गुरुवार, 25 मई 2017

शुभ्रक की स्वामिभक्ति


*उदयपुर महाराज कुंवर  कर्णसिंह के "घोड़े शुभ्रक" की स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा*

कुतुबुद्दीन की मौत ..और सत्य ..!!!

*इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई ..!!!
ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया* ..!!!

अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा।

*उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया*।

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया ..!!

*दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि, -
बुजकशी खेला जाएगा लेकिन, इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा।
कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" को चुना* ..!!!

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा। राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया। जब राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर पैरो से कई वार कर कूचला, जिससे कुतुबुद्दीन बही पर मर गया ..!!!!!

*इससे पहले कि, सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गए।कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके* ..!!!

शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका ..!!

*वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा ..!!!!
वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया* ..!!!

कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन, इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।

*धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं*
डॉ मदन गोपाल बिरथरे "मार्तण्ड"
संकलन :- *राजेन्द्र लालवानी*

रविवार, 21 मई 2017

तूं मत पाल़ भरम  नै भाई!

तूं मत पाल़ भरम  नै भाई!
थोड़ो समझ परम नै भाई!!
गुणचोरां री संगत रल़ग्यो!
आंख्यां राख शरम नै भाई!!
अहम वहम में केयक मरग्या!
ओ तो समझ मरम नै भाई!!
चकाचूंध में यूं चकरीजर!
तूं मत छोड करम नै भाई!!
करड़ा लट्ठ तूटग्या कितरा!
साबत देख नरम नै भाई!!
ठार! ठार ! नै जीम धीज सूं
कर मत घाल गरम नै भाई!!
खाय गपंदा गया बावल़ा!
भूल्या मिनख -धरम नै भाई!!
गिरधर दान रतनू दासोड़ी

घणां पाळिया शौक

घणां पाळिया शौक जीवणों दोरो होग्यो रे
देवे राम नें दोष जमानों फौरो होग्यो रे

च्यारानां री सब्जी ल्यांता आठानां री दाळ
दोन्यूं सिक्का चाले कोनीं भूंडा होग्या हाल
च्यार दिनां तक जान जींमती घी की भेंती धार
अेक टेम में छींकां आवे ल्याणां पडे उधार
जीवणों दोरो---

मुंडे मूंड बात कर लेंता नहीं लागतो टक्को
बिनां कियां रिचार्ज रुके है मोबाईल रो चक्को
लालटेन में तेल घालता रात काटता सारी
बिजळी रा बिल रा झटका सूं आंख्यां आय अंधारी
जीवणों दोरो---

लाड कोड सुं लाडी ल्यांता करती घर रो काम
पढी लिखी बिनणिंयां बैठी दिनभर करै आराम
घाल पर्स में नोट बीनणीं ब्यूटी पारलर जावे
बैल बणें घाणीं रो बालम परणीं मोज उडावे
जीवणों दौरो---

टी वी रा चक्कर में टाबर भूल्या खाणों पीणों
चौका छक्का रा हल्ला में मुश्किल होग्यो जीणों
बिल माथै बिल आंता रेवे कोई दिन जाय नीं खाली
लूंण तेल खांड री खातर रोज लडै घरवाळी
जीवणों दौरो---

अेक रुपियो फीस लागती पूरी साल पढाई
पाटी बस्ता पोथी का भी रुप्या लागता ढाई
पापाजी री पूरी तनखा अेडमिशन में लागे
फीस किताबां ड्रेसां न्यारी ट्यूशन रा भी लागे
जीवणों दौरो---

सुख री नींद कदै नीं आवे टेंशन ऊपर टैंशन
दो दिन में पूरी हो ज्यावे तनखा हो या पैंशन
गुटखां रा रेपर बिखर्योडा थांरी हंसी उडावे
रोग लगेला साफ लिख्यो पणं दूणां दूणां खावे
जीवणों दौरो---

पाळै चलणों भूली दुनियां गाडी ऊपर गाडी
आगे बैठे टाबर टींगर लारै बैठे लाडी
मैडम केवे पीवर में म्हें कदै नीं चाली पाळी
मन में सोचे साब गला में केडी आफत घाली
जीवणों दोरो---

चावै पेट में लडै ऊंदरा पेटरोल भरवावे
मावस पूनम राखणं वाळा संडे च्यार मनावे
होटलां में करे पार्टी डिस्को डांस रचावे
नशा पता में गेला होकर घर में राड मचावे
जीवणों दौरो ---

हिंदी री पूंछ पकडली मारवाड़ी कोनीं आवे
कोका कोला पीवे पेप्सी छाछ राब नहीं भावे
कीकर पडसी पार मुंग्याडो नितरो बढतो जावे
सुख रा साधन रा चक्कर में दुखडा बढता जावे
जितरी चादर पांव पसारो मन पर काबू राखो
गजानंद भगवान भज्यां ही भलो होवसी थांको
जीवणों दौरो होग्यो रे...

