रविवार, 27 नवंबर 2016

राजस्थानी गज़ल।

राजस्थानी गज़ल।

चाहे कितरा  माळा राखौ।
घर में कितरा ताळा राखौ।

राखौ तो  बस इतरो राखौ
मन ने नी थे काळा राखौ।

करणौ  मैणत सू है कारज
पग में थे है छाळा राखौ।

निपटो सगली बाता सूं यूं
कारज में नी टाळा राखौ।

दीपा रो  है इतरो कैणौ
मन में मत यूँ जाळा राखौ।

दीपा परिहार

मरसिया शहीद परभू सिंघ राठौड़ रा

कश्मीर में *कुपवाडा सेक्टर स्थित माछल में जोधपुर के *शेरगढ़ परगने के खिरजा गांव के*_*श्री प्रभु सिंह राठौड़* दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए ..
पूरे विश्व में उनके शहादत की चर्चा हुई | दुश्मनों ने उनके साथ जो अमानवीय बर्बरता की उसको तो कल्पना मात्र से ही मन आक्रोश और क्षोभ से भर उठता है |आज हर एक देशभक्त और मानवतावादी उद्वेलित है.!

कल्पना  कीजिये कि बेटे के जन्मदिन के दिन ही  उसके माता जी या पिता जी को , उसके पत्नी को उसके शहादत की खबर मिले तो क्या गुजरती होगी उस परिवार पर जिसमें मासूम बच्चे हैं ....बहने हैं....

शहीद प्रभु सिंह ने अपनी शहादत और बलिदान से क्षत्रिय परंपरा का वह गौरवशाली इतिहास दोहराया है जिसके लिए युगों-युगों से इस समाज को जाना जाता रहा है....

उनकी शहादत को वंदन करते हुए एक सादर काव्यांजलि पेश है ..

परभू पच्चीसी

मरसिया शहीद परभू सिंघ राठौड़ रा
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जबर झूंझियो जंग में , गरज घोर घमासांण !
खतरवट री खेवना , परभू थारे पांण !! (१)

द्वारे आया देवगण.  वैकुण्ठ लैण विमांण !
सुरगापुर में सरवरा , , परभू थारे पांण !! (२)

कथै कविजन कीरती ,गाय अपछरां गांण !
कीरत हन्दा कामड़ा , , परभू थारे पांण !! (३)

कुपवाडो कसमीर में ,माछल धरा महांण !
गावे जस रा गीतड़ा ,
परभू थारे पांण !!  (४)

शोणित बिंदव सींचिया . निरभै घुरै निसांण
भांण भळकतौ भारती,
परभू थारे पांण !! (५)

तीरंगो तगड़ो तण़क , अड़ै आज आसमांण !
धवल धरा धिन धिन हुई, परभू थारे पांण !! (६)

कुपवाडा में कौपियो , परतख दे परमांण !
रीत  रुखाली रजवटां , परभू थारे पाणं !! (७)

हीमाळै  हलचल हुई ,उत्तर दिशां उफांण !
दुसमी पग पाछा दिया , परभू थारे पांण !! (८)

कटियौ पण हटियौ कठे .ठावी राखण ठांण !
दमकै दूणौ देसड़ौ , परभू थारे पांण !!  (९)

गनमशीनांह गोळियां , तोपां दागी तांण  !
साम्ही छाती सूरमौ , परभू थारे पांण !! (१०)

अरियां सूं अड़ियो अवल , कुल री राखण कांण !
अखियातां रहसी अमर , परभू थारे पांण !! (११)

सैल घमीड़ा सह गयो , बरछी भाला बांण !
सामधरम अर सूरता , परभू थारे पांण !! (१२)

रणचंडी रग रग रमी , सगती  दे सैनांण !
अमरापुर रो आसरो , परभू थारे पांण !! (१३)

सीस समपियो सूरमै , दी न धरा दुसमांण !
जस रा आखर जीवता , परभू थारे पांण !! (१४)

छेवट तूं छोड़ी नहीं , हेम धरा हिंदुआंण !
रणखेती राती रही , परभू थारे पांण !! (१५)

कर अँजस अरपण किया , परभू प्यारा प्राण !
महिमा भारी मुलक में , परभू थारे पांण !! (१६)

माथो दे मनवारियौ , माछल रो मैदांण !
भूलै कदै न भारती , परभू थारे पांण !! (१७)

नर नाहर निपजै निडर , खिरजा वाली खांण !
शेर सवायौ शेरगढ़ , परभू थारे पांण !! (१८)

शेर परगनौ  शेरगढ़ , मरुधर धरा महांण !
जस व्हियौ चावो जगत , परभू थारे पांण !! (१९)

रगत रीत कायम रखी , पाछम धरा पिछांण !
चहुंओर चावी करी , परभू थारे पांण !! (२०)

रंग घणा है राठवड़ , माछल का महिरांण !
केसरियो कसमीर में , परभू थारे पांण !! (२१)

नयण नीर मावै नहीं  , बहुविध करूं बखांण !
भाग्या दुसमी भौम सूं , परभू थारे पांण !! (२२)

कायर री करतूत ने , देख रही दुनियांण ! 
मरजादा री मानता , परभू थारे पांण !! (२३)

ऊजळ दूध उजाळियो , आप हूय अगवांण !
गरवीजै बाँधव घणा , परभू थारे पांण !! (२४),

मैमा मूँडै मोकळी , घर घर में गुणगांण  !
सँचरै निरभै देश सब , परभू थारे पांण !! (२५)

©© *रतनसिंह चाँपावत रणसीगाँव कृत* ©©

तेरै के बिमारी सै

एक जाट के , 4 जवान छोरे थे !

रिश्ते की बात चल रही थी, लड़की वाले आए हुए थे, लड़की के पिता ने जाट से पूछा :-
.चौधरी साब, छोरे के करैं हैं❓
चौधरी :- चारों डॉक्टर हैं❗
लड़की वाला :- चौधरी साब, बात जँची नहीं !!

चौधरी :- जँच तो मेरे भी ना रही .पर यूँ है कि, मैं इन चारों सै कुछ भी पूछ लूँ , फौरन कहते हैं :-
.."तेरै के बिमारी सै❓

बुधवार, 23 नवंबर 2016

शेर परगनो शेर गढ,

शेर परगनो शेर गढ, खिरजां नाहर खाण।
हिंद रुखालण दैशहित, प्रभू सूंपिया प्राण।।
अमर शहीद प्रभू सिह जी
को कश्मीर मे बलिदान पर शत शत वंदन

लड़े हिन्द रो लाड़लों , खड़ो उभो रण खेत ।

लड़े हिन्द रो लाड़लों , खड़ो उभो रण खेत ।
खग धारी ने देखतो , दुश्मण  होय असेत ।।1।।

भड़ बंका ऐ भारत रा ,शंको करे ना सोच ।
दुश्मण री दुनियांण में , मरड़ै घाते मोच ।।2।।

खरा रंग इण खाकी ने , उणसौ ऊपर ऐक ।।
भड़े जाय रण भोम में ,रखे हिन्द री टेक ।।3।।

फर्ज निभावे फूटरो , बोडर ऊपर बेठ।
नमो ऐहड़ा नरो ने , परघल राखे पेठ ।।4।।

धन शूरा री मावड़ी , धन शूरो रो तात ।
धन उण धरणी ने घणा , (जेथ) जबर शुरो री जात ।

डोकर् यां

आज क सन्दर्भ म .....
कोई जमानै म एक डोकरी हुया करती भाईजी ..डोकर् यां तो बियां
हर जमानै म ही  हुवै, पण बीं टैम कीं ज्यादा ही भोळी हुती ...

टाबर-टिंगर तो राम दिया कोनी हा, डोकरो भी जै सियाराम हुग्यो !
डोकरी बगीची आळै बाबोजी री भगत ही ! एक दिन बोली " गरूजी
म्हारै आगै-लारै तो कोई है कोनी,पण रिपिया सौ है ( बीं टेम चाँदी
आळा ही हुया करता ) तो बां रिपियां रो के करूं ?"

बाबोजी बोल्या " सीरो-पुड़ी खाया कर ... मौज कर !
डोकरी बाबैजी री बात मान ली और रोज लपरियो बणावै'र चेपै ...

करतां-करतां एक दिन बोली " गरूजी इब तो पचास ही रेग्या !"
बाबोजी बोल्या " जणा लापसी खाया कर !"
डोकरी लापसी रै दड़ीड़ देण लागगी !

ओज्यूं एक दिन बोली " गरूदेव, अब तो बीस ही रेग्या !"
बाबो बोल्यो " एक छानड़ी छपवालै, सामी सियाळो आवै !"
डोकरी छान छपा ली ! रिपड़ा सूंआ-पूरा हुया !
जणा बैठी-बैठी मंतर जपै क

पैली खाया सीरो-पूड़ी, पछै खुवाई लापसी
बाकी रां री छान छपाई, कर दी मोडो आप-सी ( आप जिसी )

तो भाईजी मोदीजी   काळे धन्न आळां में आ ही करतो लाग्यो

सोमवार, 21 नवंबर 2016

परमवीर मेजर शैतान सिंह जी भाटी

मरणोपरांत परमवीर मेजर शैतान सिंह जी भाटी को शहादत दिवस पर शत शत नमन

18 नवम्बर 1962 की सुबह अभी हुई ही नहीं थी, सर्द मौसम में सूर्यदेव अंगडाई लेकर सो रहे थे अभी बिस्तर से बाहर निकलने का उनका मन ही नहीं कर रहा था, रात से ही वहां बर्फ गिर रही थी। हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड के साथ ऐसी ठंडी बर्फीली हवा चल रही थी जो इंसान के शरीर से आर-पार हो जाये और इसी मौसम में जहाँ इंसान बिना छत और गर्म कपड़ों के एक पल भी नहीं ठहर सकता, उसी मौसम में समुद्र तल से 16404 फुट ऊँचे चुशूल क्षेत्र के रेजांगला दर्रे की ऊँची बर्फीली पहाड़ियों पर आसमान के नीचे, सिर पर बिना किसी छत और काम चलाऊ गर्म कपड़े और जूते पहने सर्द हवाओं व गिरती बर्फ के बीच हाथों में हथियार लिये ठिठुरते हुए भारतीय सेना की thirteen वीं कुमाऊं रेजीमेंट की सी कम्पनी के one hundred twenty जवान अपने सेनानायक मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में बिना नींद की एक झपकी लिये भारत माता की रक्षार्थ तैनात थे।

एक और खुली और ऊँची पहाड़ी पर चलने वाली तीक्ष्ण बर्फीली हवाएं जरुरत से कम कपड़ों को भेदते हुये जवानों के शरीर में घुस पुरा शरीर ठंडा करने की कोशिशों में जुटी थी वहीँ भारत माता को चीनी दुश्मन से बचाने की भावना उस कड़कड़ाती ठंड में उनके दिल में शोले भड़काकर उन्हें गर्म रखने में कामयाब हो रही थी। यह देशभक्ति की वह उच्च भावना ही थी जो इन कड़ाके की बर्फीली सर्दी में भी जवानों को सजग और सतर्क बनाये हुये थी।

अभी दिन उगा भी नहीं था और रात के धुंधलके और गिरती बर्फ में जवानों ने देखा कि कई सारी रौशनीयां उनकी और बढ़ रही है चूँकि उस वक्त देश का दुश्मन चीन दोस्ती की आड़ में पीठ पर छुरा घोंप कर युद्ध की रणभेरी बजा चूका था, सो जवानों ने अपनी बंदूकों की नाल उनकी तरफ आती रोशनियों की और खोल दी। पर थोड़ी ही देर में मेजर शैतान सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उनके सैनिक जिन्हें दुश्मन समझ मार रहे है दरअसल वे चीनी सैनिक नहीं बल्कि गले में लालटेन लटकाये उनकी और बढ़ रहे याक है और उनके सैनिक चीनी सैनिकों के भरोसे उन्हें मारकर अपना गोला-बारूद फालतू ही खत्म कर रहे है।

दरअसल चीनी सेना के पास खुफिया जानकारी थी कि रेजांगला पर उपस्थित भारतीय सैनिक टुकड़ी में सिर्फ one hundred twenty जवान है और उनके पास three hundred-four hundred राउंड गोलियां और महज one thousand हथगोले है अतः अँधेरे और खराब मौसम का फायदा उठाते हुए चीनी सेना ने याक जानवरों के गले में लालटेन बांध उनकी और भेज दिया ताकि भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो जाये। जब भारतीय जवानों ने याक पर फायरिंग बंद कर दी तब चीन ने अपने 2000 सैनिकों को रणनीति के तहत कई चरणों में हमले के लिए रणक्षेत्र में उतारा।

