शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

दारू दुरगुण -दसक

दारू दुरगुण -दसक

पांच पैग लीधां पछै,
 पयड़ज्या जाडा पग्ग।
चलणो घर दिसियै चहै,
   मन ना  मानै मग्ग।।

 पांच पैग लीधां पछै,
धींगामसती धार।
गिण गिण देवै गाल़ियां,
सुद्ध बुद्ध री नी सार।।

 प्याला भर पीधा प्रतख ,
अणडर  अंधाधुंध।
राघड़ लड़ियो राम सूं,
दारू में दसकंध।।

 पी मद खुद री पांतर्यो,
मत निज री मतिमंद।
सुन में हरली सीत नै,
दारू में दसकंध।।

पी दारू परवारियो,
छता किया छल़छंद।
ठगली उण ठिठकारियै,
देख सीत दसकंध।।

बिनां पियां बजरंग वर,
सधरो तिर्यो समंद।
विलल़ै लंका बोड़दी,
दारू में दसकंध।।

 गी किडनी घर ई  गयो,
खिंड ग्या सकल़ खवाब।
भमियो इणविध भोगनो
सखा न तजी शराब।।
सुबह सांझ दोनां समै,
रीझ आध्योड़ी रात।
दारू !दारू!दोसतां,
बाचो आ की बात।।
            कवत्त
दारू री दिन रात,
विदग्ग की बातां बाचो।
व्हालां दो बतल़ाय,
 एक गुण इणमें आछो।
सूखै कंठ सदाय, 
घूंट इक भरियां गैरो।
जाडी पड़ज्या जीब,
चरित नै बदल़ै चैरो।
उदर में जल़न आंतड़ सड़ै,
पड़ै नही पग पाधरो।
किण काज आज सैणां कहो,
इण हाला नैं आदरो।।1

आय प्रथम आवेस,
केय फिर कल़हगारी।
मुर उर चिंता मांह,
  चतुर्थ फिर स्वच्छाचारी।
पाचन बिगड़ै पांच,
बदन में छठी बीमारी।
सप्तम हरलै सा'स,
बुद्धि आठमे बिगारी।
विटल़ नवम नर कुलल़ो बकै,
प्यालो ज्यां कर पेखियो।
कवि गीध दसम कहिये गुणी,
दारू पातक देखियो।।2

काढी चतुर कलाल़,
कहण री बातां कूड़ी।
सूगलवाडो साफ,
दखां जिथ उपज दारूड़ी।
नीच चीज मँझ नांख,
आसव रो घड़ो अणावै।
गुणियण बिनां गिलाण,
विटल़ नैं पैक बणावै।
तर तर बखाण दारू तणा,
नरां वडां मुख न्हाल़िया।
झूठ री नहीं इक जाणजो,
खोटी के घर खाल़िया।।3

पीधां सूं उतपात,
मिनख के वडा मचावै।
निबल़ो पड़झ्या निजर,
 नीच संग नाच नचावै।
ओछी बातां आख,
लाख री ईजत लेवै।
सदा गमावै साख, 
वाट पण ऊंधी बेवै।
सैण नैं गिणै अरियण समो, 
रेस देवण नैं रीसवै।
गुण एक इसो मानां गहर, 
दारू में नहीं दीसवै।।4

घूंट एक घट ढाल़,
बोलै फिर देखो बाड़ो।
नीच ऊंच डर नाय,
 करै फिर कोय कबाड़ो।
भलपण सारी भूल,
बिरड़ के काज बिगाड़ै।
दिल ढाकी सह दाख,
 असँक फिर जबर उगाड़ै।
आपनै सदा साचो अखै,
(पण)कैवै बसती कूड़ियो।
सैण री सान लेवै सदा,
 दूठ मिनख दारूड़ियो।।5

निज नारी पर रोस,
खीझियो नितरो खावै।
जिण रो हर कज जोय, 
विदक दिन रात विगोवै।
आवै ओ अधरात,
सदन तूफांन सरीखो।
बटका भरतो बोल,
तोत में रैवत तीखो।
कांमणी डरप कांनै रहै, 
बीहा रहे बाकोटिया।
सुरा री बात किण कज सही,
खंच खंच भाखै खोटिया।।6

दरद गमावण दवा,
केक नर दाना कैवै।
इण सारू ई आप,
 लुकी नै हाला लैवै।
गमै पैल तो गरथ,
 दूसरी सुध बुध देखो।
सोल़ो लगै सरीर,
छेद फिर काल़ज छेको।
रोग रो जोग जुड़ियो रहै,
सुरापांन रै स्वाद में।
 साम रै दिया नाही सरै ,
मरै बिनां ई म्याद में।।7
करण हथाई काज,
भाव सूं बैठै भेल़ा।
तण तण ऊंची तांण,
सज्जन मन करण समेल़ा।
बण यारां रा यार,
जांण घण हेत जतावै।
पुरसै कर कर प्यार,
खार पण ढकियो खावै।
ऊठसी जदै करसी अवस, 
धन लारै झट धूड़िया।
छीपिया नहीं रहसी छता,
देखो नर दारूड़िया।।8


मद पिवै कर मोद,
जिकै रद करै जवानी।
मद पियै कर मोद,
जिकै हद लड़ै जबानी।
मद पियै कर मोद,
सुद्ध नुं साव शरीरां।
मद पियै कर मोद,
फेर पद पाय फकीरां।
मद मांय होस पूरो मिटै,
 मरट पिटै फिर मानजो।
सैण सूं कटै सिटल़ाय तन,
सदन घटै नित शान जो।।9

दारू हंदा दोस ,
जोस में नहीं जणाया।
मोटै कवियां मांड,
  सधर भर भाव सुणाया।
करण कविता काट,
जुगत सूं भाव जगाया
ज्यूं रा ज्यू ई जोड़,
 प्रेम सूं कवी पुगाया।
रीस करो भल ,भल रीझ अब, 
गढवियां सुणजो गुणी।
हर जात तणो हित जाण हिव, 
भाल़ गिरधरै आ भणी।।10

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

समय बड़ो बलवान



समय बड़ो बलवान
 जाने जहान सारो,
अवनी बड़े विद्वान कही गए ध्यान ते।
सूर की छिंयारी  भाई तीन वेर फिरि जात,
चंद्र भी गुजारे दीह सुन्यो अपमान ते।
मुरलोक नाथ हूं की लुटी घर नारी सारी ,
रुकी नहीं देखो जरा पाथ हूं के बान ते।
गिरधरदान 
सुन सावधान  होय बात
 केते केते बली कटे समय की कृपान ते।।

 समय  की मार झेली  
राजा हरिचंद जोवो,
सत्य को पूजारी भाई नेक थररायो नीं।
समय की झाट पंडव के थाटबाट गए,
सत्य हूं की वाट हों से मन विचलायो नीं।
समय भार  रंतिदेव अन्न को बिख्यो भोग्यो
सत पे अडग रह्यो  दिलगीरी लायो नीं।
समय की चोट झेल हुए जमीदोट जो तो,
वांको आज तांई जग नाम बतरायो नीं।।

 पलटि गयो समै जान महारान पत्ता  को,
दुख में अडग वो  रखन चख पानी को।
 उलटि समै  अटल दुर्गादास प्रण हूं पे,
रह्यो वीर थिर वो  रक्षक रजधानी को।
चिकनी रोटी को देख शिवो ललचायो नहीं,
समै विपरीत भयो रूप  हिंदवानी को।
कहै गिरधरदान सुनिए सुजान प्यारे,
 मुढ मैं सुनाऊं सुनी पूनि ग्यानी ध्यानी को।।

वक्त के तकाजे  खाए साक पात देख पता,
आजादी विसारी नहीं झेल सेल छाती पे। 
अस हूं की पीठ बजा रीठ दुर्ग स्वामी काज,
समय को बताय धत्ता चखन राती पे।
शिवा सो सपूत रह्यो रण मजबूत मन ,
समय  को खेल मान धार वार घाती पे।
 गीध मुर नरन के चरन बलिहार ले,
धरन पे अमर  गौरव निज जाती के।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास

राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास

एक बार बचपन में राव धुहड जी ननिहाल गए , तो वहां उन्होने अपने मामा का बहुत बडा पेट देखा ।बेडोल पेट देखकर वे अपनी हँसी रोक नही पाएं ।और जोर जोर से हस पडे ।तब उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होने राव धुहडजी से कहा की सुन भांनजे । तुम तो मेरा बडा पेट देखकर हँस रहे होकिन्तु तुम्हारे परिवार को बिनाकुलदेवी देखकर सारी दुनिया हंसती हैतुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नही आ सकेतभी तो तुम्हारा कही स्थाई ठोड-ठिकाना नही बन पा रहा हैमामा के ये कडवे बोल राव धुहडजी के ह्रदय में चुभ गयेउन्होने उसी समय मन ही मन निश्चयकिया की मैं अपनी कूलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊगां ।और वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड लोट आएकिन्तु बाल धुहडजी को यह पता नहीथा कि कुलदेवी कौन हैउनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है ।आखिर कार उन्होने सोचा की क्यो नतपस्या करके देवी को प्रसन्न करूं ।वे प्रगट हो कर मुझे सब कुछ बता देगी ।और एक दिन बालक राव धुहडजी चुपचाप घर से निकल गये ।और जंगल मे जा पहुंचे ।वहा अन्नजल त्याग कर तपस्या करने लगे ।बालहट के कारण आखिर देवी का ह्रदय पसीजा ।उन्हे तपस्या करते देख देवी प्रकट हुई ।तब बालक राव धुहडजी ने देवी को आप बीती बताकर कहा की हे माता ! मेरी कुलदेवी कौन है ।और उनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है ।देवी ने स्नेह पूर्वक उनसे कहा की सून बालक !तुम्हारी कुलदेवी का नाम चक्रेश्वरी है ।और उनकी मूर्ति कन्नौज मे है ।तुम अभी छोटे हो ,बडे होने पर जा पाओगें ।तुम्हारी आस्था देखकर मेरा यही कहना है । की एक दिन अवश्य तुम हीउसे लेकर आओगे ।किन्तु तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी ।कलांतर में राव आस्थानजी का सवर्गवास हुआ ।और राव धुहडजी खेड के शासक बनें ।तब एक दिन !राजपूरोहित पीथडजी को साथ लेकर राव धूहडजी कन्नौज रवाना हुए ।कन्नौज में उन्हें गुरू लुंम्ब रिषि मिले ।उन्होने उन्हे माता चक्रेश्वरी की मूर्ति के दर्शन कराएं और कहाकी यही तुम्हारी कुलदेवी है ।इसे तुम अपने साथ ले जा सकते हो ।जब राव धुहडजी ने कुलदेवी की मूर्ति को विधिवत् साथ लेने का उपक्रम किया तो अचानक कुलदेवी की वाणी गुंजी - ठहरो पूत्र !में ऐसे तुम्हारे साथ नही चलूंगी ! में पंखिनी ( पक्षिनी )के रूप में तुम्हारे साथ चलूंगीतब राव धुहडजी ने कहा हे माँ मुझे विश्वास केसे होगा की आप मेरे साथ चल रही है ।तब माँ कुलदेवी ने कहा जब तक तुम्हें पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलती दिखूं तुम यह समझना की तुम्हारी कुलदेवी तुम्हारे साथ है ।लेकिन एक बात का ध्यान रहे , बीच में कही रूकना मत ।राव धुहडजी ने कुलदेवी का आदेश मान कर वैसे ही किया ।राव धुहडजीकन्नौज से रवाना होकर नागाणा ( आत्मरक्षा ) पर्वत के पास पहुंचते पहुंचते थक चुके थे ।तब विश्राम के लिए एक नीम के नीचे तनिक रूके ।अत्यधिक थकावट के कारण उन्हें वहा नीदं आ गई ।जब आँख खुली तो देखा की पंखिनी नीम वृक्ष पर बैठी है ।राव धुहडजी हडबडाकर उठें और आगे चलने को तैयार हुए तो कुलदेवी बोली पुत्र , मैनें पहले ही कहा था कि जहां तुम रूकोगें वही मैं भी रूक जाऊंगी और फिर आगे नही चलूंगी ।अब मैं आगे नही चलूंगी ।तब राव धूहडजी ने कहा की हें माँ अब मेरे लिए क्या आदेश है ।कुलदेवी बोली की तुम ऐसा करना की कल सुबह सवा प्रहर दिन चढने से पहले - पहले अपना घोडा जहाॅ तकसंभव हो वहा तक घुमाना यही क्षैत्र अब मेरा ओरण होगा और यहां मै मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी ।तब राव धुहडजी ने पूछा कीहे माँ इस बात का पता कैसे चलेगा की आप प्रकट हो चूकी है । तब कुलदेवी ने कहा कि पर्वत पर जोरदार गर्जना होगी बिजलियां चमकेगी और पर्वत से पत्थर दूर दूर तक गिरने लगेंगे उस समय । मैं मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी ।किन्तु एक बात का ध्यान रहे , मैंजब प्रकट होऊंगी तब तुम ग्वालिये से कह देना कि वह गायोंको हाक न करे , अन्यथा मेरी मूर्ति प्रकट होते होते रूक जाएगी ।अगले दिन सुबह जल्दी उठकर राव धुहडजी ने माता के कहने के अनुसार अपना घोडा चारों दिशाओं में दौडाया और वहां के ग्वालिये से कहा की गायों को रोकने के लिए आवाज मत करना , चुप रहना , तुम्हारी गाये जहां भी जाएगी ,मैवहां से लाकर दूंगा ।कुछ ही समय बाद अचानक पर्वत पर जोरदार गर्जना होने लगी , बिजलियां चमकने लगी और ऐसा लगने लगा जैसे प्रलय मचने वाला हो ।डर के मारे ग्वालिये की गाय इधर -उधर भागने लगी ग्वालियां भी कापने लगा ।इसके साथ ही भूमि से कुलदेवी की मूर्ति प्रकट होने लगी । तभी स्वभाव वश ग्वालिये के मुह से गायों को रोकने के लिए हाक की आवाज निकल गई । बस, ग्वालिये के मुह से आवाज निकलनी थी की प्रकट होती होती मुर्ति वही थम गई ।केवल कटि तक ही भूमि से मूर्ति बाहर आ सकी ।देवी का वचन था । वह भला असत्य कैसे होता ।राव धुहडजी ने होनी को नमस्कार किया । और उसी अर्ध प्रकट मूर्तिके लिए सन् 1305, माघ वदी दशम सवत् 1362 ई. में मन्दिर का निर्माण करवाया ,क्योकि " चक्रेश्वरी " नागाणा में मूर्ति रूप में प्रकटी ,अतः वह चारों और " नागणेची " रूप में प्रसिध्ध हुई ।इस प्रकार मारवाड में राठौडों की कुलदेवी नागणेची कहलाई ।    जय माँ नागणेश्वरी