दारू दुरगुण -दसक
पांच पैग लीधां पछै,
पयड़ज्या जाडा पग्ग।
चलणो घर दिसियै चहै,
मन ना मानै मग्ग।।
पांच पैग लीधां पछै,
धींगामसती धार।
गिण गिण देवै गाल़ियां,
सुद्ध बुद्ध री नी सार।।
प्याला भर पीधा प्रतख ,
अणडर अंधाधुंध।
राघड़ लड़ियो राम सूं,
दारू में दसकंध।।
पी मद खुद री पांतर्यो,
मत निज री मतिमंद।
सुन में हरली सीत नै,
दारू में दसकंध।।
पी दारू परवारियो,
छता किया छल़छंद।
ठगली उण ठिठकारियै,
देख सीत दसकंध।।
बिनां पियां बजरंग वर,
सधरो तिर्यो समंद।
विलल़ै लंका बोड़दी,
दारू में दसकंध।।
गी किडनी घर ई गयो,
खिंड ग्या सकल़ खवाब।
भमियो इणविध भोगनो
सखा न तजी शराब।।
सुबह सांझ दोनां समै,
रीझ आध्योड़ी रात।
दारू !दारू!दोसतां,
बाचो आ की बात।।
कवत्त
दारू री दिन रात,
विदग्ग की बातां बाचो।
व्हालां दो बतल़ाय,
एक गुण इणमें आछो।
सूखै कंठ सदाय,
घूंट इक भरियां गैरो।
जाडी पड़ज्या जीब,
चरित नै बदल़ै चैरो।
उदर में जल़न आंतड़ सड़ै,
पड़ै नही पग पाधरो।
किण काज आज सैणां कहो,
इण हाला नैं आदरो।।1
आय प्रथम आवेस,
केय फिर कल़हगारी।
मुर उर चिंता मांह,
चतुर्थ फिर स्वच्छाचारी।
पाचन बिगड़ै पांच,
बदन में छठी बीमारी।
सप्तम हरलै सा'स,
बुद्धि आठमे बिगारी।
विटल़ नवम नर कुलल़ो बकै,
प्यालो ज्यां कर पेखियो।
कवि गीध दसम कहिये गुणी,
दारू पातक देखियो।।2
काढी चतुर कलाल़,
कहण री बातां कूड़ी।
सूगलवाडो साफ,
दखां जिथ उपज दारूड़ी।
नीच चीज मँझ नांख,
आसव रो घड़ो अणावै।
गुणियण बिनां गिलाण,
विटल़ नैं पैक बणावै।
तर तर बखाण दारू तणा,
नरां वडां मुख न्हाल़िया।
झूठ री नहीं इक जाणजो,
खोटी के घर खाल़िया।।3
पीधां सूं उतपात,
मिनख के वडा मचावै।
निबल़ो पड़झ्या निजर,
नीच संग नाच नचावै।
ओछी बातां आख,
लाख री ईजत लेवै।
सदा गमावै साख,
वाट पण ऊंधी बेवै।
सैण नैं गिणै अरियण समो,
रेस देवण नैं रीसवै।
गुण एक इसो मानां गहर,
दारू में नहीं दीसवै।।4
घूंट एक घट ढाल़,
बोलै फिर देखो बाड़ो।
नीच ऊंच डर नाय,
करै फिर कोय कबाड़ो।
भलपण सारी भूल,
बिरड़ के काज बिगाड़ै।
दिल ढाकी सह दाख,
असँक फिर जबर उगाड़ै।
आपनै सदा साचो अखै,
(पण)कैवै बसती कूड़ियो।
सैण री सान लेवै सदा,
दूठ मिनख दारूड़ियो।।5
निज नारी पर रोस,
खीझियो नितरो खावै।
जिण रो हर कज जोय,
विदक दिन रात विगोवै।
आवै ओ अधरात,
सदन तूफांन सरीखो।
बटका भरतो बोल,
तोत में रैवत तीखो।
कांमणी डरप कांनै रहै,
बीहा रहे बाकोटिया।
सुरा री बात किण कज सही,
खंच खंच भाखै खोटिया।।6
दरद गमावण दवा,
केक नर दाना कैवै।
इण सारू ई आप,
लुकी नै हाला लैवै।
गमै पैल तो गरथ,
दूसरी सुध बुध देखो।
सोल़ो लगै सरीर,
छेद फिर काल़ज छेको।
रोग रो जोग जुड़ियो रहै,
सुरापांन रै स्वाद में।
साम रै दिया नाही सरै ,
मरै बिनां ई म्याद में।।7
करण हथाई काज,
भाव सूं बैठै भेल़ा।
तण तण ऊंची तांण,
सज्जन मन करण समेल़ा।
बण यारां रा यार,
जांण घण हेत जतावै।
पुरसै कर कर प्यार,
खार पण ढकियो खावै।
ऊठसी जदै करसी अवस,
धन लारै झट धूड़िया।
छीपिया नहीं रहसी छता,
देखो नर दारूड़िया।।8
मद पिवै कर मोद,
जिकै रद करै जवानी।
मद पियै कर मोद,
जिकै हद लड़ै जबानी।
मद पियै कर मोद,
सुद्ध नुं साव शरीरां।
मद पियै कर मोद,
फेर पद पाय फकीरां।
मद मांय होस पूरो मिटै,
मरट पिटै फिर मानजो।
सैण सूं कटै सिटल़ाय तन,
सदन घटै नित शान जो।।9
दारू हंदा दोस ,
जोस में नहीं जणाया।
मोटै कवियां मांड,
सधर भर भाव सुणाया।
करण कविता काट,
जुगत सूं भाव जगाया
ज्यूं रा ज्यू ई जोड़,
प्रेम सूं कवी पुगाया।
रीस करो भल ,भल रीझ अब,
गढवियां सुणजो गुणी।
हर जात तणो हित जाण हिव,
भाल़ गिरधरै आ भणी।।10
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
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