गौरव_गाथा
वर्ष 1656 के एक दिन दिल्ली के दरबार में मुग़ल बादशाह शाहजहां अपने सभी उमरावों (दीवानों-जागीरदारों) के साथ बैठा हुआ था ........
अचानक बादशाह ने एक सवाल किया कि मेरे दरबार में मुग़ल उमरावों की संख्या 60 और राजपूत सरदारों की संख्या 62 क्यों ?? .........
इस पर एक मुग़ल उमराव ने खड़े हो के जवाब दिया जहाँपनाह 2 काम ऐसे है जो सिर्फ राजपूत ही कर सकते हैं हम नहीं कर सकते ........
(1) पहला काम सर धड़ से अलग हो जाए तो भी युद्ध करना ........
(2) दूसरा काम राजपूत योद्धा वीरगति प्राप्त करे तो क्षत्राणी का सती हो जाना .........
इस बात पे बादशाह शाहजहां ने उपहास उड़ाया और कहा कि ........ सर कटने के बाद भला कोई योद्धा युद्ध लड़ सकता है क्या ........
दरबार में विराजित मारवाड़ (जोधपुर) महाराजा गजसिंह जी (प्रथम) को ये बात नागवार गुजरी ........ और वो खुद को अपमानित महसूस कर के वहां से उठ खड़े हुए और तत्काल जोधपुर के लिए प्रस्थान किया ........
जोधपुर लौटते वक्त एक दिन उन्होंने मारवाड़ के एक रावले (ठिकाने) में शरण ली ......... वो ठिकाना था मेरे जिले नागौर का रोहिन्डी ठिकाना (आज का परबतशहर - तहसील) .........
वहां के ठाकुर साब काफी वयोवर्द्ध थे ........ उन्होंने मारवाड़ महाराजा गजसिंह जी की आवभगत की और उनसे कहा ......... आपको बचपन में अस्त्र शस्त्र की शिक्षा मैंने दी है और अपनी गोद में खिलाया है ........
भोजन के पश्चात महाराजा गजसिंह जी अपनी व्यथा उन ठाकुर साब को सुनाते है ........ और कहते है सर कटने के बाद भी सिर्फ धड़ से लड़ने वाला राजपूत योद्धा चाहिए ........ ये अब मारवाड़ (जोधपुर) की आन बान शान और नाक का प्रश्न है ........
बुज़ुर्ग ठाकुर साब कहते हैं ........ इसमें कौनसी बड़ी बात है मेरे दोनों बेटे लड़ सकते हैं ........ और अपनी ठकुराइन को बुला के पूछते हैं अपना कौनसा बेटा गर्दन कटने के बाद भी धड़ से युद्ध लड़ सकता है ........
इसपे ठकुराइन कहती है लड़ तो दोनों बेटे सकते हैं ........ किंतु बड़ा बेटा किले के भीतर भी लड़ सकता है और बाहर भी लड़ सकता है ........ छोटा बेटा सिर्फ परकोटे पे लड़ सकता है ......... क्योंकि इसके पैदा होने के वक़्त मैं अस्वस्थ थी और दूध थोड़ा कम पिलाया है छोटे को ........
अब दूसरी समस्या ये थी कि बड़ा बेटा तोगा सिंह कुंवारा है ........ उसके साथ सती कौन होगी ?? .........
तब ही जोधपुर महाराजा के साथ पधारे ओसिया के भाटी सरदार बोल उठे ........ “में दूंगा अपनी बेटी इसको” ........
"भाटी कुल री रीत आ आनंद सु आवती .......
करण काज कुल कीत, भटीयानिया होवे सती" ........
एक बाप अपनी बेटी को शादी से पहले ही विधवा करने को सती करने को तैयार हुआ ये था राजपूती धर्म ........ अच्छा मुहूर्त देख कर महाराजा गज सिंह जी रोहिण्डी ठाकुर साहब के बड़े पुत्र तोगा राठौर का विवाह रचाते है ........
पर शादी के बाद तोगा सिंह पत्नी से मिलने से इंकार कर देता है और कहलवाता है की ....... “अब तो हम दोनों का मिलन स्वर्गलोक में ही होगा” ........ कह कर तोगा राठौर दिल्ली कूच करने की तैयारी करने लगता है .......
शाहजहा तक समाचार पहूचाये जाते है ....... एक खास दिन का मुहूर्त देख कर तोगा राठौर दिल्ली का रास्ता पकड़ता है ....... दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस द्रश्य को देखने जमा थे ........
बादशाह शाहजहा ने अपने खास योद्धाओं को तोगा राठौर को मारने के लिए तैयार कर रखा था ........ तोगा राठौर को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की ........ इसकी गर्दन उड़ा दो .......
तभी बीकानेर महाराजा बोले ....... “ये क्या तमाशा है ?? राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है ....... लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ??" ........
बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सर काट दो ........ 20 घुड़सवारों का दल रोहिंडी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी ........
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ........ मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ........ बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी ........ और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ........
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने ....... अब और मत कीजिये हजुर ....... इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर ........ तलवार से ये नही मरेगा ........
कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सर में गोलिया मार दी ........ और फिर पीछे से उसका सर काट देते है ........पर उस वीर के धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और तोगा राठौड़ गिरता नहीं है ......... वो अपने दोनों हाथो से तलवार चलते हुए मुगलों का मारते रहे ........ मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलता
रहा ........
बादशाह ने तोगा राठौर के छोटे भाई कुंवर अमरेश को अपने पास निहथे बेठा रखा था ये सोच कर कि ........ ये बड़ा यदि इतना बहादुर निकला तो छोटा कितना बहादुर होगा ?? ........ इसको कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा ........
लेकिन जब छोटे कुंवर अमरेश ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर एक मुग़ल की तलवार निकाल ली ........ उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी ........ फिर भी धड़ तलवार चलाता गया ........
और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए ........ बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था ....... हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था ........
शाहजहा खुद बैठे ये नज़ारा देख रहा था की अचानक तब ही तोगा राठौड़ लड़ते हुए दरी-खाने तक पहूच जाते है ........ और उन्हें लड़ते हुए अपनी और आता देख बादशाह घबरा जाता है और अपने रानीवास में जा कर छिप जाता है ........
आखिर बादशाह अपने आदमी को महाराजा गजसिंह के पास भेज कर माफ़ी मांगता है कि ........ गलती हो गयी अब किसी तरह इन वीरो को शांत करो ........ नहीं तो ये सब को मार देंगे ........
तब कही शाहजहा के कहने पर गजसिंह ब्राह्मण द्वारा तोगा राठौर और उन के छोटे भाई के धड पर गंगाजल डलवाते है ........ तब जाके वो दोनों भाई शांत हो कर गिर जाते है .........
महाराज गज सिंह द्वारा मारवाड़ राज्य के राजकीय सम्मान के साथ उन वीरों के शव को डेरे पहुँचाया जाता है ........ वहां तोगा राठौड़ की विधवा क्षत्राणी भटियानी सौलह सिन्गार किये तैयार बैठी होती है ........
जमुना नदी के किनारे चन्दन की चिता में ........ रानी भटियानी तोगा राठौर के सर और धड़ को गोद में ले कर ........ राम नाम की रणकार के साथ चिता की अग्नि में समां जाती है ........
“कटार अमरेस री ....... तोगा री तलवार !
हाथल रायसिंघ री ....... दिल्ली रे दरबार !!”
कटार छोटे भाई अमरेश की ........
तोगा की तलवार ........
हाथल (पुत्री) भाटी रायसिंह की ........
और दिल्ली का दरबार ........
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