बाग बिगाङे बांदरो,
सभा बिगाङे फूहङ ।
लालच बिगाङे दोस्ती
करे केशर री धूङ ।।
जीभड़ल्यां इमरत बसै,
जीभड़ल्यां विष होय।
बोलण सूं ई ठा पड़ै,
कागा कोयल दोय।।
चंदण की चिमठी भली,
गाडो भलो न काठ।
चातर तो एक ई भलो,
मूरख भला न साठ।।
गरज गैली बावली,
जिण घर मांदा पूत ।
सावन घाले नी छाछङी,
जेठां घाले दूध ।।
पाडा बकरा बांदरा,
चौथी चंचल नार ।
इतरा तो भूखा भला,
धाया करे बोबाङ ।।
भला मिनख ने भलो सूझे
कबूतर ने सूझे कुओ ।
अमलदार ने एक ही सूझे
किण गाँव मे कुण मुओ ।।
राजस्थानी बोलियों में कविताए कहानियां मजेदार चुटकुले गीत संगीत पर्यटन तथ्य रोचक जानकारियां ज्ञानवर्धन GK etc.
शनिवार, 29 अप्रैल 2017
बाग बिगाङे बांदरो.........
पुराणां समै री बात है
पुराणां समै री बात है , राजस्थान री धोरा धरती में ऊनाळै रै दिनां में दो सहेलियां कांकङ (वनक्षेत्र) में लकङियां लावण ने गई ।
रस्ते में व्है देखियौ के दो हीरण मरियोङा पङिया हा अर उणां रै बीच में एक खाडा में थोङो सो"क
पाणी भरीयौ हौ । जद एक सहैली कह्यौ ----
खङ्यौ नी दीखै पारधी ,
लग्यौ नी दीखै बाण ।
म्है थने पूछूं ऐ सखी ,
किण विध तजिया प्राण ।।
( है सखी , अटे कोई शिकारी नजर नी आय रियौ है अर इणां रै बाण भी नी लागोङो है तो ऐ हीरण किकर मरिया ? )
तो दुजोङी सहैली उण ने उत्तर दियौ --
जळ थोङो नेह घणो ,
लग्या प्रीत रा बाण ।
तूं -पी तूं-पी कैवतां ,
दोनूं तजिया प्राण ।।
( इण सुनसान रोही में दोनूं हीरण तिरस्या हा , पाणी इतरौ ही हौ के एक हीरण री तिरस(प्यास ) मिट सके , पण दोयां में सनेह इतरो हौ के उणां मांय सूं कोई एक पीवणीं नी चावतो । इण खातर दोइ एक -दूजा री मनवार करता करता प्राण तज दिया ।)
राजस्थान री धोरां धरती रै जानवरां में इतरो नेह अर हेत है , तो अटा रै मिनखां रै नेह रो उनमान नी लगां सकां ।
तो म्हारा सगळा साथिया सु हाथ जोङ अर आ विनती है की था सगळा ने भी इणी तरा रेवणो है
बुधवार, 26 अप्रैल 2017
राजस्थान के लोगो की बीमारियां..
राजस्थान के
लोगो की बीमारियां..
जिनसे
डॉक्टर भी परेशान है..
1. कई भी काम में मनिज नी लागे
2.सुबेवूं गड़बड़ है सा
3. जीव घणो घबरावे
4. कई भी खाओ तो उप्पर आवे...
5. पगतल्यां घणी बले
6. हात पाँव खेचीजे घणा
7.थोड़ीक दूर चालू तो हा भरीज जावे
8. कम्मर घणी फाटे
9. दांत में कच कची आवे...
10. जबान फीकी फच लागे
11 .हाथ पग में भाईन्टा आवे
12.आंख्या में रेत पड़गी एड़ो लागे
13. गळा में कांटा गडयोड़ा जाणै
14. माथो भचक भचक करे
15. गर्दन सीदिज नीं वे
16. उबो ई नी रेविजे
सोमवार, 24 अप्रैल 2017
डाकटर साहब..
एक जोधपुर का आदमी डॉक्टर के पास गया
"डाकटर साहब बुखार में सरीर बल़ै है !!
डॉक्टर ने चेक किया और दवाइयां लिखने लगा
आदमी : "डाकटर साहब...
.....
खारी ज़ैर दवाई मती लिख दीजो"
डॉक्टर ने उसे घूर कर देखा और फिर दवाइयां लिखने लगा
आदमी : "डाकटर साब...
हुणौ... कड़वी वाली दवाई मत लिखजो सा..."
डॉक्टर भी जोधपुर का था...
उसको गुस्सा आ गया और बोला...
"तो कांई सा आपरे दाल़ रो हीरो ने मावे री कचौरी लिख दूं...?? और एक मिर्ची बडो़ ??
सास बहु की मारवाड़ी कविता:
सास बहु की मारवाड़ी कविता:
मत कर सासु बेटो बेटों
ओ तो मिनख म्हारो है
जद पहनतो बाबा सूट
जद ओ गुड्डू थारो हो
अब ओ पहरे कोट पेंट.
अब ओ डार्लिंग म्हारो है
जद ओ पीतो बोतल में दूध
जद ओ गीगलो थारो हो
अब पीवे गिलास में जूस
अब ओ मिस्टर म्हारो है
जद ओ लिखतो क ख ग
जद ओ नानको थारो हो
अब ओ करे watsapp sms
अब ओ जानू म्हारो है
जद ओ खातो चोकलेट आइस क्रीम
जद ओ टाबर थारो हो
अब ओ खावे पिज़्ज़ा बिस्कुट
अब ओ हब्बी म्हारो है
जद ओ जातो स्कुल कोलेज
जद ओ मुन्नो थारो हो
अब ओ जाए ऑफिस में
अब ऑफिसर म्हारो है
जद ओ मांगतो पोकेट खर्चो
जद ओ लाडलो थारो हो
अब ओ ल्यावे लाखां रूपिया
अब ओ ए टी एम म्हारो है
मत कर सासू लालो लालो
अब ओ छैलो म्हारो है |
शनिवार, 22 अप्रैल 2017
बटका
अठे हर कोई भरे बटका
.... राजस्थानी हास्य कविता ....
घुमाबा नहीं ले जावां,
तो घराळी भरे बटका ......।
घराळी रो मान ज्यादा राखां,
तो माँ भरे बटका ........।
कोई काम कमाई नहीं करां,
तो बाप भरे बटका ......।
पॉकेट मनी नहीं देवां,
तो बेटा भरे बटका ......।
कोई खर्चो पाणी नहीं करां,
तो दोस्त भरे बटका .....।
थोड़ो सो कोई ने क्यूं कह दयां,
तो पड़ौसी भरे बटका ....।
पंचायती में नहीं जावां,
तो समाज भरे बटका .....।
जनम मरण में नहीं जावां,
तो सगा संबंधी भरे बटका ...।
छोरा छोरी नहीं पढ़े,
तो मास्टर भरे बटका .......।
पुरी फीस नहीं देवां,
तो डॉक्टर भरे बटका ......।
गाड़ी का कागज पानड़ा नहीं मिले,
तो पुलिस भरे बटका .......।
मांगी रिश्वत नहीं देवां,
तो अफसर भरे बटका ......।
टाइम सूं उधार नहीं चुकावां,
तो मांगणिया भरे बटका ........।
टेमूं टेम किश्त नहीं चुकावां,
तो बैंक मैनेजर भरे बटका ......।
नौकरी बराबर नहीं करां,
तो बॉस भरे बटका .........।
व्हाट्सएप्प पर मेसेज नहीं करां तो,
ऐडमिन भरे बटका .........।
अब थे ही बताओ,
जावां तो कठे जावां,
अठे हर कोई भरे बटका।
शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017
विवाह में ध्योन राकवा री वातो
*विवाह में ध्योन राकवा री वातो*.................
1. कण्णेइ जोने जाओ जरे कपडा ढंग रा पेरना, नीसा-नीसा पेंट पेरेन वेवाइयो ने jockey
री अंडर वियर नी वतावणी..
2. सवरी में विदराजा हाते एक जणा ने आवा रु के तो वेवाइयो ती बहस नी करनी डेरे पु जाणू..
3. डेरे जावा रु कियो पुटी बारे उबा उबा माये जावा री तरकीब नी होजणी, मोडिया थोन कामयाब वेवा नी दिए..
4. ओपरी जोन रे हाते वरे कोई जोन आयोडी वे तो बीजा विदराजा री खोमियो नी काडणी..
5. बैठक में बेटा वो जरे आकोदाडू मोबाइल री खटपट नी करनी..
