मंगलवार, 10 सितंबर 2019

गोदड खवड पच्चीसी

ll गोदड खवड पच्चीसी  l

ll कथा ll

*(छंद प्रकार:- दोहरो)*

दाबी तै बाबी दिधा, गोदड कीधी गल्ल
जित्यो कैसन जंगही, सामा छता सबल्ल *(१)*

अर्थ:-
हे गोदड खवड, तुने बाबीयो को दबा दिया है और उनको हास्य के पात्र रख दिया है, शत्रुसेना सबल होने पर भी तुं युद्ध कैसे जिता ?

*(छंद प्रकार:- पद्धरी)*

लहिकै सुफौज हामद नवाब, आवत धांधलपुर करन ताब
विक्रम सवंत इकअष्टपांच, ता परै षष्ट कुल अंक जांच *(२)*

अर्थ:-
हामद नवाब चंगी फौज लेकर धांधलपुर पर अपने नेजा फरकाने आए थे, विक्रम संवत की इकअष्टपांच (१८५) और उसके उपर षष्ट(६) बराबर १८५६ की साल।

खग गगन लगै करनै विहार, रहिया नाहर भगिया सिहार
हांकल धांधलपुर हेर हेर, करजो बैरी पर जोध कैर *(३)*

अर्थ:-
आकाशमे गीध उडने लगे, सिंह मैदानमे रहे और सियार भागने लगे, धांधलपुर के घर घरमे हांक हुई, सबको एक ही बात कही गई के "हे वीरो, बैरियो पर कहर बरसा देना।"

मखवान वंस झाला प्रसाख, काठी सुपंथमै खवड दाख
सो ब्रक्ख बडो पर छोटि डाल, और डाल मही कछु पर्ण हाल *(४)*

अर्थ:-
मखवान वंश मै झाला प्रशाखा और झाला प्रशाखामे काठी पंथिय खवड वंश ऐसा है जैसा बडे वृक्षमे छोटीसी डाल और युद्ध की स्थितीमे तो उस डाल के कुछ पर्ण ही हाजिर रह पाए थे।

हाजर हताह सो लरन काज, ललकार पुरन कुळ रखन लाज
बाबी बैरी सै बाजवाह, जुड्या जोधारा जुद्ध माह *(५)*

अर्थ:-
जो हाजिर थे वह लडने के लिए, ललकार की पादपूर्ती करने के लिए, बाबीयोसे भिडने के लिए युद्धमे जुड गए।

हा आमसामनै पडी हांक, तरवार वार बजि ताक ताक
धड धांकधांक हामद धडक्क, पड थांक थांक लाग्यो थडक्क *(६)*

अर्थ:-
आमसामने हांक हुई, तरवारो का नाद सुनाई देने लगा, हामद नवाब की धडकने बढ गई, धरती थडक उथडक होने लगी।

जूनागढ पति री जित जंग, बाधा बिचार करता बरंग
जय पराजय खवड त्याग जाल, आखो अफीम रो गटक प्याल *(७)*

अर्थ:-
'जूनागढ ही युद्ध जितेगा' ऐसा विचार सर्व मस्तिष्क कर रहे थे, लेकिन ऐसी स्थिती मे विजय या पराजय की चिंता छोड कंठ को कसुंबल रंगसे तरबतर कर के गोदड खवड युद्धमे आ रहा है।

फिर चडी जुद्ध करियाह वार, अरि अंग अंग गिय आरपार
पागल करिया प्रेतह पिशाच, मंडाय गियो हर करन नाच *(८)*

अर्थ:-
गोदड खवड युद्धमे उतरा, दुश्मनो के अंग अंगसे शस्त्र आरपार हो गए, प्रेत और पिशाच मौजमे आ गए, शिव तांडव नृत्य करने लगा।

खनमै निहार गोदड खवड्ड, बाबी भगिया पदि बड्ड बड्ड
चारन सुकाव्य पाया सुपाव्य, मरदामरद्द द्रस मनोभाव्य *(९)*

