राजल माता द्वारा अकबर से नवरोजा छुडवाना
बीकानेर की संस्थापिका देवी करणीजी वि स १५९५ चैत सुदी नवमी को ज्योतिर्लीन हो गये। इनके ज्योतिर्लीन के ठीक दस मास पश्चात् यानि वि स १५९५ को माघ मास के शुक्ल पक्ष में सौराष्ट्र प्रान्त के ध्रांगध्रा तालुका के चराडवा गांव में वाचा शाखा के चारण उदयराज के घर राजबाई माता का जन्म हुआ। ये राजबाई राजल माता के नाम से करणी जी के पूर्णांवतार के रूप में जानी जाती है ।
१९३८ ईस्वी सन् को प्रख्यात इतिहासकार किशोरसिहजी बाहर्स्पत्य ने श्री करणीचरित्र ग्रंथ लिखकर बीकानेर महाराजा गंगासिह को समर्पित किया। लेखक के उक्त ग्रंथ को लिखने का एक मात्र कारण यह रहा था जो आजकल हमें व्हाटसप पर किरणदेवी नामक कल्पित पात्र द्वारा अकबर से नवरोज छुडवाने का प्रचार प्रसार करके अपने गौरव में श्री वृद्धि करके देवी राजल माता के ऐतिहासिक चरित को कमत्तर करने का प्रयास कर रहे है।
नवरोजा प्रथा एक ऐसा राजपूताने का दाग था जिसे आई श्री करणी माता के पूर्णांवतार राजल माता ने अपने दैविक शक्ति द्वारा समाप्त किया था और अकबर के इस लम्पट आचारण से राजपूताने को मुक्ति दिलवाई। जिसकी पुष्टि स्वंय पृथ्वीराज के सोरठे, दयालदास की ख्यात २ पृ १३४-३५,वाचा चारणों के रावल की बही,मुंशी देवी प्रसाद के ग्रंथ राज रसनामृत,डा लुइजिपिओ तैसिस्तोरि,रावत सारस्वत, राजवी अमरसिंह आदि के ग्रंथों से व सैकडों डिंगल रचना से इसकी पुष्टि होती है।
पृथ्वीराज राठौठ बीकानेर के राव कल्याणमल का पुत्र था जो उच्चे दर्जे का भक्त कवि था ।अकबर के दरबार में रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड दोनो को उचित स्थान था।पृथ्वीराज राठौड महाराणा प्रताप का मौसेरा भाई था। रायसिंह को अकबर ने सौराष्ट्र प्रान्त का प्रशासक नियुक्त किया था एक बार पृथ्वीराज सौराष्ट्र जा रहा था तब रास्ते में चराडवा गांव में उसका घोडा मर गया तभी वहा से गुजर रही दस वर्षीय बालिका राजल माता ने चमत्कारी ढंग से मृत घोडे को पुन:जीवित कर दिया।पृथ्वीराज देवी अवतार राजल माता को प्रणाम करके भविष्य में होने वाले संकट में मदद करने का वचन मांगा।राजल माता ने कहा जब भी तुम्हें संकट आये मुझे याद करना मै तुम्हारी मदद करूंगी।
पृथ्वीराज का विवाह जैसलमेर के हरराज भाटी की पुत्री छोटी पुत्री चम्पा कुंवरि के साथ हुआ था ।हरराज भाटी की बडी पुत्री नाथी बाई का विवाह अकबर के साथ हुआ।अकबर ने अपनी रानी नाथीबाई से चम्पा कुंवरि के रूप सौन्दर्य की बात सुनने पर वह उसे प्राप्त करने के लिए लालाहित हो उठा।उसने षंडयंत्रपूर्वक नवरोज के त्योहार में चम्पाकुंवरि को बुलवाने का आदेश दिया।पृथ्वीराज उसके आचरण से वाकिब था अकबर ने छलबल से उसका डोला अपने महल में बुला दिया।पृथ्वीराज अकबर की मनोइच्छा को भांप गया और उसने इस संकट की घडी में राजल माता को याद किया और अपने ऊपर आये संकट को निवारण करने की प्रार्थना की।
पृथ्वीराज का कहा सोरठा इस प्रकार है।
बाई सांभल बोल ,
कमधां कुल मेटण कलंक।
करजे साचो कोल,
ददरैरे दीधो जिको।
पृथ्वीराज की पुकार सुनके देवी राजल माता आगरा में प्रकट हो गये ।अकबर ने जैसे ही डोले की कनात हटाई तभी राजल माता सिंह रूप में प्रकट होकर अकबर का कंठ पकड लिया।तभी अकबर ने अपने प्राणों की भीख मांग दी और राजल माता को कहा कि मै आपकी गाय हूं मुझे माफ कर दो ।तब राजल माता ने उसे भविष्य में अपने आचरण को सुधारते हुए नवरोज प्रथा को बंद करने के वचन देने पर अकबर के प्राण बख्शे। राजल माता के नवरोज छुडवाने पर ओंकारसिंहजी लखावत द्वारा लिखित पुस्तक को पढकर अपने भ्रम को दूर करे।
जय राजल माता
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✍डा नरेन्द्र सिंह आढा
श्री देवल कोट झांकर
इतिहास व्याख्याता रा उ मा वि घरट सिरोही
सारा सगतियां सरे , राजल थांरो राज ।
पीथल करे प्रार्थना , राजबाई महाराज ।।
राजल राजल रटता. पीथल करे पुकार ।
विखमी पुल आ वरणी , वेग कराओ वार ।।
तु चौराडी चारणी , हुं क्षत्री राठौड ।
नवरोजे नारी चढे , कुल ने लागै कोड ।।
गजराज धायो गोविंद ,द्रोपद जदुराज ।
हुं तनां धावां हमे , राजबाई महाराज ।।
धेनां छोडी धावती , वाडे वाछडियाह ।
उदाई डग आछटे , चीला डग चढियाह ।।
आयो बीकाणो आगरो , पीथल ना पायोह ।
वले पीयाणो वहंता , दिल्ली दिस धायोह ।।
केथ अकबर रो केलपुर , केथ चोराडो देस ।
आई आवो उंतावला , सुण पीथल संदेस ।।
नवरात्री मेले निरख , निरखी सब नरीह ।
चंपा कंवरी केथ चले , पिथे पूकारीह ।।
पग सामटे पग डहे ,वाहण विकरालीह ।
भटियाणी भेला हुआ , राजल रखवालीह ।।
राजबाई रथ मो रमे , भमे शाही गरम ।
भमे अकबर रा भोगना , नम नम होवे नरम ।।
अकबर छोडी उण दिन , नवरोजे री नीत ।
राजबाई रै सरणे , पीथल रहे नचीत ।।
हल चल प्रथ्वी पर होवे , जल थल अथल जंग ।
पीथल री सुण प्रार्थना , राजबाई जबरंग ।।
•••••••••••••••कवि पृथ्वीराज राठौड
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