मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

बिजली तांई  पासा  चटकूं।

राजस्थानी ग़ज़ल।

बिजली तांई  पासा  चटकूं।
खुद नै म्है सावळ ही झटकूं।

मन  में  रैवे  आवण  वाळा।
तद खुद री सूरत ही मटकूं।

वारीं   यादां में  खो  जाऊँ।
बादल बण आकासां भटकूं।

जद नी आवै साँझ तणा व्है।
म्है चौखट पासै  ही  अटकूँ।

दीपा    री     आसावां  पूरै।
यूं  आसै  पासै  ही   लटकूं।

दीपा परिहार

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