मारवाड़ी शायरी...........
अरज किया है
हमें तो वङीयों ने लूटा,राबोङियों में कहां दम था।
हमारा होगरा भी वहाँ डूबा,जहाँ झोल कम था।।।....!!!
राजस्थानी बोलियों में कविताए कहानियां मजेदार चुटकुले गीत संगीत पर्यटन तथ्य रोचक जानकारियां ज्ञानवर्धन GK etc.
मारवाड़ी शायरी...........
अरज किया है
हमें तो वङीयों ने लूटा,राबोङियों में कहां दम था।
हमारा होगरा भी वहाँ डूबा,जहाँ झोल कम था।।।....!!!
आ लो सा मारवाड़ री कविता
*थे रिश्वत देणीं बंद करो,*
*लेवणियां भूखां मर ज्यासी।*
*थे घास नांखणीं बंद करो,*
*सरकारी सांड सुधर ज्यासी।*
*खुद रा घर को करो सुधारो,*
*आखो गांव सूधर ज्यासी।*
*थे भाव देवणां बंद करो,*
*केयां रा भाव उतर ज्यासी।*
*दूजां में गलत्यां मत देखो,*
*गलत्यां खुद में ही मिल ज्यासी।*
*जे खुद चोखा बण रेवोला,*
*पाडोसी चोखा मिल ज्यासी।*
*थे ब्लेक लेवणों बंद करो,*
*दो नंबर पूंजी घट ज्यासी।*
*ईमान धरम पर चालोला,*
*तो पाप पाप रो कट ज्यासी।*
*बेटी री कदर करोला तो,*
*झांसी की राण्यां आ जासी।*
*पन्ना मीरां अर पदमणियां,*
*सीतां सावित्र्यां आ ज्यासी।*
*आजादी रो मतलब समझ्यां,*
*भारत रो रूप संवर ज्यासी।*
*सूतोडा शेर जाग ज्यासी,*
*साल्यां में भगदड मच ज्यासी।*
*भिड ज्यावो आतंकवादयां सूं,*
*आतंकवादी खुद डर ज्यासी।*
*सीमाडे सूता मत रेवो,*
*दुशमणं री छाती फट ज्यासी।*
*जे एक होयकर रेवोला,*
*तो झोड झमेला मिट ज्यासी।*
*मेहनत की रोटी खावोला,*
*तो बेईमानी मिट ज्यासी।*
*झूठा वादां में मती फसो,*
*वादां री हवा निकल ज्यासी।*
*वोटां री ताकत नें समझ्यां,*
*दादां री जमीं खिसक ज्यासी।*
*नारां रे लारे मत भागो,*
*नारां रे नाथां घल ज्यासी।*
*मत बंद और हड़ताल करो,*
*नुकसाणं देश रो बच ज्यासी।*
*जे नेम धरम पर चालोला,*
*जीणें रो ढंग बदल ज्यासी।*
*मैणंत रा मोती बोयां सुं,*
*धरती रो रंग बदल ज्यासी।*
*कविता री कदर करोला तो,*
*गीतां री राग बदल ज्यासी।*
*दोस्तों आलस छोड ऊठो,*
*भारत रा भाग बदल ज्यासी।*
लो राजस्थान
मारवाङी कविता-
दूध दही ने चाय चाटगी, फूट चाटगी भायाँ ने ।।
इंटरनेट डाक ने चरगी, भैंस्या चरगी गायाँ ने ।।
टेलीफोन मोबाईल चरग्या, नरसां चरगी दायाँ ने ।।
देखो मर्दों फैसन फटको, चरग्यो लोग लुगायाँ ने ।।
साड़ी ने सल्वारां खायगी, धोतीने पतलून खायगी ।।
धर्मशाल ने होटल खायगी, नायाँ ने सैलून खायगी ।।
ऑफिस ने कम्प्यूटर खाग्या, 'मेगी' चावल चून खायगी ॥
राग रागनी फिल्मा खागी, 'सीडी' खागी गाणा ने ॥
टेलीविज़न सबने खाग्यो, गाणे ओर बजाणे ने ॥
गोबर खाद यूरिया खागी, गैस खायगी छाणा ने ॥
पुरसगारा ने बेटर खाग्या, 'चटपटो खाग्यो खाणे ने ॥
चिलम तमाखू ने हुक्को खाग्यो, जरदो खाग्यो बीड़ी ने ॥
