेड़र लाई है ला !!बाकी कागां रै बागां होवै तो उडतां रै दीसै नीं।करमहीणी जे दीयै जैड़ै भाग होवता तो रातींधो ई क्यूं होवतो?"
अठीनै उण चौधरी जाय दूजोड़ै नै कैयो कै -"एक बैन नै वचन दे आयो हूं।सो प्रभातै मायरो भरणो पड़सी।"
दूजैड़ै कैयो-ई में सोचण री कांई बात है?मरदां रा दिवाल़ा मुवां निकल़ै। कोई बात नीं मायरो ऐड़ो भरांला कै दो भाई बात करैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"आपां कनै रकम राज री है! भाई धन धणी रो है! ग्वाल़ रै हाथ में गेड है!!आपां जाणां कै रकम नीं भरियां पातसाह खाल में लूण भराय देवैला।" आ सुण दूजोड़ै कैयो कै-"मा सूं मोटी गाल़़ नीं।परमारथ रै कारणै मरणो पड़ै तो पड़ै!! थारो वचन तो पूरो करांला।"
ऐ दोनूं रात रा निकल़िया अर मायरै जोग वुस्तां भेल़ी की अर भाखफाटी गुजरणी रै फल़सै जाय ढूका।
आगै गुजरणी रै घरै ई बात माथै गोधम हो कै रात -रात में भाई कठै सूं आया? अर सासू कैवै ही कै भलांई कुवो -खाड कर पण मायरो भरा।"
आ कैवै ही कै मायरो म्हारो धरम-भाई अवस भरसी।"
आं दोनां री बात सुण ऐ दोनूं चौधरी ई बोल उठ्या कै-"हां सगीजी बाई साची कैवै।म्हांरै कनै बखत कमती ईज है सो मायरै री त्यारी करावो।"
घरवाल़ां ई देखियो कै दो ऊंठधारी मायरै री खथावल़ करै ।
एकर तो उणांरै ई मनी नीं सेवट मायरै री त्यारी होई।
मायरो का तो नरसी भरियो का आं चौधरियां!!
लगान री पूरी रकम लिछमा गूजरी रै मायरै में भरदी। दो ऊंठां माथै लदी रकम,सोनो चांदी आद सगल़ो  चौधरियां लिछमा रै मायरो में लुटाय  सगां सूं रजा मांग दिल्ली रै मारग खड़िया-
राहब कह रे साहबा,
हाउ ज देखण हल्ल।
मरजाणा संसार में,
पड़ी रहेगी गल्ल।।
दोनां दिल्ली जाय सुलतान नै धरामूल़ सूं मांडर बात बताई।
साच नै सरप ई नीं डसै, क्यूंकै साचै राचै राम !!आ बात सुण पातसाह ई रीझियो अर कैयो कोई बात नीं रुपियो हाथ रो मैल है !!आगलै साल पाछो उगरालां ला पण आ बात पाछी नीं मिलती।चौधरियां धिन है थांनै जको मोत अंगेज र ई बात राखी।थांरी इण हूंस सूं सिद्ध होवै कै मारवाड़ नर -संमद है!सो मारवाड़ में नर नीपजै।
आज नीं वा सल्तनत है अर नीं वे चौधरी पण उण दोनां नरां री अंतस उदारता आज ई अमर है।नागाणै री धरा माथै मायरो भरजीती बखत लुगायां -"वीरा रमक-झमक होय आज्यो!
म्हारी भावज नै साथै लाज्यो।" गावै कै नीं गावै पण उण जाटां माथै गीरबो करती आज ई गावै कै-
'बीरा बणजे तूं जायल रो जाट!!
बणजे खियाल़ा रो चौधरी !!
तो साथै ई जायल री जसजोगी धरा माथै गुमेज करती अजेज गावै-
"धौल़ा ए जायल रा फूल,
रातहड़ल्यां रंग चूंदड़ी!!"
जदै ई तो लोकसाहित्य अर संस्कृति रा कुशल़ चितेरा डॉ शक्तिदानजी कविया लिखै--
जस जायल रै जाट रो,
गीत लुगायां गाय।
राज-रेख री रकम सूं,
भर्यौ भात बण भ्रात।।
उण नखतधारी नरां री उदारता अर निडरता नै चितारतां  इण ओल़्यां रै लेखक ई लिख्यो-
अंतस अथग उदारता,
खरो सुजस जग खाट।
हुवा अमर इल़ हेरलो,
जोगायत सूं जाट।।
दयाधार दरियाव दिल,
बहिया सतवट वाट।
एक खिंयाल़ै ईखलो,
जायल दूजो जाट।।
धरमै अर गोपाल़ धिन,
माया सँची न माट।
भात भर्यो सुध भाव सूं,
जस अस लाटण जाट।।
बिन स्वारथ अर लोभ बिन,
हेत हियै री हाट।
राज-रेख री रकम सूं,
जस धर लीधो जाट।।
गि.रतनू

