गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

अठे हर कोई भरे बटका !

*अठे हर कोई भरे बटका !*

*"राजस्थानी हास्य कविता"* ....

*घुमाबा नहीं ले जावां,*
*तो घराळी भरे बटका ......।*

*घराळी रो मान ज्यादा राखां,*
*तो माँ भरे बटका ........।*

*कोई काम कमाई नहीं करां,*
*तो बाप भरे बटका ......।*

*पॉकेट मनी नहीं देवां,*
*तो बेटा भरे बटका ......।*

*कोई खर्चो पाणी नहीं करां,*
*तो दोस्त भरे बटका .....।*

*थोड़ो सो कोई ने क्यूं कह दियां,*
*तो पड़ौसी भरे बटका ....।*

*पंचायती में नहीं जावां,*
*तो समाज भरे बटका .....।*

*जनम, मरण में नहीं जावां,*
*तो सगा, संबंधी भरे बटका ...।*

*छोरा, छोरी नहीं पढ़े,*
*तो मास्टर भरे बटका .......।*

*पुरी फीस नहीं देवां,*
*तो डॉक्टर भरे बटका ......।*

*गाड़ी का कागज,पानड़ा नहीं मिले,*
*तो पुलिस भरे बटका .......।*

*मांगी रिश्वत, नहीं देवां,*
*तो अफसर भरे बटका ......।*

*टाइम सूं उधार नहीं चुकावां,*
*तो मांगणिया भरे बटका ........।*

*टेमूं टेम किश्त नहीं चुकावां,*
*तो बैंक मैनेजर भरे बटका ......।*

*नौकरी बराबर नहीं करां,*
*तो बॉस भरे बटका .....।*

*व्हाट्सएप्प पर मेसेज नहीं करां तो,*
*ऐडमिन,दोस्त bhi  भरे बटका ....।*

*अब थे ही बताओ,*
*जावां,तो कठे जावां,*
*अठे हर कोई, भरे बटका..।*

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