पचपीर
आज से लगभग 30 वर्ष पहले राजस्थान के हर शहर , नगर ,कस्बे ,गांव व हर ढाणी मे इन पचपीरो की पूजा होती थी । राजस्थान की हर जाति का हर व्यक्ति इन पचपीरो की पूजा करता था । लेकीन आज दुसरी जातिया तो पूज रही है , पर बहुत ही दूर्भाग्य की बात , राजपूत पचपीरो को पूजना बन्द करते जा रहे है ।
हर मंगल अवसर पर इन पचपीरो का गीत गाया जाता था । ये गांव को , परीवार
को हर संकट से बचाते है ।
अगर कभी अपने दादोसा , दादीसा ,नानोसा ,नानीसा या किसी गांव के बुजर्ग के पास बैठने का मौका मिले तो इनके चमत्कार या किस्से पुछना हुकम ।
कौन है ये पचपीर ❓❓❓❓❓
पाबू ,हडबू ,रामदेव ,मांगलियां मेहा ।
पांचो पीर पधारज्यो , गोगीजी जेहा ।।
अर्थात -
हे पाबू जी ,हे हडबू जी , हे रामदेव जी , हे मेहा जी , हे गोगा जी आप जिस भी स्थिति मे हो हमारे यहा पधारो सा ।
1- पाबूजी - राठौड राजपूत सरदार थे । इनका मुख्य स्थान कोलू ( फलौदी ) मे है ।
2- हडबू जी - आप सांखला राजपूत सरदार थे ।इनका मुख्य स्थान बैहंगटी ( फलौदी ) के पास है ।
3- रामदेवजी - आप तंवर राजपूत सरदार थे । रूणिचा ( पोकरण) मे इनका मुख्य स्थान है ।
4- मेहाजी - ये सिसोदिया राजपूत सरदार थे ।इनका मुख्य स्थान बापिणी मे है ।
5- गोगाजी - ये चौहान राजपूत सरदार थे । इनका मुख्य स्थान गोगा मेडी ( हनुमानगढ) मे है ।
ये पचपीरो का एक छोटा सा परीचय था । क्या देखा परिचय मे ? पांचो पीर क्षत्रिय ।जिनको हमने पुजना छोड दिया । जो हमारी कदम कदम पर रक्षा करते है । राजपूत पांच बडे बडे तीर्थो पर जाकर आ जाओ या साल मे एक बार इन पचपीरो को धोक दो बराबर है ।
पचपीरो के किसका भोग लगता है ❓
कोई सवामणी नही , कोई सेंसरघट नही , कोई 56 भोग नही ,बर्फी ,लडडू,चुरमा ,पुआ - पुडी -------------- कुछ नही । सिर्फ 10 रूपये का खर्चा पांच बांटी और एक मुठठी बांकले । इनही का भोग लगता है और इस भोग से वो खुश है सा ।
पचपीरो को कब पूजा जाता है ❓❓
पचपीरो की पूजा ज्येष्ठ (जेठ ) माह के शुक्ल पक्ष के पहले ब्रहस्पतिवार या शुक्रवार को पचपीरो को पूजा जाता है ।
पचपीरो की पूजा कैसे होती है ❓❓
हर गांव मे पचपीरो का खेजडा होता है ।खेजडे के नीचे या अलग से चबुतरे के ऊपर इनका थान होता है । चबुतरे पर पांच पत्थर होते है । ये पांचो पत्थर प्रतीक होते है ये रामदेवजी ,पाबूजी ,हडबूजी ,मेहाजी और गोगाजी । इन पांचो पीरो को पवित्र जल से स्नान करवाया जाता है ।रोली से तिलक करते है ।वस्त्र के रूप मे मोली चढाते है । फिर बांटी और बाकले चढाये जाते है ।न कोई ढोंग , न कोई पाखण्ड , न कोई खर्चा ।
मेरे समाज बन्धुओ ,मेरा कर बध निवेदन है सा । की अगर हम हमारे समाज का भला चाहते है तो इन पचपीरो को वापिस पूजना प्रारम्भ करे सा ।अपनी संतानो को पचपीरो के बारे मे अधिक से अधिक बताये ।राजपूतो के लिए यह त्यौहार ही नही है ,महा त्यौहार है ।
ओर अधिक जानकारी अपने दादोसा ,दादीसा ,नानोसा ,नानीसा या किसी बुजुर्ग से ले ।
इन बुद्धिजिवियो और पूंजीपत्तियो की चाल देखो , कोई भी कलेण्डर उठाकर देख लो । राजपूत के अलावा कोई छोटे से छोटा संत है उसकी जयन्ति के बारे मे कलेण्डर मे उल्लेख है । राजस्थान का बच्चा बच्चा जिन पचपीरो को पूजता था उनका नाम तक कलेण्डर , अखबार मे नही देते है ।क्योकि ये पांचो पीर क्षत्रिय है ।कैसे भी इन पांचो ठाकूरो को जनता भूल जाय । क्योकी इन पण्डो का तो महाभारत काल बाद एक ही काम रह गया , अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करना और क्षत्रियो को गया गुजरा साबित करना ।हजारो वर्षो तक इसी काम मे लगे हुए है ।हम पडे पडे उनकी चालो को देख रहे और वो अपनी चालो मे सफल होते जा रहे है । लेकिन हम पडे पडे कब तक देखते रहेगे हुकम , अब हमारी बर्बादी का अन्तिम समय आ गया है सा । अब तो हमको हमारे क्षात्र धर्म , संस्क्रति और इतिहास को बचाना ही पडेगा । अन्यथा पछताने के अलावा हमारे पास कुछ भी नही रहेगा सा ।
मुझे झंनकार पुस्तक की दो पंक्तिया याद आ रही है -----
अब भी क्षत्रिय तुम उठते नही ,आखिर उठ कर करोगे क्या?।
वीरो का जिना जिते नही ,बकरो की मौत मरोगे क्या ?
जय क्षात्र धर्म ।
जय पाबूजी की ।
जय हडबू जी की ।
जय मेहा जी की ।
जय रामदेव जी की ।
जय गोगा जी की ।
⛳जय पचपीरो की ⛳
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