शनिवार, 29 जुलाई 2017

शकूरखान

दुनिया रखे तुझो मान, तुझो नालो शकूरखान बचपन में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर दौरान स्कूली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एक प्रसिद्ध स्थानीय लोकगीत हम बच्चों द्वारा बहुत चाव से गाया जाता था और ग्रामीण लोगों द्वारा इस लोकगीत को बड़े चाव से सुना जाता था, स्थानीय मंगनीयार कलाकारों के द्वारा भी इस सिंधी मारवाड़ी मिश्रित लोकगीत को महफिलोंमे भी गाया जाता था क्योंकि इस लोकगीत में थर के बहादुर और स्थानीय सिंधी नोहडी जाति के राबिनहुड शकूरिये का दिलेरी और साहसिक कारनामों का वर्णन किया गया है।तब यह लोकगीत इस एरिया के साम्प्रदायिक सौहार्द और हिन्दू मुस्लिम समुदाय के भाईचारा के प्रतीक बने इस लोकगीत को सुनने, सुनाने का शौक था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी इस बहादुर नोहडी के साहसिक कार्यो के इस विरूद गायकी को सम्मान से देखा जाता था, तब शायद शकूरिया मुसलमान था यह महत्वपूर्ण नहीं था, उसकी जाति क्या थी, यह महत्वपूर्ण नही था, महत्वपूर्ण था हमारा भाईचारा, महत्वपूर्ण थी शकूरखान की बहादुरी, साहस और सामाजिक सौहार्द, गाने वाले मंगनीयार मुसलमान थे, शकूरखान मुसलमान था, सुनने वाले हिन्दू और मुसलमान दोनों थे, गीत का नायक और गायक मुसलमान थे तो श्रोता दोनों समाजों से थे, गीत बनाने के लिए प्रेरित करने वाले और मुसलमान गायक को ऊंट इनायत करने वाले गिरधरिग जादम(यादव का स्थानीय उच्चारण) भाटी ब्ईया थे, शकूरखान की पैरवी करने वाले और उसको आश्रय देने वाले और उसकी मुकाबले में जान बचाने के बदले लाखों रूपए की कीमत अदा करने का आफर देने वाले इन्दरीग भी भाटी थे, तब शायद धर्म की रिवायतें,मेहमान की रक्षा और उसको आश्रय देना,उसकी जाति और धर्म की परवाह किये बगैर उसकी बहादुरी रूपी धर्म की प्रशंसा में गीत गुलांना (वो भी एक मुस्लिम) इस माडधरा के सपूतों की रीति नीति थे। क्योंकि तब लोकगीत साम्प्रदायिक नहीं थे वैसे माड में अभी भी नहीं है, तब गायक और नायक गैर साम्प्रदायिक थे, सुनना और सुनाना और महफिले साम्प्रदायिक नहीं थी, सब मारवाड़ी थे, गीत और प्रीत मारवाड़ी थी, गायक और नायक मरूवाडि थे, गिरधरिग और शकूरखान मारू के जाईंदै थे,देश बंटा था, पर दिल नहीं बंटा था, जीसा उस पार यानि थारपारकर में जाकर आतिथ्य वो भी एक मुस्लिम नोहडी नायक द्वारा तब, जब देश बदल गये, सीमा रेखा खींच दी गई थी, पर ना जिसा का और शकूरखान का दिल बदला था, इमाम सोलंकी साथ बदला था, जरूर ससुराल बदला था, मेरा ननीहाल बदला था, शकूरखान का हमारा रिश्ता नहीं बदला था, पर शकूरा नही बदला, कई राजपूत सोढा बेटियों के शादी में हर वक्त आतिथय और आश्रय के लिए अपने जान बाजी लगाने वाले शकूरिया की मुकाबले में बसिया की पावन भोम पर मुकाबले में मार दे, हम भाटी उतर भड किवाड़ भाटी सहन कर लेते हैं, कैसे पाप को ओढ लेते, , कैसे संभव था?, उसकी एक बानगी एक स्थानीय लोकगीत के माध्यम से पेश की जा रही ह मैं इस लोकगीत को काफी समय सुन रहा था, आज लगा कि इसको शेयर करू और अतीत के सुनहरे साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक एक बहादुर नायक को याद करूं।।।।।

*कोई नही कहेगा कि जेसलमेर का किला कुंवारा है यहः अद्बुद्ध रचना रोंगटे खड़ा करने वाली राजभा गढवी की जुबानी सुनिये ओर शेयर कीजिये*