6. विदराजा रे रातरा मोड़ा फेरा वेतो थोड़ी वेला अलार्म ⏱लागावेन पु हुणुु, 2 वजियो हुदी जागवा हारू candy crush रा लेवल पार नी करना..
7. मोबाइल री फालतू बेट्री लो नी करणी, फोन बंद पडियो पुटी आकरु पड़ी, डेरा मा आधी रातरा चार्जर होजता फरेयो..
8. विदराजा रे नेनको हाँरो जिमवा भेरो बिए तो डुसा-डुस कवा नी देना..
9. खावान जतरू भावे वतरु थाली में लेणु पसे नी भावे जरे गुलाब-झोबू ने बीजा दरी रे हेटे नी घालणा.
10. विदराजा रे गोड़े बेनू वेतो वेवाइयो ने केन एक पलंग वरे पो मंगावनो, एक पलंग माते दस जणा बेन पलंग नी तोड्नो..
11. एक हँकायो एनी टाइम विदराजा रे गोड़े रेणू ,भुआ रे घरे ने बेन रे घरे मलवा जाणु वे तो पसे पु जाणु अबार जोने आयोडा हो.
12. बैठक में विदराजा ने ⛓सेन या विटी जो भी दिए बेग में पी घालणी वटे बैठक में "1 तोला री है 2 तोला री है फोरकी है "करवा नी बेनू..
13. बैठक पटियों पुटी वेवाइयो रा मोर थापोड़ना धन्यवाद देनो साफो ने रूपया गुजिया मा घालेन टपु टपु रवोने नी वेणु..�
14. जोन पासी रवोने वे जरे रास्ता में मोमोजी (वीर बावशी)रु के वरे कोई थोंन बीजा वे तो बीडी पी सडावणी,
15. फेरा फरियो पुटी सवरी निसा उतरे जरे विदराजा ने तेरनो वे तो पेला ओपरी बोडी पी देकनी, जोश जोश में होडा गोडा करवा नी जाणु, विदराजा ने लेन हेरी में लोबा वेइयो तो वेवोणों हँसी............।
बिजु कोई नी; मे तो थोरे भला हारू कियो है पसे थे जोणो
मंगलवार, 18 अप्रैल 2017
Recycling
Cycle चलाई ने थाक्या
Motorcycle लीली
Motorcycle से कमर दुखवा लागी तो
Car लीली।
Car चलान्ता पेट मोटो होइ ग्यो...... तो
Gym join करनो पड्यो। जिम में पाछी
Cycle चलानी पड़ी।
इन्ने केव्वे है.... Recycling
गजब पड़ी रो,तावड़ो
गजब पड़ी रो,तावड़ो
कोई,किस्तर,
बाने जावें,बापड़ो,
आँख्याई,नी खुले,
गजब पड़ी रो,तावड़ो ।
पसीनाऊ-पसीनाऊ,
पूरो डील,वासवा,लागी जा,
मर्या-उन्दरा जसी,
वाना आवा,लागी जा ।
गाबा री,मती पूछो,
उस्तर्या,गायब वेईजा,
पछे,देखताई-देखता,
मसोता,वणी न रेई जा ।
पसीनों,पूँछी-पूँछी न,
हाथ,दुखवा लागी जा,
मुंडो लालचट्ट,पड़ न,
लकु-वान्दरा जस्यों,वेई जा ।
थोड़ी देर,तावड़ा में,रेई जावों,
तो काळा-पीळा,आईजा,
ध्यान नी,राखों तो,
खादो-पीदो,बाने आईजा ।
घरे आताईन,तो,
जंगळी भालू,वणी जा,
थोड़ोक कोई,बोली जा,तो,
काम पड़्या,ऊपरे पड़ी जा ।
वणी टेम,किस्मतऊ,
लाईटा,परी जा,
तो गाळ्या,देई-देई न,
मुंडो,देखवा जस्यों वेई जा ।
राजन,हे!हूरज भावजी,
अतरो कई,कोप करी रो,
म्हां अस्या कई,करम किदा,
जो तड़पा-तड़पाईन,मारी रो ।
जो तड़पा-तड़पाईन,मारी रो । ।
माला रा मड्ढै नै वीरम रा गड्ढै
‘माला रा मड्ढै नै वीरम रा गड्ढै’
राव वीरमदे राव सलखा के चार बेटों में तीसरे बेटे थे | बड़े बेटे रावल माला अथवा मल्लीनाथ थे | रावल माला खेड़ के शासक थे | राव वीरमदे भिरड़कोट के मालिक थे, जिनके अधिकार में 6-7 गाँव थे |
एक बार दला जोहिया ( योद्धेय ) रावल माला से शरण माँगने आया | कुँवर जगमाल ( रावल माला का बड़ा बेटा ) ने दला जोहिया से उसकी घोड़ी ‘समाध’ मांगी | दला ने घोड़ी देने से इन्कार कर दिया | वह राव वीरमदे के पास पहुंचा | वीरमदे ने उसे बिना शर्त शरण दे दी | तब दला जोहिया ने वह ‘समाध’ घोड़ी सहर्ष वीरमदे को भेंट कर दी | इससे रावल माला वीरम से नाराज रहने लगे |
इसी तरह की एक और घटना घटी | वीरम ने गुजरात के बादशाह की घोड़ों की कतार लूट ली | बादशाह खेड़ पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगा | रावल माला ने वीरम को भिरड़कोट त्यागने पर मजबूर किया और खेड़ पर आई आफत टाली | वीरम की सहायता जांगलू के शासक सांखला ऊदा सूजावत ने की | उसकी सहायता से वे वहां से भाग गए | दला जोहिया ने उसे शरण दी | दला ने वीरम की बहुत मदद की | उनकी आय के साधन बढे और लोग उनके पास आ जुड़े | बस यहीं वीरमदे से एक गलती हो गई | उन्होंने जोहियों का पवित्र फरास का वृक्ष ढोल बनवाने के लिए कटवा दिया | जोहियों ने इसे सहन नहीं किया और गायों के बहाने उनमें विग्रह हुआ ओए वहीं वीरमदे काम आये | इस युद्ध का वृतांत ‘वीरमायण’ अथवा ‘वीरबाण’ नामक डिंगल महाकाव्य में मिलता है | इस कृति का रचयिता जोहियों का ढ़ाढ़ी ( गायक ) था जो इतिहास में ढ़ाढ़ी बादर ( बहादुर ) के नाम से विश्रुत है | इस ग्रन्थ में महाकाव्य के सारे गुणों का समावेश है | मुसलमान कवि ने गणेश-वंदना से लेकर सारी भारतीय काव्य परम्परा को निभाया है | यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि जोहिया पहले हिन्दू थे, फिर इस्लाम धर्म अपनाया| इसलिए उनके नाम दला, मधु आदि आते हैं |
राव चूंडा वीरम का उत्तराधिकारी हुआ | मुहता नैणसी और अन्य साक्षस्यों के अनुसार उनके चार रानियाँ थी |
1 – राणादे जसहड़ भटियाणी रावल दूदा के पुत्र बीसा अथवा बीसलदे की पुत्री | पुत्र- चून्डा |
2 – माँगळियाणी लालां कान्ह केलणोत की पुत्री | पुत्र – जयसिंह |
3 – चांदणदे आसराव रिड़मलोत की पुत्री | पुत्र – गोगादे |
4 – लाछांदे उगमणसी सिखरावत इंदा की बेटी | पुत्र – देवराज | इसे पिता ने सेतरावा दिया था |
इसके अतिरिक्त वीरमदे के पुत्रों बीजा, हमीर, नृपत और नारायण नाम भी मिलते हैं |
जब वीरमदे काम आये तब चूंडा की उम्र मात्र 6 बरस थी | राणादे जसहड़ भटियाणी का एक धर्म भाई आल्हा चारण काळाऊ गाँव का था | राणादे ने अपने अंतिम समय में चूंडा को धाय को सौंपते हुए कहा था कि वह काळाऊ धर्म भाई आल्हा चारण के पास चली जाए | धाय ने ऐसा ही किया | आल्हा ने भी धर्म निभाया और उसको गोपनीय तरीके से रखा |
चूंडा काळाऊ गाँव में आल्हा चारण के बछड़े चराता था और गाँव के लोगों के लिए सामान्य जन था | एक दिन आल्हा ने देखा कि चूंडा बछड़े चराता एक पेड़ की छाया में सोया है और एक काला सांप उस पर छत्र ताने बैठा है | आल्हा को बालक का राजसीपन याद आया और उसे रावल माला के प्रधान भोपत तक पहुंचाया | रावल माला ने चूंडा को सालोड़ी थाणे पर लगाया और कुछ समय बाद उसे सालोड़ी की जागीर भी सौंप दी |
चूंडा ने सालोड़ी में रह कर घोड़ों व राजपूतों को एकत्र कर अपना बल बढाया | एक बार चूंडा के सैनिकों ने एक अरब व्यापारी के घोड़े लूट लिए इससे रावल माला नाराज हुए, पर चूंडा की सैनिक ताकत बढ़ गई थी |
मंडोर पर उस वक्त मांडू के बादशाह का सूबेदार ऐबक नियुक्त था | उस समय पडिहारों (इन्दों) के साथ ही यहाँ बालेसों, आसायचों, सीन्धलों आदि के 84-84 गाँव तथा मांगळियों के 55 और कोटेचों के पैंतीस गाँवों पर ऐबक का कब्जा था | इन्दों के मुखिया राणा उगमसी ने अन्य राजपूतों के साथ मिलकर मंडोर पर कब्जा कर लिया | पर निरंतर होने वाले संघर्ष से बचने के लिए राणा उगमसी ने अपने बेटे गंगदेव की बेटी लीलादे का विवाह चूंडा से करके मंडोर दहेज़ में दे दिया | इन्दों के मुखिया टोहोजी ने शर्त रखी कि हमारे 84 गाँवों में आप दखल नहीं देंगे | तभी से यह मशहूर है –
‘ईंदा रो उपकार, कमधज कदै न बीसरै |
चूंडो चँवरी चाड, दियो मंडोवर दायजै ||’
जब चूंडा के पास मंडोर का शासन आया तब एक बार कहते हैं कि काळाऊ से आल्हा चारण मिलने आया था | उसने मिलने के प्रयत्न किये किन्तु कामदारों ने उसके प्रयत्न असफल कर दिए | हताश, निराश और परेशान आल्हा ने तब कहा –
‘चूंडा आवज चीत, काचर काळाऊ तणा |
भूप भयो वैभीत , मंडोवर रै माळियै ||’
( हे चूंडा काळाऊ गाँव के काचर याद करो | अब वैभवशाली होकर मंडोर के महलों में उन दिनों को क्यों भूल गए हो ? )
राठौड़ों की राज्य-प्रसार की नीति के कारण दूसरे थार के ठिकाने उनसे नाराज चल रहे थे | भाटी तो वीरमदे के काल से ही राठौड़ों के विरुद्ध थे | यह विरोध अरङकमल ( चूंडा का बेटा ) के कारण और बढ़ा | पूगल जो भाटियों का जैसलमेर से अलग स्वतंत्र राज्य था, वहां के राजकुमार सादा अथवा सार्दूल ने कोडमदे से शादी कर ली| यह कोडमदे द्रोणपुर-छापर ( वर्तमान में चुरू में ) की मोहिल (चौहान) राजकुमारी थी ,जिसने राठौड़ अरङकमल (चूंडा का बेटा) से हुई सगाई को उसकी कुरूपता के कारण नकार दिया था | पूगल के राजकुमार सादा की सुन्दरता पर रीझ कर उसने माँ-बाप को सादा से विवाह के लिए मनाया | सो राठौड़ और भाटियों में संघर्ष होना लाजमी था | युद्ध में राजकुमार सादा व उसके पिता राणगदे मारे गये | पूगल का सिंहासन खाली हो गया | (यह अत्यंत लोकप्रिय प्रेम कथा है | कोडमदे नाम से राजस्थानी – मंचीय कविता भी है मेघराज मुकुल की |)इसी बीच जैसलमेर के पाटवी राजकुमार केल्हण (केलण) को महेचवों में शादी करने के कारण उसके पिता रावल केहर ने उसे राज्य से निकाल दिया | केल्हण अपनी सम्पूर्ण बस्ती के साथ बीकमपुर आ गया | वहीं उसे पूगल की सोढ़ी रानी का सन्देश मिला कि ‘आप मेरे पति व पुत्र की मौत का बदला राठौड़ों से लें तो मैं पूगल की राजगद्दी उन्हें सौंप दूँगी|’
भाटी केल्हण ने इसे मंजूर कर लिया | मुल्तान के जलाल खोखर और भाटी केल्हण ने नागौर के पास चूंडा को जा घेरा | राव चूंडा मारे गए | भाटी केल्हण की विजय हुई | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भाटी केल्हण की बेटी कोडमदे का विवाह चूंडा के कुंवर रणमल से हुआ था(यही भटियाणी जोधा की माँ थी) और इस तरह वे सम्बन्धी भी थे| कहते हैं कि युद्ध खत्म होने के बाद में चून्डाजी के मस्तक को केल्हण ने भाले में पिरोकर भाला गाड़ा और भाटी केल्हण ने ‘सगाजी ! लटक जुहार’ कहते हुए उन्हें सलामी दी | पास खड़े एक समझदार ने कहा कि –‘ केल्हणजी यह आपने ठीक नहीं किया ? आगे से भाटी ही अब सलामी में रहेंगे |’ इस तरह केल्हणजी ने तो पूगल का सिंहासन प्राप्त किया पर भाटियों को अभिशापित कर गये |
भावी अपना खेल खेलती है | छोटे भाई राव वीरम के वंशज आगे चलकर गढ़ों के स्वामी बने और रावल माला के वंशज छोटी छोटी इकाइयों में बाँट कर शक्तिहीन हो गए | तब से यह कहावत प्रचलित है –
‘माले रा मड्ढै नै वीरम रा गड्ढै’ |
(अर्थात –बड़े भाई रावल माला के मढ़ों में और छोटे भाई वीरम के गढ़-किलों में|)
गेल सफी कठई की………
*पत्नी बोली* ….
