शुक्रवार, 31 मार्च 2017

वो है राजस्थान

शीशा बिणा सूरा लड्या
इतिहासां परमाण ।
पदमण जौहर मे जली
वो है राजस्थान ।।

वीटी और रुमाल सूं
नही प्रीत पहचाण ।
सहनाणी मे शीश दे
वो है राजस्थान ।

हार हार फिर हार जा
पिछमो पाकिस्तान ।
ढाल समाणी सीम पे
ऊभो राजस्थान ।।

उड   नहं जा रज आपणी
आंगणिये अरियांण ।
रह रह ने छांट्यो रगत
वो है राजस्थान ।

कांई तो सौभाग व्है
ईं सूं और अमोल ।
रहणो राजस्थान मे
राजस्थानी बोल ।।

राजस्थान दिवस री बधाई ।
जय राजस्थान ।
जय राजस्थानी ।।
        हिम्मत सिह उज्जवल
             भारोडी

गुरुवार, 30 मार्च 2017

गणगौर त्यौहार महत्त्व, पूजा विधि कथा , गीत व उद्यापन विधि*

*गणगौर त्यौहार महत्त्व, पूजा विधि कथा , गीत व उद्यापन विधि*

भारत का एक राज्य राजस्थान, जो मारवाड़ीयों की नगरी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है . गणगौर दो तरह से मनाया जाता है . जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है . त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है . जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है .

*गणगौर त्यौहार कब मनाया जाता है और शुभ मुहूर्त कब है ?*

इस वर्ष 2017 में गणगौर का त्यौहार 30 मार्च 2017, दिन गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।

*मारवाड़ी रूप मे गणगौर* –

*पूजन का महत्व*

पूजन सामग्री

पूजन की विधी

गणगौर की कथा

गणगौर पूजते समय का गीत

गणपति जी की कहानी

गणगौर अरग के गीत

गणगौर को पानी पिलाने का गीत

उद्यापन की विधी

*गणगौर पूजन का महत्व*

गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है . इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है . इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि,विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है . जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है .

*पूजन सामग्री*

जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह,  पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना आवश्यक है .

*पूजा सामग्री*

लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

*उद्यापन की सामग्री*

उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है .

सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि.

*गणगौर पूजन की विधी*

मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है . जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है . यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है . अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है . सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है . ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है .

*गणगौर*

सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है . जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है . ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है.
अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है .
फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता . उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है .
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है .
उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है .
तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है . उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है .
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है.
अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है . उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है . गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है . इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है .

*गणगौर माता की कहानी*

राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब . राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये . एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया . छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे . छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे . सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया . माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो . बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे . ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा . माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले . माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला , चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल
गई . उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है ,सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है . है गणगौर माता , जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना . कहता ने , सुनता ने , सारे परिवार ने .

*गणगौर पूजते समय का गीत*

यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है –

*प्रारंभ का गीत* –

गोर रे गणगौर माता खोल ये  किवाड़ी

बाहर उबी थारी पूजन वाली,

पूजो ये पुजारन माता कायर मांगू

अन्न मांगू धन मांगू  लाज मांगू लक्ष्मी मांगू

राई सी भोजाई मंगू .

कान कुवर सो बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू ..

उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है .

*सोलह बार पूजन का गीत* –

गौर-गौर गणपति ईसर पूजे,

पार्वती का आला टीला,

गोर का सोना का टीला .

टीला दे टमका दे, राजा रानी बरत करे .

करता करता, आस आयो मास

आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,

लाडू ले बीरा ने दियो,

बीरों ले गटकायों .

साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,

सान मान सोला, ईसर गोरजा .

दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,

दोनों का सुहाग मे .

रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय

किडी किडी किडो दे,

किडी थारी जात दे,

जात पड़ी गुजरात दे,

गुजरात थारो पानी आयो,

दे दे खंबा पानी आयो,

आखा फूल कमल की डाली,

मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो

डाल की किरण, दो किरण मन्जे

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है

*पाटा धोने का गीत* –

पाटो धोय पाटो धोय,

बीरा की बहन पाटो धो,

पाटो ऊपर पीलो पान,

म्हे जास्या बीरा की जान .

जान जास्या, पान जास्या,

बीरा ने परवान जास्या

अली गली मे, साप जाये,

भाभी तेरो बाप जाये .

अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये .

दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो

खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा

थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा

थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा

ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी ..

ओडो खोडो का गीत –

ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर .

ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर ..

(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )

*गणपति जी की कहानी*

एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी . दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे . मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था . इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है . जे विनायक, जे विनायक करा कर . एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले

गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया . अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे . मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि ,दिन भर टर्र टर्र करना छोड़

दे . मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे . मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक ,सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई . मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये . हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे . अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो .

*गणगौर अरग के गीत*

पूजन के बाद, सुरजनारायण भगवान को जल चढा कर गीत गाया जाता है .

*अरग का गीत* –

अलखल-अलखल नदिया बहे छे

यो पानी कहा जायेगो

आधा ईसर न्हायेगो

सात की सुई पचास का धागा

सीदे रे दरजी का बेटा

ईसरजी का बागा

सिमता सिमता दस दिन लग्या

ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,

बेटो अरदा तानु परदा

हरिया गोबर की गोली देसु

मोतिया चौक पुरासू

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

*गणगौर को पानी पिलाने का गीत*

सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते

है . पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है .

*पानी पिलाने का गीत* –

म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो

बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो

म्हारी गोर तिसाई ओर राज

बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी

मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज

म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो ..

(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे . )

*गणगौर उद्यापन की विधी*

सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है .

*विधी* –

आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है .
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है .
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है .
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है . उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है .
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे . पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है .
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है.
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है .
नोट – गणगौर के बहुत से, गीत और दोहे होते है . हर जगह अपनी परम्परानुसार, पूजन और गीत जाये जाते है . जो प्रचलित है उसे, हम अपने अनुसार डाल रहे है . निमाड़ी गणगौर सिर्फ तीन दिन ही पूजी जाती है . जबकि राजस्थान मे, मारवाड़ी गणगौर प्रचलित है जो, झाकियों के साथ निकलती है ।

जय - जय राजस्थान ।

" केसर नहीं निपजे अठे न हीरा निपजन्त , धड कटिया खग सामणां , इण धरती उपजन्त । जल उण्डो थल ऊजलो , नारी नवले वेश , पुरख पटाधार नीपजै , धन है मरुधर देश ।।"

राजस्थान स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं । कण -कण सूं गूंजे जय - जय राजस्थान ।

अंबे आराधना

नवरात्रि रे पावन अवसर माथे..

अंबे आराधना

आवो अम्बा ईसरी

आवो अम्बा ईसरी, कूं कूं चरण-कमल्ल
सुख साता दें संकरी ,सबही काज सफल्ल  (१)

आवो अम्बा ईसरी, अरपण उच आसन्न
पलक बुहारूं पंथडो, प्रणमूं मात प्रसन्न (२)

आवो अम्बा ईसरी, अवतर आंगणियैह .
शुभ करण संसार में, भव दुख भांगणियेह (३)

आवो अम्बा ईसरी, जबर रूप नव ज्योत
तम हारो अंतस तणो, हियै प्रकासा होत (४)

आवो अम्बा ईसरी, आतम रूप उजास
मनसा पूरण  मावडी, तन री मेटण त्रास (५)

आवो अम्बा ईसरी, शैलसुता सुखधाम
दया राखण दास पर, कदियन अटके काम (६)

आवो अम्बा ईसरी, ब्रह्माणी  बहुवार
माला कमडल धारिणी, श्वेतवसन सुभ सार (७)

आवो अम्बा ईसरी, चंद्रघंट चित माय
दशभुजा  दुष्टी दलन, सोहे सिंह सवाय (८)

आवो अम्बा ईसरी, केहरि चढ़ कुष्मांड
उदर पिंड उपजावियौ, बहुरूप ब्रह्मांड (९)

