*इतरो अनियाव मती कर इंदर-*
*गिरधरदान रतनू दासोड़ी*
इतरो अनियाव मती कर इंदर,
डकरां ऐह नको रच दाव।
किथियै जल़ थल़ एकण कीधा,
सुरपत किथियै सूको साव।।1
जल़ बिन मिनख मरै धर जोवो,
सब फसल़ां गी सांप्रत सूक।
उथिये छांट नखी नह एको,
कानां नाय सुणी तैं कूक।।2
पीवण नको कठै तो पाणी,
ढाणी मांय तिसाया ढोर।
वासव साच सुणी नह वाणी,
जाणी हुवो अजाणी जोर।।3
सूका थल़वट देख सरोवर,
मही नको गहकै सुर मोर।
धावां चरण नीठियो धरती,
घरहर उरड़ मंडी नह घोर।।4
काल़ी साव लुकाई कांठल़,
उमड़ण चाव भूल उतराध।
पल़पल़ बीज पांतरी पल़का,
वादल़िया नह चढै विवाद।।5
तपती पड़ै आकरो तावड़,
सावण रो नह आयो साव।
तिणियां वेग नको तीजणियां,
चित में नहीं तीज रो चाव।।6
बाजै झांख चौमासै वसुधा,
लूंब्यां नहीं सावण में लोर।
ओ की काम उपायो ऊंधो,
सुणियो नहीं दादरां सोर।।7
दूजै कानी धार दूठपण,
जल़ रेड़ै अणमापो जोय।
बूडै मिनख बीगड़ै बसती,
किण रो काज सरै नह कोय।।8
बैवै फसल़ पाणी रै वाल़ै,
पशु पंखी दोरा हद पेख।
अवनी मिटै आल़खो आंरो,
छाती मांय पड़ै फिर छेक।।9
दीनां तणो गुजारो दोरो,
छती चवै सिर माथै छात।
आधण नाय मिलै ओधारो,
बिगड़ै सफा गरीबां बात।।10
सूता कई बहै जल़ सांप्रत,
मघवा दहै अचिंती मोत।
नर कई दौड़ फसै नद नाल़ां,
फस कई हुवै जात्रा फोत।।11
वासव हुवो लगै बावल़ियो ,
कावल़ियो करर्यो छै काम।
पड़र्यो ठौड़ दोहूं चख पाणी,
नेही तूझ विगोवै नाम।।12
धरवरसण धीरज उर धारै,
सारै सब रा काम सजोर!
न्याय निवेड़ देख जुग नैणां,
फट अब मेघ थल़ी दिस फोर।।13
सब जन रहै सरसता सुखिया,
दाता खेल इसोड़ा दाव।
गिरधरदान सुणी जन गढवी,
भल घर तूझ पूगाया भाव।।14
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
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