ओ जी थे हर बात मं म्हारा पीहर वाला न बीच मं क्यूँ ल्याओ हो।
जो केवणो है म्हन सीधो- सीधो के दिया करो
*पति बोल्यो* :
देख बावळी, अगर आपणो मोबाइल खराब हु ज्याव तो आपां मोबाइल न थोड़ी बोलां ,
गाल्यां तो कंपनी वाला न ही काढस्यां नी
गेल सफी कठई की………
शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017
किण स्यूं किंया बात करणी चाईजै
*किण स्यूं किंया बात करणी चाईजै* ..
माँ= स्यूं बिन्या भेद ...खुल'र बात करणी
बाप= स्यूं आदर स्यूं बात करणी...
गुरूजी= स्यूं नजर नीची कर'र बात करणी ...
भगवान= स्यूं नैण भर'र बात करणी ...
भायां= स्यूं हियो खोल'र बात करणी ...
बैना= स्यूं हेत सू बात करणी ...
टाबरा= स्यूं हुलरा'र बात करणी..
सगा-समधी= स्यूं सन्मान दे'र बात करणी ...
भायलां= स्यूं हंसी मजाक सू बात करणी...
अफसरा= स्यूं नम्रता स्यूं बात करणी ...
दुकान हाळै= स्यूं कडक स्यूं बात करणी..
गिराक= स्यूं ईमानदारी स्यूं बात करणी ...
और
*घरवाळी स्यूं ....अं हं हं हं ह ह..... *
अठै आतां चेतो राखणो .....
ई, माते-राणी आगै तो चुप ही रेणो ....
नत-मस्तक हू'र सगळी सुण लेणी ...
बोलणूं घातक हुवै ।
शनिवार, 8 अप्रैल 2017
न्यारी
आजकल तो घर घर में
या फैल रही बीमारी।
परणीज के आता ही
बहु होवण लागी न्यारी।।
होवण लागी न्यारी,
सासु सागे पटे कोनी।
साल दो साल भी
सासरे में खटे कोनी।।
नई पीढ़ी री बहुआ है
बे तो हर आजादी चावे।
सास ससुर की टोका टाकी
बिलकुल नही सुहावे।।
बिलकुल नही सुहावे
सुबह उठे है मोड़ी।
लाज शरम री मर्यादा
तो कद की छोड़ी।।
साड़ी को पहनाओ छोड्यो
सूट चोखा लागे।
जींस टॉप पहन कर घुमण
जावे मिनख रे सागे।।
जावे मिनख रे सागे
सर ढ़कणो छूट गयो है।
"संस्कारा" सूं अब तो
रिश्तो टूट गयो है।।
बहुआ की गलती कोनी
बेचारी वे तो है निर्दोष।
बेटियां के उण माईता को
यो है सगलो दोष।।
यो है सगलो दोष जका
बेटियां ने सिर्फ पढ़ावे।
घर गृहस्थी री बात्या बाने
बिलकुल नही सिखावे।।
पढ़ाई के साथ साथ,
"संस्कार" भी है जरुरी।
"संस्कारा"के बिना तो
हर शिक्षा है अधूरी।।
हर शिक्षा है अधूरी
डिग्रीयां कोई काम नही आवे।
बस्यो बसायो घर देखो
मीनटा में टूट जावे।।
बेटी की तो हर आदत
माँ बाप ने लागे प्यारी।
वे ही आदता बहू में होवे
जद लागण लागे खारी।।
लागण लागे खारी
सासु भी ताना मारे।
कहिं नहीं सिखायो
माईत पीहर में थारे।।
बेटी ही तो इक दिन कोई की
बहू बण कर जावेली।
मिलजुल कर रेवेली जद बा
घणो सुख पावेली।।
सास ससुर ने भी समय
के सागे ढलनो पड़सी।
"बेटी"-"बहू" के फर्क ने
दूर करणो पड़सी।।
समय आयग्यो सब ने
सोच बदलनी पड़सी।
वरना हर परिवार इयां ही
