परम श्रद्धेय सौभाग्य सिंहजी शेखावत ,राजस्थानी साहित्य रा थंभ हा।उणां जिकी डिंगल़ अर विशेषकर चारण साहित्य री जिकी सेवा करी,बा अनुपम अर अद्वितीय ही।म्हारै माथै उणांरी घणी मेहरबानी ही।म्हारी पोथी 'मरूधर री मठोठ' में आप आशीष सरूप अंजस रा आखर लिखिया।बीकानेर विराजता जितै ,म्हनै फोन करर बंतल़ सारू बुलावता।लारलै वरस पोतै नै परणावण पधारिया जणै व्यक्तिगत फोन करर मिलण रो आदेश दियो पण दुजोग सूं मिल नीं पायो।अणुंतो स्नेह हो।
म्हारी उण पुण्यात्मा अर दिव्यात्मा नैं सादर श्रद्धांजलि।
2003 में म्हारो निबंध संग्रह 'मरूधर री मठोठ' छपी।आदरणीय नाहटाजी री भूमिका अर शेखावत साहब अंजस रा आखर लिखिया।म्है जेड़ै अकिंचन माथै एक महामनीषी नैं अंजस आवणो,म्हारै सारु गीरबै री बात ही।
"राजस्थान अर राजस्थानी भाषा रो मध्यकाल़ रो घणकरो साहित्य सगती अर भगती रो साहित्य है।अठै एक कांनी वीर पूजा रै मान-मोलां री आरतियां उतारीजी है ,बठै दूजै कांनी सुरसती रै साधकां री पालकियां कंधां माथै ऊठायनै सत्कार अर सम्मान कर्यो गयो है।शास्त्र-पूजा अर शब्द-पूजा साथै -साथै होवती रैयी है ।इणी परंपरा रा ओपता आखरां रा आखा (अक्षत) 'मरूधर री मठोठ' राजस्थानी साहित्य रा जोध -जवान साहित्यकार श्री गिरधर दान रतनू रै नुवै नकोर सात साहित्यिक अर सांस्कृतिक निबंधां रै संकलन में है।श्री गिरधर दान रतनू अध्ययनशील अर अनुसंधान रुचि रा साहित्यकार है।इणां रो गद्य अर पद्य लेखन माथै पूरसल अधिकार है।भाषा पर पूरी पकड़ है।बानगी रूप नीचै री ओल़ियां भाषा री पोल़ियां री किंवाड़ इण भांत खोलै-'मरस्या तो मोटै मतै,
सह जग सपूत।
जीस्यां तो देस्यां जरू,
जुलमी रै सिर जूत।।
ओ ईज चारण रो मूल़ मंत्र रैयो है,जद ईज तो चारण नीची नांखनै कदैई नीं जीया।स्वाभिमान कदीम सूं कायम राख्यो।जब लग सांस सरीर में ,तब लग ऊंची तांण।जका ऊंची ताणै ,उणांनैं जगत जाणै।वीर ईज वीरता री कूंत करसी।नीतर ईलोजी वाल़ा घोड़ा है।'म्हनै घणो भरोसो है कै श्री गिरधर दान रतनू राजस्थानी साहित्य सिरजण रै ऊंचै पगोथियां चढनै सुरसती रै कल़स रूपी सिखर नैं सौभायमान करसी अर राजस्थानी साहित्यकार समाज 'मरूधर री मठोठ' रो घणो लाड स्वागत करसी।'(काफी लंबा है,उसमें केवल आंशिक दिया।)
उण बगत म्है आपनै कीं दूहा अर एक वेलियो गीत निजर कियो सो आपनैं ई मेल रैयो हूं।-
दूहा
गुण आगर गाहक गुणी,
खरो रतन खत्रवाट।
शेखावत सौभागसी,
बहै वडेरां वाट।।
असतपणै री आज दिन,
लत सारां नैं लाग।
बोदी नासत बगत में,
सत पाल़ै सौभाग।।
मन री मजबूती मुदै,
धिन रजपूती धार।
शेखावत सौभाग रो
सिरै सपूतीचार।।
पाल़ै आदू प्रीत नैं
रति ना छंडै रीत।
सधरपणै सौभागसी,
जग सारै जस जीत।।
बेवै पुरखां वाटड़ी,
आदू मारग ऐह।
शेखाहर सौभाग नैं,
नित पातां सूं नेह।।
पह समोवड़ पेखणो,
बडो लघु इक बात।
शेखाहर सौभागसी
मुद जाहर महि माथ।।
गीत वेलियो
शेखाधर भगतपुरै शेखावत,
सुत काल़ू राजै सौभाग।
भड़ मग आद सुधारै भाल़ो
आयां पात बधारै आघ।।
पाल़ै प्रीत सुपातां पूरी,
रजवट तणी रुखाल़ै रीत।
अरियां तणो गरब उथवाल़ै
नित उजाल़ै आरज नीत।।
कारज सार बियां काल़ूवत,
जोगापण कीरत नित जीप।।
मीठो रहै सबां मनमेल़ू,
दीठो जात दीपतो दीप।।
इकरंग रहै बात इकरंगी,
बोरंग सथ बहै नीं वाट।
साचै तणो रहै हित संगी,
हेत तणी मांडै थिर हाट।।
विदगां अनै छत्रियां व्हालो,
सचवाल़ो टोल़ै सम सीर।
सुत काल़ू अज तक सतवाल़ो,
विरदाल़ो शेखाहर वीर।।
साहित तणी सिरजणा सधरी,
छत्री भाव तणा दे छौल़।
समवड़ कलम तुली समसेरां,
राची आ साची रणरोल़।।
चहुंवल़ आज शेखाहर चावो,
दाटक नर हद ठावो दाख।
संपादन सिरै साहित रो शोधक,
संसारै पूगी आ साख।।
बोदी बगत मानवी विटल़ा,
पड़गी प्रीत पुराणी पेख।
रजपूती तणो रूंखड़ो सींचै,
इल़ सौभाग धरण में एक।।
म्हारी विनम्र अर सादर श्रद्धांजलि।
नमन।
गिरधर दान रतनू दासोड़ी
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