#कोई_नही_कहेगा_कि_जेसलमेंर_का_किला_कुंवारा_है_राजभा_गढवी_की_जुबानी_यहः_अद्बुद्ध_रचना_शेयर_कीजिये
बधाई ! बधाई ! तुर्क सेना हार कर जा रही है | गढ़ का घेरा उठाया जा रहा है |" प्रधान बीकमसीं(विक्रमसिंह) ने प्रसन्नतापूर्वक जाकर यह सूचना रावल मूलराज को दे दी |
"घेरा क्यों उठाया जा रहा है ?" रावल ने विस्मयपूर्वक कहा |
कल के धावे ने शाही सेना को हताश कर दिया है | मलिक,केशर और सिराजुद्दीन जैसे योग्य सेनापति तो कल ही मारे गए | अब कपूर मरहठा और कमालद्दीन में बनती नहीं है | कल के धावे में शाही सेना का जितना नाश हुआ उतना शायद पिछले एक वर्ष के सब धावों में नहीं हुआ होगा | अब उनकी संख्या भी कम हो गयी है,जिससे उनको भय हो गया है कि कहीं तलहटी में पड़ी फ़ौज पर ही आकर आक्रमण न करदे | प्रधान बीकमसीं ने कहा |
" तलहटी में कुल कितनी फ़ौज होगी |"
"लगभग पच्चीस हजार |"
"फिर भी उनको भय है |"
रावल मूलराज ने एक गहरी नि:श्वास छोड़ी और उनका मुंह उतर गया | उसने छोटे भाई रतनसीं की और देखा,वह भी उदास हो गया था | बीकमसीं और दुसरे दरबारी बड़े असमंजस में पड़े | जहाँ चेहरे पर प्रसन्नता छा जानी चाहिए थी वहां उदासी क्यों ? वर्षों के प्रयत्न के उपरांत विजय मिली थी | हजारों राजपूतों ने अपने प्राण गंवाए थे तब जाकर कहीं शाही सेना हताश होकर लौट जाने को विवश हुई थी | बीकमसीं ने समझा शायद मेरे आशय को रावलजी ठीक से समझे नहीं है इसलिए उसने फिर कहा -
" कितनी कठिनाई से अपने को जीत मिली है | अब तो लौटती हुई फ़ौज पर दिल्ली तक धावे करने का अवसर मिल गया है | हारी हुई फ़ौज में लड़ने का साहस नहीं होता, इसलिए खूब लूट का माल मिल सकता है |"
रावल मूलराज ने बीकमसीं की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और वह और भी उदास होकर बैठ गया | सारे दरबार में सन्नाटा छा गया | रावलजी के इस व्यवहार को रतनसीं के अलावा और कोई नहीं समझ रहा था | बहुत देर से छा रही नि:स्तब्धता को भंग करते हुए अंत में एक और गहरी नि:श्वास छोड़ कर रावल मूलराज ने कहा -
" बड़े रावलजी (रावल जैतसीं) के समय से हमने जो प्रयत्न करना शुरू किया था वह आज जाकर विफल हुआ | शेखजादा को मारा और लुटा, सुल्तान फिरोज का इतना बिगाड़ किया,उसके इलाके को तबाह किया और हजारों राजपूतों को मरवाया पर परिणाम जाकर कुछ नहीं निकला | शाही फ़ौज आई वैसे ही जा रही है | अब सुल्तान फिरोज की फ़ौज ही हार कर जा रही है तब दूसरा तो और कौन है जो हमारे उदेश्य को पूरा कर सके |"

"इस प्रकार शाही फ़ौज का हार कर जाना बहत बुरा है क्योंकि इस आक्रमण में सुल्तान को जन-धन की इतनी अधिक हानि उठानी पड़ी है कि वह भविष्य में यहाँ आक्रमण करने की स्वप्न में भी नहीं सोचेगा |" रतनसीं ने रावल मूलराज की बात का समर्थन करते आगे कहा |
"शाही-फ़ौज के हताश होकर लौटने का एक कारण अपना किला भी है | यह इतना सुदृढ़ और अजेय है कि शत्रु इसे देखते ही निराश हो जाते है | वास्तव में अति बलवान वीर व दुर्ग दोनों ही कुंवारे (अविवाहित) ही रहते है | मेरे तो एक बात ध्यान में आती है ,- क्यों नहीं किले की एक दीवार तुड़वा दी जाये जिससे हताश होकर जा रही शत्रु सेना धावा करने के लिए ठहर जाय |"रावल मूलराज ने प्रश्नभरी मुद्रा से सबकी और देखते हुए कहा |
"मुझे तो एक दूसरा उपाय सुझा है,यदि आज्ञा हो तो कहूँ |" रतनसीं ने अपने बड़े भाई की और देखते हुए कहा |
"हाँ-हाँ जरुर कहो |"
"कमालद्दीन आपका पगड़ी बदल भाई है | उसको किसी के साथ कहलाया जाय कि हम गढ़ के किंवाड़ खोलने को तैयार है,तुम धावा करो | वह आपका आग्रह अवश्य मान लेगा | उसको आपकी प्रतिज्ञा भी बतला दी जाय और विश्वास भी दिलाया जाय कि किसी भी प्रकार का धोखा नहीं है |"
"वह नहीं माना तो |"
" जरुर मान जायेगा | एक तो आपका मित्र है इसलिए आप पर विश्वास कर लेगा और दूसरा हारकर लौटने में उसको कौनसी लाज नहीं आ रही है | वह सुल्तान के पास किस मुंह से जायेगा | इसलिए विजय का लोभ भी उसे रोक देगा |"
" उसे विश्वास कैसे दिलाया जाय कि धोखा नहीं होगा |"
"किले पर लगे हुए झांगर यंत्रों और किंवाड़ों को पहले से तौड़ दिया जाय |"
रावल मूलराज के,रतनसिंह की बताई हुई युक्ति जंच गयी | उसके मुंह पर प्रसन्नता दौड़ती हुई दिखाई दी |

उसी क्षण जैसलमेर दुर्ग पर लगे हुए झांगर यंत्रों के तोड़ने की ध्वनि लोगों ने सुनी | लोगों ने देखा कि किले के किंवाड़ खोल दिए गए थे और दुसरे ही क्षण उन्होंने देखा कि वे तोड़े जा रहे थे | फिर उन्होंने देखा एक घुड़सवार जैसलमेर दुर्ग से निकला और तलहटी में पड़ाव डाले हुए पड़ी,शाही फ़ौज की और जाने लगा | वह दूत-वेश में नि:शस्त्र था | उसके बाएँ हाथ में घोड़े की लगाम और दाएं हाथ में एक पत्र था | लोग इन सब घटनाओं को देख कर आश्चर्य चकित हो रहे थे | झांगर यंत्रों का और किंवाड़ो को तोड़ा जाना और असमय में दूत का शत्रु सेना की ओर जाना विस्मयोत्पादक घटनाएँ थी जिनको समझने का प्रयास सब कर रहे थे पर समझ कोई नहीं रहा था |
कमालदीन ने दूत के हाथ से पत्र लिया | वह अपने डेरे में गया ओर उसे पढने लगा -
" भाई कमालदीन को भाटी मूलराज की जुहार मालूम हो | अप्रंच यहाँ के समाचार भले है | राज के सदा भलें चाहियें | आगे समाचार मालूम हो -
जैसलमेर का इतना बड़ा ओर दृढ किला होने पर भी अभी तक कुंवारा ही बना हुआ है | मेरे पुरखा बड़े बलवान ओर बहादुर थे पर उन्होंने भी किले का कौमार्य नहीं उतारा | जब तक ये किला कुंवारा रहेगा तब तक भाटियों की गौरवगाथा अमर नहीं बनेगी ओर हमारी संतानों को गौरव का ज्ञान नहीं होगा | इसलिए मैं लम्बे समय से सुल्तान फिरोजशाह से शत्रुता करता आ रहा हूँ | उसी शत्रुता के कारण उन्होंने बड़ी फ़ौज जैसलमेर भेजी है पर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है कि वह फ़ौज आज हार कर जा रही है | इस फ़ौज के चले के उपरांत मुझे तो भारत में और कोई इतना बलवान दिखाई नहीं पड़ता जो जैसलमेर दुर्ग पर धावा करके इसमें जौहर और शाका करवाए | जब तक पांच राजपूतानियों की जौहर की भस्म और पांच केसरिया वस्त्रधारी राजपूतों का रक्त इसमें नहीं लगेगा तब तक यह किला कुंवारा ही रहेगा |
तुम मेरे पगड़ी बदल भाई और मित्र हो | यह समय है अपने छोटे भाई की प्रतिज्ञा रखने और उसे सहायता पहुँचाने का | इसलिए मेरा निवेदन है कि तुम अपनी फ़ौज को लौटाओ मत और कल सवेरे ही किले पर आक्रमण कर दो ताकि हमें जौहर और शाका करके स्वर्गधाम पहुँचने का अमूल्य अवसर मिले और किले का भी विवाह हो जाये |
मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि यहाँ किसी प्रकार का धोखा नहीं होगा | हमने किले के झांगर यंत्र और दरवाजे तुड़वा दिए है सो तुम अपना दूत भेज कर मालूम कर सकते हो |"

कमालदीन ने पत्र को दूसरी बार पढ़ा | उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गयी | धीरे धीरे वह गंभीर और उदासी के रूप में बदल गयी | एक घड़ी तक वह अपने स्थान पर बैठा सोचता रहा | कई प्रकार के संकल्प-विकल्प उसके मष्तिष्क में उठे | अंत में उसने दूत से पूछा -
"किले में कितने सैनिक है ?"
"पच्चीस हजार |"
"पच्चीस हजार ! तब तो रावलजी से जाकर कहना मैं मजबूर हूँ | मेरे साथी लड़ने को तैयार नहीं |"
"संख्या के विषय में मुझे मालुम नहीं | आप अपना दूत मेरे साथ भेज कर मालूम करवा सकते है |" दूत ने बात बदल कर कहा |
एक दूत घुड़सवार के साथ किले की और चल पड़ा | थोड़ी देर पश्चात ऊँटों और बैलगाड़ियों पर लड़ा हुआ सामान उतारा जाने लगा | उखड़ा हुआ पड़ाव फिर कायम होने लगा | शाही फ़ौज के उखड़े पैर फिर जमने लगे |

दशमी की रात्री का चंद्रमा अस्त हुआ | अंधकार अपने टिम-टिम टिमाते हुए तारा रूपी दांतों को निकालकर हँस पड़ा | उसकी हंसी को चुनौती देते हुए एक प्रकाश पुंज जैसलमेर के दुर्ग में दिखाई पड़ा | गढ़ के कंगूरे और उसमे लगे हुए एक एक पत्थर तक दूर से दिखाई पड़ने लगे | एक प्रचंड अग्नि की ज्वाला ऊपर उठी जिसके जिसके साथ हजारों ललनाओं का रक्त आकाश में चढ़ गया | समस्त आकाश रक्त-रंजित शून्याकार में बदल गया | उन ललनाओं का यश भी आकाश की भांति फ़ैल कर विस्मृत और चिरस्थाई हो गया |