अर्थ:-
क्षणभरमे गोदड खवड को देख बाबी के बडे बडे होदेदार भागने लगे, चारणो ने वीरकाव्यो को पिरसना शुरू कर दिया, वह द्रश्य मर्दो के काज मनमोहक था।

हुय गी अछ री लंबी कतार, वरमाळ हत्थ गहि वार वार
बाबी अगम्य हा हा हरेक, जोधार गम्य गोदड हि हेक *(१०)*

अर्थ:-
अप्सराओकी लंबी कतार लग गई, वह वरमाळ हाथ लेकर योद्धाओ पर वारी जा रही है, बाबी सारे उनकोे अगम्य है और फक्त एक गोदड खवड ही प्रिय है।

पर गोदड मरतो जी नथीह, पाछी स्वर्गारी थी पथीह
हामद गुमान पर ठोक हल्ल, गिरनारी केरी कही गल्ल *(११)*

अर्थ:-
लेकिन गोदड की मृत्यु हे नही रही है, अप्सरा स्वर्ग की और वापिस लौट चली, हामद नवाब के अभिमान पर हल का प्रहार लगा, गिरनार का नृपती हास्यपात्र बना।

वावड करिया काठी विजैह, सरस
तर सरप्प घा देह देह
उपचार करिकै थकिया हकीम, धरती सुकाहती धीम धीम *(१२)*

अर्थ:-
काठी विजयके समाचार फैलाए गए, शस्त्रो रूपी सर्प के घाव देह पर लगे हुए है, उपचार कर करके हाकिम थक चुके है और रक्तरंजित धरती धीरे धीरे सुख रही है।

सो विजय अत्ति दैवत्त पत्त, सूरज ससीह सूधी जगत्त
मै नाम सह रहिसै सुमाम, दरसै मयूख कुळ बडो दाम *(१३)*

अर्थ:-
वह विजय गाथाओमे वृद्धी करने वाला था, यावच्चचंद्रदिवाकरौ था, कवि मयूख ईस विजय को खवड कुळ को ईश्वरका दिया बडा ईनाम कहते है।

*ll प्रशस्ति ll*

*(छंद प्रकार:- छप्पय)*

बाबी फौजा बडी, चडी हठ कडी सुचंगी
राज रणांगण रंग, कंग सा सर्व कुरंगी
बैरी सत्थे बत्थ, लथोबथ भारथ लरिकै
अर्क कियो नव अत्थ, हत्थ राखी धर हरिकै
बिग्रह मयूख होयो बिकट, भिड्या धांधलनगर भड
कायर अनेक तजि टेक पर, खस्यो ना गोदड खवड *(१४)*

अर्थ:-
बाबीयोकी बडी और चंगी फौज हठ लेकर आई, उनके साथ अश्वस्वार अन्य कई राज्य मिले, बैरीयोसे बथ भिरी, युद्ध लथोबथ हुआ, सूर्य अस्त नही हुआ, दुसरी धरको हरना लेकिन अपनी धरती नही देने के निचार से यह विग्रह हुआ, धांधलनगरमे भड भिडे, कायरो ने टेक त्यागी लेकिन गोदड खवड अचळ रहा।

बाबी रा बच्चाह, दाह दीधा जग डंका
कथे गत्थ कविराज, सौर्यमै हौत न संका
भोम डुलावी भीड, रुलावी नार अरंदी
हाक बुलावी हठी, सूम सम करी न संधी
विधवा मयूख नारी वधी, परी वधी मयदान पड
ऐसो बरंगमै अति अकड, खदडे अरि गोदड खवड *(१५)*

अर्थ:-
बाबी वंशको दाहकर तुने डंका बजा दिया। कविराज तेरी गाथा बना रहा है उसे तेरी शूरवीरता पर कोई शंका नही, तुने भूमी डुलादी, शत्रुकी स्त्री रुलादी, हठसे हाक बुलादी लेकिन संधी नही की, विधवा नारी और परी दोनो की संख्या बढ गई, है गोदड खवड तुने क्रोधमे आकर शत्रुओको खदेड दिए।

धांधलनगर मै धक्क, हक्कबक हौत तरक्का
चल काठी करि चक्क, हक्क हौवै धर हरका
गोरस करन गरक्क, थक्कसै पुगैहि थल्लम्
मक्कवान धर मध्य, दक्ख जूनागढ दल्लम्
हल्ला विराट विकराल हुय, जामी जड राखी जकड
बाबी मयूख हार्या बुरा, खुंखारा गोदड खवड *(१६)*

अर्थ:-
धांधरपुरमे धाक पडी, तुर्क हक्काबक्का हो गए, काठीयोने धरा को चल करदी, धरा पर अपना हक बनाए रखा, बाबी ग्रास को खाने के लिए थके हुए मयदान पर पहुचे, मखवानो की मध्य घरा पर दक्षिणसे दल आया, विकराल और विराट युद्ध मचने पर काठीयोने अपनी धरती जकड रखी, बाबीयो को गोदड खवडसे बुरी तरह पराजय मिली।

नत्थे धांधलनेर, तै बुरौ बैर हारकै
नेर हेर गिरनार, पैर वच छुपै नारकै
तीखा लग्गे तार, मिठो लिय मारमारकै
भिटे तुटे भेंकार, भूप सो भोम भारकै
भेचक्क भयंकर दर भई, बाबी पासा ग्या बिगड
ततही मयूख अरि तगडिया, खेखटिया गोदड खवड *(१७)*

अर्थ:-
धांधलपुरसे बेरी बुरे हारके भागे, निज घर गिरनारमे बेगमो के पास छुप गए, हार के तीखे तार उन्हे मिले, मिठी मौज मार पडने की वजहसे चली गई है, खवडो से भिडने पर वह तुट चुके है और भूमी पर भार बनके रह गए है, खवडकी धरा पर बाबीयोके पासे बिगड गए, गोदड खवडने दुश्मनो को खेखटिया भगा दिया।

राणावत रावत्त, अत्ति बळसू आथडियो
राणावत रावत्त, पत्त रख पांव न पडियो
राणावत रावत्त, सत्त मै हुयो सत्थ ही
राणावत रावत्त, हरी नव करी हत्थ ही
दुसमन मयूख आवत दरै, भौम हरन काजै भिरै
मखवान हान कीधी महा, गोदड सत्रारा सिरै *(१८)*

अर्थ:-
है राणा खवडके पुत्र, तु पुरे जोर से दुश्मनो से लडा लेकिन उनके पांव न पडा  तुं सत्य के साथ रहा तुने किसी की धरती नही छिनी फक्त अपनी धरा की रक्षा की, है मखवान जाती के गोदड खवड तेरे दर पर शत्रुओके आने पर तुने उसे बहोत बडी हीनी दी।

सिंहण जणिजै सिंह, कदी जणिजै नव कुक्कर
सिंहण जणिजै सिंह, दिजै जगनै नव डुक्कर
सिंहण जणिजै सिंह, मारिकै खाय महाभड
सिंहण जणिजै सिंह, सत्र रो बनै सत्र कड
नाहर मयूख हा खाय नव, खेतर रो को दिवस खड
ताके समान , खास खास गोदड खवड *(१९)*

अर्थ:-
है सिंहण, तुह्जे जन्म देना हो तो सिंह को देना, कदी डुक्कर या कुक्करको जन्म मत देना, तुह्जे जन्म देना हो तो सिंह को देना, जो शिकार कर खा सकती हो और शत्रु का शत्रु बन सकता हो, कवि मयूख कहता है की सिंह कभी घास नही खाता उसे उसके सारे गुण गोदड खवडमे दिख रहे है।

हरखत अति हरपाल, निहालत बिग्रह नभपै
हरखत अति हरपाल, सूत दरसावत सभपै
हरखत अति हरपाल, खवड देखी खुंखारा
हरखत अति हरपाल, अहो बाबीह बिचारा
हरखत मयूख हरपाल रो, आतमाह ऐसोहजी
देखिकै राम दसरथ दिए, जसी भाव जैसोहजी *(२०)*