मेजर शैतान सिंह Number one Shaitan Singh ने वायरलेस पर स्थिति की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देते हुये समय पर सहायता मांगी पर उच्चाधिकारियों से जबाब मिला कि वे सहायता पहुँचाने में असमर्थ है आपकी टुकड़ी के थोड़े से सैनिक चीनियों की बड़ी सेना को रोकने में असमर्थ रहेंगे अतः आप चैकी छोड़ पीछे हट जायें और अपने साथी सैनिकों के प्राण बचायें। उच्चाधिकारियों का आदेश सुनते ही मेजर शैतान सिंह के मस्तिष्क में कई विचार उमड़ने घुमड़ने लगे। वे सोचने कि उनके जिस वंश को उतर भड़ किंवाड़ की संज्ञा सिर्फ इसलिये दी गई कि भारत पर भूमार्ग से होने वाले हमलों का सबसे पहले मुकाबला जैसलमेर के भाटियों ने किया, आज फिर भारत पर हमला हो रहा है और उसका मुकाबला करने को उसी भाटी वंश के मेजर शैतान सिंह को मौका मिला है तो वह बिना मुकाबला किये पीछे हट अपने कुल की परम्परा को कैसे लजा सकता है?

और उतर भड़ किंवाड़ कहावत को चरितार्थ करने का निर्णय कर उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाकर पूरी स्थिति साफ साफ बताते हुये कहा कि – मुझे पता है हमने चीनियों का मुकाबला किया तो हमारे पास गोला बारूद कम पड़ जायेगा और पीछे से भी हमें कोई सहायता नहीं मिल सकती, ऐसे में हमें हर हाल में शहादत देनी पड़ेगी और हम में से कोई नहीं बचेगा। चूँकि उच्चाधिकारियों का पीछे हटने हेतु आदेश है अतः आप में से जिस किसी को भी अपने प्राण बचाने है वह पीछे हटने को स्वतंत्र है पर चूँकि मैंने कृष्ण के महान युदुवंश में जन्म लिया है और मेरे पुरखों ने सर्वदा ही भारत भूमि पर आक्रमण करने वालों से सबसे पहले लोहा लिया है, आज उसी परम्परा को निभाने का अवसर मुझे मिला है अतः मैं चीनी सेना का प्राण रहते दम तक मुकाबला करूँगा. यह मेरा दृढ निर्णय है।

अपने सेनानायक के दृढ निर्णय के बारे में जानकार उस सैन्य टुकड़ी के हर सैनिक ने निश्चय कर लिया कि उनके शरीर में प्राण रहने तक वे मातृभूमि के लिये लड़ेंगे चाहे पीछे से उन्हें सहायता मिले या ना मिले. गोलियों की कमी पूरी करने के लिये निर्णय लिया गया कि एक भी गोली दुश्मन को मारे बिना खाली ना जाये और दुश्मन के मरने के बाद उसके हथियार छीन प्रयोग कर गोला-बारूद की कमी पूरी की जाय। और यही रणनीति अपना भारत माँ के गिनती के सपूत, २००० चीनी सैनिकों से भीड़ गये, चीनी सेना की तोपों व मोर्टारों के भयंकर आक्रमण के बावजूद हर सैनिक अपने प्राणों की आखिरी सांस तक एक एक सैनिक दस दस, बीस बीस दुश्मनों को मार कर शहीद होता रहा और आखिर में मेजर शैतान सिंह सहित कुछ व्यक्ति बुरी तरह घायलावस्था में जीवित बचे, बुरी तरह घायल हुए अपने मेजर को दो सैनिकों ने किसी तरह उठाकर एक बर्फीली चट्टान की आड़ में पहुँचाया और चिकित्सा के लिए नीचे चलने का आग्रह किया, ताकि अपने नायक को बचा सके किन्तु रणबांकुरे मेजर शैतान सिंह ने इनकार कर दिया। और अपने दोनों सैनिकों को कहा कि उन्हें चट्टान के सहारे बिठाकर लाईट मशीनगन दुश्मन की और तैनात कर दे और गन के ट्रेगर को रस्सी के सहारे उनके एक पैर से बाँध दे ताकि वे एक पैर से गन को घुमाकर निशाना लगा सके और दुसरे घायल पैर से रस्सी के सहारे फायर कर सके क्योंकि मेजर के दोनों हाथ हमले में बुरी तरह से जख्मी हो गए थे उनके पेट में गोलियां लगने से खून बह रहा था जिस पर कपड़ा बाँध मेजर ने पोजीशन ली व उन दोनों जवानों को उनकी इच्छा के विपरीत पीछे जाकर उच्चाधिकारियों को सूचना देने को बाध्य कर भेज दिया।