सूर्योदय होते ही तीन हजार केसरिया वस्त्रधारी राजपूतों ने कमालदीन की पच्चीस हजार सेना पर आक्रमण कर दिया | घड़ी भर घोर घमासान युद्ध हुआ | जैसलमेर दुर्ग की भूमि और दीवारें रक्त से सन गई | जल की प्यासी भूमि ने रक्तपान करके अपनी तृष्णा को शांत किया | अब शाका भी पूरा हुआ |

आज कोई नहीं कह सकता कि जैसलमेर का दुर्ग कुंवारा है,कोई नहीं कह सकता कि भाटियों ने कोई जौहर शाका नहीं किया,कोई नहीं कह सकता कि वहां की जलहीन भूमि बलिदानहीन है और कोई नहीं कह सकता कि उस पवित्र भूमि की अति पावन रज के स्पर्श से अपवित्र भी पवित्र नहीं हो जाते | जैसलमेर का दुर्ग आज भी स्वाभिमान से अपना मस्तक ऊपर किये हुए सन्देश कह रहा है |यदि किसी में सामर्थ्य हो तो सुन लो और समझ लो वहां जाकर |

अब्दुल कलाम रा मरसिया ....

डॉक्टर अब्दुल कलाम के देहावसान के दिन उनको शब्द पुष्प द्वारा दी गई श्रद्धांजलि आज पुनः प्रेषित है

अब्दुल कलाम रा मरसिया ....

अब्दुल तोड़ी आज दीवारां इण देह री
पूरी कर परवाज. पद परमहंस पावियो

अब्दुल पूगौ आप  अमरापुर रे आँगणे
शोक घणौ संताप नयण नीर मावै नहीं

अब्दुल पूरी आस कथनी करणी एक कर
खुदाबन्द वो खास भगत बड़ौ भगवान रो

अब्दुल तूं आधार भांण भळकतौ भारती
अगनी रौ अवतार साधक सांचो सूरमो

अब्दुल नहीं अनाम. इतिहासां रहसी अमर
कीरत वाळा काम कायम करगौ कोड सूं

अब्दुल वाळी आंण अवरां ने आंणी नहीं
जीवत जुगां प्रमाण भूलै किण विध भारती

रतनसिहं चाँपावत कृत

पचपीर

पचपीर 
    
   

आज से लगभग 30 वर्ष पहले राजस्थान के हर  शहर , नगर ,कस्बे ,गांव व हर ढाणी मे इन पचपीरो की पूजा होती थी ।  राजस्थान की हर जाति का हर व्यक्ति इन पचपीरो की पूजा करता था । लेकीन आज दुसरी जातिया तो पूज रही है , पर बहुत ही दूर्भाग्य की बात , राजपूत पचपीरो को पूजना बन्द करते जा रहे है ।
हर मंगल अवसर पर इन पचपीरो का गीत गाया जाता था । ये गांव को , परीवार
को हर संकट से बचाते है ।
अगर कभी अपने दादोसा , दादीसा ,नानोसा ,नानीसा या किसी गांव के बुजर्ग के पास बैठने का मौका मिले तो  इनके चमत्कार या किस्से पुछना हुकम ।

कौन  है ये  पचपीर  ❓❓❓❓❓
पाबू ,हडबू ,रामदेव ,मांगलियां मेहा ।
पांचो पीर पधारज्यो , गोगीजी जेहा ।।
अर्थात -
हे पाबू जी ,हे हडबू जी , हे रामदेव जी , हे मेहा जी  , हे गोगा जी आप जिस भी स्थिति मे हो हमारे यहा पधारो सा ।
1- पाबूजी - राठौड राजपूत सरदार थे । इनका मुख्य स्थान कोलू ( फलौदी ) मे है ।
2- हडबू जी - आप सांखला राजपूत सरदार थे ।इनका मुख्य स्थान बैहंगटी  (  फलौदी ) के पास है ।
3- रामदेवजी - आप तंवर राजपूत सरदार थे । रूणिचा ( पोकरण) मे इनका मुख्य स्थान है ।
4- मेहाजी - ये सिसोदिया राजपूत सरदार थे ।इनका मुख्य स्थान बापिणी   मे है ।
5- गोगाजी - ये चौहान राजपूत सरदार थे । इनका मुख्य स्थान गोगा मेडी ( हनुमानगढ)  मे है ।
ये पचपीरो का एक छोटा सा परीचय था । क्या देखा परिचय मे ? पांचो पीर  क्षत्रिय ।जिनको हमने पुजना छोड दिया । जो हमारी कदम कदम पर रक्षा करते है । राजपूत पांच बडे बडे तीर्थो पर जाकर आ जाओ या साल मे एक बार इन पचपीरो को धोक दो बराबर है ।
पचपीरो के किसका भोग लगता है ❓
कोई सवामणी नही , कोई सेंसरघट नही , कोई 56 भोग नही ,बर्फी ,लडडू,चुरमा ,पुआ - पुडी -------------- कुछ नही ।  सिर्फ 10 रूपये का खर्चा पांच बांटी और एक मुठठी बांकले । इनही का भोग लगता है और इस भोग से वो खुश है सा ।   
पचपीरो को कब पूजा जाता है ❓❓
पचपीरो की पूजा ज्येष्ठ (जेठ ) माह के शुक्ल पक्ष के पहले ब्रहस्पतिवार या शुक्रवार को पचपीरो को पूजा जाता है ।
पचपीरो की पूजा कैसे होती है ❓❓

