पदमणी पच्चीसी-
गिरधर दान रतनू दासोड़ी
जौहर री ज्वाल़ा जल़ी,
राखी रजवट रीत।
चावै जगत चित्तौड़ नैं,
पदमण कियो पवीत।।1
झूली सतझाल़ा जबर,
उरधर साख अदीत।
गवराया धर गुमर सूं
गौरव पदमण गीत।।2
खप ऊभो खिलजी खुटल़,
जिणनै सक्यो न जीत।
जौहर कर राखी जगत,
पदमण कँत सूं प्रीत।।3
सतवट राख्यो शेरणी,
अगनी झाल़ अभीत।
हिंदवाणी हिंदवाण में,
पदमण करी पवीत।।4
जगमगती ज्वाल़ा जची,
भल़हल़ साखी भास।
परतख रचियो पदमणी,
ऊजल़ियो इतिहास।।5
जुड़ भड़ जिथियै जूझिया,
साको रच्यो सबास।
मांझी धरा मेवाड़ री,
इल़ हिंद अजै उजास।।6
आयो खिलजी उमगँतो,
निलज निहारण नूर।
करवाल़ा ले लाज कज,
सँभिया मरवा सूर।।7
साम झड्यो सँग्राम सज,
उरधर पुरखां आण!
जौहर पदमण झूलगी,
महि अजै थिर माण।।8
मरणो दोरो मांटियां,
साजण बात सहल्ल।
प्रभता थिर हद पदमणी,
गुमर अमर आ गल्ल।।9
कुलवट ऊजल़ जिण करी,
सतवट राखी साज।
प्रिथमी जद ही पदमणी,
अमर अजै इल़ आज।।10
पतिव्रत राख्यो पदमणी,
जौहर ज्वाल़ा जूझ।
ढिगलो राखी देख ढिग,
अरियण बुवो अमूझ।।11
खपियो खिलजी खागबल़
कुटल़ गलां रच केक।
खंड न सकियो खुटल़पण
टणकाई री टेक।।12
पदमण परसी पीवनै,
परसी भगवन पाव!
दरसण दिया न दोयणां,
दिया न हीणा दाव।।13
सीखी नह डरणो सधर,
पौरस अंतस पूर!
पत सत कारण पदमणी,
मरणो कियो मँजूर।।14
चढणो हद चंवरी चवां,
बसुधा सोरी बात।
रचणी जौहर रामतां,
खरी दुहेली ख्यात।।15
वरिया अरियण वींद ज्यां,
निपट कठै बै नाम!
पदमण रो प्रथमाद पर,
जपै मही अठजाम।।16
हर हर कर बैठी हुलस,
पदमण नार निपाप।
दरसी नाही दोयणां,
अगनी परसी आप।।17
चखां चित्तौड़ां देखियो,
अगनी लागी आभ!
हुई नहीं नह होवसी,
उणरी मगसी आब।।18
पितलजा पच पच मुवा,
रच रच तोतक रीठ।
मच मच लड़्या मेवाड़ रा
परतन दीनी पीठ।।19
दिल्ली पच हारी दुरस,
जेर करण नै जोय।
मरट अहो मेवाड़ रो,
काढ न सकियो कोय।।20
मेदपाट रै मोदनै,
खल़ां चयो मन खोय।
करण कलुषित तिम कियो,
जिम जिम ऊजल़ जोय।।21
लपटा निरखी लोयणां,
गढ चित्तौड़ गंभीर।
अंजसियो उर आपरै,
धुर ना छूटो धीर।।22
जगमगती ज्वाला जबर,
सगती मारग साच।
पूगी सुरगां पदमणी,
रमणी क्रांमत राच।।23
मही धरा मेवाड़ री,
करै न समवड़ कोय।
देवी पदमण देहरो,
जगसिर तीरथ जोय।।24
भगती सूं भुइ ऊपरै,
जस जगती में जोय।
पावन कीधा पदमणी,
देख घराणा दोय।।25
गिरधर दान रतनू दासोड़ी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें