बुधवार, 23 नवंबर 2016

डोकर् यां

आज क सन्दर्भ म .....
कोई जमानै म एक डोकरी हुया करती भाईजी ..डोकर् यां तो बियां
हर जमानै म ही  हुवै, पण बीं टैम कीं ज्यादा ही भोळी हुती ...

टाबर-टिंगर तो राम दिया कोनी हा, डोकरो भी जै सियाराम हुग्यो !
डोकरी बगीची आळै बाबोजी री भगत ही ! एक दिन बोली " गरूजी
म्हारै आगै-लारै तो कोई है कोनी,पण रिपिया सौ है ( बीं टेम चाँदी
आळा ही हुया करता ) तो बां रिपियां रो के करूं ?"

बाबोजी बोल्या " सीरो-पुड़ी खाया कर ... मौज कर !
डोकरी बाबैजी री बात मान ली और रोज लपरियो बणावै'र चेपै ...

करतां-करतां एक दिन बोली " गरूजी इब तो पचास ही रेग्या !"
बाबोजी बोल्या " जणा लापसी खाया कर !"
डोकरी लापसी रै दड़ीड़ देण लागगी !

ओज्यूं एक दिन बोली " गरूदेव, अब तो बीस ही रेग्या !"
बाबो बोल्यो " एक छानड़ी छपवालै, सामी सियाळो आवै !"
डोकरी छान छपा ली ! रिपड़ा सूंआ-पूरा हुया !
जणा बैठी-बैठी मंतर जपै क

पैली खाया सीरो-पूड़ी, पछै खुवाई लापसी
बाकी रां री छान छपाई, कर दी मोडो आप-सी ( आप जिसी )

तो भाईजी मोदीजी   काळे धन्न आळां में आ ही करतो लाग्यो

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