हर गांव मे पचपीरो का खेजडा होता है ।खेजडे के नीचे या अलग से चबुतरे के ऊपर इनका थान होता है । चबुतरे पर पांच पत्थर होते है । ये पांचो पत्थर प्रतीक होते है ये रामदेवजी ,पाबूजी ,हडबूजी ,मेहाजी और गोगाजी । इन पांचो पीरो को पवित्र जल से स्नान करवाया जाता है  ।रोली से तिलक करते है ।वस्त्र के रूप मे मोली चढाते है । फिर बांटी और बाकले चढाये जाते है ।न कोई ढोंग , न कोई पाखण्ड , न कोई खर्चा । 
मेरे समाज बन्धुओ  ,मेरा कर बध निवेदन है सा । की अगर हम हमारे समाज का भला चाहते है तो इन पचपीरो को वापिस पूजना प्रारम्भ करे सा ।अपनी संतानो को पचपीरो के बारे मे अधिक से अधिक बताये ।राजपूतो के लिए यह त्यौहार ही नही है ,महा त्यौहार है ।
ओर अधिक जानकारी अपने दादोसा ,दादीसा ,नानोसा ,नानीसा या किसी बुजुर्ग  से ले ।
इन बुद्धिजिवियो और पूंजीपत्तियो की चाल देखो , कोई भी कलेण्डर उठाकर देख लो । राजपूत के अलावा कोई छोटे से छोटा संत है उसकी जयन्ति के बारे मे कलेण्डर मे उल्लेख  है । राजस्थान का बच्चा बच्चा जिन पचपीरो को पूजता था उनका नाम तक कलेण्डर , अखबार मे नही देते है ।क्योकि ये पांचो पीर क्षत्रिय है ।कैसे भी इन पांचो ठाकूरो को जनता भूल जाय । क्योकी इन पण्डो का तो महाभारत काल बाद एक ही काम रह गया , अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करना और क्षत्रियो को गया गुजरा साबित करना ।हजारो वर्षो तक इसी काम मे लगे हुए है ।हम पडे पडे उनकी चालो को देख रहे और वो अपनी चालो मे सफल होते जा रहे है । लेकिन हम पडे पडे कब तक देखते रहेगे हुकम , अब हमारी बर्बादी का अन्तिम समय आ गया है सा । अब तो हमको हमारे क्षात्र धर्म , संस्क्रति और इतिहास को बचाना ही पडेगा । अन्यथा पछताने के अलावा हमारे पास कुछ भी नही रहेगा सा ।
मुझे झंनकार पुस्तक की दो पंक्तिया याद आ रही है -----
अब भी क्षत्रिय तुम उठते नही ,आखिर उठ कर करोगे क्या?।
वीरो का जिना जिते नही ,बकरो की मौत मरोगे क्या ?

जय क्षात्र धर्म ।
जय पाबूजी की ।
जय हडबू जी की ।
जय मेहा जी की ।
जय रामदेव जी की ।
जय गोगा जी की ।
⛳जय पचपीरो की ⛳

इतरो अनियाव मती कर इंदर

*इतरो अनियाव मती कर इंदर-*
*गिरधरदान रतनू दासोड़ी*
इतरो अनियाव मती कर इंदर,
डकरां ऐह नको रच दाव।
किथियै जल़ थल़ एकण कीधा,
सुरपत किथियै सूको साव।।1

जल़  बिन मिनख मरै धर जोवो,
सब फसल़ां गी सांप्रत सूक।
उथिये छांट नखी नह एको,
कानां नाय  सुणी तैं कूक।।2

पीवण नको कठै तो पाणी,
ढाणी मांय तिसाया ढोर।
वासव साच सुणी नह वाणी,
जाणी हुवो अजाणी जोर।।3

सूका थल़वट देख सरोवर,
मही नको गहकै सुर मोर।
धावां चरण नीठियो धरती,
घरहर उरड़ मंडी नह घोर।।4

काल़ी साव लुकाई कांठल़,
उमड़ण चाव भूल उतराध।
पल़पल़ बीज पांतरी पल़का,
वादल़िया नह चढै विवाद।।5

तपती पड़ै आकरो तावड़,
सावण रो नह आयो साव।
तिणियां वेग नको तीजणियां,
चित में नहीं तीज रो चाव।।6

बाजै झांख चौमासै वसुधा,
लूंब्यां नहीं सावण में लोर।
ओ की काम उपायो ऊंधो,
सुणियो नहीं दादरां सोर।।7

दूजै कानी धार दूठपण,
जल़ रेड़ै अणमापो जोय।
बूडै मिनख बीगड़ै बसती,
किण रो काज सरै नह कोय।।8

बैवै फसल़ पाणी रै वाल़ै,
पशु पंखी दोरा हद पेख।
अवनी मिटै आल़खो आंरो,
छाती मांय पड़ै फिर छेक।।9

दीनां तणो गुजारो दोरो,
छती चवै सिर माथै छात।
आधण नाय मिलै ओधारो,
बिगड़ै सफा गरीबां बात।।10

सूता कई बहै जल़ सांप्रत,
मघवा दहै अचिंती मोत।
नर कई दौड़ फसै नद नाल़ां,
फस कई हुवै जात्रा फोत।।11

