शनिवार, 14 जनवरी 2017

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाए

शेखावत वंश परिचय एवम् शेखावत वंश की शाखाएँ
शेखावत
शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा महरौली ं गुडा करैरी  जुनसिया  सानदेसर खंडेला,सीकर,  खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है ।

शेखावत वंश परिचय

वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है | भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये |रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया |कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली | महात्मा ने राजा को वरदान दिया था कि जब तक तेरे वंशज अपने नाम के आगे पाल शब्द लगाते रहेंगे यहाँ से उनका राज्य नष्ट नहीं होगा |सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रशिध दुर्ग का निर्माण कराया | नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार) हुवा जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रशिध नायक है |उसका विवाह पुन्गल कि राजकुमारी मार्वणी के साथ हुवा था, ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परमप्रतापी महाराजाधिराज बज्र्दामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया | बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी |मंगल राज दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए,किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला |सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद सोढ्देव का पुत्र दुल्हेराय हुवा | जिनका विवाह dhundhad के मौरां के चौहान राजा की पुत्री से हुवा था |दौसा पर अधिकार करने के बाद दुल्हेराय ने मांची, bhandarej खोह और झोट्वाडा पर विजय पाकर सर्वप्रथम इस प्रदेश में कछवाह राज्य की नीवं डाली |मांची में इन्होने अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनवाया | वि.सं. 1093 में दुल्हेराय का देहांत हुवा | दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव पिता के उतराधिकारी हुए जिन्होंने आमेर के सुसावत जाति के मीणों का पराभव कर आमेर जीत लिया और अपनी राजधानी मांची से आमेर ले आये | काकिलदेव के बाद हणुदेव व जान्हड़देव आमेर के राजा बने जान्हड़देव के पुत्र पजवनराय हुए जो महँ योधा व सम्राट प्रथ्वीराज के सम्बन्धी व सेनापति थे |संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने,राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओं का निकास हुवा |उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे |बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखा का जनम वि.सं. 1490 में हुवा |वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने | राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया | राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये जिनमे अनेकानेक वीर योधा,कला प्रेमी व स्वतंत्रता सेनानी हुए |शेखावत वंश जहाँ राजा रायसल जी,राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी,सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की वहीं बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह, जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजा दिया था |

शेखावत वंश की शाखाएँ

1. शेखावत वंश की शाखाएँ
1.1 टकनॆत शॆखावत
1.2 रतनावत शेखावत
1.3 मिलकपुरिया शेखावत
1.4 खेज्डोलिया शेखावत
1.5 सातलपोता शेखावत
1.6 रायमलोत शेखावत
1.7 तेजसी के शेखावत
1.8 सहसमल्जी का शेखावत
1.9 जगमाल जी का शेखावत
1.10 सुजावत शेखावत
1.11 लुनावत शेखावत
1.12 उग्रसेन जी का शेखावत
1.13 रायसलोत शेखावत
1.13.1 लाड्खानी
1.13.2 रावजी का शेखावत
1.13.3 ताजखानी शेखावत
1.13.4 परसरामजी का शेखावत
1.13.5 हरिरामजी का शेखावत
1.13.6 गिरधर जी का शेखावत
1.13.7 भोजराज जी का शेखावत
1.14 गोपाल जी का शेखावत
1.15 भेरू जी का शेखावत
1.16 चांदापोता शेखावत

शेखा जी पुत्रो व वंशजो के कई शाखाओं का प्रदुर्भाव हुआ जो निम्न है |

रतनावत शेखावत
महाराव शेखाजी के दुसरे पुत्र रतना जी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाये इनका स्वामित्व बैराठ के पास प्रागपुर व पावठा पर था !हरियाणा के सतनाली के पास का इलाका रतनावातों का चालीसा कहा जाता है

मिलकपुरिया शेखावत
शेखा जी के पुत्र आभाजी,पुरन्जी,अचलजी के वंशज ग्राम मिलकपुर में रहने के कारण मिलकपुरिया शेखावत कहलाये इनके गावं बाढा की ढाणी, पलथाना ,सिश्याँ,देव गावं,दोरादास,कोलिडा,नारी,व श्री गंगानगर के पास मेघसर है !

खेज्डोलिया शेखावत
शेखा जी के पुत्र रिदमल जी वंशज खेजडोली गावं में बसने के कारण खेज्डोलिया शेखावत कहलाये !आलसर,भोजासर छोटा,भूमा छोटा,बेरी,पबाना,किरडोली,बिरमी,रोलसाहब्सर,गोविन्दपुरा,रोरू बड़ी,जोख,धोद,रोयल आदि इनके गावं है !
बाघावत शेखावत - शेखाजी के पुत्र भारमल जी के बड़े पुत्र बाघा जी वंशज बाघावत शेखावत कहलाते है ! इनके गावं जय पहाड़ी,ढाकास,Sahanusar,गरडवा,बिजोली,राजपर,प्रिथिसर,खंडवा,रोल आदि है !

सातलपोता शेखावत
शेखाजी के पुत्र कुम्भाजी के वंशज सातलपोता शेखावत कहलाते है

रायमलोत शेखावत
शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमल जी के वंशज रायमलोत शेखावत कहलाते है ।

तेजसी के शेखावत
रायमल जी पुत्र तेज सिंह के वंशज तेजसी के शेखावत कहलाते है ये अलवर जिले के नारायणपुर,गाड़ी मामुर और बान्सुर के परगने में के और गावौं में आबाद है !

सहसमल्जी का शेखावत
रायमल जी के पुत्र सहसमल जी के वंशज सहसमल जी का शेखावत कहलाते है !इनकी जागीर में सांईवाड़ थी !

जगमाल जी का शेखावत
जगमाल जी रायमलोत के वंशज जगमालजी का शेखावत कहलाते है !इनकी १२ गावों की जागीर हमीरपुर थी जहाँ ये आबाद है

सुजावत शेखावत
सूजा रायमलोत के पुत्र सुजावत शेखावत कहलाये !सुजाजी रायमल जी के ज्यैष्ठ पुत्र थे जो अमरसर के राजा बने !

लुनावत शेखावत
लुन्करण जी सुजावत के वंशज लुन्करण जी का शेखावत कहलाते है इन्हें लुनावत शेखावत भी कहते है,इनकी भी कई शाखाएं है !

उग्रसेन जी का शेखावत
अचल्दास का शेखावत,सावलदास जी का शेखावत,मनोहर दासोत शेखावत आदि !

रायसलोत शेखावत
लाम्याँ की छोटीसी जागीर से खंडेला व रेवासा का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने वाले राजा रायसल दरबारी के वंशज रायसलोत शेखावत कहलाये !राजा रायसल के १२ पुत्रों में से सात प्रशाखाओं का विकास हुवा जो इस प्रकार है -

लाड्खानी
राजा रायसल जी के जेस्ठ पुत्र लाल सिंह जी के वंशज लाड्खानी कहलाते है दान्तारामगढ़ के पास ये कई गावों में आबाद है यह क्षेत्र माधो मंडल के नाम से भी प्रशिध है पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी इसी वंश से है !

रावजी का शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र तिर्मल जी के वंशज रावजी का शेखावत कहलाते है !इनका राज्य सीकर,फतेहपुर,लछमनगढ़ आदि पर था !

ताजखानी शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र तेजसिंह के वंशज कहलाते है इनके गावं चावंङिया,भोदेसर ,छाजुसर आदि है

परसरामजी का शेखावत
राजा रायसल जी के पुत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते है !

हरिरामजी का शेखावत
हरिरामजी रायसलोत के वंशज हरिरामजी का शेखावत कहलाये !

गिरधर जी का शेखावत
राजा गिरधर दास राजा रायसलजी के बाद खंडेला के राजा बने इनके वंशज गिरधर जी का शेखावत कहलाये ,जागीर समाप्ति से पहले खंडेला,रानोली,खूड,दांता बावडी आदि ठिकाने इनके आधीन थे !

भोजराज जी का शेखावत
राजा रायसल के पुत्र और उदयपुरवाटी के स्वामी भोजराज के वंशज भोजराज जी का शेखावत कहलाते है ये भी दो उपशाखाओं के नाम से जाने जाते है, १-शार्दुल सिंह का शेखावत ,२-सलेदी सिंह का शेखावत

गोपाल जी का शेखावत
गोपालजी सुजावत के वंशज गोपालजी का शेखावत कहलाते है |

भेरू जी का शेखावत
भेरू जी सुजावत के वंशज भेरू जी का शेखावत कहलाते है |

चांदापोता शेखावत
चांदाजी सुजावत के वंशज के वंशज चांदापोता शेखावत कहलाये ।

शंभु- स्तवन-

शंभु- स्तवन-

गिरधर दान रतनू दासोड़ी
           दूहा
सुंदर सुखदायक सदा ,
कँदरां घर कैल़ास।
पनंगैसुर पूरै सदा,
आयां चरणां आस।।१
रुंडमाल़ा कंठां रहे,
मयँक सदा सिरमाथ।
फणवाल़ा गल़ फाबता,
नमो रीझाणां नाथ।।२
गंगा मसतक में गहर ,
नहर खल़क्कै नीर।
अहर निसा उण सूं अजब,
गरजत रीझ गँभीर।।३
राख चढायां रीझवै ,
तोड़ै दल़द तड़ाक।
दिन वाल़ै धिन दासरा
भाल़ै भीर भड़ाक।।४
बहै सवारी बैलियो
भलां झेलियो भार।
अहो नाथ अलबेलियो
  सदा दासां री सार।।५
     छंद भुजंगी
नमो वास कैल़ास ऐवास बाबो।
गुढै गात पे धारबा नाय गाभो।
रहे जागतो जोग में दीह रातं।
नमो शंभु नाथं नमो शंभुनाथं।।६
भयंकार भोताड़ उज्जाड़ भाल़ो।
जठै झाड़ झंखाड़ रै सून जाल़ो।
बठै रीझियां साम की थाट बातं।।
नमो ७
नमो गंगधारा हली बैय नामी।
थिरां सीस में भोल़ियै नाथ थामी।
सदा  दास रै खास हो सुक्खदातं।
नमो ८
रहै राकसां भाखसां आप रीझ्यो।
खमा दाबिया दैतड़ां जुद्ध खीझ्यो।
छती भीजियो सेवगां राख छातं।
नमो ९
अहो रंजियो भंग सूं आप ओपै।
कृपा छांड नैं काम रै सीस कोपै।
गही सूल़ नैं मेटियो कीध घातं।
नमो १०
घणा खेलणा भूतड़ा आप गोढै।
किलक्कार कारोल़िया कीध कोडै।
नमो नाथ री टाल़वी ऐज न्यातं।
नमो ११
वरै भूखणां अंग पे सोभ बानी।
करै नाय आडंबरं मींट कानी।
अपै आपरै बाल़कां खूब आथं।
नमो १२
फणक्कार फूंकारता नाग फाबै।
तिका भाविया आविया आप ताबै।
सजै वींटियां झींटियां मांय साथं।
नमो १३
जयो लाभ संसार रै जैर जार्यो।
धिनो भाल़ पे चंद आणंद धार्यो।
गहै मृगछाल़ा रखै बांध गातं।
नमो १४
नरां रुंडमाल़ा रखै पैर नोखी।
सजै थान जीराण में  देव सोखी।
भली कासिय वासिय नित्त भातं।
नमो १५
पुणां चंपणी आपरा पैर प्यारी।
नमो ऊमिया जामणी गेह नारी।
तवां पूत सूंडाल दूंधाल़ तातं
नमो १६
भणै गीधियो छंद नै ठाय भोल़ा।
मुदै मेटजै पात रा कर्म मोल़ा।
हिंवां राखजै सीस पे ईस हाथं।
नमो १७
         कवत्त
नमो भोल़िया नाथ
तोड़िया अणहद तोटा।
नमो भोल़िया नाथ
आपियि कितरां ओटा।
नमो भोल़िया नाथ
  भांगस धतूरा भोगी।
नमो भोल़िया नाथ
जगत रा मोटा जोगी।
चढायां राख रीझै चवां
खीझै राकस खाल़िया।
कवियाण गीध संभली कथा
पनँगैसुर संत पाल़िया।।१८
गिरधर दान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

टैं

कुचरणी लघुकथा

चिंकू भागता हुआ अपनी दादी के पास आया और बोला "दादी बोलो टैं".
दादी असमंजस में पड़ गई लेकिन बालमन की कोमल भावनाओं का ध्यान रखते हुए बोली "टैं".
चिंकू इतना खुश हुआ जैसे उसे बाबे का परचा मिल गया हो. बोला "थैंक यू दादी.. अब हम अमीर हो जाएंगे"
दादी ने पूछा "अमीर कैसे हो जाएंगे रे?"
चिंकू ने अपनी दादी की गोद में सिर रखते हुए कहा कि "मम्मी बोल रही थी कि जीं दिन आ डोकरी टैं बोलसी आपां अमीर हो जासां"

मोरल ऑफ द स्टोरी :- हर बात टींगरों के सामने नहीं करनी चाहिए.

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

जीवण म्है  कीं नी  हारां हा

राजस्थानी ग़ज़ल। ।

मन  कैवे  वो  ही  धारां  हा।
जीवण म्है  कीं नी  हारां हा।

सांची  बातां  कैवां   सबनै।
लागां जद म्हा ही खारा हा।

चारुं   खानी  झूठा  देखां
तीर  निसानां ही मारा हा।

बारै  मोटी  बातां    कैवां।
घर में किणनै नी ढारां हा।

लोगा  री   देखा  चतुराई।
लागै  दीपा  ही  लारां  हा।

दीपा परिहार

सोमवार, 9 जनवरी 2017

चिंगाड

एक बार एक हरियाणा का ताऊ सुबह-2 सोता हुआ मर गया,

ताई उसी टाइम रोटी खा
रही थी...

तभी एक आदमी बाहर से आया और बोला-"ताई तू रोटी खाण लाग री और इन्घे ताऊ मरया पड़ा"!

ताई बोली-"बेटा बस दो टुकड़े रह रे सै,
इब खा लू सुं,

अर फेर देखिये मेरी चिंगाड।"

रविवार, 8 जनवरी 2017

ठाला भुला

☀सुबह का भुला अगर
          शाम को घर आ जाए

तो उसे भुला नहीं
  ठाला भुला कहतें है

शनिवार, 7 जनवरी 2017

इत्तो खतरनाक गणित

गणित टीचर नई  दिमागी खोज
सात फेरो का गणित

शादी में वर - वधु को 7 फेरे लगवाये जाते है,
क्योंकि एक फेरा 360° का होता है.
और 360 ऐसी संख्या है जो 1 से 9 तक के अंको में केवल 7 से विभाजित नही होती.

इसलिए 7 फेरो का सम्बन्ध अविभाज्य है.
Salute to Indian science & culture

इत्तो खतरनाक गणित

बुधवार, 4 जनवरी 2017

एक षड्यंत्र और शराब की घातकता....

शराब और  रजपुतो से षड़यंत्र      मुग़ल काल से

सिर धड से अलग होने के बाद कुल देवी युद्ध लडा करती थी।

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."

हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,
ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..

ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना...

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."

कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।
उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया !

वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे !

रिड़मल जी ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में !

मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !
कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से

तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।

बादशाह का मुँह देखने लायक था ,

ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।"

रिड़मल ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,

रिड़मल बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की ... "

बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला
"इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है ।  मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ?
मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।"

राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।

रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात को ११ बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी।

ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले
" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।

हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।

राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..

मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे

और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे "

राव रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।

सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।"

राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है
कैसे मानेगा !
अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,

एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा

" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,
दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?

आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा
"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर

छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो"

दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।

बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और
मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..

तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?

बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...

२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।

दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,

मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,

इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।

ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा

" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...
तलवार से ये नही मरेगा...

कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।

सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी

और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।

बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा  रखा था

ये सोच कर की  ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा

लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।

उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।

हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।

बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।

राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।

दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।

यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।

यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।

उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट  करते गए।

और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।
माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों ...?

यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए...?

इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे और अपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये हिन्दू भाइयो ये सच्ची घटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।

तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।

तथ्य एवं श्रुति पर आधारित

नमन ऐसी वीर परंपरा को

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

अरदास २०१७

*अरदास २०१७*
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आँगन कंवारो रेबा दीज्यै पणं रंडापो मत दीज्ये
भगवान जवानी दे दीज्यै पणं पछै बुढापो मत दीज्यै

हाथी दीज्ये घोडा दीज्यै गधा गधेडी मत दीज्यै
सुगरां री संगत दे दीज्यै नशा नशैडी मत दीज्यै

घर दीज्यै घरवाली दीज्यै खींचाताणीं मत दीज्यै
जूणं बलद री दे दीज्ये तेली री घाणीं मत दीज्यै

काजल दीज्यै टीकी दीज्यै पोडर वोडर मत दीज्यै
पतली नार पदमणीं दीज्यै तूं बुलडोजर मत दीज्यै

टाबर दीज्यै टींगर दीज्यै बगनां बोगा मत दीज्यै
जोगो एक देय दीज्यै पणं दो नांजोगा मत दीज्यै

भारत री मुद्रा दै दीज्यै डालर वालर मत दीज्यै
कामेतणं घर वाली दीज्यै ब्यूटी पालर मत दीज्यै

कैंसर वैंसर मत दीज्यै तूं दिल का दौरा दे दीज्यै
जीणों दौरो धिक ज्यावेला मरणां सौरा दे दीज्यै

नेता और मिनिस्टर दीज्यै भ्रष्टाचारी मत दीज्यै
भारत मां री सेवा दीज्यै तूं गद्दारी मत दीज्यै

भागवत री भगती दीज्यै रामायण गीता दीज्यै
नर में तूं नारायण दीज्यै नारी में सीता दीज्यै

मंदिर दीज्यै मस्जिद दीज्ये दंगा रोला मत दीज्यै
हाथां में हुन्नर दे दीज्यै तूं हथगोला मत दीज्यै

दया धरम री पूंजी दीज्यै वाणी में सुरसत दीज्यै
भजन करणं री खातर दाता थौडी तूं फुरसत दीज्यै

घी में गच गच मत दीज्यै तूं लूखी सूखी दे दीज्यै
मरती बेल्यां महर करीज्यै लकड्यां सूखी दे दीज्यै

कवि नें कीं मत दीज्यै कविता नें इज्जत दीज्यै
जिवूं जठा तक लिखतो रेवूं इतरी तूं हिम्मत दीज्यै
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अजै मेड़तिया मरणो जाणै!!