सोमवार, 15 मई 2017

स्वाद राजस्थान का

"स्वाद राजस्थान का ,

लूणी रा रसगुल्ला खाओ ; भुजिया बीकानेर का ।
चमचम खावणी पोकण ऱी; घोटमा जैसलमेर का ।।
कड़ी कचोरी अजमेर ऱी ;अर कचौरा नसीराबाद का ।
पाली रे गुलाब हलवे रा ; बड़ा मजा है स्वाद का ।।
ओसियां में दाल रा वड़ा ; जीवण जी खिलावे ।
फलोदी रे भैया भा रो हलवो; मूंडे लाळ पड़ावे ।।
रबड़ी रा भटका आवे तो ; सीधा जावो आबू रोड़ ।
जयपुर रा घेवर खावण रो; मौको ना दीजो छोड़ ।।
कोटा ऱी हींग कचोरी ; रतन आळे ऱी खाइजो ।
खीर मोहन खावण ने ; गंगापुर सीटी आइजो।।
घणो ई चौखो लागे है ; अलवर आळो मिल्क केक ।
भारत भर में पीवे चाव सूं ; भीलवाड़ा रो मिल्क शेक ।।
प्याज कचोरी ,मावा कचोरी ; अर मिर्ची बड़ो है जोर ।
सगळे स्वाद में राजा कहिजे ; है जोधाणो सिरमौर ।।
लिख्या जितरा ई खाया हूँ ; ह्रदय सूं थाने बतावूं ।
मिष्ठान लेखणी रो संगम हूँ ; लिख-लिख ने इतरावूं ।।

Mothers day और मारवाड़ी

गॉव में एक छोरो दोडियो-दोडियो आपरी माँ कने जा रे बोलियो...माँ माँ आज थारों दिन है...ओ ले ओ फूल...माँ बोली हिडिकाडियोड़ा-करमफुटीयोडॉ मै तो जीवती बेठी हूँ...जीवता रा इज दिन मनावन लागगो...आवन दे थारे बाप ने...ने केवन दे के ओ थारो सपूत मारा दिन जीवता इज मनावे है...छोरो बोलियो रे माँ मारी बात सु इति दुखी मत हो...मारे जीवन रो रोज उजालो तो थारे आशीष ऊ इज वे माँ...वा तो करमफुटियोड़ी अंग्रेजी री बेनजी आज स्कूल में बताओ के आज माँ रो दिन है...माँ यो सुन ने आपरे कालजा री कोर ने छाती सु लगा लियो और कयो के आगे सु विन चुड़ैल सु आगो इज रहिजे जो केवे के जीवता माँ-बाप रो भी कोई एक दिन वे....

बुधवार, 10 मई 2017

जाणो कठे है ?

मार्टिन लूथर किंग ने कहा"
अगर तुम उड़ नहीं सकते तो, दौड़ो !
अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो,...चलो !
अगर तुम चल नहीं सकते तो,......रेंगो !पर आगे बढ़ते रहो !"

तभी एक  रतलामी ने मुँह से गुटका थूकते हुऐ कहा :- वो तो ठीक है साहब पर जाणो कठे है ?

घर आज्या परदेसी तेरा गाँव बुलाये रे. ..

घर आज्या परदेसी तेरा गाँव बुलाये रे. ..

"गाँव री याद"

गाँव रा गुवाड़ छुट्या, लारे रह गया खेत
धोरां माथे झीणी झीणी उड़ती बाळू रेत

उड़ती बाळू रेत , नीम री छाया छूटी
फोफलिया रो साग, छूट्यो बाजरी री रोटी

अषाढ़ा रे महीने में जद,खेत बावण जाता
हळ चलाता,बिज बिजता कांदा रोटी खाता

कांदा रोटी खाता,भादवे में काढता'नीनाण'
खेत मायला झुपड़ा में,सोता खूंटी ताण

गरज गरज मेह बरसतो,खूब नाचता मोर
खेजड़ी , रा खोखा खाता,बोरडी रा बोर

बोरडी रा बोर ,खावंता काकड़िया मतीरा
श्रादां में रोज जीमता, देसी घी रा सीरा

आसोजां में बाजरी रा,सिट्टा भी पक जाता
काती रे महीने में सगळा,मोठ उपाड़न जाता

मोठ उपाड़न जाता, सागे तोड़ता गुवार
सर्दी गर्मी सहकर के भी, सुखी हा परिवार

गाँव के हर एक घर में, गाय भैंस रो धीणो
घी दूध घर का मिलता, वो हो असली जीणो

वो हो असली जीणो,कदे नी पड़ता बीमार
गाँव में ही छोड़आया ज़िन्दगी जीणे रो सार

सियाळे में धूंई तपता, करता खूब हताई
आपस में मिलजुल रहता सगळा भाई भाई

कांई करा गाँव की,आज भी याद सतावे
एक बार समय बीत ग्यो,पाछो नहीं आवे

गाँव को याद करके रोना मत, रोने से अच्छा है एक बार गाँव हो आना..
मन हल्का हो जायेगा और मन  को सुकून मिलेगा.