वासव हुवो लगै बावल़ियो ,
कावल़ियो  करर्यो छै काम।
पड़र्यो ठौड़ दोहूं चख पाणी,
नेही तूझ विगोवै नाम।।12

धरवरसण धीरज उर धारै,
सारै सब रा काम सजोर!
न्याय निवेड़ देख जुग नैणां,
फट अब मेघ थल़ी दिस फोर।।13

सब जन रहै सरसता सुखिया,
दाता खेल इसोड़ा दाव।
गिरधरदान सुणी जन गढवी,
भल घर तूझ पूगाया भाव।।14
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

गोगा गुणमाळा

गोगा गुणमाळा

-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गांम- गांम खेजड़ी अर गांम -गांम गोगो रो कैताणो चावो।मुंशी देवीप्रसाद गोगैजी रो समै1070ववि. मानियो है।आ ई बात इतिहास वेता डाॅ दशरथ शर्मा ,चंद्रदान चारण आद विद्वानां मानी हैं। महमूद गजनवी सूं  सतलज नदी री रक्षा करतां  वीरगति वरणियै  गोगै रै साथै पैतालीस बेटा, सितर भतीजा , पांच जंवाई, गुणचाळीस बीजा भाई,बीजी जात रै कितैई राजपूतां  देश हितार्थ वीरगति वरी।
महावीर गोगा ददरेवा रा शासक हा।इणां  री मा रो नाम वाछल/बाछल अर पिता  रो नाम जेवर हो।
गोगो पूरै भारत रो जननायक है। देश रै खातर वीरगति  वरणियो ओ वीर लगैटगै सगळै उत्तर भारत में इणी खातिर  लोकदेवता रै रूप में संमपूंजित है। लोकदेवता गोगै नै लेयर  केई प्रवाद  प्रचलित है। म्है म्हारी इण छोटीसीक रचना सूं शब्दाजळी भेंट कर रयो हूं।
                         दूहा
चढियो गजनी सूं चठठ,
मुहमदियो मछराळ।
हिंद पूरी नै हाण दे ,भड़
बीकणिया भाळ।।1

घाव कियो गुजरात रै ,
प॔चनद चूंथी पूर।
भिड़ कितां कंध भांजिया,
हेर लियो सब हूर।।2

सैंभरियां कानै सुणी ,
बीती धर री बात।
गोगो अड़ियो गाढ सूं ,
जम री लेय जमात।।3

अड़ियो नहको अडर नर ,
दळ गजनी रा देख।
मछरीकां उण पुळ मुदै,
टणकी राखी टेक।।4

छावो जेवर रो छतों ,
चावो वो चहुवाण
जोर गोगो भड़ जूझियो ,
म॔डण भारत  माण।।5
             छंद रेंणकी
आयो दळ उरड़ गजन रो इळ पर ,
मुरड़ दूठ हिंदवाण मही।
जबरा जोधार राखिया झुरड़ै ,
सबळ कितां नै दुरड़ सही।
कितरां नै मुरड़ खायग्यो किलमो,
चुरड़ पीयग्यो रगत चठै।
भारत रो रिछक गोग भड़ भिड़ियो,
जँग छिड़ियो जिणवार जठै।।1

माची चहुंकूंट कूट हद माची  ,
लूटपाट घर करी लखां।
फट फूट फिटळ उण उठा फायदो ,
थाट विडार्या पाण थकां।
हिंदवां री हाण काण बिन कीनी ,
भांज बिठाई जवन भठै।
भारत2

घाई गुजरात संपूंरण घावां,
देव सोम सूं नाय डर्यो।
मद में मचकूर होय उण मूरख ,
कटक लेय नै अटक  कर्यो।
भांज्यो उण आय म॔दर नै  भटकै ,
इक खटकै बिन बीह  उठै।
भारत3

तण तण कर सोर  जोर सूं  तणियो ,
कण कण उण प॔जाब करी।
जण जण हहकार मार सूं जिणदिन ,
डग डग रैयत सपन डरी।
पग पग अनियाय धापनै पामर ,
तरवारां घण घाण तठै।
भारत4

वीरत री वाट खाग बळ बैतो ,
चहुवाणां धर माथ चढ्य।
कीरत रो वींद जेवर रो क॔वरो ,
उण पुळ गोगो आय अड़्यो।
गौरव रो कोट  गँजनियां गँजण ,
वाह भँजण अरियाण बठै।
भारत5

छिड़ियो विकराळ छत्रधर छोगो  ,
जग जोगो  कुळभाण जयो।
चावो चहुवाण गाढ में गोगो  ,
भाळ रूठ भुजँगाण भयो।
डरिया मन दूठ सांभ रण  डाकर ,
हाकल सूं  तनहार हठै।
भारत6

ददरेवो अड़्यो महारण दाटक ,
काटक अरियां माथ करै।
झूड़ै दळ गजन तणा बळ झाटक ,
ताटक वारां मेह तरै
बहगी रगताण धार नद वळ वळ ,
घड़ मेछां घमसाण घटै।
भारत7

तन रो नह सोच कियो तिल मातर ,
खातर भारत जाय खस्यो।
खड़ियो अस खीझ झाल कर खागां ,
रीझ वीर रणताळ रस्यो।
जेवर रै सुतन मंडी झड़ चोटां ,
फड़ जवनां उदराण फटै।
भारत8