अजै मेड़तिया मरणो जाणै!!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी
जद जोधपुर महाराजा अभयसिंहजी बीकानेर घेरियो उण बगत बीकानेरियां  जयपुर महाराजा जयसिंहजी नै आपरी मदत सारु कैयो।जयसिंहजी फौज ले जोधपुर माथै चढाई करी।आ बात अभयसिंहजी नै ठाह पड़ी तो उणां बीकानेर सूं जोधपुर जावणो ई ठीक समझियो।जोधपुर उण बगत जयपुर रो मुकाबलो करण री स्थिति में नीं हो ।राजीपै री बात तय हुई अर 21लाख जयपुर नै फौज खरचै रा दैणा तय होया,जिणमें 11लाख रो गैणो अभयसिंहजी री कछवाही राणी रो दियो अर बाकी रुपियां मौजीज मिनखां री साख में लैणा किया।जद किणी जयसिंहजी नै कैयो कै "हुकम ओ गैणो तो बाईजी राज रो है अर आप लेय रैया हो!!"जयसिंहजी कैयो कै "अबार ओ गैणो जयपुर री राजकुमारी रो नीं है अपितु जोधपुर री राणी रो है सो ले लियो जावै!!"
समझौतो होयां जयपुरियां री भर्योड़ी तोपां पाछी जयपुर रवाना होई।गूलर कनै जावतां किणी जयपुरियै कैयो कै "कांई मारवाड़ में रणबंका राठौड़ नीं रैया!!लागे उणांरै बूकियां में आपाण नीं रैयो जद ई तो म्हांरी फौज कंवारी अर तोपां भर्योड़ी जा रैयी है!!" आ बात उठै किणी आदमी सुणी अर गूलर जाय ठाकुर विसनसिंहजी नै बताई।आ बात सुणतां ई विसनसिंहजी आपरा मर्जीदान चारण जादूरामजी खिड़िया (जगतेसपुरा)साम्हीं जोयो अर पूछियो कै बाजीसा आपरी कांई राय है?जादूरामजी महावीर अर साहसी मिनख हा ।मारवाड़ रै मरट री बात ही।उणां किणी कवि रै एक गीत री ऐ ओल़्यां सुणाई-
दूदा पग आगा दे जाणै,
पाछी फेर न जाणै पूठ।
भिड़वा री पौसाल़ भणाणा,
मुड़वा तणी न सीख्या मूठ!!
हुकम मेड़तिया तो लड़णो ई जाणै!इणमें विचार री कांई बात है!!-
मेड़तिया जाणै नीं मुड़णो ,
भिड़णो ई जाणै भाराथ!!
इणी खातर तो मेड़तो मोतियां री माल़ा बाजै-
मेड़तो मोतियां तणी माल़ा!!
ठाकुर आपरै छुटभाईयां रै ठिकाणै भखरी रै ठाकुर केशरीसिंहजी नै ओ समाचार करायो कै "मेड़तियां री मूंछ रो सवाल है!आपांरी कांकड़ मांय सूं तोपां खाली जावै!!अजै आंपां जीवां हां!!"केशरीसिंहजी अजेज चढिया अर जयपुरियां रै देखतां -देखतां उणां रो हाथी घेर र भखरी गढ में लेयग्या।जयपुरियां गढ घेर लियो।केशरीसिंहजी गढ में।विसनसिंहजी गूलर, गढ रै बारै मुकाबलो कियो।रजपूति बताय जस कमायो।किणी कवि कैयो-
मेड़तिया मुड़िया नहीं,
जुड़ियां खागां जंग।
वल़ू रैया विसनेस रै
(वां)रजपूतां नै रंग।।
गूलर फौज में जादूरामजी खिड़िया ई साथै।महावीर खिड़ियो जादूरामजी ई मारवाड़ री आण खातर तरवारां ताणी।आपरी खाग बल़ वीरता बताय इण मारकै वीरगति वरी।शीश कटियां ई लड़तां थकां इण वीर री देह  सौ मीटर आगी जाय शांत होई।वीरता री कद्र जाणणिया  भखरी ठाकुर साहब इण जूंझार रो चूंतरो गढ रै आगे बणायो।आज ई आसै -पासै रा लोग पूजै।जादूरामजी री वीरता विषयक तत्कालीन कवियां रा कथिया दूहा चावा-
भखरी भाखर ऊपरै,
गढ दोल़ूं गोलांह।
खिड़ियो खागां जूंझियो,
पौहर हेक पौलांह।।
झूक-झुक राल़ै झाग,
अधपतिया अकबक हुवै,
खिड़ियो बावै खाग,
जुद्ध वेल़ा जगरामवत।।
(उलेख्य है कै ऐ जादूरामजी कविश्रेष्ठ  कृपारामजी खिड़िया रा अग्रज हा।)
भखरी गढ रा दरवाजा खुलिया अर केशरिया करर मेड़तियां मरण तिंवार मनायो।केशरीसिंहजी अदम्य साहस रै पाण मारवाड़ री आब कायम राखी जिणरो साखी किणी कवि रो ओ दूहो पढणजोग है-
केहरिया करनाल़ ,
जे न जुड़त जैसाह सूं।
आ मोटी अवगाल़,
रैती सिर मारूधरा।।
महावीर केशरीसिंहजी देश रै माण नै अखी राखतां थकां वीरगति रो वरण कियो।कविवर उदयराजजी ऊजल़ कितरी सटीक लिखी है-
सेखी जैपर सेनरी,
भखरी पर भागीह।
करगो टकरी केहरी,
लंगरधर लागीह!!
गिरधर दान रतनू दासोड़ी