सोमवार, 25 जून 2018

बा बात कौनी


आजकल की स्कूला में बा बात कौनी रही पलया हाली सी

पुराने टेम मे मासटर होया करता यमदूत सा आजकल तो मैडमा   फूटरी फूटरी ... टाबर पढै क बाने देखे

बडा बडा टाबर पढया करता ,दाड़ी मूछ हाला ...
दसवी मै तो टाबरा का मायत भी पढ़ता ...अर मासटरा कनु कुटिजता रेता
मास्टर भी बेटा अंया कूटता जीयां पुरणो काको दोफारी मे  जांटी क नीचै मूज कूटतो

मै तो टाबरपणे से ही सयाणो हो जो मै तो स्कूलड़ी म जातो ही कोनी

क्यां खातर जातो

नाह धो के मास्टरया कनु मार खाणन ?

या कठे की स्याणपत हैं।

एकर दादी बोली . जो मेरो राजो बेटो स्कूल चलो जावे तो पताशो देस्यु..

मै चक्करा म आग्यो

स्कूल में मनै मास्टर बोल्यो
अर दो को पहाड़ो सुनाई रे सुरिया

आपां न तो आतो कोनी हो... सुनातो के बाप को सिर  , मै तो इनै बिनै देखैण लाग्यो

मास्टर तो भाया लेके डंडो मैरे फिंच्या पर मारण लाग्यो ....
तड़ई... तड़ई...
डंडो ही टूटग्यो जद छौड्यो

मै तो दादी न जाके जेब सूं काढ के पताशो पकड़ायो और कयो  काठो राख तेरे पताशे न

आपां कोनी जांवा स्कूल औरु कदे

दसे क दिन पाछै दादी बोली सुरिया बेटा तु खिव काक क सागै चल्यो ज्या..
तेरो काको तनै मारण कौनी दे

काको नोवीं मे पढ़तो हो फुटरी दाड़ी मूछ्या हालो गाबरु जवान

उमर या  इ कोई तेईस क सांकड़े

मै राजी होके गयो अरै काके कनै ही बिंकी कलास मै ही बेठगो

काको भायला न काकी की बात बताणे लाग्यो अर् मै पट्टी पर कोचरी को चितर बणाण लाग्यो

ईत्तै मै मास्टर आग्यो अर् आतो ही काके ने बोल्यो

अर् खिवला ज्वार भाटा किसे कहते है  ?

काको तो मास्टर ने अयां देखें  जंया काणो उँट कंकेड़ा कानी देखे

मास्टर तो लाल तातो होग्यो अर काके न बणाके मूरगो ईयां कुट्यो ज्याणी लुंग को मिरड़ो झाड़्यो होवे

जो मेरो guard बण के आयो बी की या हालत देख के मै तो डरग्यो

मै तो पट्टी बरतो बठै ही छोड़ के घरां कानी भाज्यो जाणी कोई रोजड़ो भाज्यो होवे

घरां पुगता पांण दादी बोली  आज तो काक क सागै गयो हो न किंया आग्यो

मै बोल्यो

तेरे बाप को सिर ....
बो काको तो जवार अर् भाटै खातर ईयां कूटीजण लागरयो ह जीयां ओसर मे गंडक कूटीजै