बच्या खुच्यां ने पुड़िया खाग्यी, अमल-डोडा खाग्या मुखिया ने ॥
गोरमिंट चोआनी खागी, हाथी खाग्यो कीड़ी ने ॥
राजनीती घर घर ने खागी, नेता चरगया रूपया ने ॥
हिंदी ने अंग्रेजी खागी, भरग्या भ्रष्ट ठिकाणो में ॥
नदी नीर ने कचरो खाग्यो, रेत गई रेठाणे में ॥
धरती ने धिंगान्या खाग्या, पुलिस खायरी थाणे ने ॥
दिल्ली में झाड़ू सी फिरगी, सार नहीं समझाणे में ॥
मंहगाई सगळां ने खागी, देख्या सुण्या नेताओ ने ॥
अहंकार अपणायत खागी, बेटा खाग्या मावां ने ॥
भावुक बन कविताई खागी, 'भावुक' थारा भावां ने ॥
नाहर जणै न कूकरी,शुकरी जणै न शेर।
करीना पीथळ न जणै,तैमूर जणसी फैर।
तैमूर जणसी फैर,अव्वल जणै ओसामा।
नादिर औरंगजेब, अवर'ज हुसैन सदामा।
खिलजी बाबर खास,अकबर जणै जग जाहर।
जिन्नो जणै जरूर,"उदल" आ जणै न नाहर।
राजस्थानी ग़ज़ल।
बिजली तांई पासा चटकूं।
खुद नै म्है सावळ ही झटकूं।
मन में रैवे आवण वाळा।
तद खुद री सूरत ही मटकूं।
वारीं यादां में खो जाऊँ।
बादल बण आकासां भटकूं।
जद नी आवै साँझ तणा व्है।
म्है चौखट पासै ही अटकूँ।
दीपा री आसावां पूरै।
यूं आसै पासै ही लटकूं।
दीपा परिहार
लूणोजी रोहड़िया री वेलि-गिरधर दान रतनू दासोड़ी
बीठूजी नै खींवसी सांखला 12 गांव दिया।बीठूजी आपरै नाम सूं बीठनोक बसायो।कालांतर में इणी गांव म़े सिंध रै राठ मुसलमानां सूं सीमाड़ै अर गोधन री रुखाल़ी करतां बीठूजी वीरगति पाई।जिणरो साखीधर उठै एक स्तंभ आज ई मौजूद है।बीठूजी री वंश परंपरा में धरमोजी होया अर धरमोजी रै मेहोजी ।मेहोजी रै सांगटजी/सांगड़जी होया।बीठनोक भाईबंटै में सांगड़जी नै मिलियो जिणरै बदल़ै में तत्कालीन जांगलू नरेश इणां नै सींथल़ इनायत कियो।
सांगड़जी सींथल आयग्या।सांगड़जी रै च्यार बेटा हा-मूल़राजजी,सारंगजी,पीथोजी,अर लूणोजी।एकबार भयंकर काल़ पड़ियो तो च्यारूं भाई आपरी मवेशी लेयर माल़वै गया परा।लारै सूं सूनो गांम देख ऊदावतां सींथल माथै कब्जो कर लियो।मेह होयो।हरियाल़ी होई तो ऐ पाछा आपरै गांम आया।आगे देखै तो ऊदावत धणी बणिया बैठा है!उणां विध विध सूं समझाया पण उणांरै कान जूं ई नीं रेंगी।दूजै भाईयां तो कोई घणो जोर नीं कियो पण लूणैजी सूं आ बात सहन नीं होई।उणां ऊदावतां माथै रीस अणाय आपरै गल़ै इक्कीस बार कटारी खाधी पण घाव एकर ई नीं फाटियो।देखणियां नै अचूंभो होयो अर उणां मानियो कै लूणोजी कटारी नीं खायर खाली राजपूतां नै डरावण रो सांग कर रैया है।घाव नीं फाटण सूं लूणैजी नै ई आपरो अपमान लागियो।बै सीधा देशनोक करनीजी कन्नै आया अर पूरी बात बताय स्वाभिमान कायम राखण रो निवेदन कियो।करनीजी कैयो कै "आज थारै पाखती रै गांम वासी में सांखलां रै अठै ब्याव है सो तूं उठै जा परो।उठै तन्नै बकरी रै दूध री खीर पुरसैला ।उण खीर में बकरी रो बाल़ आवैला बो थारै कंठां में आवतां ई पूरा घाव फाट जावैला।पछै तैं में आपै ई देवत्व प्रगट होवैलो।"