आवो अम्बा ईसरी,मात रूप स्कंद
शुभ्र वरण पदमासना,  आय करो आनंद (१०)

आवो अम्बा ईसरी, कोटि रूप कत्याण
चतुरभुजा चंचल चपल, करो सकल कल्याण (११)

आवो अम्बा ईसरी, काळे रंग कळरात
माता मो मन मेटियै, मोहनिशा महारात (१२)

आवो अम्बा ईसरी, महागौरी महामाय
वृषवाहन श्वेतांबरा, सब विध सदा सहाय (१३)

आवो अम्बा ईसरी, सरब सगत सिधियांह
आठ पहर आराधना, विनवूं बहु विधियांह  (१४)

आवो अम्बा ईसरी, देवी नव दुरगाह
भवबंधन मेटो भला, साथ रखो सुरगांह (१५)

आवो अम्बा ईसरी, किनियाणी करनल्ल
देवी गढ़ देशांण री, आगीवांण अवल्ल (१६)

आवो अम्बा ईसरी ,नागाणै री  नाथ
कुळदेवी किरपा करो ,हरदम राखो हाथ (१७)

आवो अम्बा ईसरी, चामुंडा चहु ओर
भगत बछल भयहारिणी ,करूं अरज कर जोर (१९)

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रतन सिंह चंपावत रणसी गांव कृत

बुधवार, 22 मार्च 2017

घणां पालिया शौक

घणां पालिया शौक जीवणों दोरो होग्यो रे
देवे राम नें दोष जमानों फौरो होग्यो रे

च्यारानां री सब्जी ल्यांता आठानां री दाल
दोन्यूं सिक्का चाले कोनीं भूंडा होग्या हाल
च्यार दिनां तक जान जींमती घी की भेंती धार
एक टेम में छींकां आवे ल्याणां पडे उधार
जीवणों दोरो---

मुंडे मूंड बात कर लेंता नहीं लागतो टक्को
बिनां कियां रिचार्ज रुके है मोबाईल रो चक्को
लालटेन में तेल घालता रात काटता सारी
बिजली रा बिल रा झटका सूं आंख्यां आय अंधारी
जीवणों दोरो---

लाड कोड सुं लाडी ल्यांता करती घर रो काम
पढी लिखी बिनणिंयां बैठी दिनभर करै आराम
घाल पर्स में नोट बीनणीं ब्यूटी पारलर जावे
बैल बणें घाणीं रो बालम परणीं मोज उडावे
जीवणों दौरो---

टी वी रा चक्कर में टाबर भूल्या खाणों पीणों
चौका छक्का रा हल्ला में मुश्किल होग्यो जीणों
बिल माथै बिल आंता रेवे कोई दिन जाय नीं खाली
लूंण तेल शक्कर री खातर रोज लडै घरवाली
जीवणों दौरो---

एक रुपैयो फीस लागती पूरी साल पढाई
पाटी बस्ता पोथी का भी रुप्या लागता ढाई
पापाजी री पूरी तनखा एडमिशन में लागे
फीस किताबां ड्रेसां न्यारी ट्यूशन रा भी लागे
जीवणों दौरो---

सुख री नींद कदै नीं आवे टेंशन ऊपर टैंशन
दो दिन में पूरी हो ज्यावे तनखा हो या पैंशन
गुटखां रा रेपर बिखरयोडा थांरी हंसी उडावे
रोग लगेला साफ लिख्यो पणं दूणां दूणां खावे
जीवणों दौरो---

पैदल चलणों भूली दुनियां गाडी ऊपर गाडी
आगे बैठे टाबर टींगर लारै बैठे लाडी
मैडम केवे पीवर में म्हें कदै नीं चाली पाली
मन में सोचे साब गला में केडी आफत घाली
जीवणों दोरो---

चाऐ पेट में लडै ऊंदरा पेटरोल भरवावे
मावस पूनम राखणं वाला संडे च्यार मनावे
होटलां में करे पार्टी डिस्को डांस रचावे
नशा पता में गेला होकर घर में राड मचावे
जीवणों दौरो ---

