अमर.शहीद प्रभू सिंह नें श्रध्धांजली
रंग प्रभु रजवट्ट.
सीमा ऊपर शान सू, प्रभू रोपिया पांव।
कटियो पण हटियो नही, रोसीलो बनराव।।1।।
माछल सेक्टर मोंयने, पाछल दिया न पग्ग।
हवन कुण्ड तन होमियो, जोत जले जगमग्ग।।2।।
खिरजां धर सुद्व खूनरो, कुरबानी दी कट्ट।
रण मोंही रज रज हुओ, राठोड़ी रजवट्ट।।3।।
पग पग थल़वट परगने, ऊपज्या वीर अनेक।
प्रभू सिंह उण पंथ री, टणकी राखी टेक।।4।।
धिन धिन रे थल़वट धरा, धिन जनणी धिन तात।
जिण धर जाहर जनमियो, वीर प्रभु विखियात।।5।।
सुभट जनमिया शेरगढ, खिरजां जिणमे खास।
प्राण निछावर कर प्रभु, अमर हुओ इतिहास।।6।।
शेर परगनो शेरगढ, खिरजां नाहर खाण।
हिंद रुखाल़ण दैश हित,
प्रभू तजिया प्राण।।7।।
दी कुरबानी दैश ने, बीज रुधिर तन बोय।
लाख लाख रंग लेयने, सीमा पर ग्यो सोय।।8।।
भाटी कुल रो भांणजो, भल तापू मरु भोम।
चंद्र सुतन कर चानणो, कुल चमकांई कोम।।9।।
सिरे बापिणि सासरो, सुसरो नरपत सिंह।
ओम कंवर संग ओपती,
प्यारी धण परणीह।।10।।
कमधज ते ऊंचो कियो, भारत मां रो भाल।
अंजसे दैश समाज रा, सह अंजसे ससुराल।।11।।
जुध मोंही भिड़ियो जबर,
अरि आगल़ अगराज।
प्राण देय धर पोढियो, ओढ तिरंगौ आज।।12।।
गोगादै लड़ियो गजब, कर दुसमण पर क्रोध।
वीर छत्रवट वंश रो, असल घरांणै ओध।।13
गोगादै री गरजणा, पूगी सीमा पार।
हलचल घर दुसमण हुई,
हड़कंप हाहाकार।।14।।
प्रभू परम पद पावियो,
रखण धरम रजपूत।
दै प्रभू फिर देशमे, प्रभु सरीखा पूत।।15।।
रचयिता:मोहन सिह रतनू (आर पी एस,जयपुर)
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मंगलवार, 29 नवंबर 2016
रंग प्रभु रजवट्ट.
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