राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास
एक बार बचपन में राव धुहड जी ननिहाल गए , तो वहां उन्होने अपने मामा का बहुत बडा पेट देखा ।बेडोल पेट देखकर वे अपनी हँसी रोक नही पाएं ।और जोर जोर से हस पडे ।तब उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होने राव धुहडजी से कहा की सुन भांनजे । तुम तो मेरा बडा पेट देखकर हँस रहे होकिन्तु तुम्हारे परिवार को बिनाकुलदेवी देखकर सारी दुनिया हंसती हैतुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नही आ सकेतभी तो तुम्हारा कही स्थाई ठोड-ठिकाना नही बन पा रहा हैमामा के ये कडवे बोल राव धुहडजी के ह्रदय में चुभ गयेउन्होने उसी समय मन ही मन निश्चयकिया की मैं अपनी कूलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊगां ।और वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड लोट आएकिन्तु बाल धुहडजी को यह पता नहीथा कि कुलदेवी कौन हैउनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है ।आखिर कार उन्होने सोचा की क्यो नतपस्या करके देवी को प्रसन्न करूं ।वे प्रगट हो कर मुझे सब कुछ बता देगी ।और एक दिन बालक राव धुहडजी चुपचाप घर से निकल गये ।और जंगल मे जा पहुंचे ।वहा अन्नजल त्याग कर तपस्या करने लगे ।बालहट के कारण आखिर देवी का ह्रदय पसीजा ।उन्हे तपस्या करते देख देवी प्रकट हुई ।तब बालक राव धुहडजी ने देवी को आप बीती बताकर कहा की हे माता ! मेरी कुलदेवी कौन है ।और उनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है ।देवी ने स्नेह पूर्वक उनसे कहा की सून बालक !तुम्हारी कुलदेवी का नाम चक्रेश्वरी है ।और उनकी मूर्ति कन्नौज मे है ।तुम अभी छोटे हो ,बडे होने पर जा पाओगें ।तुम्हारी आस्था देखकर मेरा यही कहना है । की एक दिन अवश्य तुम हीउसे लेकर आओगे ।किन्तु तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी ।कलांतर में राव आस्थानजी का सवर्गवास हुआ ।और राव धुहडजी खेड के शासक बनें ।तब एक दिन !राजपूरोहित पीथडजी को साथ लेकर राव धूहडजी कन्नौज रवाना हुए ।कन्नौज में उन्हें गुरू लुंम्ब रिषि मिले ।उन्होने उन्हे माता चक्रेश्वरी की मूर्ति के दर्शन कराएं और कहाकी यही तुम्हारी कुलदेवी है ।इसे तुम अपने साथ ले जा सकते हो ।जब राव धुहडजी ने कुलदेवी की मूर्ति को विधिवत् साथ लेने का उपक्रम किया तो अचानक कुलदेवी की वाणी गुंजी - ठहरो पूत्र !में ऐसे तुम्हारे साथ नही चलूंगी ! में पंखिनी ( पक्षिनी )के रूप में तुम्हारे साथ चलूंगीतब राव धुहडजी ने कहा हे माँ मुझे विश्वास केसे होगा की आप मेरे साथ चल रही है ।तब माँ कुलदेवी ने कहा जब तक तुम्हें पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलती दिखूं तुम यह समझना की तुम्हारी कुलदेवी तुम्हारे साथ है ।लेकिन एक बात का ध्यान रहे , बीच में कही रूकना मत ।राव धुहडजी ने कुलदेवी का आदेश मान कर वैसे ही किया ।राव धुहडजीकन्नौज से रवाना होकर नागाणा ( आत्मरक्षा ) पर्वत के पास पहुंचते पहुंचते थक चुके थे ।तब विश्राम के लिए एक नीम के नीचे तनिक रूके ।अत्यधिक थकावट के कारण उन्हें वहा नीदं आ गई ।जब आँख खुली तो देखा की पंखिनी नीम वृक्ष पर बैठी है ।राव धुहडजी हडबडाकर उठें और आगे चलने को तैयार हुए तो कुलदेवी बोली पुत्र , मैनें पहले ही कहा था कि जहां तुम रूकोगें वही मैं भी रूक जाऊंगी और फिर आगे नही चलूंगी ।अब मैं आगे नही चलूंगी ।तब राव धूहडजी ने कहा की हें माँ अब मेरे लिए क्या आदेश है ।कुलदेवी बोली की तुम ऐसा करना की कल सुबह सवा प्रहर दिन चढने से पहले - पहले अपना घोडा जहाॅ तकसंभव हो वहा तक घुमाना यही क्षैत्र अब मेरा ओरण होगा और यहां मै मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी ।तब राव धुहडजी ने पूछा कीहे माँ इस बात का पता कैसे चलेगा की आप प्रकट हो चूकी है । तब कुलदेवी ने कहा कि पर्वत पर जोरदार गर्जना होगी बिजलियां चमकेगी और पर्वत से पत्थर दूर दूर तक गिरने लगेंगे उस समय । मैं मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी ।किन्तु एक बात का ध्यान रहे , मैंजब प्रकट होऊंगी तब तुम ग्वालिये से कह देना कि वह गायोंको हाक न करे , अन्यथा मेरी मूर्ति प्रकट होते होते रूक जाएगी ।अगले दिन सुबह जल्दी उठकर राव धुहडजी ने माता के कहने के अनुसार अपना घोडा चारों दिशाओं में दौडाया और वहां के ग्वालिये से कहा की गायों को रोकने के लिए आवाज मत करना , चुप रहना , तुम्हारी गाये जहां भी जाएगी ,मैवहां से लाकर दूंगा ।कुछ ही समय बाद अचानक पर्वत पर जोरदार गर्जना होने लगी , बिजलियां चमकने लगी और ऐसा लगने लगा जैसे प्रलय मचने वाला हो ।डर के मारे ग्वालिये की गाय इधर -उधर भागने लगी ग्वालियां भी कापने लगा ।इसके साथ ही भूमि से कुलदेवी की मूर्ति प्रकट होने लगी । तभी स्वभाव वश ग्वालिये के मुह से गायों को रोकने के लिए हाक की आवाज निकल गई । बस, ग्वालिये के मुह से आवाज निकलनी थी की प्रकट होती होती मुर्ति वही थम गई ।केवल कटि तक ही भूमि से मूर्ति बाहर आ सकी ।देवी का वचन था । वह भला असत्य कैसे होता ।राव धुहडजी ने होनी को नमस्कार किया । और उसी अर्ध प्रकट मूर्तिके लिए सन् 1305, माघ वदी दशम सवत् 1362 ई. में मन्दिर का निर्माण करवाया ,क्योकि " चक्रेश्वरी " नागाणा में मूर्ति रूप में प्रकटी ,अतः वह चारों और " नागणेची " रूप में प्रसिध्ध हुई ।इस प्रकार मारवाड में राठौडों की कुलदेवी नागणेची कहलाई । जय माँ नागणेश्वरी
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