मंगलवार, 29 नवंबर 2016

ए टी एम रै आगळ ऊभा

ए टी एम रै आगळ ऊभा, बैंकां आगळ बैठा ।
परभाते सूं है पगतांणी, जोशी बबलू जेठा ।। 

ज्यूं ज्यूं दिनङा बीता जावै, है हालत पतलांणी ।
आटो लूण मिरच तरकारी, घर में कीकर लाणी ।। 

नोट बंद कर दीना "नरिये", भरिये सावां भेळा।
हाय हाय हर तरफां मचगी ,मचिया भारत मेळा ।। 

काळे धन आळा कुमळिज्या ,रोकङिया गिण रोवै ।
गरीबां री करे गुलामी, सारी रात न सोवै ।। 

किण रै खाते कितरा घालां, काळा हुवै सफेद ।
किणी ओर नै मती कैवजे, भाईङा ओ भेद।। 

मोटी जिण री रातां होवै, जांजरका भी मोटा ।
खारो मीठो खाणो पङसी, करम किया जो खोटा ।।

मन री बात सुणो मोदी जी, कहे कवि "गिरधारी"। जनता तो बस जनता होवै, हुवै न थारी म्हारी ।।

नया नोट बैंकां में नांखो, तुरंत करो तैयारी ।
खारा खारा जोवण लाग्या, नर हो चाहे नारी ।।  
     ✍  पुरुषोत्तम 

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