*उदयपुर महाराज कुंवर कर्णसिंह के "घोड़े शुभ्रक" की स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा*
कुतुबुद्दीन की मौत ..और सत्य ..!!!
*इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई ..!!!
ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया* ..!!!
अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा।
*उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया*।
एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया ..!!
*दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि, -
बुजकशी खेला जाएगा लेकिन, इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा।
कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" को चुना* ..!!!
कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा। राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया। जब राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर पैरो से कई वार कर कूचला, जिससे कुतुबुद्दीन बही पर मर गया ..!!!!!
*इससे पहले कि, सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गए।कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके* ..!!!
शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका ..!!
*वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा ..!!!!
वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया* ..!!!
कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन, इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।
*धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं*
डॉ मदन गोपाल बिरथरे "मार्तण्ड"
संकलन :- *राजेन्द्र लालवानी*
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