मंगलवार, 10 जनवरी 2017

जीवण म्है  कीं नी  हारां हा

राजस्थानी ग़ज़ल। ।

मन  कैवे  वो  ही  धारां  हा।
जीवण म्है  कीं नी  हारां हा।

सांची  बातां  कैवां   सबनै।
लागां जद म्हा ही खारा हा।

चारुं   खानी  झूठा  देखां
तीर  निसानां ही मारा हा।

बारै  मोटी  बातां    कैवां।
घर में किणनै नी ढारां हा।

लोगा  री   देखा  चतुराई।
लागै  दीपा  ही  लारां  हा।

दीपा परिहार

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