लोगो री पंचायती , करता रह दिन रात ।
खुद री बाता निपटे न , धिन पंचो री न्यात ।।
खाज खिणता खुंजा भरे , कर अणहुती बात
निर्दोषी ने दोषी करै , धिन पंचो री न्यात ।।
ओंटा बेङी करता रहे , करै भायप री बात ।
मोको पङिया बट काढे , धिन पंचो री न्यात ।
नारेळा सु न्याय करै , करै घणो मे घात ।
झूठा ब्यान साचा करे , धिन पंचो री न्यात ।।
लखपतियो रै लागु नही , दे गरीब ने लात ।
पोल माही ढोल घुरावे , धिन पंचो री न्यात ।।
बहु बींदणी बेटा बेटी , घरै न माने बात ।
ओरो घर हुक्म चलावे , धिन पंचो री न्यात ।।
अपणो ठरको राखण सारु , दिन गिणे न रात
तालर माही तंबू ताणे , धिन पंचो री न्यात ।।
जर्दा बीङी अमल तंबाकु , डोडा.री जमात ।
खेंगारा कर करै हथाई , धिन पंचो री न्यात ।।
माल ठोके मोकळो , वे फेर पेट पर हाथ ।
मृत्युभोज करावे देखो , धिन पंचो री न्यात ।।
खेत बिको चाहे घर बिको , राखे अपणी बात
बहियो माही ऊंठ मंडावे , धिन पंचो री न्यात
सांची कहुं तो दोरी लागे , आ म्हारोङी बात ।
कहे मेघ रिख रामचंद्र , धिन पंचो री न्यात ।।
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