शनिवार, 16 जून 2018

घास री रोटी

अरे घास री रोटी ही‚ जद बन–बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हों सो अमर्यो चीख पड़्यो‚ राणा रो सोयो दुःख जाग्यो।
हूँ लड़्यो घणो‚ हूँ सह्यो घणो‚ मेवाड़ी मान बचावण नै।
मैं पाछ नहीं राखी रण में‚ बैर्यां रो खून बहावण नै।
जब याद करूँ हल्दीघाटी‚ नैणां में रगत उतर आवै।
सुख–दुख रो साथी चेतकड़ो‚ सूती सी हूक जगा जावै।
पण आज बिलखतो देखूँ हूँ‚ जद राजकंवर नै‚ रोटी नै।
तो क्षात्र धर्म नै भूलूँ हूँ‚ भूलूँ हिंदवाणी चोटी नै।
आ सोच हुई दो टूक तड़क‚ राणा री भीम बजर छाती।
आँख्यां मैं आँसू भर बोल्यो‚ हूँ लिखस्यूँ अकबर नै पाती।
राणा रो कागद बाँच हुयो‚ अकबर रो सपनो–सो सांचो।
पण नैण कर्या बिसवास नहीं‚ जद् बाँच बाँच नै फिर बाँच्यो।
बस दूत इसारो पा भाज्यो‚ पीथल नै तुरत बुलावण नै।
किरणां रो पीथल आ पुग्यो‚ अकबर रो भरम मिटावण नै।
“म्हें बांध लियो है पीथल! सुण‚ पिंजरा में जंगली सेर पकड़।
यो देख हाथ रो कागद है‚ तू देखां फिरसी कियां अकड़।
हूं आज पातस्या धरटी रो‚ मेवाड़ी पाग पगां में है।
अब बता मनै किण रजवट नै‚ रजपूती खून रगां में है”।
जद पीथल कागद ले देखी‚ राणा री सागी सैनांणी।
नीचै सूं धरती खिसक गयी‚ आख्यों मैं भर आयो पाणी।
पण फेर कही तत्काल संभल “आ बात सफा ही झूठी है।
राणा री पाग सदा ऊंची‚ राणा राी आन अटूटी है।
“ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूँ, राणा नै कागद रै खातर।”
“लै पूछ भला ही पीथल! तू‚ आ बात सही” बोल्यो अकबर।
“म्हें आज सुणी है‚ नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो।
म्हें आज सुणी है‚ सूरजड़ो‚ बादल री आंटा खोवैलो”
पीथल रा आखर पढ़ता ही‚ राणा राी आँख्यां लाल हुई।
“धिक्कार मनै‚ हूँ कायर हूँ” नाहर री एक दकाल हुई।
“हूँ भूख मरूं‚ हूँ प्यास मरूं‚ मेवाड़ धरा आजाद रहै।
हूँ घोर उजाड़ां मैं भटकूँ‚ पण मन में माँ री याद रह्वै”
पीथल के खिमता बादल री‚ जो रोकै सूर उगाली नै।
सिंहा री हाथल सह लेवै‚ वा कूंख मिली कद स्याली ने।
जद राणा रो संदेश गयो‚ पीथल री छाती दूणी ही।
हिंदवाणों सूरज चमके हो‚ अकबर री दुनियां सूनी ही।
∼ कन्हैयालाल सेठिया

शुक्रवार, 15 जून 2018

आजकल रा ब्याँव

"आजकल रा ब्याँव"

*समझदार और पढयो लिख्यो आपांको सभ्य समाज।*
शादी ब्याँव में लाखों और करोड़ों खरचे आज।।

*(करोड़ों खरचे आज, नाक सब ऊँची रखणी चावे।*
कुरीत्याँ के दळदळ मांही सगला धँसता जावे।।

*'होटल और रिसोर्ट' मे जद सुं होवण लागी शादी।*
आंधा होकर लोग करे है, पैसा री बरबादी।।

*पैसा री बरबादी, सब ठेके सुं होवे काम।*
'इवेंट मेनेजमेंट' वाला ने चुकावे दुगुणा दाम।।

*'केटरिंग' वालां को चोखो चाल पड्यो व्यापार।*
छोटा मोटा रसोईया भी बणगया ठेकेदार।।

*बणगया ठेकेदार, प्लेटाँ गिण गिण कर के देवे।*
खड़ा खड़ा जिमावे और मुहमांग्या पैसा लेवे।।

*ब्याँव रा नूंता रो मैसेज 'मोबाइल' मे आग्यो।*
'कुंकुंपत्री' देवण जाणो दोरो लागण लाग्यो।।

*दोनों दोरो लागण लाग्यो, घर घर कुणतो धक्का खावे।*
पाड़ोसी रो कार्ड भी 'कुरियर' सुं भिजवावे।।

*'जीमण' में भी करणे लाग्या आईटम बेशुमार।*
आधे से ज्यादा खाणों तो जावे है बेकार।।

*जावे है बेकार, जिमावण ताँई वेटर लावे।*
'मेकअप' करोड़ी दो चार, 'सर्विस गर्ल' बुलावे।।

*गीत गावणे की रीतां तो अजकळ सारी मिटगी।*
'संगीत संध्या'तक ही अब, सगळी बात सिमटगी।।

*सगळी बात सिमटगी, उठग्या सारा नेगचार।*
सग्गा और प्रसंग्याँ की भी नहीं हुवे मनुहार।।

*आपाँणी 'संस्कृती' को देखो, पतन हो गयो सारो।*
देखादेखी भेड़ चाल में, गरीब मरे बिचारो।।

*पुकार रह्यो समाज, कोई तो करो सुधार।*

*डूब रही 'समाज' री नैया, कुण थामे पतवार।*

बुधवार, 2 मई 2018

उङता तीर

कृष्ण:- है पार्थ तीर चला••••

अर्जुन:- किस पर चलाऊं प्रभु...

कृष्ण:- थूं बस चला,उङता तीर लेवणियां गणांई है••••

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

मारवाड़ रै सिरदार

एक मारवाड़ रै सिरदार रै एक थल़ियै सूं बेलिपा!!
एक दिन थल़ियै सोचियो कै हालो सिरदारां सूं मिल आवां,घणा दिन होया है!!
बो आपरै ऊंठ माथै दो च्यार दिनां सूं उणां रै गांम पूगियो!!
उणांनै सिरदारां री कोई घणी रीतां-पातां तो आवती कोनी,उण एक दो हेलो कियो पण किणी सुणियो नीं
बो सीधो ई धमै-धमै आंगणै आगे बुवो ग्यो,आगे देखै तो उणरी आंख्यां फाटगी!!
थल़ी कानी आयां बडाई रा भाखर चिणणिया ठाकर आपरै घरै घट्टी में बाजरी पीसै !!
सिरदारां रो ध्यान ढालड़ियै अर उणमें पड़ी बाजरी कानी हो !!कै हमें कितरीक बची है!! उणां गाल़ो ऊरतां- ऊरतां एक फाको भरियो अर अचाणचक उणां री मीट आपरै थल़ियै मित्र माथै पड़ी जिको थलकण माथै ऊभो उणांनै ई देखै हो!!
बारै घणी धसल़ां बावणी अर घरै घट्टी सूं माथो लगावतै नै मित्र देख लियो!! आ केड़ीक होई!!
जणै सिरदार  थोड़़ा लचकाणा पड़ग्या!!
उणांनै लचकाणा पड़तां नै देखर थल़ियै सोचियो कै मोटा मिनख है!!अर रावल़सां रो हाथ बंटावण री अठै आ कोई रीत होसी!!
मित्र कह्यो -
"अरे!बडै  मिनखां थे तो मरद हो!!जको फाको तो लियो !!
म्हारै तो बडभागण आटो पीसूं जितरै माथै ऊभी रैवै!!गाबड़ नीं फोरण दे!!"
आ सुणर उणांरै मूंडै माथै चेल़को आयो अर बोलिया-
"इतरी पोल अठै नीं है इयां म्हारै पग में जूत आवै भाई!!
गि.रतनू

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

रिझाव......

रजवट रीझे राजवी,कर रीझे करतार।
मन मनवारां रीझणों, बाकी सब बेकार।।

प्रेम रिझाव पावणा,मन मुळके मनवार।
आदर रीझे आत्मा,सत रीझे सत्कार।।

पीव रिझाव प्रीतड़ी,मात रिझाव मान।
भायां रीझण बातड़ी,वक्त पड्यां सब जाण।।

बापू रीझे बाग सूं, भैनड़ रीझे भात।
साथी रीझे साथ सूं, नव होज्या प्रभात।।

भावां रिझे भायला, टीस करे तकरार।
मान रिझाव मानवी,जोड़े मन रा तार।

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

तगड़ा डायलॉग....

राजस्थान में शादी में बच्चों से काम कराने का सबसे तगड़ा
डायलॉग........

यूँ ढीलो ढीलो काँई काम करे हैं ,
.
.
थने कुण छोरी देई रे ......
.
.
थोड़ी फुर्ती राख ...पचे थारे भी लुगाई लावाँ।।।।।

रंग पाबू राठौड़ .....

रंग पाबू राठौड़ .....

*********************
जस रा मारग झेल कर ठावी कीनी ठौड़
पिछम धरा रो पाटवी रंग पाबू राठौड़

केसर घोड़ी काळवी जुडै न जिणरी जोड़
अमर नाम इळ ऊपरां रंग पाबू राठौड़

जिन्दराज सूं झूंझियो जायल हन्दी जौड
ऊजळ दूध उजाळियौ रंग पाबू राठौड़

चाँदो डेमौ चाव सूं  किया घणैरा कोड
गूंजै घर घर गीतड़ा  रंग पाबू राठौड़

अमरकोट रै आँगणै  सोढी रौ सिरमौड़
चौथे फेरै चाल्यो रंग पाबू राठौड़

सोढी छोडी सोवणी  तंतु कांकण तोड़
निवत मरण निवारियो रंग पाबू राठौड़

भालाळो भल भळकियो कोळूमंड किरोड़
अनमी अवर न आप सम रंग पाबू राठौड

अमराणे में आय़ कर बीखो  बहुत बिछौड़
व्हाली छोड़ी वाहरू रंग पाबू राठौड़

देवलदे दीन्ही दखल खींची कीन्ही खौड़
वचन रुखाळु वीरवर रंग पाबू राठौड़

पत राखण पालण परण हुवै न थांरी हौड़
पिरथी पर पिछाणियो रंग पाबू राठौड़

माथौ दे मनवारियौ  दुसमी आयो दौड़
रगत रंग रंग दी धरा  रंग पाबू राठौड़

भोपा गावे भाव भर जस थारा कर जोड़
रावणहथा राग रस रंग पाबू राठौड़

दिस दिस थांरा देवरा पडवांडां री पौड़
अवल पीरजी आप हो रंग पाबू राठौड़

@©® रतन सिंह चंपावत रणसी गांव कृत

सोमवार, 21 अगस्त 2017

हल्दीघाटी के अदम्य योद्धा रामशाह तंवर

हल्दीघाटी के अदम्य योद्धा रामशाह तंवर

18 जून. 1576 को हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य घमासान युद्ध मचा हुआ था| युद्ध जीतने को जान की बाजी लगी हुई. वीरों की तलवारों के वार से सैनिकों के कटे सिर से खून बहकर हल्दीघाटी रक्त तलैया में तब्दील हो गई| घाटी की माटी का रंग आज हल्दी नहीं लाल नजर आ रहा था| इस युद्ध में एक वृद्ध वीर अपने तीन पुत्रों व अपने निकट वंशी भाइयों के साथ हरावल (अग्रिम पंक्ति) में दुश्मन के छक्के छुड़ाता नजर आ रहा था| युद्ध में जिस तल्लीन भाव से यह योद्धा तलवार चलाते हुए दुश्मन के सिपाहियों के सिर कलम करता आगे बढ़ रहा था, उस समय उस बड़ी उम्र में भी उसकी वीरता, शौर्य और चेहरे पर उभरे भाव देखकर लग रहा था कि यह वृद्ध योद्धा शायद आज मेवाड़ का कोई कर्ज चुकाने को इस आराम करने वाली उम्र में भी भयंकर युद्ध कर रहा है| इस योद्धा को अपूर्व रण कौशल का परिचय देते हुए मुगल सेना के छक्के छुड़ाते देख अकबर के दरबारी लेखक व योद्धा बदायूंनी ने दांतों तले अंगुली दबा ली| बदायूंनी ने देखा वह योद्धा दाहिनी तरफ हाथियों की लड़ाई को बायें छोड़ते हुए मुग़ल सेना के मुख्य भाग में पहुँच गया और वहां मारकाट मचा दी| अल बदायूंनी लिखता है- “ग्वालियर के प्रसिद्ध राजा मान के पोते रामशाह ने हमेशा राणा की हरावल (अग्रिम पंक्ति) में रहता था, ऐसी वीरता दिखलाई जिसका वर्णन करना लेखनी की शक्ति के बाहर है| उसके तेज हमले के कारण हरावल में वाम पार्श्व में मानसिंह के राजपूतों को भागकर दाहिने पार्श्व के सैयदों की शरण लेनी पड़ी जिससे आसफखां को भी भागना पड़ा| यदि इस समय सैयद लोग टिके नहीं रहते तो हरावल के भागे हुए सैन्य ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी कि बदनामी के साथ हमारी हार हो जाती|"
राजपूती शौर्य और बलिदान का ऐसा दृश्य अपनी आँखों से देख अकबर के एक नवरत्न दरबारी अबुल फजल ने लिखा- "ये दोनों लश्कर लड़ाई के दोस्त और जिन्दगी के दुश्मन थे, जिन्होंने जान तो सस्ती और इज्जत महंगी करदी|"
