शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

दारू रै ओगण रो

गीत वेलियो-

दारू रै ओगण रो-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

सरदी लग्यां पीजो मत सैणां,
निज भर रम रा घूंट निकाम।
तवै छमक पाणी पी तातो,
ओढ सिरख करजो आराम1
दारू पियां लागसी देखो,
जोर अहम रो वहम जुखाम।
मिटसी नहीं किणी पण मारग
नाहक ही होसो बदनाम2
क्रिपण जतन धन रो हद करवा
करो भलांई हीणा काम।
पीवणिया रम क्यू पोमावै,
दारू मांय गमायर दाम।।3
पियो जिका गया परवारै
गैलां दीनो गरथ गमाय।
कमल़ धूण मसल़ बे कर नै
पछै रया ऊभा पछताय।।4
उबरै नाय अकल आ आनो,
जो झट हलक ढाल़ियां जाम।
काया गाढ लहै फिर कानो
रमियां रगां नीकल़ै राम।।5
चख साथै भम जावै चे'रो,
जाडी हुवै जीब जिण जोय।
लगती पड़ै देख मुख लाल़ां,
फिर पग छोड देय निज फोय।।6
पीवै भला मिनख धर प्रीती,
देवै सला गैलां नुं देख।
रीतां  बिगड़ नीति नै रेटै,
निमख नहीं कारज ओ नेक।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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