अंगरेजी री पूंछ पकडली हिंदी कोनीं आवे
कोका कोला पीवे पेप्सी छाछ राब नहीं भावे
कीकर पडसी पार मुंग्याडो नितरो बढतो जावे
सुख रा साधन रा चक्कर में दुखडा बढता जावे
जितरी चादर पांव पसारो मन पर काबू राखो
गजानंद भगवान भज्यां ही भलो होवसी थांको
जीवणों दौरो होग्यो रे

(25)आईदानसिह केतू धीरपुरा

मंगलवार, 21 मार्च 2017

घुड़ला पर्व

मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है
जिसे घुड़ला पर्व कहते है
कुँवारी लडकिया अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव में घूमती है
घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है
अब यह घुड़ला क्या है
कोई नहीं जानता है
घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी
यह भी ऐसा ही धतकर्म है जैसा की अकबर महान था
वास्तव में घटना यह है घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था
नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा
उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी
वे व्रत में थी
उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है
पूजन का स्थान तालाब का किनारा था
जो गांव से थोड़ा दूर था
जब घुड़ला खान वहां से अपनी टुकड़ी के साथ निकला तो इन बालिकाओं को पूजा करते देख
अकेला देख  उसकी नीयत बिगड़ गयी
उसने सभी का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया
गांव वाले संख्या में काम होने से विरोध नहीं कर पाए
परन्तु जब इसकी सूचना रांव सातल जोधपुर को मिली तो
उसने घुड़ला खान का पीछा किया
उसकी पूरी टुकड़ी का वध किया
सब बालिकाओ को मुक्त कर उनके सतीत्व  की रक्षा करी
उसके बाद घुड़ला खान का  सर काट कर उन बालिकाओ को सुपर्द किया
यह सर एक मिट्टी के टूटे घड़े में रखा गया
तथा बालिकाओं ने उस सर को पुरे गाँव के हर घर में रौशनी कर बताया
यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी
अब लोग रांव सातल को भूल गए
और घुड़ला खान को पूजने लग गये
इतिहास से जुडो
सातल को याद करो घुड़ले को जूते मारो
कथा साभार ठाकुर लाखन सिंह जी चौहान शंखवास जिला नागोर

सोमवार, 20 मार्च 2017

माँ शीतला कि पावन सत्य कथा

माँ शीतला कि पावन सत्य कथा

यह कथा बहुत पुरानी है एक वार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कोन करता है कोन मुझे मानता हे यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है। ना मेरी पुजा है माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उवला पानी (मांड) निचे फेका वह उवलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पडगये शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई मेरा शरीर तप रहा है जल रहा हे कोई मेरी मददकरो लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही कि तभी अपने घर बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बुडी माई तो बहुत जलगई इसके पुरे शरीर में तपन है इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़गये है यह तपन सहन नही कर पा रही है तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बेठ जा में तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हु कुम्हारन ने उस बुडी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई रावडी रखी है थोड़ा दही भी है तु ठंडी (जुवार) के आटे कि रावडी और दही खाया इससे शरीर में ठंडाई मिली तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हे यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बुडी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डरमत में कोई भुत प्रेत नही हु में शीतला देवी हु में तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कोन मानता है। कोन मेरी पुजा करता है इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जबाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा विठाऊ तब माता बोली हे बेटी तु किस सोच मे पडगई तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बेठाऊ मेरे घर में ना तो चोकी है ना बैठने का आसन तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बेठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इक्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपकी ठंडा जल दही व वासी ठंडा भोजन चडाये उसके घर कि  दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना उसकी गोद हमेसा भरी रखना साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चडाकर नरियल फूल चडाकर परिवार सहित ठंडा वासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये तव माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो जओ तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । है बेटी तुझे आर्शिबाद देती हु कि मेरी पुजा का मुख्ख अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया (शील कि डुंगरी) शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्ख मंदिर है। शीतला सप्तमी वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।
जय माँ शितला सबका कल्याण करे..