#महाराणा_सांगा - सनातन की रक्षा करने वाला हिन्दू राजपूत क्षत्रिय
महाराणा सांगा - मंझला कद , मोटा चेहरा, बड़ी आंखे, लंबे हाथ, ओर गेंहुआ रंग था । दिल के इतने मजबूत थे, की इनके जोड़ का वीर शायद आज तक पैदा ना हुए हो ।
27 वर्ष की अवस्था मे राणा सांगा गद्दी पर बैठे, ओर 20 वर्ष शाशन करने के बाद उनका देहांत हो गया । राणा सांगा के काल मे मेवाड़ की स्तिथि शिखर पर पहुंच गई थी, उनकी सेना में 1 लाख सैनिक ओर 500 हाथी थे । 7 बड़े राजा 9 राव ओर 108 रावत उनके अधीन थे । जोधपुर ओर आमेर के राजा उनका बड़ा सम्मान करते थे । बाबर के आक्रमण का सामना करने से पहले भी उन्होंने 18 बार बड़ी बड़ी लड़ाइयां मालवा के मुसलमान सुल्तानों से लड़ी थी ।
राणा सांगा अपने समय के पराक्रमी राजा थे, उनके समय मे उनके जैसा पराक्रमी ओर वीर राजा पूरे भारत मे नही था । भारत का कोई ऐसा राजा नही था, जो उस समय राणा सांगा कर सामने सिर उठाने का साहस करता ।
100 मैदानों के विजेता ने दिल्ली के पतन के बाद हिन्दू राज स्थापित करने के लिए गुजरात ओर दिल्ली को भी पराजित किया । अगर राणा सांगा बाबर के विरुद्ध सफल हो जाता, तो पूरा भारत उसके कब्जे में होता, ओर आज इस्लाम का नामोनिशान यहां नही होता ।
राणा सांगा को केवल बाहर से ही नही, अंदर से भी बहुत विरोध झेलना पड़ा था, कई जातीया हमेशा विरोध ही करती रही थी, राणा सांगा के ही काल मे मीणो का विद्रोह हो गया था । एक ओर विदेशी आक्रमण तो दूसरी ओर घर मे फुट, कोई सफल हो तो कैसे हो ?? बाद में आज कुछ लोग राजपूतो पर लांछन लगाते है, इतिहास को पढ़कर देखना चाहिए, तुमने राजपूतो का साथ दिया कब ??
इब्राहिम लौदी से युद्ध के बाद एक हाथ कट जाने पर , ओर पांव में तीर लग जाने पर, राणा सांगा ने दरबारियों से आग्रह किया, की सिहांसन पर किसी योग्य व्यक्तियों को बिठा दे । उनकी घोषणा कुछ इस प्रकार थी ।
" जिस प्रकार टूटी मूर्ति प्रतिष्ठा पूजने योग्य नही रहती, उसी प्रकार मेरी आँख , भुजा ओर पांव निकम्मे हो गए है । इसलिए में सिंहासन पर ना बैठकर जमीन पर ही बैठूंगा । इस स्थान पर जिसे उचित समझे बिठावे । "
इस विनती भाव से दरबारी बहुत प्रभावित हुए सब बोले " रण क्षेत्र में अंग भंग होने से राजा का गौरव बढ़ता है, ना कि घटता " सबने मिलकर उन्हें गद्दी पर बिठा दिया ।।
यह राणा सांगा की योग्यता व नीति की पराकाष्ठा थी ।
पृथ्वीराज चौहान के पतन के बाद हिन्दुओ पर लगातार अत्याचार हो रहे थे, सारा भारत ही इस्लाम की गर्त में जाता नजर आ रहा था । मंदिरो को तोड़कर मस्जिद बनाया जा रहा था, बड़ी बड़ी जागीरे देकर लोगो का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था । हिन्दू इस आशंका से ग्रसित हो गए कि इसी गति से ही यह सब होता रहा तो सारा का सारा देश इस्लामिक हो जाएगा ।
ऐसे समय मे हिन्दुओ के उगते राजपूत सूरज ने गुजरात के सुल्तानों ओर दिल्ली के बादशाहो पर आक्रमण कर हिन्दू विजय का डंका बजा दिया । पूरे भारत के हिन्दू यह जानकर खुश होते, आशा भरी निगाहों से देखते, की मेवाड़ की दुर्गम घाटी में इस धरती का ही एक लाल है, जो हिन्दू शाशन स्थपित करना चाहता है ।
130 साल से चले आ रहे मालवा में इस्लामिक शाशन को महाराणा सांगा ने ही उखाड़ के फेंका था । गुजरात का जफर खा, जो पूरे गुजरात पर इस्लाम का कहर ढा रहा था, उसे भी राणा सांगा ने ही जड़ से उखाड़ फेंका था । अहमद नगर के युद्ध मे तो राणा सांगा ओर राजपूत दुर्ग का फाटक तोड़कर मुसलमानो के दुर्ग में घुस गए थे । वहां से सारा धन लुटा ओर चितौड़ आ गए ।
राणा सांगा इब्राहिम लौदी और बाबर
यह बिल्कुल गलत बात है कि बाबर को राणा सांगा ने बुलाया था । इब्राहिम लोदी को तो राणा सांगा खुद दो बार युद्ध मे पराजित कर चुके थे, ओर दिल्ली से इसलिए उसे उखाड़ नही पाए, उसके पीछे कारण उनके सेनिको द्वारा आम हिन्दू जनता को बंदी बनाकर अत्याचार की धमकी देना था ।
बाबर की औकात नही थी, की वो राणा सांगा से लड़ पाए ! लेकिन इब्राहिम लौदी कि हर के बाद अनेक पठान सरदार राणा सांगा से आ मिले थे । खानवा का युद्ध बाबर की ओर से जिहाद के नाम पर लड़ा गया, इस्लाम के नाम पर लड़ा गया, मुसलमान के नाम पर लड़ा गया ।
इसका परिणाम क्या होना था ? राणा सांगा ने मुसलमानो पर भरोसा कर लिया, अपने ही सैनिक राणा सांगा की सेना पर वार करने लगे । राणा सांगा का नेतृत्व पहली वार हार गया, वो करें तो क्या करें, जिस सेना को वह साथ लड़ने लाया था, इस्लाम के नाम पर उसी ने उस पर आक्रमण कर दिया ! मुसलमानो ने अपनी जात दिखा दी ।
इन युद्ध की हार का राणा सांगा को ऐसा सदमा पहुंचा उसके बाद वो कभी उठ ही नही पाए, इसी शोक में 1 वर्ष के पश्चात वो स्वर्ग सिधार गए ।