हल्दीघाटी  के युद्ध में मुग़ल सेना के हृदय में खौफ पैदा कर तहलका मचा देने वाला यह वृद्ध वीर कोई और नहीं ग्वालियर का अंतिम तोमर राजा विक्रमादित्य का पुत्र रामशाह तंवर था| 1526 ई. पानीपत के युद्ध में राजा विक्रमादित्य के मारे जाने के समय रामशाह तंवर मात्र 10 वर्ष की आयु के थे| पानीपत युद्ध के बाद पूरा परिवार खानाबदोश हो गया और इधर उधर भटकता रहा| युवा रामशाह ने अपना पेतृक़ राज्य राज्य पाने की कई कोशिशें की पर सब नाकामयाब हुई| आखिर 1558 ई. में ग्वालियर पाने का आखिरी प्रयास असफल होने के बाद रामशाह चम्बल के बीहड़ छोड़ वीरों के स्वर्ग व शरणस्थली चितौड़ की ओर चल पड़े|
मेवाड़ की वीरप्रसूता भूमि जो उस वक्त वीरों की शरणस्थली ही नहीं तीर्थस्थली भी थी पर कदम रखते ही रामशाह तंवर का मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने अतिथि परम्परा के अनुकूल स्वागत सत्कार किया. यही नहीं महाराणा उदयसिंह ने अपनी एक राजकुमारी का विवाह रामशाह तंवर के पुत्र शालिवाहन के साथ कर आपसी सम्बन्धों को और प्रगाढ़ता प्रदान की| कर्नल टॉड व वीर विनोद के अनुसार उन्हें मेवाड़ में जागीर भी दी गई थी| इन्हीं सम्बन्धों के चलते रामशाह तंवर मेवाड़ में रहे और वहां मिले सम्मान के बदले मेवाड़ के लिए हरदम अपना सब कुछ बलिदान देने को तत्पर रहते थे|
कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी के युद्ध में रामशाह तोमर, उसके पुत्र व 350 तंवर राजपूतों का मरना लिखा है| टॉड ने लिखा- "तंवरों ने अपने प्राणों से ऋण (मेवाड़ का) चूका दिया|" तोमरों का इतिहास में इस घटना पर लिखा है कि- "गत पचास वर्षों से हृदय में निरंतर प्रज्ज्वलित अग्नि शिखा का अंतिम प्रकाश-पुंज दिखकर, अनेक शत्रुओं के उष्ण रक्त से रक्तताल को रंजित करते हुए मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा के निमित्त धराशायी हुआ विक्रम सुत रामसिंह तोमर|" लेखक द्विवेदी लिखते है- "तोमरों ने राणाओं के प्रश्रय का मूल्य चुका दिया|" भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी व इतिहासकार सज्जन सिंह राणावत एक लेख में लिखते है- "यह तंवर वीर अपने तीन पुत्रों शालिवाहन, भवानीसिंह व प्रताप सिंह के साथ आज भी रक्त तलाई (जहाँ महाराणा व अकबर की सेना के मध्य युद्ध हुआ) में लेटा हल्दीघाटी को अमर तीर्थ बना रहा है| इनकी वीरता व कुर्बानी बेमिसाल है, इन चारों बाप-बेटों पर हजार परमवीर चक्र न्योछावर किये जाए तो भी कम है|"
तेजसिंह तरुण अपनी पुस्तक "राजस्थान के सूरमा" में लिखते है- "अपनों के लिए अपने को मरते तो प्राय: सर्वत्र सुना जाता है, लेकिन गैरों के लिए बलिदान होता देखने में कम ही आता है| रामशाह तंवर, जो राजस्थान अथवा मेवाड़ का न राजा था और न ही सामंत, लेकिन विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में इस वीर पुरुष ने जिस कौशल का परिचय देते हुए अपना और वीर पुत्रों का बलिदान दिया वह स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है|"
जाने माने क्षत्रिय चिंतक देवीसिंह, महार ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा- "हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप यदि अनुभवी व वयोवृद्ध योद्धा रामशाह तंवर की सुझाई युद्ध नीति को पूरी तरह अमल में लेते तो हल्दीघाटी के युद्ध के निर्णय कुछ और होता| महार साहब के अनुसार रामशाह तंवर का अनुभव और महाराणा की ऊर्जा का यदि सही समन्वय होता तो आज इतिहास कुछ और होता|"
धन्य है यह भारत भूमि जहाँ रामशाह तंवर जिन्हें रामसिंह तोमर, रामसा तोमर आदि नामों से भी जाना जाता रहा है, जैसे वीरों ने जन्म लिया और मातृभूमि के लिए उच्चकोटि के बलिदान देने का उदाहरण पेश कर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श प्रेरक पैमाना पेश किया।।।।