सैनिकों को भेज बुरी तरह से जख्मी मेजर चीनी सैनिकों से कब तक लड़ते रहे, कितनी देर लड़ते रहे और कब उनके प्राण शरीर छोड़ स्वर्ग को प्रस्थान कर गये किसी को नहीं पता. हाँ युद्ध के तीन महीनों बाद उनके परिजनों के आग्रह और बर्फ पिघलने के बाद सेना के जवान रेडक्रोस सोसायटी के साथ उनके शव की तलाश में जुटे और गडरियों की सुचना पर जब उस चट्टान के पास पहुंचे तब भी मेजर शैतान सिंह की लाश अपनी एल.एम.जी गन के साथ पोजीशन लिये वैसे ही मिली जैसे मरने के बाद भी वे दुश्मन के दांत खट्टे करने को तैनात है।

मेजर के शव के साथ ही उनकी टुकड़ी के शहीद हुए 114 सैनिकों के शव भी अपने अपने हाथों में बंदूक व हथगोले लिये पड़े थे, लग रहा था जैसे अब भी वे उठकर दुश्मन से लोहा लेने को तैयार है।

इस युद्ध में मेजर द्वारा भेजे गये दोनों संदेशवाहकों द्वारा बताई गई घटना पर सरकार ने तब भरोसा किया और शव खोजने को तैयार हुई जब चीनी सेना ने अपनी एक विज्ञप्ति में कबुल किया कि उसे सबसे ज्यादा जनहानि रेजांगला दर्रे पर हुई। मेजर शैतान सिंह की one hundred twenty सैनिकों वाली छोटी सी सैन्य टुकड़ी को मौत के घाट उतारने हेतु चीनी सेना को अपने 2000 सैनिकों में से 1800 सैनिकों की बलि देनी पड़ी। कहा जाता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और बलिदान को देख चीनी सैनिकों ने जाते समय सम्मान के रूप में जमीन पर अपनी राइफलें उल्टी गाडने के बाद उन पर अपनी टोपियां रख दी थी। इस तरह भारतीय सैनिकों को शत्रु सैनिकों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ था। शवों की बरामदगी के बाद उनका यथास्थान पर सैन्य सम्मान के साथ दाहसंस्कार कर मेजर शैतान सिंह भाटी को अपने इस अदम्य साहस और अप्रत्याशित वीरता के लिये भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

जैसलमेर का प्राचीनतम इतिहास भाटी शूरवीरों की रण गाथाओं से भरा पड़ा है। जहाँ पर वीर अपने प्राणों की बाजी लगा कर भी रण क्षेत्र में जूझते हुए डटे रहते थे। मेजर शेतान सिंह की गौरव गाथा से भी उसी रणबंकुरी परम्परा की याद ताजा हो जाती है। स्वर्गीय आयुवान सिंह ने परमवीर मेजर शैतान सिंह के वीरोचित आदर्श पर दो शब्द श्रद्धा सुमन के सद्रश लिपि बद्ध किये है। कितने सार्थक है:—

रजवट रोतू सेहरो भारत हन्दो भाण
दटीओ पण हटियो नहीं रंग भाटी सेताण

जैसलमेर जिले के बंसार (बनासर) गांव के ले.कर्नल हेमसिंह भाटी के घर 1 दिसम्बर 1924 को जन्में इस रणबांकुरे ने मारवाड़ राज्य की प्रख्यात शिक्षण संस्था चैपासनी स्कुल से शिक्षा ग्रहण कर एक अगस्त 1949 को कुमाऊं रेजीमेंट में सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्ति प्राप्त कर भारत माता की सेवा में अपने आपको प्रस्तुत कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के पिता कर्नल हेमसिंह भी अपनी रोबीली कमांडिंग आवाज, किसी भी तरह के घोड़े को काबू करने और सटीक निशानेबाजी के लिये प्रख्यात थे।

बुधवार, 16 नवंबर 2016

जीवणों दौरो होग्यो

जीवणों दौरो होग्यो :)
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घणां पालिया शौक जीवणों दोरो होग्यो रे
देवे राम नें दोष जमानों फौरो होग्यो रे

च्यारानां री सब्जी ल्यांता आठानां री दाल
दोन्यूं सिक्का चाले कोनीं भूंडा होग्या हाल
च्यार दिनां तक जान जींमती घी की भेंती धार
एक टेम में छींकां आवे ल्याणां पडे उधार
जीवणों दोरो-----------------------------------

मुंडे मूंड बात कर लेंता नहीं लागतो टक्को
बिनां कियां रिचार्ज रुके है मोबाईल रो चक्को
लालटेन में तेल घालता रात काटता सारी
बिजली रा बिल रा झटका सूं आंख्यां आय अंधारी
जीवणों दोरो----------------------------------------

लाड कोड सुं लाडी ल्यांता करती घर रो काम
पढी लिखी बिनणिंयां बैठी दिनभर करै आराम
घाल पर्स में नोट बीनणीं ब्यूटी पारलर जावे
बैल बणें घाणीं रो बालम परणीं मोज उडावे
जीवणों दौरो----------------------------------------

टी वी रा चक्कर में टाबर भूल्या खाणों पीणों
चौका छक्का रा हल्ला में मुश्किल होग्यो जीणों
बिल माथै बिल आंता रेवे कोई दिन जाय नीं खाली
लूंण तेल शक्कर री खातर रोज लडै घरवाली
जीवणों दौरो-----------------------------------------

एक रुपैयो फीस लागती पूरी साल पढाई
पाटी बस्ता पोथी का भी रुप्या लागता ढाई
पापाजी री पूरी तनखा एडमिशन में लागे
फीस किताबां ड्रेसां न्यारी ट्यूशन रा भी लागे
जीवणों दौरो----------------------------------------

सुख री नींद कदै नीं आवे टेंशन ऊपर टैंशन
दो दिन में पूरी हो ज्यावे तनखा हो या पैंशन
गुटखां रा रेपर बिखरयोडा थांरी हंसी उडावे
रोग लगेला साफ लिख्यो पणं दूणां दूणां खावे
जीवणों दौरो--------------------------------------
पैदल चलणों भूली दुनियां गाडी ऊपर गाडी
आगे बैठे टाबर टींगर लारै बैठे लाडी
मैडम केवे पीवर में म्हें कदै नीं चाली पाली
मन में सोचे साब गला में केडी आफत घाली
जीवणों दोरो--------------------------------------

चाऐ पेट में लडै ऊंदरा पेटरोल भरवावे
मावस पूनम राखणं वाला संडे च्यार मनावे
होटलां में करे पार्टी डिस्को डांस रचावे
नशा पता में गेला होकर घर में राड मचावे
जीवणों दौरो ------------------------------------------

अंगरेजी री पूंछ पकडली हिंदी कोनीं आवे
कोका कोला पीवे पेप्सी छाछ राब नहीं भावे
कीकर पडसी पार मुंग्याडो नितरो बढतो जावे
सुख रा साधन रा चक्कर में दुखडा बढता जावे
जितरी चादर पांव पसारो मन पर काबू राखो
तिवाडी भगवान भज्यां ही भलो होवसी थांको
जीवणों दौरो होग्यो रे :)
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गुरुवार, 10 नवंबर 2016