मुहमद रो मछर  खँडियो मांटी ,
देयर आंटी पटक दियो।
करवाळां झाट काढिया कांटा ,
कज सैंभरियै अमर कियो।
जासी नह बात समै भलै जासी  ,
अवनी गासी सुजस अठै।
भारत9

पड़िया रण पूत भाई रण पड़िया ,
राजपूत  रण  तूझ रया।
पड़िया  दामाद  गाढ सूं  पेखो ,
बीह धार नह हार बया ।
वाछल रा लाल वीरगत  पामी ,
जूझ हिंद रै काज जठै।
भारत10

पूजै प्रथमाद  घरोघर परगळ,
थान खेजड़ी मान थपै।
हिंदू किलमाण राख द्रढ हिरदै ,
आण आपरी नह उथपै।
मानै सर्ब जात तनै लघु मोटा ,
मेटै ज्यारां करम मठै।
भारत11

मांटीपो धार मात भू मंडण ,
सैण कबीलो साथ सही।
रहियो रणखेत हेत सूं   रांघड़,
कीरत हित चित गीध कहीं।
सुणजै चहुवाण  सनातन  साचै,
बाचै जिणरै आव बठै।
भारत12
         कवत्त

मंडण भारत माण,
आण इळ गोग उबारी।
मछरीकां कर मछर ,
धरा कज मरबा धारी।
अड़िया रण में आय ,
सबळ दळ गोगै साथै।
मुहमद सूं  मनमोट ,
तणी तरवारां तातै।
तिल मात सोच काया तणो
कीरत लाडां नह कियो।
गीधियो कहै गोगै  गुणी ,
दान धरा तन रो दियो।।
        गिरधरदान रतनू दासोड़ी

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

विज्ञान का युग है या अज्ञान का ?

वो कुँए का मैला कुचला पानी पिके भी 100 वर्ष जी लेते थे ,
हम RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढे हो रहे है।

वो घाणी का मैला सा तैल खाके बुढ़ापे में भी दौड़~मेहनत कर लेते थे।
हम डबल~ट्रिपल फ़िल्टर तैल खाकर जवानी में  भी हाँफ जाते है।

वो डळे वाला लूण खाके बीमार ना पड़ते थे और हम आयोडीन युक्त खाके हाई~लो बीपी लिये पड़े है।

वो निम~बबूल कोयला नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चब्बा~चब्बा कर खाते थे !
और हम कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते है ।।

वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे और
आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते है ।

वो 7~8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी घर~खेत का काम करती थी
और आज 1महीने से डॉक्टर की देख~रेख में रहते है फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते है ।

पहले काळे गुड़ की मिठाइयां ठोक ठोक के खा जाते थे
आजकल तो खाने से पहले ही शुगर की बीमारी हो जाती है।

पहले बुजर्गो के भी गोडे मोढे नहीं दुखते थे और जवान भी घुटनो और कन्धों के दर्द से कहराता है ।

और भी बहुत सी समस्याये है फिर भी लोग इसे विज्ञान का युग कहते है, समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का ?????

मत दीज्यै

.        हालांकि मै नही जानता की ये रचना किसकी है ,
लेकिन जिसने लिखी है ,,,वो जरूर कोई महान कवि होगा ,,

हाथी दीज्ये घोडा दीज्यै, गधा गधेडी मत दीज्यै
सुगरां री संगत दे दीज्यै, नशा नशैडी मत दीज्यै

घर दीज्यै घरवाली दीज्यै, खींचाताणीं मत दीज्यै
जूणं बलद री दे दीज्ये, तेली री घाणीं मत दीज्यै

काजल दीज्यै टीकी दीज्यै, पोडर वोडर मत दीज्यै
पतली नार पदमणीं दीज्यै, तूं बुलडोजर मत दीज्यै

टाबर दीज्यै टींगर दीज्यै, बगनां बोगा मत दीज्यै
जोगो एक देय दीज्यै पणं, दो नांजोगा मत दीज्यै

भारत री मुद्रा दै दीज्यै, डालर वालर मत दीज्यै
कामेतणं घर वाली दीज्यै, ब्यूटी पालर मत दीज्यै

कैंसर वैंसर मत दीज्यै, तूं दिल का दौरा दे दीज्यै
जीणों दौरो धिक ज्यावेला, मरणां सौरा दे दीज्यै

नेता और मिनिस्टर दीज्यै, भ्रष्टाचारी मत दीज्यै
भारत मां री सेवा दीज्यै, तूं गद्दारी मत दीज्यै

भागवत री भगती दीज्यै, रामायण गीता दीज्यै
नर में तूं नारायण दीज्यै, नारी में सीता दीज्यै

मंदिर दीज्यै मस्जिद दीज्यै, दंगा रोला मत दीज्यै
हाथां में हुन्नर दे दीज्यै, तूं हथगोला मत दीज्यै

दया धरम री पूंजी दीज्यै, वाणी में सुरसत दीज्यै
भजन करणं री खातर दाता, थौडी तूं फुरसत दीज्यै

घी में गच गच मत दीज्यै, तूं लूखी सूखी दे दीज्यै
मरती बेल्यां महर करीज्यै, लकड्यां सूखी दे दीज्यै

कवि नें कीं मत दीज्यै, कविता नें इज्जत दीज्यै
जिवूं जठा तक लिखतो, रेवूं इतरी तूं हिम्मत दीज्यै

सोमवार, 24 जुलाई 2017

नवी बीनणी

सासू जी पहली वार
नवी बीनणी ने पूछ्यो.....