लूणोजी वासी आया।उठै सांखलां घणा कोड किया।जीमण रो बगत होयो जणै जानियां अर मांढियां लूणैजी नै भोजन अरोगण रो कैयो पण लूणैजी मना कर दियो।राजपूतां कैयो" आ तो होय नीं सकै कै म्हे भोजन करां अर म्हांरै घरै चारण भूखो रैवै!धूड़ है म्हांरै ऐड़ै भोजन में।"
लूणैजी कैयो "थांरै घरै शुभ काम है अर म्हारा भोजन करतां ई प्राण नीं रैवै सो थांरै घरै विघन नीं करूं।"सांखलां कैयो कै "आप म्हांरै माथै रा मोड़।आप भूखा रैवो अर म्हे जीमां!तो म्हांनै लख लांणत है।!हिंदू मरै जठै ई हद है!जे ऐड़ी होयगी तो आपरी जथा जुगत करांला!!"लूणैजी देखियो सांखला मानै नी जणै उणां कैयो कै "थे ओ वचन देवो कै अठै म्हारा प्राणांत हो जावै तो म्हनै अठै दाग नीं देयर म्हारै गांम ले जाय ऊदावतां री तिबारी रै दरवाजै माथै दाग देवोला!"
सांखलां कैयो "वचन है !!जै आपरो शरीर नीं रैवैला तो म्हे दाग ऊदावतां री तिबारी रै दरवाजै देवांला।"
लूणैजी ज्यूं ई भोजन कियो।ज्यूं ई इक्कीस घाव फाटग्या।जिगन में विघन पड़ियो पण उण बगत रा मिनख बाप अर बोल नै एक मानता।उणां लूणैजी री अरथी बणाय खांधां उखणी अर सींथल़ आया।लूणैजी नै दिए वचनां मुजब ऊदावतां री तिबारी में अरथी नै उतारी।ऊदावतां ई उजर किय़ो पण सांखलां नै मरण मतै देख हियो हेठो कियो।
उणी दिन कई ऊदावत डरता दिन रा गाडां गोल़ नाठग्या।एक ऊदावत आ कैयर नीं गयो कै लूणो जीवतो ई कीं नीं कर सक्यो तो मरियोड़ो कांई करेला!रात रा उणरो मांचो ऊ़चो उठियो।बो डाडियो कै थारी कवली गाय हूं !मार मती।अबार ई सींथल़ छोड दूंला!लूणैजी उणनै नै छोड दियो बो गयो परो।ओ जिकै गांम में बस्यो ,सींथल़ रा वासी उणनै निनामियो गांम कैवै।नाम नीं लेवै।जिकै ऊदावत दिन रा डरता नाठा बै सोवै गांम में बसिया।
म्हारी घणै दिनां.सूं इच्छा ही कै इण महान जूंझार माथै कीं लिख्यो जावै।आज इच्छा पूरी होई अर पूरै कथानक माथै 31दूहालां रो एक वेलियो गीत लिखियो जिको आपरी पारखी निजरां भेंट कर रैयो हूं---
क्रमशः
गिरधर दान रतनू दासोड़ी
शीश बोरलो..नासा मे नथड़ी..सौगड़ सोनो सेर कठै,
कठै पौमचो मरवण रौ..बोहतर कळियां घेर कठै...!!
कठै पदमणी पूंगळ री ..ढोलो जैसलमैर कठै,
कठै चून्दड़ी जयपुर री ..साफौ सांगानेर कठै.. !!
गिणता गिणता रेखा घिसगी.. पीव मिलन की रीस कठै,
ओठिड़ा सू ठगियौड़़ी ..बी पणिहारी की टीस कठै..!!
विरहण रातां तारा गिणती.. सावण आवण कौल कठै,
सपने में भी साजन दीसे ...सास बहू का बोल कठै..!!
छैल भवंरजी.. ढौला मारू ..कुरजा़ मूमल गीत कठै,
रूड़ा राजस्थान बता.. वा थारी रूड़ी रीत कठै..!!
हरी चून्दड़ी तारा जड़िया ..मरूधर धर की छटा कठै,
धौरां धरती रूप सौवणौ.. काळी कळायण घटा कठै.!!
राखी पूनम रेशम धागे.. भाई बहन को हेत कठै,
मौठ बाज़रा सू लदियौड़ा.. आसौजा का खैत कठै..!!
आधी रात तक होती हथाई ..माघ पौष का शीत कठै,
सुख दुःख में सब साथ रैवता.. बा मिनखा की प्रीत कठै..!!
जन्मया पैला होती सगाई ..बा वचना की परतीत कठै,
गाँव गौरवे गाया बैठी ..दूध दही नौनीत कठै..!!
दादा को करजौ पोतो झैले ..बा मिनखा की नीत कठै,
रूड़ा राजस्थान बता ..वा थारी रूड़ी रीत कठै..!!
काळ पड़िया कौठार खोलता ..बे दानी साहूकार कठै,
सड़का ऊपर लाडू गुड़ता ..गैण्डा की बै हुणकार कठै..!!
पतियां सागै सुरग जावती ..बै सतवन्ती नार कठै,
लखी बणजारो.. टांडौ ढाळै ..बाळद को वैपार कठै..!!
धरा धरम पर आँच आवतां ..मर मिटण री हौड़ कठै,
फैरा सू अधबिच उठिया..बे पाबू राठौड़ कठै..!!
गळियां में गिरधर ने गावै ..बीं मीरा का गीत कठै ,
रूड़ा राजस्थान बता ..वा थारी रूड़ी रीत कठै..!!
बितौड़ा वैभव याद दिरावै.. रणथम्बौर चितौड़ जठै ,
राणा कुम्भा रौ विजय स्तम्भ.. बलि राणा को मौड़ जठै..!!
हल्दीघाटी में घूमर घालै.. चैतक चढ्यौ राण जठै ,
छत्र छँवर छन्गीर झपटियौ.. बौ झालौ मकवाण कठै..!!
राणी पदमणी के सागै ही ..कर सोला सिणगार जठै,
सजधज सतीया सुरग जावती.. मन्त्रा मरण त्यौहार कठै..!!
जयमल पत्ता ..गौरा बादल.. रै खड़का री तान कठै,
बिन माथा धड़ लड़ता रैती.. बा रजपूती शान कठै..!!
तैज केसरिया पिया कसमा ..साका सुरगा प्रीत कठै,
रूड़ा राजस्थान बता ..वा थारी रूड़ी रीत कठै..!!
निरमोही चित्तौड़ बतावै ..तीनों सागा साज कठै,
बौहतर बन्द किवाँड़ बतावै...ढाई साका आज कठै..!!
चित्तौड़ दुर्ग को पेलौ पैहरी ..रावत बागौ बता कठै ,
राजकँवर को बानौ पैरया ..पन्नाधाय को गीगो कठै..!!
बरछी भाला ढाल कटारी.. तोप तमाशा छैल कठै,
ऊंटा लै गढ़ में बड़ता ..चण्डा शक्ता का खैल कठै.!!
जैता गौपा सुजा चूण्डा .?चन्द्रसेन सा वीर कठै,
हड़बू पाबू रामदेव सा ..कळजुग में बै पीर कठै..!!
मेवाड़ में चारभुजा सांवरो सेठ ..श्रीनाथ सो वैभव कठे ,
कठै गयौ बौ दुरगौ बाबौ.. श्याम धरम सू प्रीत कठै..!!
हाथी रौ माथौ छाती झालै.. बै शक्तावत आज कठै,
दौ दौ मौतों मरबा वाळौ.. बल्लू चम्पावत आज कठै..!!
खिलजी ने सबक सिखावण वाळौ ..सोनगिरौ विरमदैव कठै,
हाथी का झटका करवा वाळौ ..कल्लो राई मलौत कठै..!!
अमर कठै ..हमीर कठै ..पृथ्वीराज चौहान कठै,
समदर खाण्डौ धोवण वाळौ.. बौ मर्दानौ मान कठै..!!
मौड़ बन्धियोड़ौ सुरजन जूंझै ..जग जूंझण जूंझार कठै ,
ऊदिया राणा सू हौड़ करणियौ .?बौ टौडर दातार कठै..!!
