मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है
जिसे घुड़ला पर्व कहते है
कुँवारी लडकिया अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव में घूमती है
घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है
अब यह घुड़ला क्या है
कोई नहीं जानता है
घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी
यह भी ऐसा ही धतकर्म है जैसा की अकबर महान था
वास्तव में घटना यह है घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था
नागोर राजस्थान के पीपाड़ गांव के पास एक गांव है कोसाणा
उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी
वे व्रत में थी
उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है
पूजन का स्थान तालाब का किनारा था
जो गांव से थोड़ा दूर था
जब घुड़ला खान वहां से अपनी टुकड़ी के साथ निकला तो इन बालिकाओं को पूजा करते देख
अकेला देख उसकी नीयत बिगड़ गयी
उसने सभी का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया
गांव वाले संख्या में काम होने से विरोध नहीं कर पाए
परन्तु जब इसकी सूचना रांव सातल जोधपुर को मिली तो
उसने घुड़ला खान का पीछा किया
उसकी पूरी टुकड़ी का वध किया
सब बालिकाओ को मुक्त कर उनके सतीत्व की रक्षा करी
उसके बाद घुड़ला खान का सर काट कर उन बालिकाओ को सुपर्द किया
यह सर एक मिट्टी के टूटे घड़े में रखा गया
तथा बालिकाओं ने उस सर को पुरे गाँव के हर घर में रौशनी कर बताया
यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी
अब लोग रांव सातल को भूल गए
और घुड़ला खान को पूजने लग गये
इतिहास से जुडो
सातल को याद करो घुड़ले को जूते मारो
कथा साभार ठाकुर लाखन सिंह जी चौहान शंखवास जिला नागोर
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मंगलवार, 21 मार्च 2017
घुड़ला पर्व
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