मंगलवार, 9 मई 2017

प्रताप पच्चीसी

प्रताप पच्चीसी- गिरधरदान रतनू दासोड़ी
               दूहा
मुरदा सूता माल़ियां,अकबर वाल़ी ओट।
पौरस धरियो पातलै,कर झूंपड़ियां कोट।।1
धरा केक दे धीवड़्यां,दीन केक बण दास।
आतप मुगलां आपियो,भल़हल़ पातल भास।.2
वसुधा देयर बेटियां,धुर राखी चितधार।
ज्या़ंरो जग म़ें जोयलो,लधै न नाम लिगार।।3
रणबंकां संको रख्यो,बल़हठ रखी न बात।
बंका  करतब विसरिया,जद भूली गुण जात।।4
सत रैगी दब स्याल़ियां,इण घुरियां आवाज।
पणधर राण प्रताप री,अखै अजै अगराज।।5
कांगापण में कालियां,मछर दियो कुल़ मेट।
पोह राखण परतापसी,अड़ियो करण अखेट।।6
मेवाड़ै धरियो मछर,अछर वरण अखियात।
तद आजादी ऊग तर,वसुधा पूगी बात।।7
खूटल नर सह खूटिया,मांचां पड़ सड़ मोत।
प्रिथी अमर परतापसी,झल़हल़ जसरी जोत।।8
अड़ियो मुगलां सूं अडर,चड़ियो चेतक पीठ।
खेतांरण खड़ियो खरो,रूकां लड़ियो रीठ।।10
कीरत खाटी रखण कुल़,ताटी भाखर ताण।
माटी कज लड़ियो मरद,घाटी में घमसाण।।11
जननायक भारत जयो,दिल सुध दाखै देस।
पातल पणधारी तनै ,अखै मुलक आदेस।।12
खूटल कई तो खोयग्या ,कुल़ री तीख तमाम।
(पण) पसरायो परतापसी,नवखँड जसरो नाम।।13
कण कण गूंजै कीरती,जण जण कंठां जोय।
पुहमी हिंद प्रताप री,करै न समवड़ कोय।।14
उत्तर नै दिखणाद इल़,पूरब नैं पिछमांण।
समवड़ सोरम सुजस री,जगत सरीखी जाण।।15
सुविधाभोगी संकिया,अकबर रै आपांण।
डांगां माथै डेरियो,रखियो पातल रांण।।16
भालो कर ठालो भुलो,भाखर चाकर भील।
विकट वाट विखमी समै,हिरदै अरियां हील।।17
आजादी तजदी अवर,रमण सदा सुखरास।
नाहर पातल निडर नर,तण तण सधरी त्रास।।18
मेट न सकियो मरद रो,साहस अकबरसाह।
हय गय थकनैं हालिया, रसा अया जिण राह।।19
ज्यां बल़ आयो जोपनैं,अकबर अठै अधीर।
पितल़ज हाल्यो पाछपग,तणिया पातल तीर।।20
मेदपाट जस मंडियो,खँडियो अकबर खार।
छतो धरम नह छंडियो, सधर करां धर सार।।21
बुई सीस बहलोल रै,खाय खड़ग तुझ खार।
कट कांधो अस कट्टियो, धसगी धरती धार।।22
धिन भाखर धिन बा धरा,रजवट राखण रीत।
पातल तैं पग पग करी,पहुमी वडी पवीत।।23
सब धरमां रो सेहरो,कहै मुखां हरकोय।
मरद कियो मेवाड़ नैं, जग में तीरथ जोय।।24
जात नात सबसूं जुदो,प्रा़तवाद रै पार।
सत वंदै भारत सकल़,धुरमन अंजस धार।।25
मर मानो अकबर मुवो,चरचा काय न चल्ल।
पहुमी रा़ण प्रताप री, गहर अमर आ गल्ल।।26
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शुक्रवार, 5 मई 2017

Ancient monetary system

Marwadi kahaniya - poetic version

Once upon a कागला,
Sitting on a डागला,
He was very तीसा,
He saw चारों दिशा
He saw a घड़ा
Some water उसमे पड़ा
He collected some भाटा
घड़ा भर गया काठा
Water is coming up-up
He was drinking लप- लप

and

Then  बोई-जा , बोई-जा 
भूखी लोमडी की मारवाडी  कहानी

वंस देयर वाज ए लुकी,
लुकी इज वैरी भूकी।
सी सा एक अंगूर का गुच्छा,
गुच्छा इज वैरी उंचा।
लुकी कुदी,
बट नॉट पुगी।
लुकी पडी ऑन द भाटा,
लुकी बोली 'अंगूर इज वैरी खाटा'...!!