जयपुर शहर बसावण वाळा.. जयसिंह जी सी रणनीत कठै,
अकबर ने ललकारण वाला ..अमर सीग राठौड कठे,
रूड़ा राजस्थान बता ..वा थारी रूड़ी रीत कठै.. !!
रूडा़ राजस्थान बता ..वा थारी रूड़ी रीत कठै..!!
ऐ कदई बैठा आच्छा कोनी लागे
1-कमावण वाळो आदमी।
2-घरे आयड़ो माँगतो।
3-धँधे पर हथाईदार।
4-गाडे बेंवतो बळद।
5-चालतो व्यापार।
6-राखोड़ो नोकर।
7-घणा दिनाँ तक पावणो।
8-नाक माथे माखी।
9-कामआळी बिन्नणी।
10-यात्रा में अण सेंधो मुसाफिर।
11-बिंडी ऊपर कबुतर।
12-चोकी ऊपर कूतियो।
13-घणो जीमतो मीनख।
14-साव गप हाँकणीयो।
15-खुद गो बिरोधी।
एक भायो आपकी घरआळी नै दिनुग्यां पांच बजे बैंक री लेण म लगाई ! ..
*बाँ दोन्या की आपबीती*
लुगाई:- तपतां -तपतां दो बजे जाता बैंक रै दरूजै म बड़बा को नमर आयो !
तीन बजे जातां कोई कैसियर रै सामी पुगी !
मनै ऊबो राख'र म्हाठो चा पिबा चल्यो गयो !
आधै घण्टै बाद आयो और कम्पुटर पर बैठ'र
बोल्यो " सॉरी मैम पैसे नहीं है ! "
थांकी सौगनज्यो मुण्डो मिरच्यां खायेड़ो सो हुग्यो !
ऐडी स्यूं ले'र चोटी तांई भचीड़ उपड़बा लागग्या सारै दिन
रोई थारै जीव नै और बैरी खाली हाथ टरका दी
मोट्यार:- रीसां बळतो बोल्यो थारैऊं क्यूँ ही कोनी करीज्यो ??? म्हारै पर तो
15 बेलण तोड़ दिया .. बैंक आळै नै कम स्यूं कम गाळ तो काडती
दो च्यार ....
बा भोत ही धिरजाई स्यूं बोली " बेलण तो आज एक ओज्यूं टूटसी !
पिसा बैंक म नहीं .....थारै खातै म कोनी हा मरज्याणा
औऱ भाईजी आज सौळवूं बेलण भी टूटग्यो
राजस्थान के साहित्यकारों की पुरातन परम्परा रही हैकि उन्होंने सत्य कथन में कभी सत्ता के डर या लोभ लालच की परवाह नही की है। सच्चा कवि नोट बंदी के बाद आमजन को हुई परेशानी और मानसिक पीड़ा को महसूस किए बिना कैसे रह सकता है।
मारवाड़ के प्रख्यात साहित्यकार आदरणीय नवल जी जोशी साहब ने जन मन की संवेदनाओ को बिना किसी भय लोभ पक्षपात के अपनी कलम से उकेरा है।
# ग़ज़ल #
- नवल जोशी
धणी रा घोड़ है जे अड़बड़ै तो अड़बड़ै ब़ीरा
झपाटै पूँछ रै कोई मरै तो छौ मरै ब़ीरा
उजाड़ै सांडिया साबत सजाड़ी साख करसां री
मजूरी मार बरसां री हुकूमत हद छळै ब़ीरा
हुकम नित हालतां बदळै नगाड़ा कूटता हाकम
गतागम में पज्यौ जनगण कठी कर नीसरै ब़ीरा
हता हक रा रुपीड़ा हाथ में सै बैंक भख लीना
भिखारी ज्यूं पसार्यां हाथ लैंणां लड़थड़ै ब़ीरा
लगोलग लूटता जावै खजांना चोर धाड़ैती
अठी खाली पड़्या ठीकर अणूता खड़बड़ै ब़ीरा
सजाड़ी सांवठी धाड़ैतियां री यां जमातां सूं
धणी री छप्पनी छाती अबै क्यूं थरथरै ब़ीरा
अवल जनराज पाखंडा सरासर कूड़ हथकंडा
मिनख रै रोज गळफंदा पड़ै तो छौ पड़ै ब़ीरा
- नवल जोशी