गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

तूं क्यूं कूकै सांखला!!

तूं क्यूं कूकै सांखला!!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी
"बारै वरसां बापरो,लहै वैर लंकाल़!!"
महाकवि सूरजमलजी मीसण री आ ओल़ी पढियां आजरै मिनखां में संशय उठै कै कांई साचाणी बारह वरसां रा टाबरिया आपरै बाप-दादा रा वैर लेय लेवता!आं रो सोचणो ई साचो है क्यूं आज इणां रा जायोड़ा तो बारह वरसां तक कांई बीस वरसां तांई रो ई रोय र रोटी मांगे!!सिंघां सूं झपटां करणी तो मसकरी री बात है बै तो मिनड़ी रै चिलकतै डोल़ां सूं धैलीज जावै !!जणै आपां ई मान सकां कै आजरो मिनख आ बात कीकर मानै?पैला तो हर मिनख आपरी लुगाई नै कैया करतो हो कै 'जे आपांरै जायोड़ै में बारह वरसां तक बुद्धि,सोल़ह वरसां तक शक्ति अर बीस वरसां तक कुल़ गौरव री भावना नीं आवै तो पछै उणसूं आगे कोई उम्मीद राखणी विरथा है-
बारै बुद्ध न बावड़ी,
सोल़ै कल़ा न होय।
बीस वडपण ना वल़ै,
(पछै)गैली वाट न जोय!!
आपांरी इण धरा माथै एक नीं अलेखूं ऐड़ा दाखला मिलै कै बारह वरसां रै वीरां आपरो वैर उधारो नीं रैवण दियो।ऐड़ो ई एक किस्सो है ईदोखा(नागौर) रै मानसिंह मेड़तिया रो।ईदोखा रै ई पाखती ठिकाणो हो मनाणा।मनाणा रा ठाकुर अमरसिंहजी वीर ,उदार अर टणका मिनख हा।अमरपुरा (खिड़ियां रो )इणां ई खिड़ियां नै इनायत कियो-
अमरपुर दियो जस कज अमर अमरसिंघ अखमाल रे।।
इणी अमरसिंहजी रो बेटो धीरतसिंह मेड़त़िया, महावीर अर उदार मिनख होयो।जिणरै विषय में गिरधर दास खिड़िया रो ओ सोरठो घणो चावो है-
धरती धीरतियाह,
तो ऊभां करती अंजस।
मरतां मेड़तियाह,
आज विरंगी अमरवत!!
जैडोक आपां जाणा कै अमरसिंहजी वीर पुरुष होया।उणां री अदावदी ईदोखा रै मेड़तिया जगतसिंह सूं किणी बात नै लेयर होयगी।उणां जगतसिंह नै मार दियो।जगतसिंह रै एक भाई हो मानसिंह,जिणरी उम्र उण बगत फगत बारह वरस।उणनै आ बात सहन नीं होई।उणरै ईदोखा रो एक समवय बीठुवां रो टाबर मित्र।मानसिंह आपरै अंतस क्रोध री बात आपरै इण चारण मित्र नै बताई,पण बो ई टाबर !करै तो कांई करै?उण सुण राख्यो हो कै मा गीगां री शरण पड़ियां बा मदत अवस करेली!!दोनूं मा गीगां रै मढ भूखा तीसा जायर बैठग्या।दो दिन इणी हालत में बैठा रैया। दूजी रात रा उणां नै एक सुपनो आयो जिणमें एक डोकरी कैय रैयी है कै "कालै मंधारै पड़तां ई मनाणै कोट जाया परा अर पैलो आदमी थांनै बतल़ावै उण माथै तरवार रो वार कर दिया ,बो ई अमरसिंह होवैला!!"दोनां रै घूघरा बंधग्या।बिनां किणी नै बतायां बै सीधा मनाणा आयग्या।अंधारो पड़़ण नै उडीकण लागा।ज्यूं ई मंधारो होयो ,दोनूं गढ में बड़िया ।इनै-बिनै फिरण लागा ,उणां देखियो एक जागा चरू चढियोड़ो है अर कनै ई बाजोटां माथै महफिल जम्योड़ी है।इतरा मिनख एक जागा देखर एक र दोनूं ई डरिया पण मा गीगां रा वचन याद आवतां ई हूंस बधी अर आगे बधिया ।अठीनै सूं ठाकुर साहब खुद रावल़ै मांय सूं बैठक में पधार रैया हा,उणां री निजर इण दो अजाण टाबरियां नै बैठक कानी छानै छानै जावता माथै पड़ी।उणां इणांनै बोकारिया ,कुण है रे?मानसिंह तो थोड़ी करी न घणी अजेज आगे बधियो अर बोलियो 'थारो काल़ हूं!मानो मेड़तियो!जगतसिंह मांगूं संभ!'ठाकुर संभल़ता उणसूं पैला ई मानसिंह तरवार बाही ।अमरसिंहजी रो प्राणांत होयग्यो।हाको सुणर एक सांखलो राजपूत बारै आयो,ओ सांखलो अठै कोट में ई रैवतो।बो जोर सूं कूकियो कै 'आओ रे !कोई ठाकरां रै घाव करग्यो!!'सांखलै नै रोवतै नै देख र उण बीठू चारण कैयो-
ज्यांरा जगता मारिया,
ज्यां मार्या अमरेस।
तूं क्यूं रोवै सांखला,
वसै विराणै देस!!
गिरधर दान रतनू दासोड़ी

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