राजस्थान के साहित्यकारों की पुरातन परम्परा रही हैकि उन्होंने सत्य कथन में कभी सत्ता के डर या लोभ लालच की परवाह नही की है। सच्चा कवि नोट बंदी के बाद आमजन को हुई परेशानी और मानसिक पीड़ा को महसूस किए बिना कैसे रह सकता है।
मारवाड़ के प्रख्यात साहित्यकार आदरणीय नवल जी जोशी साहब ने जन मन की संवेदनाओ को बिना किसी भय लोभ पक्षपात के अपनी कलम से उकेरा है।
# ग़ज़ल #
- नवल जोशी
धणी रा घोड़ है जे अड़बड़ै तो अड़बड़ै ब़ीरा
झपाटै पूँछ रै कोई मरै तो छौ मरै ब़ीरा
उजाड़ै सांडिया साबत सजाड़ी साख करसां री
मजूरी मार बरसां री हुकूमत हद छळै ब़ीरा
हुकम नित हालतां बदळै नगाड़ा कूटता हाकम
गतागम में पज्यौ जनगण कठी कर नीसरै ब़ीरा
हता हक रा रुपीड़ा हाथ में सै बैंक भख लीना
भिखारी ज्यूं पसार्यां हाथ लैंणां लड़थड़ै ब़ीरा
लगोलग लूटता जावै खजांना चोर धाड़ैती
अठी खाली पड़्या ठीकर अणूता खड़बड़ै ब़ीरा
सजाड़ी सांवठी धाड़ैतियां री यां जमातां सूं
धणी री छप्पनी छाती अबै क्यूं थरथरै ब़ीरा
अवल जनराज पाखंडा सरासर कूड़ हथकंडा
मिनख रै रोज गळफंदा पड़ै तो छौ पड़ै ब़ीरा
- नवल जोशी
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