अर्थ:-
हरपालदेव का हर्ष बढ रहा है, वह विग्रह को नभ पर देख रहा है, अपने पुत्र को वह ईंद्रकी सभा पर दर्शा रहा है, अपने खुंखार पुत्र और बिचारे बाबीयो को देख हरपालदेवको ऐसा हर्ष हो रहा है जैसा यशमयी हर्ष राम को देख कर दशरथ को होता है।

वोकर कर्नल वखत, आविया सब इलापत
करनै काज करार, तजन काठियावाड तत
पडदो आडो पाड, बिठो अंदर वोकर बड
झूंक झूंक सब गिया, परापर भूप पडापड
तद खाग काढ फाडी दिधौ, पडदो करियो पार भड
अणनम मयूख काठी इजत , खौवत ना गोदड खवड *(२१)*

अर्थ:-
कर्नल वोकर के समय सब भूप जब करार काज ईकठ्ठे होकर अपना राज देने के लिए आए तब वोकर अपने तक पहुचने के लिए बिचमे पडदा रख के बैठा हुआ था, वोकर के मान को ध्यानमे रखते हुए सब भूप उस पडसे से झूक कर उस पार गए और जब गोदड खवडकी बारी आई तब उसने अपने शस्त्रसे पडदे को फाड कर उस पार जाना पसंद किया, है गोदड खवड, तुने काठियो की इज्जत रखली उसे खोया नही।

करियो जिरण कोट, समय री खोट कुसत्थी
करियो जिरण कोट, नास रो इलाज नत्थी
करियो जिरण कोट, होवणो रेसे होई
करियो जिरण कोट, सरब धांधलपुर सोई
हो ठसक ठाठ पत ठाकुरा, बीच कोट रो थान बड
जीरण मयूख दैवे कुजस, खडो कियो नव गढ खवड *(२२)*

अर्थ:-
धांधलपुर का गढ जिर्ण हो चुका है, उसका दोषी समय है, नाश का कोई इलाज नही है, होना हे वह होके रहता है, उसमे धांधलपुरभी आ जाता है, है ठाकुरो, ठसक और ठाठमाठमे गढका महत्वका स्थान है, जिर्ण गढ कुळको लजा सकता है ईसलिए गोदड खवडने धांधलपुरमे नया गढ खडा किया।

सोना री कर सांग, सोहती भीम गदा जिम
सोना री कर सांग, सोहती मर्दकू असिम
सोना री कर सांग, इंद सत्थे ज्यौ ससतर
सोना री कर सांग, सटाकै फुटै बैरि सर
धारी कर सांग सुवर्ण री, सोहती रती तव हती
खत्रिय मयूख गोदड खवड, नरापार ही निकरती *(२३)*

अर्थ:-
गोदड खवड के हाखमे सोने की सांग, जैसे भीम के हाथमे गदा, सोनेकी सांग मर्दको सोहती है, जैसे इंद्र के हाथमे शस्त्र जिसके एक वार से बैरीयोके सर फूट सकते है, है गोदड खवड, तेरे हाथमे सोने की सांग अति किंमती लग रही है, कवि मयूखके अनुमानसे वह पुरूषदेह को आरपार करने वाली रही होगी।

*(छंद प्रकार:- दोहरो)*

खासी कीधी खवडरी, किरत विरत कवियाह
ठाठमाठ तज ठाकुरा, गोदड जुद्ध गियाह *(२४)*

अर्थ:-
कवि मयूखने गोदड खवडकी किर्ती वृद्धीमे अपना योगदान दिया है क्युकी गोदड खवडने ठाठमाठ त्याग कर युद्ध किया, विरत्वका बखांन करना ही चाहिए।

पूनम दिवस प्रभातमै, कीधी कब कबताह
बरस बीससतचत्रहुं, मयूख महिनो माह *(२५)*

अर्थ:-
विक्रमसंवतके २०७४ के माह महिनेमे पूनम के दिवस प्रभातमे कवि मयूखने यह रचना की।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें