बाग बिगाङे बांदरो,
सभा बिगाङे फूहङ ।
लालच बिगाङे दोस्ती
करे केशर री धूङ ।।
जीभड़ल्यां इमरत बसै,
जीभड़ल्यां विष होय।
बोलण सूं ई ठा पड़ै,
कागा कोयल दोय।।
चंदण की चिमठी भली,
गाडो भलो न काठ।
चातर तो एक ई भलो,
मूरख भला न साठ।।
गरज गैली बावली,
जिण घर मांदा पूत ।
सावन घाले नी छाछङी,
जेठां घाले दूध ।।
पाडा बकरा बांदरा,
चौथी चंचल नार ।
इतरा तो भूखा भला,
धाया करे बोबाङ ।।
भला मिनख ने भलो सूझे
कबूतर ने सूझे कुओ ।
अमलदार ने एक ही सूझे
किण गाँव मे कुण मुओ ।।
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शनिवार, 29 अप्रैल 2017
बाग बिगाङे बांदरो.........
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