बेटा थने रसोई मे कंई कंई आवे...

बीनणी बोली सासू जी
मने रसोई मे घणो आलस आवे  
पसीना आवे और चक्कर आवे

कवित्त करनीजी रा

*कवित्त करनीजी रा -गिरधरदान रतनू दासोड़ी*

*वय पाय थाकी हाकी न केहर सकै शीघ्र,*
*कान न ते सुने नहीं किसको पुकारूं मैं।*
*चखन तें सुझै नहीं संतन उदासी मुख,*
*कौन ढिग जाय अब अश्रुन ढिगारुं मैं।*
*तेरे बिन मेरो कौन अब तो बताओ मात,*
*दृष्टि मे न आत दूजो हिय धीर धारूं मैं।*
*चरण की ओट मिले दोय वर रोट मिले,*
*कहै दास गीध  फिर मन को न मारूं मैं।।1*

*उदधि अथाह बीच शाह की पुकार सुनी,*
*पाण को पसार नै निसार बार लाई तूं ।*
*ऊ टूटी लाव कूप मंझ दंभी रूप तूं जुङी,*
*अनंद के अनंद वो फंद मेट आई तूं ।*
*ऊ भूप पूगलान मुलतान कैद मे रटी ,*
*जेल हों सों काढ शेख चाढ पंख लाई तूं।*
*आद समै आध साद संत फरियाद सुनी ,*
*वेर कवि गीध हूं की देर कैसे लाई तूं ।।2*

*जदै वा पुकारी सिंह री सवारी साज मात,*
*विघन विदारी अरूं काज को सुधारी है ।*
*म्हारी वारी देर न लगारी भीरधारी अब,*
*दैत वा दलनहारी पात पोखवारी है ।*
*कळू में भरोसो भारी महतारी तोरो आज ,*
*ओ मेहारी दुलारी हमारी रखवारी है ।*
*महमा अपारी दुनी हूं पे राज थारी सुन ,*
*आस आ तिहारी पर  दास गिरधारी है।।3*

*विकराल कलिकाल हाल को बेहाल कियो,*
*भाल न करेगी मैया पाल कौन करेगो ।*
*रोजी की तो तोजी नहीं साधन की सोजी नहीं,*
*कोजी भई मैया अब पेट कैसे भरेगो।*
*ऐ पूत है कपूत तेरे मन मजबूत ना ,*
*धूत जान छोडेगी तो ध्यान कौन धरेगो ।*
*जैसे भी हैं तेरी धणियाप के भरोसे हम ,*
*ओगन को देखेगी तो काम कैसे सरेगो ।।4*
*गिरधरदान रतनू दासोड़ी*

शनिवार, 22 जुलाई 2017

अंगूठा री छाप सु

आपणां बडेरा
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बडेरां रो काम चालतो अंगूठा री छाप सुं

दीखणं में गिंवार हा लाखां रो बिजनस कर लेंता
ब्याजूणां दाम दियां पेली अडाणें गेणां धर लेंता

च्यार महीनां खपता हा बारा महीनां खांता हा कांण मोखाण औसर मौसर दस दस गांव जिमांता हा

एक लोटो हूंतो हो सगला घर रा निमट (फ्रेस) आऊन्ता हा
दांतणं खातर नीमडा री डाली तोड लियांता हा

गाय भैंस रा धीणां हा बलदां री जोडी राखता

परणींजण नें जांवता हा ऊंट बलद रा गाडां में
हनीमून मनाय लेंवता भैंसियां रा बाडा में

न्यारा न्यारा रूम कठै हा कामलां रा ओटा हा
पोता पोती पसता पसता दादी भेला सोंता हा

सात भायां री बेनां हूंती दस बेटां रा बाप हूंता
भूखो कोई रेंवतो कोनीं मोटा अपणें आप हूंता

मा बापां रे सामनें फिल्मी गाणां गांता कोनीं
घरवाली री छोडो खुद रा टाबर नें बतलांता कोनीं

कारड देख राजी हूंता तार देखकर धूजता
मांदगी रा समाचार मरयां पछै ही पूगता

मारवाडी में लिखता लेणां आडी टेडी खांचता
लुगायां रा लव लेटर नें डाकिया ही बांचता

च्यार पांच सोगरा तो धाप्योडा गिट ज्यांवता
खेजडी रा छोडा खार काल सुं भिड ज्यांवता

लुगायां घर में रेंती मोडा पर कोनीं बैठती
साठ साल की हू ज्यांती बजार कोनीं देखती

बाडा भरयोडा टाबर हूंता कोठा भरिया धान हा
पैदा तो इंसान करता पालता भगवान हा

कोङियां री कीमत हूंती अंटी में कलदार रेंता
लुगायां री पेटियां में गेणां रा भंडार रेंता

भाखरां पर ऊंचा म्हेल मालिया चिणायग्या
आदमी में ताकत किती आपां नें समझायग्या

पाला जांता मालवे डांग ऊपर डेरा हा
दूजा कोनीं बे आपणां बडेरा हा