टूटसि और बिखरसि।
कहे थारो prakash अगर
बहु सुधी-स्याणी चाहो।
बेटियाँ ने पढ़ाई के साथे
"संस्कार" भी सिखाओ।।
शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017
तोगा सिंह -गौरव_गाथा
गौरव_गाथा
वर्ष 1656 के एक दिन दिल्ली के दरबार में मुग़ल बादशाह शाहजहां अपने सभी उमरावों (दीवानों-जागीरदारों) के साथ बैठा हुआ था ........
अचानक बादशाह ने एक सवाल किया कि मेरे दरबार में मुग़ल उमरावों की संख्या 60 और राजपूत सरदारों की संख्या 62 क्यों ?? .........
इस पर एक मुग़ल उमराव ने खड़े हो के जवाब दिया जहाँपनाह 2 काम ऐसे है जो सिर्फ राजपूत ही कर सकते हैं हम नहीं कर सकते ........
(1) पहला काम सर धड़ से अलग हो जाए तो भी युद्ध करना ........
(2) दूसरा काम राजपूत योद्धा वीरगति प्राप्त करे तो क्षत्राणी का सती हो जाना .........
इस बात पे बादशाह शाहजहां ने उपहास उड़ाया और कहा कि ........ सर कटने के बाद भला कोई योद्धा युद्ध लड़ सकता है क्या ........
दरबार में विराजित मारवाड़ (जोधपुर) महाराजा गजसिंह जी (प्रथम) को ये बात नागवार गुजरी ........ और वो खुद को अपमानित महसूस कर के वहां से उठ खड़े हुए और तत्काल जोधपुर के लिए प्रस्थान किया ........
जोधपुर लौटते वक्त एक दिन उन्होंने मारवाड़ के एक रावले (ठिकाने) में शरण ली ......... वो ठिकाना था मेरे जिले नागौर का रोहिन्डी ठिकाना (आज का परबतशहर - तहसील) .........
वहां के ठाकुर साब काफी वयोवर्द्ध थे ........ उन्होंने मारवाड़ महाराजा गजसिंह जी की आवभगत की और उनसे कहा ......... आपको बचपन में अस्त्र शस्त्र की शिक्षा मैंने दी है और अपनी गोद में खिलाया है ........
भोजन के पश्चात महाराजा गजसिंह जी अपनी व्यथा उन ठाकुर साब को सुनाते है ........ और कहते है सर कटने के बाद भी सिर्फ धड़ से लड़ने वाला राजपूत योद्धा चाहिए ........ ये अब मारवाड़ (जोधपुर) की आन बान शान और नाक का प्रश्न है ........
बुज़ुर्ग ठाकुर साब कहते हैं ........ इसमें कौनसी बड़ी बात है मेरे दोनों बेटे लड़ सकते हैं ........ और अपनी ठकुराइन को बुला के पूछते हैं अपना कौनसा बेटा गर्दन कटने के बाद भी धड़ से युद्ध लड़ सकता है ........
इसपे ठकुराइन कहती है लड़ तो दोनों बेटे सकते हैं ........ किंतु बड़ा बेटा किले के भीतर भी लड़ सकता है और बाहर भी लड़ सकता है ........ छोटा बेटा सिर्फ परकोटे पे लड़ सकता है ......... क्योंकि इसके पैदा होने के वक़्त मैं अस्वस्थ थी और दूध थोड़ा कम पिलाया है छोटे को ........
अब दूसरी समस्या ये थी कि बड़ा बेटा तोगा सिंह कुंवारा है ........ उसके साथ सती कौन होगी ?? .........