पाेलाे मेच

आदरणीय ठाकुर साहब नाहरसिंहजी री फेसबुक सूं
काले जाेधपुर महाराजा साहब री तरफ सूं पाेलाे मेच देखण राे कार्ड मिलियाै ।यूं हर माैका पर अजे याद करवै आ बात इण सारूं साझा करणी चा हूं कै मां  करणी जी री दया सूं म्हूं जाेधपुर मैं साेराे सुखी बैठौ हूूं,अर गांव री गंदी राजनीति सूं लाराै छूट गयाै ।नित भला मिनखाैं सूं बात चीत व्हे जावै,दिन रा काेई न कोई मिळवा आय जावै,,शाम रा या तौ महै दाेस्ताै कनै जाय पराै या कणनैई किले बुलाय लूं । दाेस्त दाेस्त बैठ ,एक एक स्काैच लेय लेवां अर सुख दुख री बातेाे कर जीव हल्काै कर लेवां ।खाणाै खाय खबराैं देख सूय जावां ।न किण री हरी न भरी ।आपरी छाेटी सी दुनिया मे मस्त ।राम राम सा !मन वार लिराजाे !भगवान सब नै सुखी राखै ।Cheers .
म्है लिखियो-----
खरी खरी।आप जैड़ां रो गांम सूं मोहभंग होवण सूं लागै कै गांमां मे राम नीं रैयो।
आदरणीय ठाकुर साहब पडुत्तर लिखियो--
अरे बाजीसा आप ताै दूखती नस पर हाथ राख दीनाै ।जी हां गांवां राै माहाैल त्थाकथित गांवां रै ठाकराैं बिगाड़ दीनाै ।घृणा इण वास्तै हूई कै ठाकराै बिना का्ेई बात रै म्हारा पर दाे कराेड़ रुपीयां राै डकैती राै केस पुलिस में कर दीनाै ।आप रै आ बात हीयै ऊतरै ?यां हीया फूटाेड़ा ठाकरीयां नै आ ठा काेनी कै नाहरसिंह कांई बला है ? अजे तक सामंती नशा में डूबाेड़ा अनीताी पर अनीती कर रिया है ।म्हूं मरजादां री जंजीरां सूं बंधीयाेडाैं हूं इण वास्तै चुप हूं अर साेसल मीडीया पर हीया री हूक निकाळूं ।
पाप राै घड़ैा एक दिन फूटसी ।गांव री छतीस काैम री जनता म्हाराै घणाैई लाड राखै ।ठेट जाेधपुर मिळवा आवै।
पैहली ताै काेई ठाकर अणूताई करता ताै आप लाेग ओहड़ाै देता वां नै कुत्तों रे पेट घालता पण आप लाेगां कांनाे लेय लीनाै ।संकाै किणराैई रयाै नहीं । जद ऐ अणहाेणी बातां समाज मैं हाेण लाग गी ।
म्है ग्यारह सोरठा पाछा निजर किया---
मरसी खोटा मान!क्रितबगारा कपट सूं।
सतधर थारी शान,नित -नित नवली नाहरा!!1
ठगां लगाया ठाट,रच हद ठाकर रूप मे।
बेवै उलटी वाट,नुगरा कल़जुग नाहरा!!2
किमकर चलसी कूड़,रे आ आगल़ राम रै।
धोबां ज्यांरै धूड़,निसचै पड़सी नाहरा!!3
जो नित गूंथै जाल़,सांप्रत दाबण साच नै।
खरर खंपदा खाल़,नगटा पड़सी नाहरा!!4
सदा बहै सतवाट,हिरदै हाटां हेतरी।
थिर ऐ थारै थाट,नेही रैसी नाहरा!!5
ठगवाड़ा कर ठाट,जकां लगाया जोर रा।
अंतस रहै उचाट,नितप्रत ज्यांरै नाहरा!!6
रजपूती उर राच,रांघड़ जो हद राखता।
सत कथ चारण साच,(वांनै)निरभै कहता नाहरा!!7
रजपूती रो रूप,दुरस जकै में देखता।
ईहग साच अनूप,(वांनै)निरभै कहता नाहरा!!8
खरी जदै मन खोट!रे देखी रजपूत रै!
चारण करणी चोट,(अब)निसचै त्यागी नाहरा!!9
बसुधा अजतक बीज,रजपूती रो राखियो!
प्रतख कवी पतीज,(ओ)नूर तिहाल़ै नाहरा!10
विटल़ा जासी बीत,अपणी रची अनीत सूं।
जगत़ब तोनै जीत,(आ)निसचै देसी नाहरा!!11
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

आपणा बडेरा केयग्या

आपणा बडेरा केयग्या

बाग बिगाङे बांदरो. सभा बिगाङे फूहङ.

लालच बिगाङे दोस्ती. करे केशर री धूङ.

हरी ऊँ जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय।

बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा कोयल दोय।।

चंदण की चिमठी भली, गाडो भलो न काठ।

चातर तो एक ई भलो, मूरख भला न साठ।।

गरज गैली बावली. जिण घर मांदा पूत.

सावन घाले नी छाछङी जेठां घाले दूध!!

पाडा बकरा बांदरा चौथी चंचल नार.

इतरा तो भूखा भला धाया करे बोबाङ

भला मिनख ने भलो सूझे कबूतर ने कुओं

अमलदार ने एक ही सूझे किण गाँव मे मुओl

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