तब ही जोधपुर महाराजा के साथ पधारे ओसिया के भाटी सरदार बोल उठे ........ “में दूंगा अपनी बेटी इसको” ........
"भाटी कुल री रीत आ आनंद सु आवती .......
करण काज कुल कीत, भटीयानिया होवे सती" ........
एक बाप अपनी बेटी को शादी से पहले ही विधवा करने को सती करने को तैयार हुआ ये था राजपूती धर्म ........ अच्छा मुहूर्त देख कर महाराजा गज सिंह जी रोहिण्डी ठाकुर साहब के बड़े पुत्र तोगा राठौर का विवाह रचाते है ........
पर शादी के बाद तोगा सिंह पत्नी से मिलने से इंकार कर देता है और कहलवाता है की ....... “अब तो हम दोनों का मिलन स्वर्गलोक में ही होगा” ........ कह कर तोगा राठौर दिल्ली कूच करने की तैयारी करने लगता है .......
शाहजहा तक समाचार पहूचाये जाते है ....... एक खास दिन का मुहूर्त देख कर तोगा राठौर दिल्ली का रास्ता पकड़ता है ....... दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस द्रश्य को देखने जमा थे ........
बादशाह शाहजहा ने अपने खास योद्धाओं को तोगा राठौर को मारने के लिए तैयार कर रखा था ........ तोगा राठौर को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की ........ इसकी गर्दन उड़ा दो .......
तभी बीकानेर महाराजा बोले ....... “ये क्या तमाशा है ?? राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है ....... लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ??" ........
बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सर काट दो ........ 20 घुड़सवारों का दल रोहिंडी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी ........
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ........ मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ........ बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी ........ और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ........
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने ....... अब और मत कीजिये हजुर ....... इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर ........ तलवार से ये नही मरेगा ........
कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सर में गोलिया मार दी ........ और फिर पीछे से उसका सर काट देते है ........पर उस वीर के धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और तोगा राठौड़ गिरता नहीं है ......... वो अपने दोनों हाथो से तलवार चलते हुए मुगलों का मारते रहे ........ मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलता
रहा ........
बादशाह ने तोगा राठौर के छोटे भाई कुंवर अमरेश को अपने पास निहथे बेठा रखा था ये सोच कर कि ........ ये बड़ा यदि इतना बहादुर निकला तो छोटा कितना बहादुर होगा ?? ........ इसको कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा ........
लेकिन जब छोटे कुंवर अमरेश ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर एक मुग़ल की तलवार निकाल ली ........ उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी ........ फिर भी धड़ तलवार चलाता गया ........
और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए ........ बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था ....... हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था ........
शाहजहा खुद बैठे ये नज़ारा देख रहा था की अचानक तब ही तोगा राठौड़ लड़ते हुए दरी-खाने तक पहूच जाते है ........ और उन्हें लड़ते हुए अपनी और आता देख बादशाह घबरा जाता है और अपने रानीवास में जा कर छिप जाता है ........
आखिर बादशाह अपने आदमी को महाराजा गजसिंह के पास भेज कर माफ़ी मांगता है कि ........ गलती हो गयी अब किसी तरह इन वीरो को शांत करो ........ नहीं तो ये सब को मार देंगे ........
तब कही शाहजहा के कहने पर गजसिंह ब्राह्मण द्वारा तोगा राठौर और उन के छोटे भाई के धड पर गंगाजल डलवाते है ........ तब जाके वो दोनों भाई शांत हो कर गिर जाते है .........
महाराज गज सिंह द्वारा मारवाड़ राज्य के राजकीय सम्मान के साथ उन वीरों के शव को डेरे पहुँचाया जाता है ........ वहां तोगा राठौड़ की विधवा क्षत्राणी भटियानी सौलह सिन्गार किये तैयार बैठी होती है ........
जमुना नदी के किनारे चन्दन की चिता में ........ रानी भटियानी तोगा राठौर के सर और धड़ को गोद में ले कर ........ राम नाम की रणकार के साथ चिता की अग्नि में समां जाती है ........
“कटार अमरेस री ....... तोगा री तलवार !
हाथल रायसिंघ री ....... दिल्ली रे दरबार !!”
कटार छोटे भाई अमरेश की ........
तोगा की तलवार ........
हाथल (पुत्री) भाटी रायसिंह की ........
और दिल्ली का दरबार ........
......